मैनोलिक का जन्म 22 मार्च 1920 को कलिनोवैक, क्रोएशिया में हुआ था।द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, वह एक महत्वपूर्ण यूगोस्लाव प्रतिरोध सेनानी थे। (Josip Manolić Biography in Hindi) बाद में, उन्होंने यूगोस्लाव राज्य सुरक्षा प्रशासन (OZNA या UDBA) के एक वरिष्ठ अधिकारी के रूप में कार्य किया। 24 अगस्त 1990 से 17 जुलाई 1991 तक मैनोलिक क्रोएशिया के प्रधानमंत्री थे। क्रोएशिया ने औपचारिक रूप से अपने कार्यकाल के दौरान 25 जून 1991 को यूगोस्लाविया से अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की। प्रधान मंत्री के रूप में अपने अल्पावधि के बाद, 1993 से 1994 तक वह क्रोएशियाई संसद के ऊपरी सदन चैंबर ऑफ काउंटियों के पहले अध्यक्ष थे।
व्यक्तिगत जीवन
1945 में मैनोलिक ने अपनी पहली पत्नी, मारिजा एकर (1921–2003) से शादी की। 30 अप्रैल 2016 को, मैनोलिक ने अपनी दूसरी पत्नी, मिर्जाना रिबेरिक (1956-2020) से शादी की, जो उनसे 36 साल छोटी थी। मैनोलिक सबसे उम्रदराज जीवित पूर्व क्रोएशियाई प्रधान मंत्री हैं और अब तक का पद संभालने वाले सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाले व्यक्ति हैं। अपनी उन्नत उम्र के कारण, उन्होंने सोशल मीडिया के साथ-साथ प्रेस में भी प्रसिद्धि प्राप्त की है। वह क्रोएशिया में वैध ड्राइविंग लाइसेंस के सबसे पुराने धारकों में से एक निकला। 22 मार्च 2020 को उन्होंने अपनी शताब्दी मनाई।अप्रैल 2021 में, बीमारी की वैश्विक महामारी के दौरान, Manolic ने COVID-19 को अनुबंधित किया। शुरू में हल्के निमोनिया के लक्षण दिखाने के बावजूद, उन्हें अस्पताल में भर्ती नहीं किया गया था, और अंततः दो सप्ताह के भीतर ही वे ठीक हो गए।
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हमें से ज्यादातर लोग जब भी शेयर मार्केट के बारे में बात करते हैं तो हम SIP या Mutual Fund पर अपने पैसों को निवेश करने के बारे में सोचते हैं। हमें से ज्यादातर लोग इस बारे में नहीं जानते हैं कि एसआईपी और म्युचुअल फंड के बीच में क्या अंतर है। क्या एसआईपी एक म्यूच्यूअल फंड है? ऐसे ही कुछ सवाल है जिन्हें ज्यादातर निवेशक को शेयर बाजार या फिर अपने लिए म्यूचुअल फंड या एसआईपी कराने से पहले जानने की जरूरत होती है। आज के हमारे इस लेख में हम जानकारी लेंगे की (What is Difference Between SIP and Mutual Fund in Hindi) – एसआईपी और म्युचुअल फंड के बीच अंतर मुझे लगता है कि, SIP (Systematic Investment Plan) को म्यूट फंड के रूप में बाजार में इतनी अच्छी तरह से मार्केटिंग की गई है, कि जब भी हम अपनी म्यूच्यूअल फंड के बारे में बात करते हैं तो हमारे मन में पहले एसआईपी का ही नाम आता है। लेकिन ऐसा नहीं है, दोनों के बीच में कुछ अंतर है। यहां म्यूच्यूअल फंड कारोबार के लिए अच्छा साबित हो सकता है। लेकिन एक निवेशक के लिए नहीं। कुछ लोग सोचते हैं कि सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान यानी की एसआईपी सुरक्षित है, एसआईपी के जरिए किसी भी तरह का टैक्स नहीं लगता, एसआईपी सुरक्षित होने के साथ-साथ ज्यादा ब्याज देने वाला इंस्ट्रूमेंट है। आज के हमारे इस लेख में हम इसी बारे में जानकारी लेंगे की एसआईपी और म्युचुअल फंड के बीच में क्या अंतर है।
What is difference between SIP and Mutual Fund? – एसआईपी और म्युचुअल फंड के बीच अंतर
आगे बढ़ने से पहले हमें यह जानकारी लेना जरूरी है कि असल में एसआईपी क्या है? इसे के साथी हम यह भी जानकारी लेंगे की म्यूच्यूअल फंड क्या होती है? तभी हमें इन दोनों के बीच में अंतर का पता चलेगा।
What is SIP? एसआईपी क्या है?
SIP का फुल फॉर्म “Systematic Investment Plan” होता है। जैसा कि आप इस के नाम से ही देख सकते हैं कि यह म्यूच्यूअल फंड में पैसे लगाने का एक व्यवस्थित तरीका है। आप हर महीने एक निश्चित तारीख पर इसमें अपने पैसों का निवेश करते हैं। एसआईपी के जरिए आप अपने बचत बैंक खाते को इस से जोड़ते हैं और स्वचालित रूप से हर महीने आपके बचत बैंक खाते से पैसे कट कर एसआईपी में निवेश हो जाते हैं।
आपके बचत बैंक खाते से काटे गए पैसे से आपके द्वारा पसंदीदा म्यूच्यूअल फंड यूनिट खरीदे जाते हैं जो आपके डीमैट खाते में जमा हो जाती है। तो देखा जाए तो एसआईपी एक व्यवस्थित तरीका है, जिसकी मदद से आप म्यूचुअल फंड में हर महीने निवेश करते हैं।
What is Mutual Fund? म्यूच्यूअल फंड क्या है?
Mutual Fund , जैसा कि इसके नाम से ही पता चल रहा है कि यहां फंड में कई लोगों का पैसा लगा होता है। म्यूचुअल फंड में विभिन्न निवेशक से पैसा इकट्ठा किया जाता है और इस पैसे को शेयर और बॉन्ड मार्केट इत्यादि में निवेश किया जाता है। निवेशकों को उनके पैसों के लिए यूनिट आवंटित कर दिया जाता है। अब इस यूनिट के अनुपात में शेयर या बॉन्ड खरीदने बेचने पर होने वाले मुनाफे को म्यूच्यूअल फंड हाउस फंड निवेशकों के बीच में बांट देते हैं।
म्यूच्यूअल फंड धारक को डिविडेंड या लाभांश फंड पर होने वाले सभी खर्च जैसे ऐसेट मैनेजमेंट शुल्क, एडमिन खर्चे, एजेंट का कमीशन आदि निकाल कर दे दिया जाता है। आमतौर पर म्यूच्यूअल फंड को बाजार में एक ही स्कीम के तहत समय-समय पर लॉन्च किया जाता है। किसी भी म्यूच्यूअल फंड के लिए जरूरी है कि वह अपना नाम भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड यानी कि SEBI के अंतर्गत रजिस्ट्रेशन करवाएं।
Why SIP is better Option ? एसआईपी के जरिए निवेश करना बेहतर विकल्प क्यों है?
ज्यादातर लोग आपको इस बारे में बताते भी दिखेंगे की एसआईपी में निवेश करना आपके लिए बेहतर है। क्योंकि, आप एक प्रकार से म्यूच्यूअल फंड में व्यवस्थित तरीके से निवेश कर रहे होते हैं। यह सच नहीं है, एसआईपी ऐसे लोगों के लिए अच्छा है जो हर महीने नियमित आय प्राप्त करते हैं। उदाहरण के तौर पर नौकरी पेशा व्यक्तियों के लिए। वह लंबे समय के लिए एसआईपी के जरिए इसमें निवेश कर सकते हैं। और हर महीने व्यवस्थित तरीके से म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं।
लेकिन, उन लोगों का क्या? जिनकी इनकम अनियमित है यानी कि ऐसे व्यक्ति या लोग जिन्हें हर महीने एक निश्चित रकम प्राप्त नहीं होती। उनके लिए एसआईपी में निवेश करना जोखिम भरा हो सकता है। कहने का मतलब यह है कि अनियमित आए वाले व्यक्ति हर महीने एक निश्चित राशि एसआईपी के जरिए जमा करने में सक्षम नहीं होते हैं। ऐसे व्यक्तियों के लिए एक ही उपाय है वह सीधे म्यूचुअल फंड में एकमुश्त राशि निवेश कर सकते हैं। जहां नियमित आय वाले व्यक्ति हर महीने कुछ राशि एसआईपी के जरिए म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं। तो अनियमित आए वाले व्यक्ति लम सम अमाउंट में एक ही बार में म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं।
क्या एसआईपी एक म्यूच्यूअल फंड है?
नहीं, बिल्कुल भी नहीं। SIP एक व्यवस्थित तरीका है जिससे कि आप हर महीने म्यूचुअल फंड में कुछ रकम जमा करते हो और जिसके बदले में आपको यूनिट प्राप्त होते हैं। कोई एसआईपी म्यूचुअल फंड नहीं है। म्यूच्यूअल फंड एक निवेश का साधन है जहां पैसा निवेश किया जाता है और रिटर्न प्राप्त होता है। हालांकि एसआईपी म्यूचुअल फंड में पैसे निवेश करने का एक व्यवस्थित तरीका है।
म्यूच्यूअल फंड कई प्रकार के हो सकते हैं जो इस पर निर्भर करता है कि वह किस में निवेश करते हैं। म्यूच्यूअल फंड इक्विटी आधारित हो सकती है यदि वे अपने अधिकांश पैसों का निवेश शेयर बाजार में करते हैं तो यह डेट फंड कहलायेगा, यदि वे अपने अधिकांश पैसों को डेट इंस्ट्रूमेंट पर निवेश करते हैं तो यह एक अलग म्यूच्यूअल फंड का प्रकार होता है। किसी प्रकार अगर गोल्ड बॉन्ड, सरकारी प्रतिभूतियों, इत्यादि चीजों पर निवेश किया जाता है तो यह एक अलग तरह का म्यूच्यूअल फंड होता है।
SIP पर, आपको इस बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं होती क्योंकि यहां पर आपके पैसों को व्यवस्थित कोई ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी करती है। जो अपने पैसों को अपने हिसाब से अलग-अलग प्रतिभूतियों पर निवेश करती है। एक निश्चित समय के बाद इस में होने वाले लाभ को समान रूप से बांट दिया जाता है।
क्या एसआईपी निवेश का साधन है?
हां, SIP एक निवेश का साधन है जिसकी मदद से आप एक व्यवस्थित तरीके से म्यूच्यूअल फंड के अंदर इनडायरेक्टली निवेश करते हैं। लेकिन एसआईपी अपने आप में एक निवेश नहीं है। एसआईपी एक इंस्ट्रूमेंट है या एक तरीका है जिसकी मदद से आप म्यूच्यूअल फंड पर निवेश करते हैं।
यह निवेश के तरीकों में से एक है जिसमें आप चयनित म्युचुअल फंड योजना में पूर्व निर्धारित अवधि के लिए एक निश्चित राशि का निवेश कर सकते हैं। वास्तविक निवेश वह म्यूच्यूअल फंड योजना है जिसमें आप निवेश कर रहे होते हैं। जिसे आपकी ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी द्वारा चयनित किया जाता है। कुछ लोग सोचते हैं कि म्यूच्यूअल फंड के फंड के अलग-अलग संस्करण होते हैं एक एसआईपी के लिए और दूसरा एक मुश्त के लिए। लेकिन ऐसा नहीं है। बस एसआईपी एक तरीका है जिससे कि आप म्यूच्यूअल फंड पर निवेश करते हैं।
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एक महिला अपने जीवन में विभिन्न चरणों से गुजरती है और मातृत्व एक ऐसा चरण है जिसे हर महिला अपने जीवन काल में कम से कम एक बार गले लगाना चाहती है। कोई भी भाषा मातृत्व से जुड़ी भावनाओं और भावनाओं को व्यक्त नहीं कर सकता है। मातृत्व की यात्रा शुरू करने के लिए महिला को बच्चे को जन्म देने का निर्णय लेना होता है। (What is Maternity Insurance Kaise Karwaye in Hindi) जब कोई मां और दंपति बच्चा पैदा करने का फैसला करते हैं तो उन्हें अपनी वित्तीय और स्वास्थ्य की स्थिति की जांच करने की आवश्यकता होती है। ऐसे में उन्हें मेटरनिटी इंश्योरेंस लेने की जरूरत होती है। आज हम अपने इस लेख में यह जानकारी लेंगे की मेटरनिटी इंश्योरेंस क्या है? What is Maternity Insurance ? पहले ज्यादातर महिलाएं 20 से 25 साल की उम्र में मां बनती थी। यह एक सही उम्र है, लेकिन जैसे-जैसे समय बदलता जा रहा है वह सुबह से लोग अब काफी देरी से शादी करने लगे हैं। जिसके चलते अब औसतन 30 साल की उम्र में ज्यादातर महिलाएं मां बनती है। जिस वजह से संतान प्राप्ति में कई सारी जटिलताएं आ सकती है। डिलीवरी के दौरान बहुत सी परेशानियां आ सकती है। जिसके चलते हॉस्पिटल के खर्च बढ़ सकते हैं। ऐसे में मेटरनिटी इंश्योरेंस एक विकल्प है। जिससे कि आप अपने वित्तीय खर्चा का निपटारा कर सकते हैं।
What is Maternity Insurance? – मेटरनिटी इंश्योरेंस क्या है?
मातृत्व बीमा – मेटरनिटी इंश्योरेंस – Maternity Insurance पत्रकार बीमा योजना है जो गर्भावस्था कवर प्रदान करता है।
वर्तमान समय में आपको मेटरनिटी इंश्योरेंस कई प्रकार के मार्केट में देखने को मिल जाएंगे। लेकिन, सबसे अच्छा मातृत्व भीमापुरा है जो अस्पताल में भर्ती होने के साथ-साथ 30 और 60 दिनों के लिए अस्पताल में भर्ती होने से पहले और बाद के खर्चों को कवर करता हो। यह आपके नवजात शिशु युद्ध को पॉलिसी में पहले दिन से कवर करना चाहिए ताकि यह नवजात शिशु को किसी उपचार की आवश्यकता हो तो उसे भी कवर किया जाना चाहिए।
मेटरनिटी इंश्योरेंस देने वाली कुछ बीमा कंपनी
यहां पर आपको हम कुछ बीमा कंपनी की लिस्ट दे रहे हैं। जो मेटरनिटी इंश्योरेंस देती है। और इनकी इंसुरेंस सबसे बेहतर मानी जाती है।
Max Bupa Heartbeat
Religare Happy
Apollo Munich’s
Royal Sundaram का लाइफटाइम एलिट प्लान
स्टार हेल्थ की ओर से वेडिंग गिफ्ट इंश्योरेंस प्लान
Health Suraksha Gold plan from HDFC ERGO.
How to buy Maternity Insurance Plan – मातृत्व बीमा लेने से पहले क्या करें?
मेटरनिटी इंश्योरेंस लेने से पहले आपको कुछ बिंदुओं पर गौर करना बेहद जरूरी है। तभी आपकी अच्छी तरह से निश्चय कर सकते हैं कि आपको मेटरनिटी इंश्योरेंस की आवश्यकता है या नहीं। इसके लिए हमने निम्नलिखित बिंदुओं के द्वारा आप को समझाने की कोशिश की है।
जब आप शादी करने की योजना बना रहे हो तो मेटरनिटी प्लान खरीदना सबसे अच्छा होता है, ना कि जब आप परिवार बनाने की योजना बना रहे हो। क्योंकि सभी मैटरनिटी प्लान प्रतीक्षा अवधि के साथ आते हैं जो 2 से 6 साल के बीच हो सकती है।
मेटरनिटी प्लान खरीदने से पहले आप यह सुनिश्चित करें कि आप हमेशा योजना के नियम और शर्तों का पालन करते रहें और इसे एक बड़ी सूची समझकर नजरअंदाज ना करें।
सुनिश्चित करें कि आप बीमा कंपनी द्वारा बताए गए लाभों को प्रोत्साहित करें क्योंकि विज्ञापन ग्राहक को आकर्षित करने का एक तरीका होता है।
दंपति को मातृत्व बीमा खरीदना चाहिए जो उनकी आवश्यकता को पूरा करता हो। यदि कामकाजी दंपति पहले से अपने नौकरी संस्थान से समूह बीमा करवा रहे हैं तो उन्हें टॉपअप या राइडर प्लान के रूप में मेटरनिटी इंसुरेंस जरूर खरीदना चाहिए।
बीमा करते वक्त आप इस बात का भी ध्यान रखें कि सभी बीमा योजना जो आपने अपने लिए ली है उनमें मातृत्व कवरेज प्रदान करती है क्योंकि इसके लिए 24 घंटे से अधिक समय तक अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है। क्योंकि एक बाजार में अधिकांश स्वास्थ्य बीमा योजना उपलब्ध है। मातृत्व खर्च को छोड़ दें क्योंकि हर जुड़ा पितृत्व को गले लगाना पसंद करता है।
कम प्रीमियम मैटरनिटी कवर के लालच में ना आए जो सीधे कवर से जोड़ती है। जितना तुम प्रीमियम होगा उतना कम कवरेज होगा और संभावना अधिक है कि आप इस आनंद में यात्रा को और अधिक जटिल बना सकते हैं।
बीमा सलाहकार ओ पर आंख बंद करके विश्वास ना करें क्योंकि उनके पास अपनी नौकरी की आवश्यकता को पूरा करने का लक्ष्य है क्योंकि बीमा उन्हें कमीशन का उत्तम प्रतिशत प्रदान करता है।
बीमा करता से चिकित्सा इतिहास छुपाना एक और बहुत ही आसमा निकलती है जो लोग मातृत्व स्वास्थ्य बीमा खरीदते समय करते हैं। आप इस जानकारी को बीमा करता से छुपा सकते हैं लेकिन उपचार के दौरान आपको अपने डॉक्टर को बताना होगा ताकि सही उपचार प्रदान किया जा सके।
Benefit of Maternity Insurance – मेटरनिटी इंश्योरेंस के लाभ
मेटरनिटी इंश्योरेंस में आपको व्यापक कवरेज मिलता है। जिसके अंतर्गत आपको बीमित राशि तक नवजात कवर, घरेलू अस्पताल में भर्ती, आपातकालीन एंबुलेंस सेवा, अंगदान करने वाले व्यक्ति के लिए अंगदाता कवर, इंश्योरेंस नवीनीकरण प्रीमियम पर सूट इत्यादि चीजें मिलती है।
एंबुलेंस शुल्क बीमा राशि के आधार पर एक निश्चित राशि या प्रतिशत के रूप में एंबुलेंस कवर भी मिलता है।
अस्पताल में भर्ती कवरेज दैनिक अस्पताल भत्ता मिलता है, जिसके अंतर्गत कमरे का किराया, आईसीयू का शुल्क आदि शामिल होता है।
कैशलेस सुविधाएं मातृत्व बीमार के अंतर्गत कुछ चुनिंदा नेटवर्क अस्पतालों में ही आपको यह सुविधा दी जाती है।
टैक्स लाभ इसके अंतर्गत आपको अपने टैक्स पर भी लाभ मिलता है। आयकर अधिनियम 1961 की धारा 80D के अंतर्गत प्रीमियम भुगतान पर ₹75000 तक छूट मिलती है।
प्रीमियम भुगतान पर आपको छूट मिलता है।
प्रसव पूर्व और बाद के खर्चे कुछ मातृत्व स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी में सामान्य के साथ-साथ सिजेरियन डिलीवरी भी शामिल है, जिसमें प्रसव पूर्व और बाद के खर्च शामिल होते हैं।
बच्चे के जन्म के बाद मां के लिए प्रसव के बाद की जटिलताओं को भी इस बीमा के अंतर्गत कवर किया जाता है।
आपात स्थिति विदेशी स्थानों पर बीमित व्यक्ति को आपातकालीन चिकित्सा निकासी की सुविधा है। एयर एंबुलेंस या फ्लाइट के जरिए भारत में इमरजेंसी मेडिकल निकासी भी दी जाती है।
निष्कर्ष
आज के हमारे इस लेख में हमने इस बारे में जानकारी दी है कि What is Maternity Insurance ? – मेटरनिटी इंश्योरेंस क्या है? जब आप एक परिवार शुरू करने की योजना बना रहे हैं तो आपको मेटरनिटी इंश्योरेंस के बारे में जरूर सोचना चाहिए। यह भविष्य में आपको अस्पताल के खर्चे से बचाता है। सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए बच्चा पैदा करना एक उद्देश्य और एक उपलब्धि है और इसी तरह यह एक श्रमसाध्य रूप से बनाई गई धन संबंधी व्यवस्था के भी योग्य है। उम्मीद करता हूं कि आपको हमारा आज का लेख पसंद आया होगा। इससे संबंधित अगर आपकी कुछ सवाल एवं सुझाव है तो आप हमें कमेंट बॉक्स में कमेंट करके बता सकते हैं।
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Poटैक्स सेविंग (Tax Saver) फिक्स डिपॉजिट बैंक और वित्तीय संस्थानों द्वारा पेश किया गया एक निवेश का साधन है। जहां आप पैसे जमा कर सकते हैं और सामान्य बचत खाते की तुलना में यहां इस योजना के अंतर्गत आपको अधिक ब्याज दर मिलता है। इस योजना के तहत आपको निवेश को धारा 80C के अनुसार टैक्स से छूट मिलती है। सामान्य तौर पर एक साधारण फिक्स्ड डिपॉजिट योजना एक निश्चित समय पर अधिक रिटर्न दे सकती है। (What is Tax Saver Fixed Deposit in Hindi) लेकिन टैक्स लाभ एक साधारण फिक्स डिपाजिट योजना में आपको नहीं मिलती है। आज के हमारे इस लेख में हम जानकारी लेंगे की What is Tax Saver Fixed Deposit? टैक्स सेविंग फिक्स डिपाजिट क्या है? इसके अलावा आज के हमारे इस लेख में हम टैक्स सेविंग फिक्स्ड डिपॉजिट के बारे में जानकारी लेंगे। जिसने इसकी विशेषताएं, लाभ और इसमें निवेश करने के लिए आपको जो भी जानने की आवश्यकता है उन सारे पहलुओं को आज के हमारे इस लेख में जानकारी देने की कोशिश करेंगे।
What is Tax Saver Fixed Deposit? टैक्स सेविंग फिक्स डिपाजिट क्या है?
Tax Savings or Tax Saver , टैक्स सेविंग फिक्स्ड डिपॉजिट एक प्रकार का सावधि जमा होता है। जिसके अंतर्गत भारतीय आयकर की धारा 1961, 80C के तहत आपके टैक्स पर आप कटौती का दावा कर सकते हैं। यह फिक्स डिपॉजिट पर दो प्रकार के खातों के माध्यम से किया जा सकता है। एकल धारक प्रकार जमा और संयुक्त धारक प्रकार जमा।
यदि आप संयुक्त रूप से होल्डिंग का विकल्प चुनते हैं तो कर लाभ केवल पहले धारक को ही मिलता है। अधिकतर बैंकों और वित्तीय संस्थानों में खुलने वाला टैक्स सेविंग फिक्स डिपाजिट अधिकतम 5 वर्षों के लिए खोला जाता है। धारा 80C के अंतर्गत कटौती हिंदू अविभाजित परिवार और व्यक्तियों के लिए भी उपलब्ध है।
How Tax Saver Works? टैक्स सेवर कैसे काम करता है?
जैसा कि हमने इस बारे में पहले ही जानकारी दी है कि Tax Saving FD, बैंक और अन्य वित्तीय संस्थानों द्वारा दिए जाने वाला एक निवेश का साधन है। जिस पर आप अपने पैसों को निवेश करके अपने सालाना टैक्स पर कटौती या छूट प्राप्त करते हैं। इस योजना के अंतर्गत आप 5 वर्षों के लिए एकमुश्त राशि जमा करते हैं। यह आयकर अधिनियम की धारा 1961 के 80C के तहत निवेश करने वाले व्यक्ति को कटौती की पेशकश करता है।
जैसा कि आपने पहले ही ऊपर जिक्र किया है कि टैक्स सेविंग फिक्स्ड डिपॉजिट अधिकतम 5 वर्षों के लिए एकमुश्त राशि के रूप में खोली जाती है। 5 वर्ष इसका लॉक इन अवधि होता है। सीधे शब्दों में कहें तो आप 5 वर्षों से पहले इसे तोड़ नहीं सकते हैं।
आपके द्वारा जमा किए गए पैसों पर अर्जित ब्याज पर कर लगता है। टैक्स सेविंग फिक्स डिपाजिट की मैच्योरिटी के समय मैच्योरिटी राशि आपके सेविंग अकाउंट में जमा कर दी जाती है।
Benefit of Tax Saver Fixed Deposit? टैक्स सेविंग फिक्स्ड डिपॉजिट के लाभ
टैक्स सेविंग फिक्स डिपॉजिट पर निवेश करने से आपको बहुत से लाभ मिलते हैं। टैक्स सेवर फिक्स डिपॉजिट पर अगर आप निवेश करते हैं तो आपको अच्छा रिटर्न मिलना है के साथ-साथ लाभ भी मिलता है। इससे मिलने वाले लाभ को हमने नीचे सूचीबद्ध किया है।
टैक्स में छूट – टैक्स सेविंग फिक्स्ड डिपॉजिट के साथ आप इनकम टैक्स अधिनियम धारा 1961 की धारा 80C के अंतर्गत आयकर छूट का लाभ उठा सकते हैं। ₹1,50,000 तक के निवेश पर आप निवेश पर दावा किया जा सकता है।
योजना के अंतर्गत लॉक इन अवधि – ध्यान रहे कि यदि आप टैक्स सेविंग फिक्स डिपाजिट खुलवा ते हैं तो यह 5 साल की लॉक इन अवधि के अंतर्गत खुलता है। इसमें मिलने वाला ब्याज दर भी 5 सालों की अवधि में परिवर्तित रहती है।
कर योग्य ब्याज – टैक्स सेविंग फिक्स्ड डिपॉजिट के हिस्से में अर्जित ब्याज कर योग्य है और स्रोत पर ही काट लिया जाता है।
समय से पहले निकासी नहीं कर सकते – जैसा कि हमने पहले ही इसके बारे में बताया है कि यह 5 साल की लॉक इन अवधि के अंतर्गत खोली जाती है। इस वजह से आप समय से पहले इससे निकासी नहीं कर सकते। ना ही आप साधारण फिक्स डिपाजिट के अंतर्गत मिलने वाली सुविधा जैसे कि ओवरड्राफ्ट, क्रेडिट लोन इत्यादि चीजें नहीं ले सकते हैं।
टैक्स सेविंग फिक्स्ड डिपॉजिट पर किसी भी तरह का कोई ऑटो रिनुअल नहीं होता। यह 5 सालों के लिए खोला जाता है और 5 साल होने के बाद इस में जमा राशि आपके बचत खाते में जमा कर दी जाती है।
ब्याज दरें बैंक से बैंक में अलग-अलग हो सकती है और भारतीय नागरिक, हिंदू अविभाजित परिवार के लिए दरें भी भिन्न हो सकती है। टैक्स सेविंग फिक्स्ड डिपॉजिट सिंगल या जॉइंट दोनों मोड में खोला जा सकता है।
टैक्स सेविंग सावधि जमा में बचत खाते की तुलना में आपको अधिक ब्याज दर प्राप्त होता है।
टैक्स सेविंग फिक्स डिपाजिट कैसे खोलें?
टैक्स सेविंग फिक्स डिपोजिट खाता खुलवाने के लिए आप अपने नजदीकी बैंक या वित्तीय संस्थान से संपर्क कर सकते हैं। हमारी यह सलाह रहेगी कि अगर आपका बचत खाता किसी बैंक में मौजूद है तो आप अपने बचत खाते के पास बुक के साथ अपने बैंक से संपर्क करें। क्योंकि, जहां पर आपका बचत खाता मौजूद है वहां पर कागजी प्रक्रिया कम हो जाएगी। लेकिन ऐसे बैंक जहां पर आपका बचत खाता नहीं है वहां अगर आप संपर्क करते हैं तो आपको निम्नलिखित दस्तावेजों की आवश्यकता होगी।
पहचान पत्र – के अंतर्गत आप आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, वोटर आईडी कार्ड, पासपोर्ट इत्यादि चीजें जमा कर सकते हैं।
आवासीय प्रमाण पत्र – के लिए आप आधार कार्ड या वोटर आईडी दे सकते हैं। या फिर किसी सरकारी संस्थान द्वारा जारी किया गया अवश्य प्रमाण पत्र भी जमा कर सकते हैं।
आयु का प्रमाण के लिए आप पैन कार्ड जमा कर सकते हैं।
नवीनतम फोटो पासपोर्ट आकार के जमा कर सकते हैं।
निष्कर्ष
अगर आप टैक्स पर बचत करना चाहते हैं तो सबसे आसान तरीका फिक्स्ड डिपॉजिट टैक्स सेविंग योजना है। जहां पर आप एकमुश्त के रूप में ₹150000 तक पैसे जमा कर सकते हैं। लेकिन इस बात का ध्यान रहे कि यह 5 साल की लॉक इन अवधि के अंतर्गत खोली जाती है। इस वजह से आप 5 साल से पहले इसे तोड़ नहीं सकते हैं। इस पर मिले वाले ब्याज दर पर आपको इनकम टैक्स अधिनियम 1961 की धारा 80C के अंतर्गत टैक्स पर छूट मिलता है। आज के हमारे इस लेख में हमने आप सभी लोगों को इस बारे में जानकारी दी है कि What is Tax Saver Fixed Deposit? टैक्स सेविंग फिक्स डिपाजिट क्या है? इसकी मदद से आप किस तरह से अपनी टैक्स की बचत कर सकते हैं। उम्मीद करता हूं आज के हमारे इस लेख से आपको टैक्स सेविंग फिक्स डिपॉजिट के बारे में जानकारी मिल गई होगी। इससे संबंधित अगर आपकी कुछ सवाल एवं सुझाव है तो आप हमें कमेंट बॉक्स में कमेंट करके बता सकते हैं।
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ड्राइविंग लाइसेंस के लिए ऑनलाइन आवेदन कैसे करें? ड्राइविंग लाइसेंस बनवाना बहुत ही आसान हो गया है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा ऑनलाइन वेबसाइट शुरू कर दी गई है। जिसके तहत आप सारी सुविधा डिजिटल माध्यम से ले सकते हैं। अब कोई भी सरकारी दस्तावेज आप घर बैठे ऑनलाइन बना सकते हैं। अगर आप भी यही सोच रहे हैं कि ड्राइविंग लाइसेंस कैसे बनवाएं तो आज के हमारे इस लेख में हम इस बारे में आप लोगों को या जानकारी उपलब्ध कराएंगे कि आप किस तरह से घर बैठे अपने लिए ड्राइविंग लाइसेंस बनवा सकते हैं। (How to Apply Online Driving License in Hindi ) ड्राइविंग लाइसेंस एक तरह की सरकारी दस्तावेज होती है जो यह दर्शाता है कि आपको टू व्हीलर या फिर फोर व्हीलर चलाना आता है। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा अपनी वेबसाइट की शुरुआत करने की वजह से अब आपको ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने के लिए आरटीओ के दफ्तर के चक्कर काटने की आवश्यकता नहीं है। बस आप अपने घर में बैठे ड्राइविंग लाइसेंस के लिए अप्लाई कर सकते हैं। इसके बाद आप अपने टेस्ट देने के लिए अपने संबंधित आरटीओ के दफ्तर में जाने की आवश्यकता होती है। ऑनलाइन आप ड्राइविंग लाइसेंस कैसे बना सकते हैं इसके बारे में हम यहां पर जानकारी देने वाले हैं।
How to Apply Online Driving Licence – ड्राइविंग लाइसेंस के लिए ऑनलाइन आवेदन कैसे करें?
कोई व्यक्ति जो अपना ड्राइविंग लाइसेंस बनवाना चाहता है, चाहे उनके लिए सरकार द्वारा कुछ पात्रता है निर्धारित की गई है जिन को पूरा करने पर ही उनको ड्राइविंग लाइसेंस दिया जाता है। कोई भी व्यक्ति ड्राइविंग लाइसेंस के बिना वाहन का प्रयोग करता है तो इसके लिए उसे भारी जुर्माना देना होगा।
मोटर व्हीकल एक्ट 1988 के तहत कोई भी व्यक्ति अगर बिना ड्राइविंग लाइसेंस के वाहन का प्रयोग करता है, तो उसके तहत जुर्माना निर्धारित किया गया है। मोटर व्हीकल एक्ट 1988 के तहत बिना ड्राइविंग लाइसेंस के वाहन का प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
ड्राइविंग लाइसेंस के लिए आवेदन करने के बाद सबसे पहले आपको लर्निंग ड्राइविंग लाइसेंस जारी किया जाता है। के बाद ही आपको वाहन का प्रयोग करना चाहिए। आइए जानते हैं ड्राइविंग लाइसेंस आप किस तरह से ऑनलाइन आवेदन करके प्राप्त कर सकते हैं?
ऑनलाइन ड्राइविंग लाइसेंस के लिए आवेदन
हमारी इस लेख में हम आपको इस बारे में संपूर्ण जानकारी देंगे कि आप किस तरह से ऑनलाइन माध्यम के जरिए एवं ऑफलाइन माध्यम के जरिए किस तरह से ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त कर सकते हैं। अगर आप भी इन विशेष तथ्यों के बारे में जानना चाहते हैं तो नीचे दिए गए सारणी को देखिए।
आर्टिकल
ड्राइविंग लाइसेंस कैसे बनवाएं?
विभाग
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय
उद्देश्य
योग्य व्यक्ति को ड्राइविंग लाइसेंस जारी करना
आवेदन की प्रक्रिया
ऑनलाइन/ ऑफलाइन माध्यम
वर्तमान वर्ष
2022
अधिकारिक वेबसाइट
https://sarathi.privahan.gov.in
ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने के लिए लगने वाले दस्तावेज
ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने के लिए आपको कुछ जरूरी दस्तावेजों की आवश्यकता होती है। हम उसकी एक सूची नीचे दे रहे हैं, इन दस्तावेजों के जरिए आप ड्राइविंग लाइसेंस के लिए आवेदन ऑनलाइन या ऑफलाइन दोनों ही माध्यमों से कर सकते हैं। हम आपको यहां पर पहले इस बारे में जानकारी देंगे कि आप किस तरह से ऑनलाइन माध्यम के जरिए ड्राइविंग लाइसेंस के लिए आवेदन दे पाएंगे। ऑनलाइन ड्राइविंग लाइसेंस बनाने के लिए आप तो निम्नलिखित दस्तावेज की जरूरत होगी :-
आधार कार्ड
आवासीय प्रमाण पत्र
आपके स्थानीय निवास का प्रमाण ( राशन कार्ड, पैन कार्ड, बिजली का बिल)
जन्मतिथि का प्रमाण पत्र ( इसके अंतर्गत आप अपने दसवीं की मार्कशीट या सर्टिफिकेट जमा कर सकते हैं)
पासपोर्ट साइज फोटो
आपका हस्ताक्षर
लर्निंग लाइसेंस नंबर
मोबाइल नंबर
ड्राइविंग लाइसेंस के आवेदन के लिए क्या पात्रता है?
यदि आप अपना ड्राइविंग लाइसेंस बनवाना चाहते हैं तो आपको ड्राइविंग लाइसेंस के लिए निर्धारित की गई पात्रता ओं को पूरा करना भी जरूरी होता है। ड्राइविंग लाइसेंस के लिए इन निर्धारित पात्रता ओं के बारे में आपको जरूर पता होना चाहिए।
ड्राइविंग लाइसेंस बनाने वाला व्यक्ति भारत का स्थाई नागरिक होना चाहिए।
उम्मीदवार की उम्र 18 वर्ष से ऊपर होने चाहिए।
मानसिक रूप से व्यक्ति स्वस्थ होना चाहिए।
बिना गियर वाले वाहन चालक के लिए न्यूनतम उम्र 16 वर्ष रखी गई है। लेकिन इसके लिए परिवार की रजामंदी होना भी जरूरी है।
आवेदन कर्ता को ट्रैफिक नियमों के बारे में पता होना चाहिए।
गियर वाले वाहनों के लिए आवेदन कर्ता की आयु न्यूनतम 18 वर्ष या इससे ऊपर होनी चाहिए।
ड्राइविंग लाइसेंस के लिए शुल्क का भुगतान – ड्राइविंग लाइसेंस बनाने के लिए आपको कितना देना होगा
ड्राइविंग लाइसेंस बनाने के लिए, इसमें लगने वाली शुल्क की तालिका हम नीचे दे रहे हैं जिसे आप देख सकते हैं
प्रकार
शुल्क
लर्नर लाइसेंस
₹150 शुल्क
लाइसेंस परीक्षण शुल्क या पुनरावृति परीक्षण शुल्क
₹50
परीक्षण के लिए, या दोहराए जाने वाले परीक्षण के लिए ( वाहन के प्रत्येक वर्ग के लिए)
₹300 शुल्क
ड्राइविंग लाइसेंस जारी करना
₹200 शुल्क
अंतर्राष्ट्रीय ड्राइविंग लाइसेंस परमिट जारी करना
₹1000 शुल्क
ड्राइविंग लाइसेंस का नवीनीकरण
₹200 शुल्क
पते में बदलाव के लिए कोई भी आवेदन या ड्राइविंग लाइसेंस जैसे पते आदि में दर्ज कोई अन्य विवरण
₹200 शुल्क
कंडक्टर लाइसेंस फीस
डीएल की आधी फीस
डुप्लीकेट लाइसेंस जारी करना
₹200 शुल्क
डुप्लीकेट कंडक्टर लाइसेंस
ड्राइविंग लाइसेंस शुल्क का आधा
लाइसेंस फीस या अन्य फीस अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग हो सकती है। लाइसेंस फीस जानने के लिए आप संबंधित राज्य के आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर केस की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। How to Apply Online Driving License Hindi
कितने तरह के ड्राइविंग लाइसेंस होते हैं?
ड्राइविंग लाइसेंस के लिए आवेदन देते वक्त आपको इस बारे में भी जानकारी रखना बेहद जरूरी है कि आप किस तरह का ड्राइविंग लाइसेंस बनवाना चाहते हैं। क्योंकि, वाहनों के प्रकार के आधार पर ही ड्राइविंग लाइसेंस निर्गत की जाती है
मोटर वाहन (Light Motor Vehicle)
लर्निंग लाइसेंस (Learning License)
भारी वाहन मोटर लाइसेंस (Heavy Motor Vehicle License)
अंतर्राष्ट्रीय ड्राइविंग लाइसेंस (International Driving License)
स्थाई ड्राइविंग लाइसेंस (Permanent License)
How to Apply Online Driving License Hindi – ड्राइविंग लाइसेंस के लिए ऑनलाइन आवेदन कैसे करें?
सरकार का उद्देश्य देश के नागरिकों को घर बैठे ऑनलाइन माध्यम के जरिए ड्राइविंग लाइसेंस बनाने की सुविधा प्रदान करना है। इंटरनेट के जरिए दस्तावेज बनाना बहुत ही आसान हो गया है। आप ऑनलाइन माध्यम से कोई भी सरकारी दस्तावेज बड़ी आसानी से बना सकते हैं। इससे पहले ऑनलाइन दस्तावेज या ड्राइविंग लाइसेंस बनाने के लिए आपको आरटीओ की दफ्तर की चक्कर काटने पड़ते थे। लेकिन अब ड्राइविंग लाइसेंस बनाने की प्रक्रिया बहुत आसान हो गई है। इससे आपकी समय की बचत एवं पैसे की बचत दोनों हो जाती है।
कई बार लोग ड्राइविंग लाइसेंस बनाने के लिए किसी एजेंट की सहायता लेते हैं लेकिन इसमें धोखाधड़ी की संभावना अधिक होती है। इसके लिए आपको एजेंट को पैसे देने पड़ते हैं और एजेंट आपका ड्राइविंग लाइसेंस बनवा देता है। जिससे आपको अधिक पैसे खर्च करने पड़ते हैं। ऑनलाइन प्रणाली से नागरिकों को एक विशेष अधिकार प्राप्त है उन्हें ड्राइविंग लाइसेंस बनाने के लिए आरटीओ दफ्तर के चक्कर काटने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने के लिए आप सबसे पहले आपको लर्निंग ड्राइविंग लाइसेंस मिलती है। इसी के बाद आपको परमानेंट ड्राइविंग लाइसेंस दिया जाता है। ऑनलाइन माध्यम के जरिए अगर आप ड्राइविंग लाइसेंस के लिए अप्लाई कर रहे हैं तो आपको पहले लर्निंग लाइसेंस के लिए अप्लाई करना होगा। आप लर्निंग लाइसेंस के लिए किस तरह से आवेदन कर सकते हैं इसके लिए कुछ स्टेप हम नीचे बता रहे हैं।
सबसे पहले उम्मीदवार को सड़क परिवहन विभाग मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट पर जाना होगा।
उसके बाद आपकी स्क्रीन पर एक होम पेज खुलेगा जहां आपको पेज में अपने राज्य को चयन करना होगा।
इसके बाद आपने पेज पर पहुंच जाएंगे यहां पर न्यू लर्नर लाइसेंस (New Learner License) पर क्लिक कर दे।
आपको लाइसेंस बनाने के लिए कुछ निर्देश बोलो करने होंगे इसके लिए एक नया पेज खुलेगा आपको Continue पर क्लिक कर देना है।
आपकी स्क्रीन पर आवेदन फॉर्म खुल जाएगा। आपको आवेदन फॉर्म में दर्ज अपने पसंद के हिसाब से कैटेगरी का चयन करना होगा और फॉर्म में पूछी गई सभी जानकारी दर्ज करनी होगी।
इसके बाद आपको सभी इंपॉर्टेंट डॉक्यूमेंट अपलोड करने होंगे।
अब आप LL TEST SLOT ONLINE पर क्लिक कर दे और सबमिट के बटन पर क्लिक कर दें।
इसके बाद आपको आरटीओ ऑफिस जाना होगा। वहां आपको अपना टेस्ट देना होगा अगर आप टेस्ट में पास हो जाते हैं तो आपको लर्निंग लाइसेंस दे दिया जाएगा।
लर्निंग लाइसेंस के टेस्ट में किस तरह के सवाल पूछे जाते हैं?
आपने ड्राइविंग लाइसेंस के लिए ऑनलाइन आवेदन दे दिया है। अब आपको आरटीओ के दफ्तर में जा कर के अपना फॉर्म जमा करना होगा। फोटो एवं आपका हस्ताक्षर यहां पर लिया जाएगा। इसके बाद आपकी एक परीक्षा ली जाती है। इस परीक्षा में किस तरह के सवाल पूछे जाते हैं? यह सवाल बहुत से लोगों के मन में आता है।
आपको यह पता होना चाहिए कि यह एक ऑनलाइन टेस्ट होता है। जिसमें आपको ट्राफिक वाहन से संबंधित कुछ प्रश्न पूछे जाते हैं। जिसमें आपको सही उत्तर देने पर ही लाइसेंस दिया जाएगा। आप ऑनलाइन घर में बैठकर भी लर्निंग लाइसेंस टेस्ट का मॉक टेस्ट दे सकते हैं। इसके लिए नीचे एक लिंक दिया गया है और प्रक्रिया भी बताई गई है।
यहां पर आपको एक नए स्क्रीन खुलता हुआ नजर आएगा जहां पर आप के सामने एक फॉर्म खुल जाएगा। इसमें आपको अपना नाम जन्मतिथि भाषा एवं राज्य का नाम दर्ज करना होता है।
उसके बाद आपको स्क्रीन पर लर्निंग लाइसेंस टेट से संबंधित प्रश्न आ जाएंगे। यहां आपको सही उत्तर के लिए विकल्प दिए गए होते हैं। उसके बाद आप सही उत्तर का चयन करें और उसकी पर क्लिक करें इस प्रकार आप से 10 प्रश्न पूछे जाएंगे।
तन्हा अंत में दिखाए गए आपने कितने प्रश्नों का उत्तर सही रूप में दिया है और कितने गलत किए हैं। इस प्रकार के प्रश्न आपको लर्निंग लाइसेंस बनाते वक्त टेस्ट में पूछे जाते हैं। इस प्रकार आपका टेस्ट होने के बाद अगर आप पास हो जाते हैं तो आपको लाइसेंस दे दिया जाता है।
आप को जारी किया गया लर्निंग लाइसेंस कुछ महीनों के लिए वैध होता है। इस दौरान आपको गाड़ी चलाने की ट्रेनिंग या गाड़ी चलाना सीखना होता है। लर्निंग लाइसेंस की समय सीमा खत्म होने से पहले आपको लाइसेंस के लिए फिर से आवेदन देने की आवश्यकता होती है। लाइसेंस का आवेदन करने की प्रक्रिया कुछ स्टेप के द्वारा आपको बताई गई है। आप अपना लर्निंग लाइसेंस संभाल करके रखें इसके बाद यह आपको स्थाई ड्राइविंग लाइसेंस जारी कर दी जाती है।
How to Apply Online Driving License Hindi – ड्राइविंग लाइसेंस के लिए ऑनलाइन आवेदन कैसे करें?
लर्निंग लाइसेंस बनाने के बाद में लाइसेंस कुछ महीनों के लिए वैध होता है। इसी के बाद आप परमानेंट लाइसेंस के लिए अप्लाई कर सकते हैं लेकिन ध्यान रहे कि आप समय सीमा खत्म होने से पहले आप को परमानेंट लाइसेंस के लिए अप्लाई करना होता है।
परमानेंट लाइसेंस के लिए आवेदन देने के लिए आप सबसे पहले सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट पर जाएं। जैसे कि आप नीचे दिए गए चित्र में आसानी से देख सकते हैं। अधिकारिक वेबसाइट पर जाने के लिए आप यहां पर क्लिक करके सीधे वेबसाइट पर पहुंच सकते हैं। यहां क्लिक करें। How to Apply Online Driving License Hindi
आपके सामने एक होम पेज खुल जाएगा जहां पर आपको अपने राज्य का चयन करना होता है जैसे कि हमने नीचे बतलाया है। अगर आपके पास में लर्निंग लाइसेंस पहले से है तो आप सीधे ड्राइविंग लाइसेंस के लिए अप्लाई कर सकते हैं। इसके लिए होम पेज पर ही आपको एक आइकन दिखेगा जिस पर लिखा होगा Apply for Driving License उस पर क्लिक कर देना है। जैसा कि आप नीचे फोटो में देख सकते हैं।
इसके बाद आपके सामने एक नया पेज खुलेगा जहां पर आप सारे डॉक्यूमेंट अपलोड करके ड्राइविंग लाइसेंस के लिए अप्लाई कर सकते हैं। यहां पर आपको ड्राइविंग लाइसेंस के लिए स्टेज दिए हुए होंगे आपको नीचे कंटिन्यू (continue) पर क्लिक करना है। जैसा कि आप नीचे दिए गए चित्र में देख सकते हैं।
इसके बाद आपको अपना लर्नर लाइसेंस नंबर और जन्मतिथि भरने को कहा जाएगा। यहां पर आप अपना लर्नर लाइसेंस नंबर और जन्मतिथि भर कर के OK पर क्लिक कर दीजिए। आप नीचे दिए गए चित्र पर या देख सकते हैं।
उसके बाद आपकी स्क्रीन पर आवेदन फॉर्म आ जाएगा। आपको फॉर्म में सारी जानकारी भरनी होगी और मांगे गए सारे दस्तावेज अपलोड करने होंगे। उसके बाद आपको नेक्स्ट के बटन पर क्लिक करना होगा।
अब आपको ड्राइविंग लाइसेंस के लिए अपॉइंटमेंट के लिए समय का चयन करना होगा। समय और दिन के चयन करने के बाद आपको उसी समय उसी दिन पर आरटीओ ऑफिस में प्रस्तुत होना होगा।
उसके बाद आपको ऑनलाइन फीस का भुगतान करना होगा। दिए हुए समय के अनुसार कर्मचारियों द्वारा आपका टेस्ट लिया जाएगा आपको अपना टेस्ट देना होगा इस प्रशिक्षण में पास होने के बाद आपका ड्राइविंग लाइसेंस भेज दिया जाएगा। इस तरह से आपका पूरा प्रोसेस पूरा हो जाएगा।
ड्राइविंग लाइसेंस के लिए ऑफलाइन आवेदन करने की प्रक्रिया
अगर आपको ऑनलाइन प्रक्रिया के माध्यम से ड्राइविंग लाइसेंस जमा करने में परेशानी होती है तो आप ऑफलाइन प्रक्रिया के माध्यम से भी ड्राइविंग लाइसेंस के लिए अप्लाई कर सकते हैं। आप अपना ड्राइविंग लाइसेंस बनाने के लिए हमारे द्वारा बताई गई प्रक्रिया को अपना सकते हैं और अपने लिए ड्राइविंग लाइसेंस बनवा सकते हैं।
आप अपने नजदीकी आरटीओ दफ्तर में जाकर के आपको अपने ड्राइविंग लाइसेंस का ऑफलाइन फॉर्म जमा करने की जरूरत होती है।
फॉर्म भरने के बाद लासंस आवेदन विंडो के पास आप जमा कर दें।
आवेदन पत्र की जांच करने पर आपसे आपके पासपोर्ट साइज फोटो और आपके हस्ताक्षर को कहेंगे।
इसके बाद आरटीओ कर्मचारी द्वारा आपका टेस्ट ले लिया जाएगा।
अगर आप टेस्ट पास कर लेते हैं तो 10 या 15 दिनों के अंदर आपका लाइसेंस आपके दिए हुए पते पर पहुंचा दिया जाएगा।
अगर ड्राइविंग लाइसेंस गुम हो जाए तो क्या करें?
बहुत बार ऐसा होता है कि हम गलती से या किसी कारणवश से ड्राइविंग लाइसेंस खो देते हैं। ऐसी स्थिति में आपको क्या करना चाहिए? यह सवाल हर किसी के मन में आता है कि अगर ड्राइविंग लाइसेंस खो जाए तो हमें क्या करना होगा? इसके लिए आप निम्नलिखित उपाय कर सकते हैं।
अगर आपका ड्राइविंग लाइसेंस खो जाए तो आप सबसे पहले अपने नजदीकी पुलिस स्टेशन में जाकर के एफ FIR दर्ज करें।
इसके बाद आप FIR की एक कॉपी पुलिस स्टेशन से जरूर प्राप्त कर लें क्योंकि यह आपको भविष्य में मदद करेगी।
इसके बाद आप नोटरी ऑफिस जाएं और एक एफिडेविट तैयार कर ले जिसमें यह लिखा होगा कि आपका ड्राइविंग लाइसेंस खो गया है। यह इसका सबूत है।
इसके बाद आप अपना दूसरा ड्राइविंग लाइसेंस बनाने के लिए यह एफिडेविट अपने ड्राइविंग लाइसेंस फॉर्म के साथ अटैच करना होगा।
इस प्रकार आपका दूसरा ड्राइविंग लाइसेंस बन जाएगा।
How to check Driving License Application Status – ड्राइविंग लाइसेंस के आवेदन का स्टेटस कैसे चेक करें?
आप अपने ड्राइविंग लाइसेंस के आवेदन का स्टेटस चेक करने के लिए आप सड़क एवं परिवहन मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट पर जा सकते हैं इसके लिए आप अपने इंटरनेट ब्राउजर या गूगल क्रोम पर sarathi.parivahan.gov.in लिख करके सर्च कर सकते हैं।
इसके बाद आप वेबसाइट के होमपेज में नागरिक को अपने राज्य का नाम का चयन करना होता है। इसके बाद आप Application status के विकल्प पर क्लिक कर दें। एप्लीकेशन नंबर और आप अपना जन्म तिथि एवं कैप्चा कोड को यहां पर दर्ज करेंगे। इसके बाद आप सबमिट बटन पर क्लिक कर दें। आपके सामने आपके एप्लीकेशन केस स्टेटस संबंधित सभी जानकारी दिखाई जाएगी।
ड्राइविंग लाइसेंस से जुड़े सवाल जो अक्सर पूछे जाते हैं?
ड्राइविंग लाइसेंस क्यों बनाया जाता है? इससे यह पता चलता है कि आप वाहन चला सकते हैं और योग्य है। इसलिए ड्राइविंग लाइसेंस बनवाया जाता है।
क्या कोई उम्मीदवार ड्राइविंग लाइसेंस ऑफलाइन मोड में बना सकता है? जी हां उम्मीदवार ऑफलाइन मोड में अपने जिले के आरटीओ ऑफिस में जाकर के ऑफलाइन मोड के माध्यम से आवेदन जमा कर सकता है।
Driving License और Learning License के लिए ऑनलाइन आवेदन कैसे करें? हमने अपने इस लेख के माध्यम से आप सभी लोगों को यह जानकारी दी है कि आप किस तरह से ऑनलाइन माध्यम के जरिए ड्राइविंग लाइसेंस और लर्निंग लाइसेंस के लिए आवेदन दे सकते हैं।
ड्राइविंग लाइसेंस के लिए आवेदन कर्ता के पास क्या-क्या पात्रता है हनी चाहिए? ड्राइविंग लाइसेंस के लिए आवेदन देने से पहले उम्मीदवार की आयु 18 वर्ष या उससे ऊपर होनी चाहिए। बिना गियर वाले वाहन चालक के लिए 16 वर्ष के उम्मीदवार आवेदन करने के पात्र होंगे। इसके साथ ही आवेदन कर्ता का मानसिक स्वास्थ्य भी अच्छा होना चाहिए।
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट क्या है? सरकार द्वारा सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट sarathi.parivahan.gov.in बनाई गई है।
क्या ड्राइविंग लाइसेंस से पहले लर्निंग लाइसेंस बनाना आवश्यक है? जी हां ड्राइविंग लाइसेंस बनाने से पहले आपको लर्निंग लाइसेंस बनवाना जरूरी होता है। इसी के बाद ही आपका ड्राइविंग लाइसेंस बनता है।
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय का हेल्पलाइन नंबर क्या है? अगर आपको अपने लाइसेंस को लेकर की कोई भी समस्या होती है तो आप नीचे दिए गए नंबर पर संपर्क कर सकते हैं। यह नंबर सड़क एवं परिवहन मंत्रालय की अधिकारिक टोल फ्री नंबर है 0120-2459169 ईमेल एड्रेस – helpdesk-sarathi@gmail.com
क्या ड्राइविंग लाइसेंस से संबंधित सभी सेवाओं का लाभ नागरिक अब ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं? जी हां, भारतीय नागरिक सड़क एवं परिवहन मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर के ड्राइविंग लाइसेंस से संबंधित हर तरह की सेवा अपने घर बैठे ही प्राप्त कर सकते हैं।
लर्निंग लाइसेंस लेते वक्त लिए जाने वाली परीक्षा या टेस्ट में किस तरह के प्रश्न पूछे जाते हैं? लर्निंग लाइसेंस लेते वक्त पूछे जाने वाले सवाल वाहन ट्रैफिक से संबंधित सवाल होते हैं।
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आज विज्ञान इतनी तरक्की कर ली है कि, हम विज्ञान की सहायता से मौसम को भी बदल सकते हैं। इसी में पहल करते हुए हमने एक नई तकनीक का विकास किया है जिसके तहत हम कृत्रिम बारिश (Artificial Rain क्या है in hindi) किसी भी क्षेत्र में करवा सकते हैं। आज के हमारे इस लेख में हम इसी विषय पर चर्चा करने वाले हैं? What is Artificial Rain? कृत्रिम बारिश क्या है? इसके अलावा हम यह भी जानकारी लेंगे की कृत्रिम बारिश की क्या प्रक्रिया है? इसके लाभ, नुकसान, रसायनिक अभिक्रिया इत्यादि विषयों के ऊपर भी बात करने वाले हैं। हमारी दुनिया में बहुत से ऐसे देश है जहां पर बारिश ना या बिल्कुल कम होती है। विज्ञान की देनी है कि हम ऐसे क्षेत्रों में कृत्रिम बादल बना करके वहां बारिश करवा सकते हैं। कृत्रिम बारिश या क्लाउड सीडिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें कृत्रिम तरीके से बादलों को बारिश करने के अनुकूल बनाया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया को करने के लिए कई तरह के रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है। इस तरह का सबसे पहला एक्सपेरिमेंट अमेरिकी रसायन विज्ञानिक और मौसम विज्ञानी विंसेंट जोसेफ शेएफर द्वारा क्लाउड सीडिंग का अविष्कार 13 नवंबर, 1946 को किया गया था। इसी बीच वर्ष 1947 और 1960 के बीच ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रीय मंडल विज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान संगठन ने सबसे पहले क्लाउड सीडिंग का परीक्षण किया था। चलिए, हम ये जानते हैं कि कृत्रिम बारिश की क्या प्रक्रिया है?
What is Artificial Rain? कृत्रिम बारिश क्या है?
कृत्रिम बारिश या क्लाउड सीडिंग के जरिए तबादलों की भौतिक अवस्था में आर्टिफिशियल तरीके बदलाव लाया जाता है जो इसे बारिश के अनुकूल बनाता है। इस प्रक्रिया को क्लाउड सीडिंग भी कहते हैं।
बादल में पानी की बहुत से छोटे छोटे कान होते हैं जो कम भार की वजह से खुद ही पानी की शक्ल में जमीन पर बरसने लगते हैं। लेकिन, कभी-कभी किसी खास परिस्थितियों में जब यह कल इकट्ठा हो जाते हैं तब इनका आकार और भार मैं भी खास तरीके से बढ़ोतरी आ जाती है। अब यह पानी के छोटे बूंदे धरती के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण धरातल पर गिरने लगती है। जिसे हम बारिश कहते हैं।
कृत्रिम वर्षा कैसे कराई जाती है?
जैसा कि हमने इसके बारे में पहले ही ऊपर चर्चा किया है कि कृत्रिम वर्षा कराने के लिए रसायनिक अभिक्रिया किया जाता है। जिससे कि वायुमंडल में मौजूद बादलों को वर्षा करने के लिए अनुकूल बनाया जाता है। वैज्ञानिक तकनीकी के आधार पर कृत्रिम वर्षा कराने के तीन चरण है।
पहला चरण :- पहले चरण के अंतर्गत रसायनिक अभिक्रिया का इस्तेमाल होता है। इसके अंतर्गत उस क्षेत्र में बहने वाली हवाओं को जमीन से ऊपर की तरफ भेजा जाता है। जिससे कि बारिश के अनुकूल बादल बन सके। इसके अंतर्गत निम्नलिखित रसायनों का इस्तेमाल होता है।
कृत्रिम वर्षा में इस्तेमाल होने वाले रसायन
कृत्रिम वर्षा कराने के लिए, सबसे पहला चरण रसायनिक अभिक्रिया का होता है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित रसायन का इस्तेमाल किया जाता है :-
कैल्शियम क्लोराइड
कैल्शियम कार्बाइड
कैल्शियम ऑक्साइड
नमक
यूरिया के योगिक
यूरिया अमीनो नाइट्रेट के योगिक
रसायनिक अभिक्रिया के माध्यम से पहले चरण की शुरुआत की जाती है। इसके अंतर्गत कैल्शियम क्लोराइड, कैल्शियम कार्बाइड, यूरिया इत्यादि रसायनिक योगीको की रसायनिक अभिक्रिया कराई जाती है। इस रसायनिक अभिक्रिया के कारण हवा से जलवाष्प को सौंप दिया जाता है और दबाव बनाने की प्रक्रिया शुरू की जाती है।
दूसरा चरण :- दूसरे चरण के अंतर्गत बादलों के द्रव्यमान को नमक, यूरिया, अमीनो नाइट्रेट, सूखा बर्फ और कैल्शियम क्लोराइड का प्रयोग करते हुए बढाया जाता है।
तीसरा चरण :- तीसरे चरण के अंतर्गत सिल्वर आयोडाइड और शुष्क बर्फ जैसे रसायन का इस्तेमाल करते हुए, इन रसायनों को आसमान में छाए बादलों में बमबारी की जाती है। ऐसा करने से बादल में छुपे पानी के काण बिखर कर बारिश के रूप में जमीन पर गिरने लगते हैं।
कृत्रिम बारिश कैसे काम करती है?
कृत्रिम बारिश की प्रक्रिया साधारण होने वाले बारिश की प्रक्रिया की तरह ही काम करती है। समुद्र और नदी का पानी सूरज की गर्मी से भाप बंन करके ऊपर उठ जाता है और बादलों का रूप ले लेता है। यही बादल जब ठंडे जलवायु से जाकर के मिलते हैं तो इनके अंदर जमा पानी के छोटे कणों मे द्रव्यमान धीरे-धीरे बढ़ने लगता है। पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण की वजह से यह पानी की बूंदे बारिश के रूप में धरती पर गिरती है।
इस पूरी प्रक्रिया में हवा की मुख्य भूमिका होती है। यानी जब गर्म हवा, ठंडे और उच्च दाब वाले जलवायु से मिलती है तो उस क्षेत्र में बारिश होती है।
इसे समझने का एक दूसरा तरीका भी है, साधारण तौर पर जब अत्यधिक गर्मी होती है तब गर्मी के चलते तालाबों, झरनों और समुद्र का पानी गर्म होने लगता है। जिसकी वजह से जलवाष्प बनता है। गर्मी की वजह से जलवाष्प जोकि पानी की छोटी-छोटी बूंदे होती है ऊपर की तरफ उठ करके बादलों का रूप ले लेती है। यह बादल हवा के साथ निम्न वायुदाब के क्षेत्र से उच्च वायुदाब के क्षेत्र में बहने लगते हैं। जहां उच्च वायुदाब एवं वायु का ठंडा होना शुरू होता है वहीं पर वायु में मौजूद जलवाष्प भी ठंडी होना शुरु कर देती है। जिससे कि छोटे-छोटे पानी की बूंदे आपस में मिलकर के बड़े होने लगते हैं। जिससे उनका द्रव्यमान भी बढ़ता है। और गुरुत्वाकर्षण बल की वजह से वह धरती पर गिरने लगते हैं। किसी पूरी प्रक्रिया को बारिश कहा जाता है।
कृत्रिम वर्षा के लिए भी आर्टिफिशियल तरीके से इसी तरह के अनुकूलित वातावरण का निर्माण किया जाता है। जिसमें विभिन्न रासायनिक अभिक्रिया ओं का इस्तेमाल करते हुए, कृत्रिम वर्षा कराई जाती है।
क्लाउड सीडिंग की तकनीक
हवा में मौजूद जलवाष्प के कण, ठंडी होने पर वर्षा के रूप में गुरुत्वाकर्षण के कारण धरातल में गिरने लगती है। यह एक साधारण मौसमी प्रक्रिया है। लेकिन कृत्रिम वर्षा या क्लाउड सीडिंग तकनीक ऐसी तकनीक है जिसके माध्यम से हम कृत्रिम रूप से वर्षा कराने के लिए कामयाब होते हैं।
क्लाउड सीडिंग की लागत से बादलों के बरसने पर मजबूर करते हैं। इस क्लाउड सीडिंग या आर्टिफिशियल रेनिंग भी कहते हैं। क्लाउड सीडिंग से बारिश तभी संभव है जब आसमान में बादल मौजूद हो, और बादल भी ऐसे जिन से बारिश हो सकती हो। क्योंकि इस मौसम में बादल में नमी की मात्रा अधिक होती है। फिर क्लाउड सीडिंग से बारिश का होना या नहीं है ना उस जगह पर हवा की रफ्तार और दिशा पर निर्भर करता है।
यह जगह की प्रकृति वगैरह पर भी निर्भर करती है। आप गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि आसमान में तमाम तरह के बादल मंडराते रहते हैं। थोड़ी मेहनत से आप आसमान में मौजूद अलग-अलग तरह के बादलों की पहचान कर सकते हैं। काले एवं धने दिखने वाले बादल में जलवाष्प की मात्रा अधिक होती है। इसी तरह के बादलों का इस्तेमाल क्लाउड सीडिंग के लिए किया जाता है। क्लाउड सीडिंग के लिए गुंबज लेना और परतदार बादल बेहतर माने जाते हैं। क्योंकि इनमें नमी की मात्रा अधिक होती है। इसी तरह के बादलों को रसायनिक अभिक्रिया के माध्यम से बरसने पर मजबूर किया जाता है जिसे हम क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया कहते हैं।
क्लाउड सीडिंग किन-किन तरीकों से की जाती है?
इस तकनीकी का इस्तेमाल आज पूरी दुनिया कर रही है। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, चीन, रूट जैसे कई सारे देश कृत्रिम बारिश को अपना करके अपने यहां बारिश करवाते हैं। चीन ने इस तकनीकी में काफी महारत हासिल कर ली है। चीन एकमात्र ऐसा देश है जिसने कई बार इसकी सहायता से कृत्रिम बारिश करवाई है। कृत्रिम बारिश के जरिए चीन की राजधानी बीजिंग सहित कई सूखाग्रस्त इलाकों में बारिश की मात्रा बढ़ाई गई है।
चीन ने साल 2008 में ठीक ओलंपिक खेलों से पहले बीजिंग में कृत्रिम बारिश का इस्तेमाल किया था। बीजिंग ओलंपिक के उद्घाटन समारोह के दौरान बारिश होने की संभावना को देखते हुए कई सारी मिसाइलों के जरिए आयोजन स्थल से दूर सिल्वर आयोडाइड क्रिस्टल का छिड़काव बादलों पर किया गया था। जिसकी वजह से बारिश आयोजन स्थल तक पहुंचने से पहले नजदीकी इलाकों में हो गई थी। इस तरह से चीन ने ओलंपिक उद्घाटन का कार्यक्रम सफलतापूर्वक करा लिया।
कृत्रिम बारिश के लिए ड्रोन और हवाई जहाज का इस्तेमाल
जैसे-जैसे तकनीकी विकसित होते जा रही है वैसे वैसे ही कृत्रिम बारिश कराने के लिए, किए जाने वाले तकनीक में भी विकास हुआ है। पहले जहां जमीन से ही गुंबद आकार के प्रोजेक्टर की सहायता से बादलों को निशाना बनाया जाता था। वही, अब बहुत से ऐसे तरीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है जिसने इस कार्य को और भी आसान बना दिया है।
आधुनिक ड्रोन की मदद से क्लाउड सीडिंग करके कुछ ही पलों में बादल बनना शुरू हो जाता है। जिससे कि उन बादलों से बारिश की बूंदे टपकना शुरू हो जाती है। यह पूरी प्रक्रिया बारिश के कणों का छिड़काव वायुमंडल की सतह पर निर्भर करता है। इस पूरी प्रक्रिया को करने में मात्र 30 मिनट से भी कम समय लगता है।
हवाई जहाज से कृत्रिम वर्षा :- जैसा कि हमने ऊपर अपने लेख में इस बारे में जिक्र किया है कि तकनीकी में भी विकास हुआ है। इस चलते हवाई जहाज का इस्तेमाल भी कृत्रिम वर्षा कराने के लिए किया जाता है।
अगर किसी क्षेत्र पर बारिश करवानी हो और वहां पर पहले से ही बारिश हुआ ले बादल मौजूद है तो ऐसी स्थिति में पहले के दो चरण को नहीं किया जाता है और सीधे तीसरे चरण की शुरुआत कर दी जाती है।
वर्षा वाले बादलों का पता डॉप्लर राडार की सहायता से लगाया जाता है, इसके बाद हवाई जहाज या वायु यान की सहायता से क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया शुरू की जाती है। यहां पर हवाई जहाज या वायुयान को बादलों के निकट उड़ान भरने के लिए कहा जाता है। वायु यान में मौजूद जनरेटर में सिल्वर आयोडाइड का गोल प्रेशर सुधारा जाता है। जिस क्षेत्र में बारिश करवाना है उस क्षेत्र में हवा की उलटी दिशा में हवाई जहाज या वायु यान को उड़ाया जाता है।
जिस बादल की क्लाउड सीडिंग करनी होती है, उसके पास पहुंचने पर वायुयान में मौजूद जनरेटर सिल्वर आयोडाइड के घोल का छिड़काव करना शुरू कर देते हैं। इस तरह से वायुयान या हवाई जहाज की सहायता से क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया को अंजाम दिया जाता है।
आजकल वायु यान या हवाई जहाज के अलावा मिसाइल का भी इस्तेमाल क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया के लिए किया जा रहा है। वायुयान द्वारा क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया काफी महंगी होती है। और इस प्रक्रिया मैं सफलता की गुंजाइश भी कम होती है। वही मिसाइल द्वारा क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया काफी सस्ती और वायु यान की तुलना में 80% तक सफलता की गुंजाइश रहती है।
भारत में कृत्रिम वर्षा का इतिहास
भारत के कृत्रिम वर्षा की तकनीक में पीछे नहीं है। भारत में क्लाउड सीडिंग का पहला प्रयोग वर्ष 1951 में किया गया था। इस दौरान भारत के मौसम विभाग के पहले महानिदेशक एसके चटर्जी जाने-माने बादल विज्ञानिक हुआ करते थे। उन्हीं के नेतृत्व में भारत ने इस प्रयोग को शुरू किया था।
उनके नेतृत्व में क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया को अंजाम दिया गया था। उनके इस प्रयोग में उन्होंने हाइड्रोजन गैस से भरे गुब्बारों में नमक और सिल्वर आयोडाइड को बादलों के ऊपर भेज कर कृत्रिम वर्षा कराई थी।
भारत में क्लाउड सीडिंग का प्रयोग सूखे से निपटने और डैम का वाटर लेवल बढ़ाने में किया जाता है। भारत की एक निजी कंपनी टाटा फार्म ने वर्ष 1951 पश्चिमी घाट में कई जगहों पर इस तरह की बारिश कराने में सफलता पाई थी।
इसके बाद पुणे के रेन एंड क्लाउड इंस्टीट्यूट ने उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के कई इलाकों में क्लाउड सीडिंग की सहायता से कृत्रिम वर्षा कराने में सफलता पाई। इन सफलताओं को देखते हुए लगातार वर्ष 1983 से 1984 में ऐसी बारिश कराई गई फिर वर्ष 1993 से 1994 में सूखे से निपटने के लिए तमिलनाडु में ऐसा काम हुआ।
साल 2003 से लेकर के 2004 तक के बीच में भी कई भारतीय राज्यों में सूखे से निपटने के लिए कृत्रिम वर्षा का सहायता लिया गया। वर्ष 2008 में आंध्र प्रदेश के 12 जिलों में इस तरह की बारिश कराने की योजना बनाई गई थी।
कृत्रिम वर्षा के लोगों को अगर भारत में देखा जाए तो कृत्रिम वर्षा के तकनीक के क्षेत्र में भारत विकसित देशों से पीछे नहीं है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के एक प्रोफ़ेसर का मानना है कि भारत में कृत्रिम वर्षा के माध्यम से सूखे से निपटा जा सकता है। प्रोफ़ेसर ने आगे बात करते हुए कहा है कि भारत जैसे देश में कृत्रिम वर्षा मानसून आने से पहले अधिक संभव है। क्योंकि इस दौरान बादलों में नमी की मात्रा अधिक होती है। वही इस कार्य को अगर सर्दियों के मौसम में किया जाए तो भारत जैसे देश में यह करना काफी मुश्किल और खर्चीला साबित हो सकता है। क्योंकि, सर्दियों के मौसम में बादलों में नमी काफी कम होती है।
कृत्रिम वर्षा की आवश्यकता क्यों है?
कृत्रिम वर्षा की सबसे ज्यादा जरूरत उन सारे क्षेत्रों में होती है जहां पर बारिश बहुत कम या ना के बराबर होती है। बारिश के मौसम के बावजूद भी इन क्षेत्रों में सूखाग्रस्त घोषित किया जाता है। इससे वहां के किसानों पर भी काफी प्रभाव पड़ता है। सूखे से निपटने के लिए कृत्रिम वर्षा के तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा भी कई सारे कारण है जिस वजह से कृत्रिम वर्षा की तकनीक का इस्तेमाल वर्षा के लिए किया जाता है।
किसी क्षेत्र में यदि अत्यधिक गर्मी बढ़ जाए तो उस क्षेत्र का तापमान कम करने के लिए कृत्रिम वर्षा का सहारा लिया जाता है।
कृत्रिम वर्षा की सहायता से सूखे पड़े इलाके में भी हरियाली लाई जा सकती है।
जिन क्षेत्रों में फसल उगाई जाती है उन क्षेत्र में बारिश की कमी की वजह से फसल खराब होना शुरू हो जाता है और उस फसल को बचाने के लिए कृत्रिम वर्षा कराई जाती है।
वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए भी कृत्रिम वर्षा काफी मददगार होती है।
जब हमारे वायुमंडल में धूल भरे कण की मात्रा बढ़ जाती है तो इसका असर हमारे मौसम के तापमान पर भी पड़ता है। इन सारी चीजों से निपटने के लिए कृत्रिम वर्षा कराई जाती है।
कृत्रिम वर्षा से होने वाले नुकसान
कृत्रिम वर्षा के लिए जिस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है उसे एक क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया कहा जाता है। क्लाउड सीडिंग के लिए कई तरह के रसायन का इस्तेमाल किया जाता है। जैसे कि सिल्वर आयोडाइड, नमक, ड्राई आइस, अमीनो नाइट्रेट इत्यादि। इन रसायनों का वायुमंडल में छिड़काव करने से बादल एक जगह इकट्ठे हो जाते हैं और ठंडे होकर के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण वर्षा करते हैं।
इतने सारे रसायनों का इस्तेमाल को देखते हुए कई मौसम विज्ञानिक इसे काफी खतरनाक भी मानते हैं। क्लाउड सीडिंग के लिए इस्तेमाल होने वाले सिल्वर आयोडाइड बहुत से जीव जंतुओं को नुकसान पहुंचा सकता है। हमारे मौसम को बिगाड़ सकता है। इतना ही नहीं क्लाउड सीडिंग के लिए होने वाला खर्चा भी काफी अधिक होता है। इसके साथ ही क्लाउड सीडिंग की यह पूरी प्रक्रिया भी खतरनाक साबित हो सकती है।
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प्लास्टिक का आविष्कार और इतिहास? हम से प्रत्येक लोग अपने घरेलू कार्य के लिए कभी ना कभी प्लास्टिक का इस्तेमाल तो हमने जरूर किया होगा। हर सिक्के के 2 पहलू होते हैं। जहां हमें प्लास्टिक से बहुत से लाभ मिलते हैं तो वहीं इसके नुकसान भी हैं। प्लास्टिक क्या है?, प्लास्टिक का इतिहास क्या है?(History of Plastic in Hindi ) प्लास्टिक का निर्माण कैसे किया जाता है? इसके अलावा प्लास्टिक से होने वाले लाभ एवं हानि के बारे में भी हम अपने इस लेख में चर्चा करने वाले हैं। जैसा कि हमने आप सभी लोगों को ऊपर बताया कि हर सिक्के के 2 पहलू होते हैं। जहां हमें प्लास्टिक से लाभ मिलता है। तो इसके नुकसान भी हैं। प्लास्टिक ने आधुनिक दुनिया के विकास में काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। दुनिया भर में ऐसे बहुत से वस्तुएं हैं जिनका निर्माण प्लास्टिक की सहायता से किया जाता है। जैसे सस्ते बर्तन, वाटर प्रूफ प्लास्टिक, घर में इस्तेमाल होने वाली सजावट की चीजें, तकनीकी क्षेत्र में एक अवरोध चालक के रूप में भी प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जाता है। हर साल 3 जुलाई को पूरे विश्व में प्लास्टिक दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज की हमारी इस लेख में हम प्लास्टिक के इतिहास और उससे संबंधित विषयों के बारे में विस्तार से चर्चा करने वाले हैं। आगे बढ़ने से पहले हमें इस बारे में जानकारी लेना बेहद जरूरी है कि आखिर प्लास्टिक क्या होती है?
What is Plastic? प्लास्टिक क्या है?
प्लास्टिक (Plastic) एक तरह का पॉलीमर होता है जो विभिन्न पदार्थों से मिलाकर बना होता है। प्लास्टिक उच्च गुण धार वाले कार्बनिक पदार्थ हैं जिन्हें किसी उत्प्रेरक की उपस्थिति में उचित ताप तथा दाब पर अपने मनचाहे आकृति में बदला जा सकता है।
प्लास्टिक को हम गरम और प्रेशर की मदद से अति आवश्यकता अनुसार मनचाहे आकार दे सकते हैं। जब भी प्लास्टिक के बने उत्पादों को बनाया जाता है तो यह एक प्रकार का पदार्थ प्रक्रिया से पहले ठोस अवस्था में होते हैं। इसे गर्म करके तरल अवस्था में लाया जाता है। फिर से सांचे में डालकर के ठंडा करके वापस ठोस अवस्था में लाया जाता है। इस तरह से हमें किसी भी प्लास्टिक से बड़े वस्तु की प्राप्ति होती है।
औद्योगिक उत्पादों के निर्माण के लिए उपयुक्त सिंथेटिक या सिंथेटिक कार्बन को साधारण रूप में हम प्लास्टिक कहते हैं। सनसिटी कार्बनिक अना का अर्थ व सामग्री की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए हम प्लास्टिक शब्द का इस्तेमाल करते हैं। प्लास्टिक आमतौर पर उच्च आणविक भार के पॉलीमर होते हैं।
प्लास्टिक एक यूनानी शब्द है। जिसका अर्थ ढालना या बदलना होता है। सीधे शब्दों में कहें तो हम प्लास्टिक को किसी भी आकार रूप या रेखा में बदल सकते हैं। जिसका अर्थ वेडिंग के लिए उपयुक्त है।
प्लास्टिक कितने तरह के होते हैं?
प्लास्टिक को मुख्यतः दो प्रकार में बांटा जा सकता है। प्लास्टिक को संरचना के आधार पर दो तरह में बांटा गया है।
थर्मोप्लास्टिक
थर्मोस्टेटस
थर्मोप्लास्टिक :- यहां वह प्लास्टिक होती है जो गर्म करने पर विभिन्न रूप में बदली जा सकती है। जैसे कि पॉलिथीन, पॉलिप्रोपिलीन, पॉली विनाइल क्लोराइड इत्यादि।
थर्मोसेटिंग या थर्मोस्टेट :- यह वह प्लास्टिक होती है जो गर्म करने पर सेट हो जाती है। जैसे कि यूरिया, फॉर्मल डिहाइड, पोली यूरिथल।
इसी तरह उपयोग के आधार पर भी प्लास्टिक को दो समूहों में बांटा जा सकता है।
कम घनत्व वाली प्लास्टिक
घनत्व वाली प्लास्टिक
इनका उपयोग कवरिंग मटेरियल के रूप में, कैरी बैग के रूप में किया जाता है। कम घनत्व वाले प्लास्टिक का उपयोग हम विभिन्न तरह के प्लास्टिक उत्पाद बनाने के लिए करते हैं। इनका वजन भी काफी कम होता है।
अधिक घनत्व वाले प्लास्टिक का इस्तेमाल हम सुंदर बैग या कंटेनर के लिए करते हैं। प्लास्टिक का इस्तेमाल हम वापस से कर सकते हैं। यानी कि हम उपयोग में लाए गए प्लास्टिक का इस्तेमाल फिर से किसी दूसरे उत्पाद को बनाने के लिए कर सकते हैं।
प्लास्टिक का निर्माण बहुलीकरण तथा संघनन अभिक्रिया द्वारा होती है। बहुलीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें एक ही पदार्थ के बहुत से अन्य भिन्न पदार्थ के बहुत से अनु को मिला करके बहुलक बनाया जाता है। बहुलक का अनुभव पदार्थों के अणु भार का गुणांक होता है। सामान्य तौर पर प्रक्रिया आश्रित पदार्थ दर्शाते हैं। संघनन क्रिया है जिसमें एक ही या भिन्न पदार्थ के दो या अधिक अनु आपस में मिलकर के बहुलक बनाते हैं।
History of Plastic? प्लास्टिक का आविष्कार और इतिहास?
प्लास्टिक का अविष्कार का जनक लियो बैंकलैंड को माना जाता है। जिन्होंने मात्र 43 साल की उम्र में, एक रसायनिक अभिक्रिया की थी इस रसायनिक अभिक्रिया में उन्होंने फिनोल और फॉर्मल डिहाइड नामक रसायनों का प्रयोग करके एक नए पदार्थ की खोज की। जिसे कार्बनिक सिंथेटिक का नाम दिया गया था। जिसे हम आज प्लास्टिक के नाम से जानते हैं। उन्होंने अपने प्रयोग के दौरान पहला कम लागत वाला कृत्रिम रेसिंग बनाया जो दुनिया भर में अपनी जगह बनाने वाला प्लास्टिक बन गया। प्लास्टिक के जनक लियो बेकलैंड के नाम से ही प्लास्टिक को अन्य नाम बैकलाइट के नाम से भी जाना जाता है।
जैसे ही प्लास्टिक का अविष्कार हुआ यह बनते साथ दुनिया के बाजारों में आ गया। बाजारों में इसका तेजी से फैल ना के पीछे क्या कारण था कि उसकी लागत काफी कम थी। साथ में यह टिकाऊ धार एवं मजबूत भी हुआ करती थी। इसी वजह से लोगों द्वारा पूरी दुनिया में जमकर प्लास्टिक का इस्तेमाल किया गया।
प्लास्टिक का आविष्कार अमेरिका में वर्ष 1960 में बेल्जियम मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक लियो बेकलैंड द्वारा किया गया था। उस समय उन्होंने इस प्लास्टिक को बैकलाइट नाम दिया था। उनका जो अविष्कार जहां विज्ञान के लिए काफी फायदेमंद साबित हुआ, वही प्लास्टिक हमारे वातावरण को वर्तमान समय में खराब करने के लिए भी जिम्मेदार है।
लियो बेकलैंड द्वारा बनाई गई या प्लास्टिक भविष्य के लिए काफी अहम साबित होने वाली थी। इनकी यह खोज मानवता के साथ-साथ विज्ञान एवं तकनीकी क्षेत्र में भी क्रांति लाने वाला था। पूरी तरह से सिंथेटिक तत्व बैकलाइट से जल्द ही पंखे, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक चीजों में, इसका इस्तेमाल होना शुरू हो गया। प्लास्टिक के अविष्कार के साथ ही हमारी दुनिया प्लास्टिक युग का आगाज हो चुका था।
बैक लाइट के अस्तित्व में आने के बाद यह दुनिया के कई देशों के वैज्ञानिकों ने इस तरह के प्रयोग में लग गए जिससे कि नए तरह का प्लास्टिक बनाया जा सके। इन प्रयोगों का ही नतीजा है कि हम नायलॉन, पॉलीएथिलीन, पॉलीथिन जैसे अन्य प्लास्टिक तत्वों के बारे में जान सकते हैं। यह बात दौर था जब तकरीबन हर देश में नए तरह के प्लास्टिक तत्व बनाने की होड़ लगी हुई थी।
छोटे-छोटे सामानों से लेकर के हवाई जहाज और कई बड़ी गाड़ियों के कलपुर्जे भी इसकी मदद से बनाए जाने लगे थे। इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू हुआ तो इस पर आने वाली कम लागत और लोगों के लिए इसकी सहायता ने इसे खूब लोकप्रिय कर दिया और साल 1930 के दशक तक पूरी संस्कृति ही बदल गई।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान प्लास्टिक की मांग में कुछ कमी आई। ऐसा इसलिए था क्योंकि युद्ध के हालात में प्लास्टिक से कहीं अधिक जरूरी अन्य चीजें बन चुकी थी। लेकिन तू युद्ध की समाप्ति के बाद ही कुछ वर्षों में प्लास्टिक उद्योग से जुड़ी कई कंपनियां विज्ञापन के जरिए लोगों को यह बताने में कामयाब रही कि इसकी कई अच्छाइयां है और यह लोगों के लिए सहज और कम लागत में तरह के उत्पाद बनाकर के दे सकती है। जिसकी वजह से प्लास्टिक के सामान लोगों के घर एवं बाजारों में भर गए थे।
प्लास्टिक के सामानों से बाजार और लोगों के घर भर जाने से दुनिया भर में कचरे का ढेर लग गया था। जो वर्तमान समय में हमारे पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा है। प्लास्टिक को जलाने से कई तरह की खतरनाक गैस निकलती है जिससे कि वायु प्रदूषण होने का भी खतरा होता है। इसके साथ ही यह मनुष्य के अलावा विभिन्न जानवरों को भी नुकसान पहुंचा सकती है।
प्लास्टिक से होने वाली हानियां?
जैसा कि हमने आपको पहले ही बताया है कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। जहां प्लास्टिक ने हमारे विज्ञान एवं तकनीकी को और अधिक आगे बढ़ाने में मदद की, वही प्लास्टिक का अत्यधिक प्रयोग हमारे वातावरण को प्रदूषित कर रहा है।
एक सर्वे के मुताबिक भारत जैसे देश में हर रोज लगभग 17000 टन प्लास्टिक का उत्पादन होता है जिसमें से लगभग 10000 टन प्लास्टिक को एकत्रित किया जाता है और बाकी को बैग, कुर्सी टेबल, बाल्टी इत्यादि चीजें के रूप में उपयोग के बाद कचरे में फेंक दिया जाता है।
यही कचरा हमारे धरती और वायुमंडल को बहुत ही बुरी तरह से प्रभावित करता है। नदियों के प्रदूषण से समुद्र भी प्रदूषित होता जा रहा है और इसके पीछे मुख्य वजह है प्लास्टिक का अत्यधिक प्रयोग। प्लास्टिक का नदियों एवं नालियों में फेंक आ जाना जल प्रदूषण का कारण बनता है। जिस वजह से जलीय जीव जंतुओं जैसे की मछली आदि प्रदूषण के कारण मर जाती है। इधर-उधर फेंका हुआ प्लास्टिक का कचरा जानवरों द्वारा खा लिया जाता है जिस वजह से उनकी मौत हो सकती है।
लोगों द्वारा उपयोग में नहीं लाए गए प्लास्टिक को बाद में जला दिया जाता है। जिससे कि जलाने पर कई तरह के हानिकारक गैस निकलती है। और हमारे वातावरण को प्रदूषित करती है। हमारा वातावरण प्रदूषित होने से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती है। जिससे लोगों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
प्लास्टिक से होने वाले लाभ
जहां प्लास्टिक से हमें बहुत से हानि होते हैं। वही प्लास्टिक का उपयोग सही तरीके से किए जाने पर यह हमारे विज्ञान एवं तकनीकी के लिए काफी लाभकारी सिद्ध होता है। प्लास्टिक के निम्नलिखित लाभ है।
प्लास्टिक का उपयोग कंप्यूटर, टेलीविजन, पैकेजिंग और परिवहन के क्षेत्र में बहुत से वस्तुओं को बनाने के लिए किया जाता है।
प्लास्टिक से बने उत्पाद हल्के, टिकाऊ और आसानी से किसी भी आकार में बदले जा सकने वाले होते हैं।
प्लास्टिक का इस्तेमाल ज्यादा पानी की बोतल, आदि बनाने के लिए किया जाता है।
प्लास्टिक एक कुचालक होता है। इस वजह से इसका इस्तेमाल कई क्षेत्रों में किया जाता है।
प्लास्टिक के कुचालक होने की वजह से इसका इस्तेमाल औद्योगिक प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण में किया जाता है।
अत्यधिक तापमान को आसानी से झेलना। प्लास्टिक के इस गुण की वजह से इसका इस्तेमाल बर्तन बनाए जाने वाले हैंडल के लिए भी किया जाता है। प्लास्टिक हल्की होती है वह सस्ती होती है इसलिए इसका उपयोग बहुत ज्यादा किया जाता है।
प्लास्टिक का उपयोग बिजली के तारों को विद्युत रोधी बनाने के लिए भी किया जाता है।
रसोई घर की वस्तुओं के हैंडल के ऊपर प्लास्टिक का कवर चढ़ाया जाता है क्योंकि यहां बहुत अधिक तापमान को झेल सकती है।
खेती में सिंचाई के साधन के तौर पर प्लास्टिक के पाइप का इस्तेमाल किया जाता है।
इन सभी चीजों के अलावा प्लास्टिक का इस्तेमाल चिकित्सा के क्षेत्र में भी किया जाता है। प्लास्टिक कुचालक होने के साथ-साथ जल्दी किसी भी दूसरे रसायन से अभिक्रिया नहीं करती है। इस वजह से इसका इस्तेमाल चिकित्सा के क्षेत्र में भी होता है।
चिकित्सा के क्षेत्र में प्लास्टिक का इस्तेमाल ऑपरेशन के उपकरण, गोली दवाइयां के कवर बनाने आदि में किया जाता है।
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अक्सर लोग, आयकर रिटर्न दाखिल करते हुए फॉर्म 16 और फॉर्म 15G भरते हैं। लेकिन इसका क्या मतलब है कि आईटीआर दाखिल करने के लिए फार्म 15G और Form16 क्यों भरा जाता है? अगर आपके पास में form16 नहीं है तो आपको परेशान होने की जरूरत नहीं? आज के हमारे इस लेख में हम इस बारे में जानकारी देने वाले हैं कि ( What is Form 16 in Hindi) i – फार्म 16 क्या होता है? भारत सरकार, समय-समय पर अलग-अलग नियम कानून इनकम टैक्स को लेकर के लाती रहती है। इसी में से एक फॉर्म है, फॉर्म 15G और फॉर्म 16. अगर आप इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करते हैं तो आपने Form 16 का नाम तो जरूर सुना होगा। आइटीआर फाइल करने के लिए क्या एक जरूरी दस्तावेज माना जाता है। इस फॉर्म में, आपके सभी तरह के टैक्स का लेखा-जोखा होता है। सीधे शब्दों में कहें तो यह एक सर्टिफिकेट होता है जिससे आपके द्वारा किसी फाइनेंशियल ईयर में की गई कमाई और कंपनी द्वारा उस पर काटे गए टैक्स का लेखा-जोखा होता है। यह सर्टिफिकेट नियोक्ता की तरफ से आयकर अधिनियम की धारा 203 के तहत एंप्लॉय के लिए जरूरी माना जाता है। आज के हमारे इस लेख में हम यह जानकारी लेंगे कि फार्म 16 क्या है?
What is Form 16 Hindi – फार्म 16 क्या होता है?
अगर आपका टीडीएस काटा है तो फिर इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल करते समय आपको Form 16 और Form 16A पढ़ने की जरूरत पड़ती है। क्योंकि टीडीएस कटौती के समय इस फॉर्म में आपके द्वारा की गई इनकम की सारी जानकारी होती है।
अगर आप किसी सैलरी लेने वाले व्यक्ति है या किसी कंपनी या संस्थान में काम करते हैं तो आपकी तरह से टीडीएस काटा जाता है। उसके प्रमाण के लिए एक सर्टिफिकेट दिया जाता है। यह सर्टिफिकेट फॉर्म 16 के रूप में दिया जाता है।
जिस टीडीएस सर्टिफिकेट के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि यहां इस बात का प्रमाण होता है कि आपकी आमदनी पर टैक्स काट लिया गया है और उसे सरकार के पास जमा कर दिया गया है।
इस Form के अंदर आपका नाम, पता, पैन नंबर के साथ-साथ आपकी सैलरी और उस पर काटे गए इनकम टैक्स के सारी जानकारी दी गई होती है। साथ में टीडीएस काटने वाले के नाम, पता, TAN नंबर इत्यादि चीजों की दर्ज की गई होती है।
इस फोन के अंदर में ही यह भी जानकारी दी गई होती है कि आपने कितना इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल करते समय इससे आप अपनी और से भुगतान की टैक्स के रूप में दिखा सकते हैं।
भारत जैसे देश में सामान्य तौर पर किसी व्यक्ति की ₹250000 तक की सालाना आमदनी पर टैक्स नहीं लगता है। लेकिन इससे अधिक की आमदनी पर आपको टैक्स स्लैब के हिसाब से भारत सरकार को टैक्स जमा करना पड़ता है।
टैक्स देनदारी बनने पर टैक्स भी देना पड़ता है। आप के वेतन पर टीडीएस की कटौती के लिए भी आमदनी किया सीमा मानी जाती है। ₹250000 से कम आमदनी पर इनकम टैक्स या टीडीएस नहीं काटा जाता है।
Form 16 की जरूरत क्यों पड़ती है?
Form16, से यह पता चलता है कि आपने अब तक कुल कितने टैक्स जमा किया है। कितना टैक्स चुकाना बाकी है। बकाया टैक्स को आप self Assessment Tax के रूप में भी जमा कर सकते हैं। इस वजह से इनकम टैक्स रिटर्न भरते समय इसकी जरूरत पड़ती है।
यह form16 यह प्रमाणित करता है कि आपके नियुक्त आने टीडीएस के रूप में उतना पैसा काट कर सरकार के पास जमा कर दिया है।
सामान्य तौर पर कोई भी कंपनी या संस्थान अपने कर्मचारियों को form16 तभी जारी करती है जब उनकी तनख्वाह टैक्स काटने लायक होती है। जिनकी सैलेरी टैक्स काटने लायक होती है उनका सामान्यतया फॉर्म दिया जाता है।
लेकिन अगर किसी कर्मचारी का किसी अन्य आमदनी के स्रोत जैसे कि ब्याज, किराया, पुरस्कार वगैरह पर टीडीएस काटा है तो उसके लिए form 16A दिया जाता है।
Form16 मैं आपके सभी तरह के टैक्स का लेखा-जोखा होता है। आसान भाषा में समझे तो या एक सर्टिफिकेट होता है जिसमें आपके द्वारा किसी एक वित्तीय वर्ष में की गई कमाई और कंपनी द्वारा उस पर काटे गए टैक्स का लेखा-जोखा दिया गया होता है। Form16 के दो भाग होते हैं:-
PART A
PART B
PART A:- फार्म 16 के इस भाग को पहला भाग माना जाता है। इसमें कंपनी का नाम उसका पता, पैन नंबर, TAN नंबर के साथ में कर्मचारी का पैन नंबर व रोजगार की अवधि लिखी हुई होती है।
इसके अलावा यह भी लिखा हुआ होता है कि इस अवधि के दौरान आपको तनखा के तौर पर कितनी आमदनी हुई है। उस पर उस अवधि के दौरान आप की तनखा से कितनी टैक्स काटी गई है।
इस बात का भी ध्यान रखना जरूरी है कि यदि आप किसी वित्तीय वर्ष में नौकरी बदलते हैं तो आपको यह तय करना होता है कि दोनों कंपनियों से इस फॉर्म का PART B जरूर हासिल कर ले। चलिए जानते हैं कि form16 के पार्ट बी में क्या होता है?
PART B :- form16 के पार्ट बी में, आपकी तनख्वाह का पूरा ब्यौरा दिया गया होता है। सेक्शन 10 के तहत छूट प्राप्त अलाउंस का पूरा लेखा-जोखा और आयकर अधिनियम के तहत हासिल होने वाली छूट की जानकारी दी होती है।
आइटीआर फाइल करने के लिए Form 16 कितना जरूरी है?
जैसा कि हमने इस बात की जानकारी आप सभी लोगों को दे दी है कि, Form 16 के अंदर, किसी एक वित्तीय वर्ष में आपके द्वारा की गई कुल आमदनी का लेखा-जोखा होता है। इसमें यह जानकारी भी दी गई होती है कि उस वित्तीय वर्ष के अंतर्गत आपने कितना टैक्स भरा है।
इसी वजह से आईटीआर दाखिल करते वक्त इसकी आवश्यकता होती है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि बिना form-16 के आफ इनकम टैक्स रिटर्न फाइल नहीं कर सकते हैं। मान लीजिए कि आपका form16 खो जाता है या आप नौकरी बदल लेते हैं और किसी कारण से पुरानी कंपनी से form16 नहीं ले पाते हैं तो भी आप इनकम टैक्स रिटर्न फाइल कर सकते हैं।
इसके लिए आपको कुछ डॉक्यूमेंट तभी खट्टे करने की आवश्यकता पड़ सकती है जैसे कि, आपका सैलरी स्लिप, फॉर्म 26 AS, टैक्स क्रेडिट स्टेटमेंट इत्यादि चीजें। वही रिटर्न फाइल करते वक्त आपको रेंट एग्रीमेंट और आपने कहां-कहां निवेश किया है उन सारी चीजों की भी सारी डॉक्यूमेंट आपके पास होना जरूरी होता है। जिसके बाद आप आसानी से अपना रिटर्न फाइल कर सकते हैं।
अगर form16 नहीं है तो आइटीआर फाइल कैसे करें?
अगर आप यह सोच रहे हैं कि आपके पास में form16 नहीं है तो घबराने की कोई जरूरत नहीं आप इसके बिना भी इनकम टैक्स रिटर्न फाइल कर सकते हैं।
खासकर, नौकरी पेशा लोगों को प्रत्येक वर्ष इनकम टैक्स रिटर्न भरना होता है जिसके लिए उन्हें form16 की जरूरत पड़ती है। अगर आपके पास में form16 नहीं है या उसमें आपको मिलने में देरी हो रही है तो आप उसके बिना भी इनकम टैक्स रिटर्न फाइल कर सकते हैं।
बिना Form 16 इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने के लिए आपको कुछ डॉक्यूमेंट इकट्ठा करने की जरूरत होगी। जोकि निम्नलिखित है:-
आपकी सैलरी स्लिप (Salary Slip)
Form 16 AS
Tax Credit Statement etc.
आपको इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करते वक्त अपना रेंट एग्रीमेंट, और आपने अपने पैसों को कहां-कहां निवेश किया है इससे संबंधित डॉक्यूमेंट भी आपको एकत्रित करके आप रिटर्न फाइल कर सकते हैं।
वैसे तो, Form 16 काफी जरूरी डॉक्यूमेंट होता है जिसमें आपके सभी तरह के टैक्स का रिपोर्ट एवं रिकॉर्ड होता है। जो आपकी कंपनी आपकी सैलरी से डिडक्ट करती है। इसे अन्य भाषा में सैलेरी सर्टिफिकेट भी कहा जाता है। जिस तरह से हर महीने मिलने वाली सैलरी स्लिप जरूरी होती है उसी तरह से फॉर्म 16 भी काफी जरूरी होती है। बिना form16 के आप रिटर्न फाइल नहीं कर सकते हैं।
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बहुत बार ऐसा होता है कि जब आप बैंक में फिक्स डिपाजिट या रिकरिंग डिपॉजिट इत्यादि चीजें खोलते हैं तो उन पर टीडीएस काटा जाता है। अगर आपकी आए टैक्स के दायरे में नहीं आती है तो आप 15G और 15H फॉर्म भर कर के, बैंक में जमा कर सकते हैं ताकि उनके इंटरेस्ट अमाउंट पर टीडीएस नहीं काटी जाए। ( What is 15G and 15H in hindi ) – क्या होते हैं फॉर्म 15G और 15H? आज के हमारे इस लेख में हम, इसी बारे में बात करने वाले हैं कि क्या होता है फॉर्म 15G और 15H? इसके बारे में जानकारी लेने वाले हैं। इस फॉर्म को भरने का क्या फायदा है कि अगर आपने बैंक में फिक्स डिपॉजिट या रिकरिंग डिपॉजिट इत्यादि चीजें खोली है और उसमें आपको ब्याज मिलता है। आप की वार्षिक आय टैक्स कटौती के दायरे में नहीं आती। तो आप इंटरेस्ट अमाउंट पर टीडीएस की कटौती ना की जाए इसके लिए यह फॉर्म भरते हैं।
What is 15G and 15H in hindi – क्या होते हैं फॉर्म 15G और 15H?
Form 15G और 15H उन व्यक्ति द्वारा भरा जाता है जिनकी आय टैक्स के दायरे में नहीं आती है। इसके जरिए टीडीएस कटौती से बचा जा सकता है। बैंकों में ज्यादातर ऐसा होता है कि अगर आप फिक्स डिपॉजिट या रिकरिंग डिपॉजिट करते हैं तो अगर बैंक द्वारा दिए जाने वाले इंटरेस्ट रेट के आधार पर यदि ब्याज ₹10000 सालाना से ज्यादा होता है तो बैंक इस पर पीडीएस की कटौती करते हैं।
जानकार मानते हैं कि अगर किसी व्यक्ति की यह इनकम टैक्सेबल लिमिट से कम है तो उन्हें फॉर्म 15G और 15H भरकर के बैंक में जमा कर सकते हैं ताकि टीडीएस कटौती नहीं की जाए।
Form 15H इनकम टैक्स की धारा, 1961 के अंतर्गत सेक्शन 197A, के अंतर्गत आने वाला एक डिक्लेरेशन फॉर्म होता है। जिससे भर कर के आप यहा डिक्लेरेशन देते हैं कि आप की वार्षिक आय टैक्सेबल इनकम के दायरे में नहीं आती है।
Form 15G कौन भर सकते हैं?
Form 15G ऐसे व्यक्ति द्वारा भरा जा सकता है, जिनकी उम्र 18 वर्ष से 60 वर्ष के बीच में है। और उसने बैंक में फिक्स डिपॉजिट या रिकरिंग डिपॉजिट खुलवा रखा है। जिसमें मिलने वाला सालाना ब्याज ₹10000 से अधिक है।
वह व्यक्ति अपने संबंधित बैंक में जाकर के वहां पर 15G फॉर्म भर सकता है। इस फॉर्म को भर देने से यह नहीं है कि आपका टीडीएस नहीं कटेगा लेकिन, आप या एक रिक्वेस्ट डालते हैं कि आपका टीडीएस ना कटे।
अगर आपके वार्षिक आय टैक्सेबल इनकम के दायरे में नहीं आती है तो आपको अवश्य रूप से 15G फॉर्म अपने बैंक में जाकर के जमा करने की जरूरत है।
Form 15H कौन भर सकता है?
Form 15H ऐसे व्यक्तियों द्वारा भरा जाता है जिनकी आयु 60 या 60 वर्ष से अधिक है। और उन्होंने बैंक में फिक्स डिपॉजिट या रिकरिंग डिपॉजिट खुलवा रखा है और जिस में मिलने वाला ब्याज ₹10000 से अधिक है।
ऐसे सीनियर सिटीजन अपने संबंधित बैंक में जाकर के 15H फॉर्म भर सकते हैं। पर ध्यान रहे कि आपकी कुल आय टैक्सेबल इनकम के दायरे में नहीं आती हो।
आपको यहां पर यह भी ध्यान रखना है कि अगर आपने फॉर्म भर दिया है तो इसका मतलब यह नहीं है कि आपकी टीडीएस नहीं कटेगी। अगर आप का वार्षिक आय टैक्सेबल इनकम के दायरे में आती है तो आपको टीडीएस अवश्य रूप में चुकाना पड़ेगा।
Form 15G और 15H फॉर्म कब भरना चाहिए?
अगर आपकी उम्र 18 साल या 60 साल के अंदर है तो आप फॉर्म 15g भर सकते हैं।
अगर आपकी उम्र 60 साल या उससे अधिक है तो आपको फॉर्म 15h भरना होता है।
अगर आपने, किसी बैंक में फिक्स डिपॉजिट या रिकरिंग डिपॉजिट खुलवा रखा है और आपकी आय टैक्सेबल इनकम से कम है, तो आप यह फॉर्म भर सकते हैं।
पिछले साल का असिस्टेंट टैक्स जीरो होना चाहिए। व्यक्ति विशेष ने पिछले साल की इनकम टैक्स रिटर्न ना भरा हो क्योंकि उनकी इनकम टैक्स टैक्सेबल अमाउंट से कम हो।
इस फॉर्म को व्यक्ति को उन सभी बैंक ब्रांच में सबमिट करना होता है जहां से वह ब्याज इकट्ठा कर रहे होते हैं।
पहले ब्याज का भुगतान होने से पहले 15G या 15H फॉर्म जमा करने की जरूरत होती है। यह अनिवार्य नहीं है लेकिन यह बैंक से टीडीएस कटौती को रोक सकता है।
अगर जमा के अलावा किसी अन्य सोर्स पर इंटरेस्ट इनकम जैसे कि लोन, एडवांस, डिवेंचर, बॉन्ड आदि पर इंटरेस्ट इनकम ₹5000 से ज्यादा है तो फॉर्म आज जमा कर सकते हैं।
फॉर्म 15G इनकम टैक्स की धारा 1961 के अंतर्गत 197A के अंडर सब सेक्शन 1 और 1(A) के भीतर आने वाला डिक्लेरेशन फॉर्म होता है।
Form 15G हिंदू अविभाजित परिवार, 60 साल से कम आयु के व्यक्ति द्वारा भरा जाता है।
फॉर्म 15g ब्याज के पहले पेमेंट से पहले जमा किया जाना चाहिए।
यह फॉर्म सिर्फ उन्हीं के द्वारा जमा किया जाता है जिनकी इनकम टैक्सेबल इनकम से कम होती है।
व्यक्ति को भारतीय नागरिक होना चाहिए।
वित्तीय साल के द्वारा ब्याज से कुल आय ₹250000 से कम होनी चाहिए।
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कोविड-19 लोग, विभिन्न तरह की बीमारियों से काफी सतर्क हो गए हैं। हाल फिलहाल में भारत के केरला राज्य में पहला मंकीपॉक्स का मामला सामने आया है। कॉविड की तरह ही लोग मंकीपॉक्स के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं। दूसरे देशों में मंकीपॉक्स की खबरें अक्सर हमें इंटरनेट के माध्यम से एवं न्यूज़पेपर से मिलती रहती है। इस बीमारी के लक्षण क्या होते हैं और यह इंसानों के बीच कैसी फैलती है। इसके बारे में भी जानकारी होना बेहद जरूरी है। आज के हमारे इस लेख में हम इस बारे में जानकारी देने वाले हैं (What is Monkeypox क्या है इसके लक्षण in Hindi) मंकीपॉक्स क्या है इसके लक्षण और यह कैसे फैलती है? What is Monkeypox? मंकीपॉक्स क्या है इसके लक्षण और यह कैसे फैलती है? मंकीपॉक्स एक दुर्लभ बीमारी है जो मंकीपॉक्स वायरस के संक्रमण से होती है। मंकीपॉक्स वायरस वेरीयोला वायरस के वायरस के ही एक परिवार का हिस्सा होते हैं। यह वायरस जो चेचक का कारण बनता है। मंकीपॉक्स के लक्षण चेचक के लक्षणों के समान होते हैं, लेकिन हल्के और मंकीपॉक्स शायद ही कभी घातक होते हैं। मंकीपॉक्स का चिकन पॉक्स से कोई भी संबंध नहीं है। मंकीपॉक्स की खोज वर्ष 1958 मे हुई थी, जब शोध के लिए रखे गए बंदरों की कॉलोनी में चेचक जैसी बीमारी के दो प्रकोप हुए थे। “Monkeypox” नाम दिए जाने के बावजूद इस बीमारी के होने का स्रोत अज्ञात है। दुनिया में मंकीपॉक्स से संक्रमित पहला मामला साल 1970 में आया था। इसके बाद साल 2022 के में पहले कई मध्य और पश्चिमी अफ्रीका देशों के लोगों को मंकीपॉक्स होने की सूचना मिली थी। पहले अफ्रीका के बाहर के लोगों में लगभग सभी मंकीपॉक्स के मामले उन देशों की अंतरराष्ट्रीय यात्रा से जुड़े थे जहां या बीमारी आमतौर पर होती है। यह बीमारी इन देशों में आयात किए गए जानवरों के माध्यम से ज्यादा फैलने की गुंजाइश होती है।
भारत में मंकीपॉक्स का मामला
हाल फिलहाल में भारत में पहला मंकीपॉक्स का मामला केरला राज्य में दर्ज किया गया है। इसके मद्देनजर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्थिति से निपटने में अधिकारियों का सहयोग करने के लिए राज्य में एक हाई लेवल टीम भी भेजी है।
केरल के स्वास्थ्य मंत्री वीणा जॉर्ज ने कहा है कि विदेश से राज्य में लौटे एक 35 साल के व्यक्ति में मंकी पहुंच के लक्षण देखने के बाद उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया है। लेकिन इस बीमारी के लक्षण क्या है और यह इंसानों के बीच कैसी फैलती है इसके बारे में लोगों को जानकारी होना भी बेहद जरूरी है।
मंकीपॉक्स के क्या लक्षण है?
मंकीपॉक्स एक दुर्लभ बीमारी है जो मंकीपॉक्स वायरस के संक्रमण से फैलती है। मंकी पॉक्सवायरस चेचक के समान वायरस के परिवार का हिस्सा होता है। मंकीपॉक्स के लक्षण चेचक के लक्षण के समान होते हैं। मंकीपॉक्स के लक्षण चेचक की तुलना में सामान्य होते हैं। इस चलते यह चेचक की तुलना में घातक नहीं होते हैं। ध्यान देने योग्य बात यह है कि मंकीपॉक्स का चिकन पॉक्स से कोई संबंध नहीं है। मंकीपॉक्स के निम्नलिखित लक्षण संक्रमित व्यक्ति में देखने को मिलते हैं।
मंकीपॉक्स के लक्षण
बुखार
सिर दर्द
मांसपेशियों में दर्द और पीठ दर्द
सूजी हुई लसीका ग्रंथि
ठंड लगना
थकावट
छोटे छोटे फुंसी दाने जो चेहरे, मुंह के अंदर और शरीर के अन्य हिस्से जैसे कि हाथ, पैर, छाती, जननांग या खुदा पर दिखाई देने वाले फुंसियां या फफोले जैसा दिख सकता है।
मंकीपॉक्स, मे होने वाले दाने कई चरणों से गुजरते हैं। इसे ठीक होने में 2 से लेकर के 4 सप्ताह तक का समय लग सकता है। कभी-कभी संक्रमित व्यक्ति में दाने पहले निकलते हैं। उसके बाद अन्य लक्षण दिखाई देते हैं।
मंकीपॉक्स के अन्य लक्षण
मंकीपॉक्स के लक्षण स्मॉल पॉक्स या चिकन पॉक्स जैसे ही दिखाई देते हैं।
मंकीपॉक्स के शुरुआती लक्षण में मरीज को बुखार होता है। लिम्स नोड्स बड़ी हुई लगती है।
1 हफ्ते के अंदर मरीज के चेहरे, हथेलियों और तलवों पर चकत्ते दिख सकते हैं।
मंकीपॉक्स से संक्रमित होने के बाद आंख की कॉर्निया में भी रेसेस हो सकते हैं। जो अंधापन का कारण बन सकता है।
मंकीपॉक्स कैसे फैलता है?
आपको घबराने की जरूरत नहीं है। कॉविड जितनी तेजी से फैलता है उतनी तेजी से मंकीपॉक्स नहीं फैलता है। इस वजह से आपको घबराने की कोई भी आवश्यकता नहीं है। हां, लेकिन ध्यान रहे की जानकारी ही बचाव है इसलिए आपको मंकीपॉक्स के संक्रमण के बारे में भी जानकारी होना जरूरी है।
मंकीपॉक्स वायरस जानवरों से इंसानों में फैलती है।
यह वायरस जानवरों से मनुष्य के बीच संपर्क से फैल सकता है।
मंकीपॉक्स संक्रमित इंसान के साथ लंबे समय तक आमने-सामने संपर्क से भी या दूसरे व्यक्ति पर फैल सकता है।
संक्रमित होने वाले व्यक्ति के दाने, चकत्ते या शरीर के तरल पदार्थ के साथ सीधा संपर्क से भी मंकीपॉक्स फैलने का खतरा रहता है।
लंबे समय तक, आमने-सामने संपर्क के दौरान या अंतरंग शारीरिक संपर्क के दौरान, जैसे चुंबन, गले लगाना या सेक्स के दौरान भी या एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल सकता है।
छूने वाली वस्तुएं जैसे कि कपड़े इत्यादि जो पहले संक्रमित व्यक्ति द्वारा इस्तेमाल किए गए हो से भी संक्रमण हो सकता है।
गर्भवती महिला उसे अपने बच्चे को भी मंकीपॉक्स के संक्रमण का खतरा होता है।
ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि संक्रमित जानवर से संपर्क में आने से लोगों में मंकीपॉक्स होने की संभावना अधिक होती है। जानवरों द्वारा खरोच जाने या काटने से या मास तैयार करने या खाने या संक्रमित जानवर के उत्पाद का उपयोग करने से भी मंकीपॉक्स होने की संभावना होती है।
मंकीपॉक्स लक्षण शुरू होने के समय से पहले फैल सकता है जब तक कि दाने पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाते और त्वचा की एक नई परत नहीं बन जाती। आमतौर पर 2 से 4 हफ्तों के अंदर मंकीपॉक्स से संक्रमित व्यक्ति ठीक हो जाता है।
क्या मंकीपॉक्स से डरने की जरूरत है?
कोरोनावायरस के बाद से पूरी दुनिया डरी और सहमी हुई है। इस वजह से किसी भी बीमारी को लेकर के लोग काफी ज्यादा सतर्क हो गए हैं। लेकिन हम आपको यह बता देना चाहते हैं कि मंकीपॉक्स से आप को डरने की जरूरत नहीं है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक 1 जनवरी से 15 जून 2022 के बीच कुल पूरी दुनिया में 2103 प्रयोगशाला में यह मामले पुष्टि की है। जिसमें डब्ल्यूएचओ ने 42 देशों के संक्रमित लोगों के ऊपर टेस्ट किया अपने इस रिपोर्ट में डब्ल्यूएचओ ने सूचना दी है कि केवल एक व्यक्ति की मृत्यु हुई है। अधिकांश 98% मामले में लोग स्वस्थ हो गए हैं।
इसी के साथ ही ‘The Hindu’ पर छपी एक खबर के मुताबिक मई 2022 तक नाइजीरिया के कांगो में कुल 9 लोगों की मौत मंकीपॉक्स के संक्रमण के कारण हो गई थी।
इससे पहले जब मंकीपॉक्स फैला था तो पूरी दुनिया में लगभग 63 देशों में 9000 से भी अधिक मामले के बारे में रिपोर्ट किया गया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन अगले हफ्ता आपातकालीन बैठक आयोजित करने वाला है। तकिया तय किया जा सके कि मंकीपॉक्स को वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया जाना चाहिए या नहीं।
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