मानव संस्कृति के कई हुनर हैं| इन में से एक है लेखनकला, जो कि एक महत्वपूर्ण हुनर है| जीवन में प्राप्त की हुई जानकारी, संपादित अनुभव, विचारों को अन्य लोगों तक पहुंचाने के लिए लेखनकला का उपयोग होता है| तकरीबन जिस दौर में समाज के लिए उपयुक्त संशोधन होते रहे उसी दौर में मुद्रण तंत्र की भी खोज होने की वजह से ज्ञानप्रसार में बडी आसानी हुई| जर्मन संशोधक जोहान्स गटेनबर्ग को आधुनिक मुद्रणकला का जनक माना जाता है| कहा जाता है कि, चिनी संशोधक पी-चेंग ने यह इस कला की खोज की थी, मगर वे गुजर गए और उनके निधन के बाद उनका टाईप अज्ञात ही रहा| तत्पश्चात जोहान्स गटेनबर्ग द्वारा खोजा हुआ मुद्रण टाईप इस्तेमाल के योग्य माना गया और मुद्रणकला में एक क्रांति छा गई|गुटनबर्ग के टाइप-मुद्रण के आविष्कार से पूर्व मुद्रण का सारा कार्य ब्लाकों में अक्षर खोदकर किया जाता था। गूटेनबर्ग का जन्म जर्मनी के मेंज नामक स्थान में हुआ था। (Johannes Gutenberg Biography in Hindi )
1420 ई. में उनके परिवार को राजनीतिक अशांति के कारण नगर छोड़ना पड़ा। उन्होंने 1439 ई. के आसपास स्ट्रासबोर्ग में अपने मुद्रण आविष्करण का परीक्षण किया। काठ के टुकड़ों पर उन्होंने उल्टे अक्षर खोदे। फिर उन्हें शब्द और वाक्य का रूप देने के लिए छेद के माध्यम से परस्पर जोड़ा और इस प्रकार तैयार हुए बड़े ब्लाक को काले द्रव में डुबाकर पार्चमेंट पर अधिकाधिक दाब दिया। इस प्रकार मुद्रण में सफलता प्राप्त की। बाद में उन्होंने इस विधि में कुछ सुधार किया।
इस प्रकार प्रथम मुद्रित पुस्तक ‘कांस्टेंन मिसल’ है जो 1450 के आस पास छापी गई थी। उसकी केवल तीन प्रतियाँ उपलब्ध हैं। एक म्युनिख (जर्मनी) में, दूसरी ज्यूरिख (स्विटज़रलैंड) में और तीसरी न्यूयार्क में। इसके अतिरिक्त एक बाइबिल भी गुटेनबर्ग ने मुद्रित की थी। सन 1443 के बाद Johannes Gutenberg गुटनबर्ग ने स्ट्रासबर्ग छोड़ दिया | मिंज पहुचकर उन्होंने एक रिश्तेदार से कुछ पैसे उधार लिए ,ताकि वह अपने प्रयोग को जारी रख सके | सन 1448 में उन्होंने प्रिंटिंग प्रेस का अविष्कार कर लिया | इस दौरान उन्हें अनेक बाधाओं का सामना करना | टाइप के लिए सटीक धातु का निर्धारण करना कठिन काम था | तेल मिश्रित स्याही का इस्तेमाल करना उन्होंने जरुरी समझा था |
सन 1450 में बाइबिल का मुद्रण करने के लिए अमीर व्यक्ति जोहान फस्ट ने Johannes Gutenberg गुटनबर्ग को पहले 800 गिल्डर्स दिय और सन 1452 में फिर 800 गिल्डर्स दिए | फस्ट अपनी राशि पर मुनाफा जल्दी कमाना चाहता था जबकि Johannes Gutenberg गुटनबर्ग अपनी तकनीक सुधारकर पुस्तक तैयार करना चाहते थे | “गुटनबर्ग बाइबिल ” की 200 प्रतिया छापी गयी | मुद्रण का काम सन 1455 में पूरा हुआ | Johannes Gutenberg गुटनबर्ग के जीवन के उतरार्ध के बारे में निश्चित जानकरिया उपलब्ध नही है |
बाइबिल के मुद्रण सेर उन्हें मुनाफा होना चाहिए था , मगर फस्ट ने उनके खिलाफ मुकदमा कर दिया और बाइबिल की बिक्री से होने वाली आय पर उसका अधिकार हो गया | माना जाता है कि सन 1460 से पहले गुटनबर्ग ने एक नया छापाखाना स्थापित किया | इसके लिए उन्हें एक अमीर वकील कोनराड हमरी से वित्तीय सहायता मिली थी | उन्होंने 748 पृष्टो का इनसाइक्लोपीडिया “केथोलिकन ” शीर्षक से प्रकाशित किया था |
गटेनबर्ग का आखरी समय बहुत कष्टदाई साबित हुआ| मैनिज के आर्चबिशप से मिलनेवाले निवृत्ति वेतन पर उन्हें निर्भर करना पडा| व्यवहार को न समझ पाने की वजह से उनकी व्यावसायिक सङ्गलता उन से छीनी गई| ऐसी कठिन स्थिति में सन १४६८ में उनका निधन हो गया| एक निरंतर कार्यशील व्यक्तित्व शांत हो गया| एक लगन के बिना पर जीवन व्यतीत करनेवाले गटेनबर्ग का व्यावहारिक जग में शोकान्त हो गया| इस के बाद के दौर में छपाई यंत्रणा में उपयुक्ततानुसार विभिन्न बदलाव हुए| बीसवीं शताब्दी के अन्त में कम्प्युटरी क्रांति की वजह से छपाई तंत्र ने अपना रंगरूप ही बदल लिया| ऐसा होते हुए भी मुद्रणकला के जनक के रूप में गटेनबर्ग को ही पहचाना जाता है| भारत में पहली बार मुद्रण तंत्र का इस्तेमाल सन १५५६ में किया गया|
छापाखान :
1439 के आसपास, गुटेनबर्ग एक वित्तीय वित्तीय क्षेत्र में शामिल होकर पॉलिश किए गए धातु के दर्पण (जो कि धार्मिक अवशेष से पवित्र रोशनी प्राप्त करने के लिए माना जाता था) आकिन के लिए तीर्थयात्रियों को बिक्री के लिए शामिल किया गया था: 1439 में शहर सम्राट शारलेमेन से अवशेषों के संग्रह का प्रदर्शन करने की योजना बना रहा था, लेकिन एक गंभीर बाढ़ की वजह से एक वर्ष की घटना में देरी हुई थी और पहले ही खर्च किए गए पूंजी का भुगतान नहीं किया जा सका।
जब निवेशकों को संतुष्ट करने का सवाल आया तो गुटेनबर्ग ने “गुप्त” साझा करने का वादा किया था। यह व्यापक रूप से अनुमान लगाया गया है कि यह गुप्त चल प्रकार के साथ मुद्रण का विचार हो सकता है। इसके अलावा 1439 € 40 के आसपास, डच लॉरेन जांज़ून कोस्टर प्रिंटिंग के विचार के साथ आया था। किंवदंती यह है कि यह विचार “प्रकाश की किरण की तरह” आया
जब तक कम से कम 1444 गुटेनबर्ग स्ट्रासबर्ग में रहते थे, संभवतः सेंट आर्बोगैस्ट पारिश में होने की संभावना थी। यह स्ट्रासबर्ग में 1440 में था, जिसे कहा जाता है कि वह अपने शोध के आधार पर छापने का रहस्य सिद्ध और अनावरण कर रहा है, रहस्यमय तरीके से एवेंटुर एंड कन्स्ट (एंटरप्राइज़ और कला) के नाम पर। यह स्पष्ट नहीं है कि वह किस काम में जुड़ा था, या चलने योग्य प्रकार से छपाई के कुछ शुरुआती परीक्षण हो सकते हैं। इसके बाद, रिकार्ड में चार साल का अंतर है। 1448 में, वह मेनज़ में वापस आ गया, जहां उन्होंने अपने भाभी अर्नोल्ड गैल्थस से ऋण लिया, काफी संभवतः एक प्रिंटिंग प्रेस या संबंधित सामग्री के लिए।
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