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National Symbols of India in Hindi (भारत के राष्ट्रीय प्रतीक)

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भारत के राष्ट्रीय प्रतीक व चिन्ह National Symbols of India in Hindi भारत के राष्ट्रीय प्रतीक व चिन्ह National Symbols of India in Hindi भारत विविधताओं भरा देश है और कई सारी ऐसी प्राकृतिक चीजें हैं जो केवल भारत में ही देखने को मिलती हैं। लगभग हर तरह से समृद्ध भारत के राष्ट्रीय प्रतीकों को देखकर, यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत प्राकृतिक और एतिहासिक तौर पर अन्य देशों से कितना ज्यादा आगे है। किसी भी देश के राष्ट्रीय प्रतीक, उस देश के इतिहास और भूगोल का परिचय देते हैं। राष्ट्रीय प्रतीक शक्ति और गर्व को इंगित करते हैं। उदाहरण के तौर पर स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान यह देखा जा सकता है कि किस तरह राष्ट्रीय गीत और राष्ट्रगान द्वारा लोग प्रेरित होते थे।

 

 

 

 

National symbols of India in hindi - भारत के राष्ट्रीय चिह्न - जानिए क्या है ये !

 

 

 

 

 

भारत के राष्ट्रीय प्रतीक व चिन्ह National Symbols of India in Hindi

भारत के भी कई सारे राष्ट्रीय प्रतीक हैं। उन्ही प्रतीकों के बारे में आगे बताया गया है। वे प्रतीक निम्नलिखित हैं :-

भारत का राष्ट्रीय पक्षी (National Bird of India)

मोर भारत का राष्ट्रीय पक्षी है। सन 1963 में यह निर्णय लिया गया था कि मोर की भारत का राष्ट्रीय पक्षी बनाया जाएगा। मोर भारतीय संस्कृति और प्रकृति का एक अनन्य हिस्सा है।

मोर को चुनने की एक वजह यह भी थी कि मोर भारत के हर हिस्से में पाया जाता है। मोर को राष्ट्रीय पक्षी के तौर पर अन्य किसी भी राष्ट्र द्वारा अपनाया भी नहीं गया था, इस कारण मोर राष्ट्रीय पक्षी बनाने के लिए बिल्कुल उचित था।

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भारत का राष्ट्रीय पशु (National Animal of India)

भारत का राष्ट्रीय पशु धारीदार बाघ है। बाघ को उसकी रफ्तार और खूबसूरती के कारण जाना जाता है। भारत में गुजरात और बंगाल में मुख्य रूप से बाघ पाए जाते हैं, हालांकि वे दोनों  अलग अलग स्पिसीज के हैं। अप्रैल 1973 के दौरान बंगाली बाघों को राष्ट्रीय पशु घोषित कर दिया गया था।

यह बाघों के संरक्षण की योजना के अंतर्गत किया गया था। ऐसा करने के पीछे लोगों को जागरूक करने की मंशा बताई जाती है। इन बाघों की संरचना बेहद खूबसूरत होती है। यह पीले रंग के होते हैं और इनके शरीर पर ज़ेबरा की भांति काले रंग की पट्टीयां होती हैं जो उन्हे राजशाही खूबसूरती प्रदान करती हैं।

भारत का राष्ट्रगान (National anthem of India)

“जन, गण, मन” भारत का राष्ट्रगान है। भारत के राष्ट्रगान को रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा लिखा गया था। इसका पहला संस्करण बंगाली में लिखा गया था और बाद में इसे हिंदी में दुबारा से लिखा गया था।

24 जनवरी 1950 को “जन, गण, मन” को भारत के राष्ट्रगान घोषित कर दिया गया था। गौरतलब है कि पहले इसके स्थान पर “वंदे मातरम” को राष्ट्रगान बनाया जाना था, लेकिन इसका गैर हिंदू संस्थाओं द्वारा काफी विरोध होने के बाद “जन गण मन” को चुना गया।

भारत का राष्ट्रीय फूल (National Flower Of India)

भारत का राष्ट्रीय फूल कमल है। भारत की पौराणिक मान्यताओं में कमल का महत्व काफी ज्यादा है। कमल को देवी लक्ष्मी का फूल माना जाता है। कमल प्राकृतिक रूप से कीचड़ में खिलता है जिस कारण यह प्रेरणा का स्रोत माना जाता है।

भारत का राष्ट्रीय फल (National fruit of India)

भारत का राष्ट्रीय फल आम है। आम भारत में सबसे ज्यादा पसंद किए जाने वाला फल है। आधुनिक भारत से लेकर प्राचीन भारत तक आम को बड़े चाव से खाया जाता है। आम पर कई भारतीय कवि एतिहासिक कविताएँ भी लिख चुके हैं। बादशाह अकबर भी आम के दीवाने थे। उन्होने बिहार के दरभंगा जिले में करीब 1 लाख से भी ज्यादा आम के पेड़ लगवाए थे।

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भारत का राष्ट्रीय गीत (National Song Of India)

“वंदे मातरम” भारत का राष्ट्रीय गीत है। इसे बंकिम चंद्र चटर्जी ने लिखा था। आजादी के पहले यह आंदोलनकारियों में प्रेरणा गीत के रूप में सुना जाता था। 24 जनवरी 1950 को इसे भारत का राष्ट्रीय गीत घोषित कर दिया गया था।

भारत का राष्ट्रीय ध्वज (National flag of India)

भारत का राष्ट्रीय ध्वज आयताकार है और तीन रंगों से मिलकर बना है। ये तीन रंग केसरीया, सफेद और हरा हैं। राष्ट्रीय ध्वज के बीच में अशोक चक्र स्थापित किया गया है। 22 जुलाई 1947 को इसे एक संविधान सभा के दौरान राष्ट्रीय ध्वज घोषित कर दिया गया था। भारत के राष्ट्रीय ध्वज को तिरंगा भी कहा जाता है। इसे पिंगली वेंकय्या द्वारा निर्मित किया गया था।

भारत का राष्ट्रीय खेल (National game of India)

भारत का राष्ट्रीय खेल हॉकी है। मौजूदा समय में भारत में क्रिकेट सबसे ज्यादा लोकप्रिय खेल है लेकिन जिस वक़्त हॉकी को सबसे राष्ट्रीय खेल घोषित किया गया उस वक़्त हॉकी भारत मे सबसे ज्यादा लोकप्रिय खेल था।

गौरतलब है कि उसी समय हॉकी का सबसे अच्छा दौर भी चल रहा था और भारत ने हॉकी में 6 लगातार ऑलंपिक मेडल जीते थे। उस दौर में भारत ने कुल 24 ऑलंपिक मैच खेले थे और सभी जीते थे।

भारत का राष्ट्रीय पेड़ (National Tree of India)

भारत का राष्ट्रीय वृक्ष बरगद का पेड़ है। ऐसा कहा जाता है कि बर्गद विस्तृत और छायादार होने की प्रेरणा देता है। बर्गद तरह-तरह के जानवरों और पक्षियों को निस्वार्थ भावना से संरक्षण प्रदान करता है। बर्गद के पेड़ को राष्ट्रीय पेड़ बनाने के पीछे यही उद्देशय था कि देश के सभी नागरिक एकता और निस्वार्थ भाव से देशहित के लिए कार्य करें।

भारत का राष्ट्रीय चिन्ह (National Emblem of India)

अशोक चिन्ह भारत का राष्ट्रीय चिन्ह है। इस चिन्ह में चार एशियाई शेरों को चारो दिशा में देखते हुए उकेरा गया है। यह चिन्ह अशोक साम्राज्य के शक्ति एवं शौर्य को इंगित करता था और यही अब चिन्ह भारत के लिए करता है।

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चिन्ह के आधार पर हाथी, घोड़ा, बैल और शेर देखा जा सकता है। ये सभी पहियों द्वारा अलग किए गए हैं जो कि भारत के निरंतर विकास को दर्शाता है। यह चिन्ह कमल के फूल पर स्थापित है।

भारत की राष्ट्रीय नदी (National River Of India)

भारत की राष्ट्रीय नदी गंगा है। गंगा विश्व की सबसे प्राचीन नदियों में से एक है। गंगा भारत की सबसे बड़ी नदी है और भारतीय नागरिकों के मन में गंगा के प्रति एक विशेष श्रद्धा है। गंगा के किनारे पर वाराणसी, इलाहाबाद और हरिद्वार जैसे शहर स्थित हैं।

हिमालय पर्वत से निकलकर गंगा, घाटियों, खेतों और अनेक शहरों से होते हुए बंगाल की खाड़ी में जाकर समाहित हो जाती है। इस दौरान गंगा कुल 2510 किलोमीटर बहती है। 

भारत की राष्ट्रीय मुद्रा (National Currency Of India)

भारत की राष्ट्रीय मुद्रा रुपया है। गौरतलब है कि भारत में रुपए का नियंत्रण रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा किया जाता है। भारतीय मुद्रा का नाम रुपया, चांदी के सिक्कों के पर आधारित है। सबसे पहले रुपए को अपने साम्राज्य मे शेर शाह सूरी द्वारा लागू किया गया था। 

भारत का “राष्ट्रीय धरोहर पशु” (National heritage animal of India)

भारत का राष्ट्रीय धरोहर पशु एशियाई हाथी है। गौरतलब है कि यह एशियाई हाथी, एशिया के केवल कुछ ही हिस्सों में पाया जाता है। एशियाई हाथी को आईयूसीएन द्वारा सबसे ज्यादा एतिहासिक जानवरों की श्रेणी में रखा गया है। गौरतलब है कि एशियाई हाथी भारत के कुल चार हिस्सों में पाया जाता है। 

भारत का राष्ट्रीय “जलीय जीव” (National Aquatic Animal of India)

भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव डॉलफिन है। National Symbols of India in Hindi भारत में यह डॉलफिन गंगा नदी में पाया जाता है। पहले इस प्रजाति के बहुत से जीव गंगा में थे लेकिन धीरे धीरे यह प्रजाति विलुप्त हो रही है। 

भारत का राष्ट्रीय सांप (National reptile of India)

भारत का राष्ट्रीय सांप किंग कोबरा है। इनकी औसत लंबाई कुल 5.6 से 5.7 मीटर होती है। यह जहरीला नाग अक्सर भारतीय जंगलों में पाए जाते हैं। यह भारत की पौराणिक कहानियों में विशेष महत्व रखते हैं। 

Madame Marie Curie की जीवनी in Hindi

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मैडम क्युरी की जीवनी Madame Marie Curie Biography in Hindi मैडम क्युरी को “मैरी क्युरी” के नाम से भी जानते है। उनका जन्म 7 नवम्बर 1867 को पोलैड के वारसा शहर में हुआ था। वो रूस की रहने वाली थी, प्रसिद्ध भौतिकशास्त्री और रसायनशास्त्री थी। मैडम क्युरी “रेडियम” की खोज के लिए प्रसिद्ध है। विज्ञान की दोनों शाखाओं- भौतिकी विज्ञान और रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाली वो पहली महिला है। उन्होंने अथक प्रयास से रेडियम सक्रीय पदार्थ का खोज किया।

Meeting Marie Curie. The most underrated female scientist of… | by Fareeha  Arshad | Lessons from History | Medium

मैडम क्युरी की जीवनी Madame Marie Curie Biography in Hindi

बचपन में संघर्ष  STRUGGLE OF  CHILDHOOD

मैडम क्युरी की बड़ी बहन का नाम ब्रान्या था। उनके पिता विज्ञान के शिक्षक थे। पोलैंड के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के कारण उनको नौकरी से निकाल दिया गया था। मैडम क्युरी को अपने जीवन में अनेक संकटो का सामना करना पड़ा। जब क्युरी 11 साल की थी, तब उनकी माँ का स्वर्गवास हो गया। बचपन में आर्थिक तंगी के कारण वो अपनी बड़ी बहन के पास पेरिस शहर चली गयी।

उनको दूसरे घरो में गवर्नेस का काम भी करना पड़ा। उनके पिता की नौकरी में तनखा आधी कर दी गयी क्यूंकि वो सरकारी तानाशाही और गलत नीतियों का विरोध कर रहे थे। गरीबी के दिनों में क्युरी को सिर्फ ब्रेड और मक्खन खाकर गुजारा करना पड़ा था। एक गलत निवेश के कारण उनके पिता का सारा पैसा डूब गया था।

रेडियम की खोज और विवाह  INVENTION OF RADIUM AND MARRIAGE

हम सभी मैडम क्युरी को रेडियम की खोज करने वाली वैज्ञानिक के तौर पर जानते है। रेडियम का इस्तेमाल कैंसर की दवाईयों में किया जाता है। इसके अलावा इसका प्रयोग पेंट, घड़ी की सूई, कपड़े, दवाइयों में भी किया जाता है।

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माँ के देहांत के बाद मैडम क्युरी पढाई करती रही। 16 वर्ष की आयु में उन्होंने 12वीं की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। उनको स्वर्ण पदक दिया गया। स्कूल में सभी शिक्षक मैडम क्युरी को बहुत पसंद करते थे क्यूंकि वो पढने में होशियार थी। वो सभी की प्रिय थी।

वो फ़्रांस में डॉक्टरेट करने वाली पहली महिला बनी। पेरिस विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बनने वाली पहली महिला बनी। यही पर इनकी मुलाक़ात पियरे क्युरी से हुई जो पेरिस विश्वविद्यालय में ही भौतिकी और रसायन विज्ञान के ट्रेनर थे।

उन्होंने मैडम क्युरी को अपनी लैब में अपना पार्टनर बना लिया। दोनों के बीच प्यार हो गया और मैडम क्युरी ने पियरे क्युरी से शादी कर ली। इस वैज्ञानिक दंपत्ति ने 1898 में पोलोनियम की महत्त्वपूर्ण खोज की।

21 दिसम्बर 1898 को क्युरी दम्पत्ति ने रेडियम की खोज की। यह खोज चिकित्साशास्त्र के लिए और कैंसर जैसे असाध्य रोज के लिए बहुत फायदेमंद साबित हुई। 1903 में मैडम क्युरी ने पी एच डी (Phd) पूरी कर ली।

क्युरी दम्पत्ति को रेडियोएक्टिविटी की खोज के लिए भौतिक विज्ञान का नोबेल पुरस्कार दिया गया। 1911 में उनको रेडियम के शुद्धिकरण के लिए रसायन विज्ञान का नोबेल पुरस्कार दिया गया। विज्ञान की दो शाखाओं में नोबेल पुरस्कार पाने वाली वो पहली महिला है।

बेटियों का जन्म और पियरे क्युरी की मृत्यु BIRTH OF DAUGHTERS AND PIERRE CURIE DEATH

विवाह के बाद क्युरी ने दो बेटियों को जन्म दिया। बड़ी बेटी आईरीन का जन्म  1897 में हुआ, जबकि छोटी बेटी ईव का जन्म 1904 में हुआ। घर की जिम्मेदारियां संभालना और शोध कार्य करना आसान बात नही थी।

19 अप्रैल 1906 को उनके पति पियरे क्युरी की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गयी। मैडम क्युरी की दोनों बेटियों को नोबेल पुरस्कार मिला। बड़ी बेटी आईरीन को 1935 में रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार मिला और छोटी बेटी ईव को 1965 में शांति के लिए नॉबेल पुरस्कार दिया गया।

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क्युरी को अमेरिका में बहुत सम्मान मिला। वहां के राष्ट्रपति ने कहा की रेडियम जैसे कीमती वस्तु पर क्युरी परिवार का अधिकार होगा, पर मैडम क्युरी ने राष्ट्रपति की बात नामंजूर कर दी। शर्त में यह लिखवा दिया की रेडियम का इस्तेमाल किसी व्यक्ति विशेष को अमीर बनाने के लिए नही बल्कि लोक कल्याण के लिए किया जायेगा। अमेरिका के लोगो ने लैब बनाने के लिए मैडम क्युरी को 1 लाख डालर का चंदा दिया।

“Radium is not to enrich any one। It is an element for all people.” – Marie Curie
“रेडियम किसी को समृद्ध बनाने के लिए नहीं है। यह तत्व सभी लोगों के लिए है।” – मैडम क्युरी

मैडम क्युरी बहुत ही दयावान महिला थी। अपनी खोजो का इस्तेमाल वो सभी लोगो के फायदे के लिए करना चाहती थी। नोबेल पुरस्कार से प्राप्त धन को उन्होंने सार्वजनिक कामो के लिए दान कर दिया था।

उन्होंने बच्चो का अस्पताल बनवाने के लिए बहुत धन दान दिया, 1914 के विश्व युद्द में पीढ़ितों के लिए स्वीडन में दान किया। युद्ध के पीढ़ितों के लिए क्युरी ने अनेक ऍक्स रे केंद्र खोले जो निशुल्क थे। घायलों के सेवा के लिए उन्होंने अनेक चलते फिरते अस्पताल बनवाये।

उन्होंने 2 लाख से अधिक घायलों की सेवा की। फ़्रांस को हमेशा प्यार किया। अपार धन होने के बाद भी क्युरी को कभी घमंड नही हुआ। उन्होंने अपनी बेटियों को पॉलिश भाषा का ज्ञान दिया। कई बार बेटियों को पोलैंड भी ले गयी।

मृत्यु DEATH

कहा जाता है की वो अपनी वृद्ध आयु में स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह थी। रोज कई घंटे शोध करने के कारण वो अत्यधिक रेडीयशन से ग्रस्त हो गयी। 4 जुलाई, 1934 में 66 वर्ष की उम्र में मैडम क्युरी का निधन हो गया। वो फ्रांस के एक अस्पताल में भर्ती थी। अपने शोध के दौरान अतिरेडियशन से ग्रस्त होने के कारण उनकी मौत हो गयी।

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उनके लिखे शोध कार्य, किताबे, यहाँ तक की खाना बनाने की किताब भी बहुत अधिक रेडीयशन से भरी है। उनके सभी शोध कार्यो, हस्तलिखित किताबो को लीड के बॉक्स में सुरक्षित किया गया। उनके कार्यो को देखने आने वाले लोगों को मास्क पहनना होता है।

क्यूरी फाउंडेशन का सफल निर्माण  ESTABLISHING CURIE FOUNDATION

4 फरवरी 1948 को मैडम क्युरी की मृत्यु के बाद पेरिस में क्युरी फाउन्डेशन की स्थापना की गयी। उनकी बड़ी बहन ब्रोनिया को डाइरेक्टर बनाया गया।

मैडम क्युरी के अनमोल विचार  QUOTES OF MADAME CURIE

मैडम क्युरी के प्रेरणादायक विचार –

  1. “आगे बढ़ने का रास्ता न ही आसान होता है और न छोटा, पर नतीजे अच्छे मिलते हैं”
  2. “उस वक्त तक डरने की कोई जरूरत नहीं है जब तक आप जानते हैं कि जो कर रहे हैं वह बिल्कुल सही है। उससे किसी को नुकसान नहीं पहुंच रहा है”
  3. “उन लोगों में से एक बनिए जिन्हें कर्म में ही सुंदरता दिखती है। Madame Marie Curie  जैसे मुझे साइंस से ज्यादा खूबसूरत कुछ नहीं लगता है”
  4. “आप शादीशुदा हैं, Madame Marie Curie  अपना कॅरिअर बना रही हैं तो अकसर लोग पूछेंगे कि घर और काम को कैसे बैलेंस करती हैं। आपका जवाब सिर्फ इतना-सा होना चाहिए कि यह बिल्कुल आसान नहीं है”
  5. “किसी चीज़ की गहराई को तभी समझ पाएंगे जब आपके पास पूरी आज़ादी हो”

श्री हनुमान चालीसा PDF in Hindi

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Hanuman Chalisa Hindi Lyrics

दोहा

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार
बल बुधि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार

 

 

 

 

12 Lessons from Hanuman Chalisa that everyone should learn

 

 

 

 

 

 

 

 

 

चौपाई

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥१॥

राम दूत अतुलित बल धामा
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥२॥

महाबीर बिक्रम बजरंगी
कुमति निवार सुमति के संगी॥३॥

कंचन बरन बिराज सुबेसा
कानन कुंडल कुँचित केसा॥४॥

हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे
काँधे मूँज जनेऊ साजे॥५॥

शंकर सुवन केसरी नंदन
तेज प्रताप महा जगवंदन॥६॥

विद्यावान गुनी अति चातुर
राम काज करिबे को आतुर॥७॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया
राम लखन सीता मनबसिया॥८॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा
विकट रूप धरि लंक जरावा॥९॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे
रामचंद्र के काज सवाँरे॥१०॥

लाय सजीवन लखन जियाए
श्री रघुबीर हरषि उर लाए॥११॥

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई
तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई॥१२॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावै
अस कहि श्रीपति कंठ लगावै॥१३॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा
नारद सारद सहित अहीसा॥१४॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥१५॥

तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा
राम मिलाय राज पद दीन्हा॥१६॥

तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना
लंकेश्वर भये सब जग जाना॥१७॥

जुग सहस्त्र जोजन पर भानू
लिल्यो ताहि मधुर फ़ल जानू॥१८॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही
जलधि लाँघि गए अचरज नाही॥१९॥

दुर्गम काज जगत के जेते
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥२०॥

राम दुआरे तुम रखवारे
होत ना आज्ञा बिनु पैसारे॥२१॥

सब सुख लहैं तुम्हारी सरना
तुम रक्षक काहु को डरना॥२२॥

आपन तेज सम्हारो आपै
तीनों लोक हाँक तै कापै॥२३॥

भूत पिशाच निकट नहि आवै
महावीर जब नाम सुनावै॥२४॥

नासै रोग हरे सब पीरा
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥२५॥

संकट तै हनुमान छुडावै
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥२६॥

सब पर राम तपस्वी राजा
तिनके काज सकल तुम साजा॥२७॥

और मनोरथ जो कोई लावै
सोई अमित जीवन फल पावै॥२८॥

चारों जुग परताप तुम्हारा
है परसिद्ध जगत उजियारा॥२९॥

साधु संत के तुम रखवारे
असुर निकंदन राम दुलारे॥३०॥

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता
अस बर दीन जानकी माता॥३१॥

राम रसायन तुम्हरे पासा
सदा रहो रघुपति के दासा॥३२॥

तुम्हरे भजन राम को पावै
जनम जनम के दुख बिसरावै॥३३॥

अंतकाल रघुवरपुर जाई
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥३४॥

और देवता चित्त ना धरई
हनुमत सेई सर्व सुख करई॥३५॥

संकट कटै मिटै सब पीरा
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥३६॥

जै जै जै हनुमान गुसाईँ
कृपा करहु गुरु देव की नाई॥३७॥

जो सत बार पाठ कर कोई
छूटहि बंदि महा सुख होई॥३८॥

जो यह पढ़े हनुमान चालीसा
होय सिद्ध साखी गौरीसा॥३९॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा
कीजै नाथ हृदय मह डेरा॥४०॥

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

दोहा

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥

Hanuman Chalisa

श्री विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र PDF Hindi

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श्री विष्णु सहस्रनाम क्या है और इसके लाभ क्या हैं? What is Vishnu Sahasranamam and Its benefits in Hindi? श्री विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र , एक अद्भुत चमत्कारी वैदिक मंत्र है जिसमें भगवान विष्णु के 1000 नामों का उच्चारण एक साथ हुआ है। माना जाता है की विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने से मनुष्य को जीवन में अपार सफलता प्राप्त होती है। इसका उल्लेख महाभारत की अनुशासनिका पर्वं में हुआ है। महाभारत के अनुसार भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर के समक्ष विष्णु सहस्रनाम के श्लोकों का उच्चारण किया था। पौराणिक काल से यह माना जाता है कि भले ही आप विष्णु सहस्त्रनाम स्रोत को समझे या ना समझे इसका पाठ करने से जीवन में अत्यधिक लाभ मिलता है।कहा जाता है इसका पाठ करने वाले लोगों का पाप दूर होता है और जीवन में ख़ुशियाँ व समृद्धि आती हैं। निस्वार्थ भाव से भगवान की पूजा करना जीवन में सफलता का सबसे बेहतर मार्ग है।हमें दिल से पवित्र मन से भगवान की पूजा करनी चाहिए। भले ही भगवान आज हमारे आंखों के समक्ष नहीं हो परंतु उनके दिए हुए ज्ञान के माध्यम से ही आज पूरा संसार चल रहा है इसलिए उनके महान वचनों पर अमल करना जीवन में परम सुख प्रदान करता है।

 

 

 

 

SHRI VISHNU SAHASRANAMAM - MOST POPULAR STOTRAM - श्री विष्णु सहस्रनाम संपूर्ण - LORD VISHNU STOTRAM - YouTube

 

 

 

 

श्री विष्णुसहस्रनाम स्तोत्र या वेंकटेश्वर सहस्त्र नामं स्तोत्रम् Shri Vishnu Sahasranamam Stotram in hindi PDF

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:

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यश तळेले

शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम्।

प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ॥१।।

यस्य द्विरद्वात्राद्या: पारिषद्या: पर: शतम्।

विघ्नं निघ्नंति सततं विश्वकसेनं तमाश्रये।।२।।

व्यासं वशिष्ठरनप्तारं शक्ते: पौत्रकल्मषम।

पराशरात्मजं वंदे शुकतात तपोनिधिम।।३।।

व्यासाय् विष्णुरुपाय व्यासरूपाय विष्णवे।

नमो वै ब्रम्हनिधये वासिष्ठाय नमो नमः।।४।।

अविकाराय शुद्धाय नित्याय परमात्मने।

सदैकरूपरूपाय विष्णवे सर्वजिष्णवे।।५।।

यस्य स्मरणमात्रेण जन्मा संसारबन्धनात्।

विमुच्यते नमस्तस्मै विष्णवे प्रभविष्णवे।।६।।

ॐ नमो विष्णवे प्रभविष्णवे।

श्री वैशम्पायन उवाच।ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:


ॐ विश्वं विष्णु: वषट्कारो भूत-भव्य-भवत-प्रभुः।

भूत-कृत भूत-भृत भावो भूतात्मा भूतभावनः।।1।।

पूतात्मा परमात्मा च मुक्तानां परमं गतिः।

अव्ययः पुरुष साक्षी क्षेत्रज्ञो अक्षर एव च।।2।।

योगो योग-विदां नेता प्रधान-पुरुषेश्वरः।

नारसिंह-वपुः श्रीमान केशवः पुरुषोत्तमः।।3।।

सर्वः शर्वः शिवः स्थाणु: भूतादि: निधि: अव्ययः।

संभवो भावनो भर्ता प्रभवः प्रभु: ईश्वरः।।4।।

स्वयंभूः शम्भु: आदित्यः पुष्कराक्षो महास्वनः।

अनादि-निधनो धाता विधाता धातुरुत्तमः।।5।।

अप्रमेयो हृषीकेशः पद्मनाभो-अमरप्रभुः।

विश्वकर्मा मनुस्त्वष्टा स्थविष्ठः स्थविरो ध्रुवः।।6।।

अग्राह्यः शाश्वतः कृष्णो लोहिताक्षः प्रतर्दनः।

प्रभूतः त्रिककुब-धाम पवित्रं मंगलं परं।।7।।

ईशानः प्राणदः प्राणो ज्येष्ठः श्रेष्ठः प्रजापतिः।

हिरण्य-गर्भो भू-गर्भो माधवो मधुसूदनः।।8।।

ईश्वरो विक्रमी धन्वी मेधावी विक्रमः क्रमः।

अनुत्तमो दुराधर्षः कृतज्ञः कृति: आत्मवान।।9।।

सुरेशः शरणं शर्म विश्व-रेताः प्रजा-भवः।

अहः संवत्सरो व्यालः प्रत्ययः सर्वदर्शनः।।10।।

अजः सर्वेश्वरः सिद्धः सिद्धिः सर्वादि: अच्युतः।

वृषाकपि: अमेयात्मा सर्व-योग-विनिःसृतः।।11।।

वसु: वसुमनाः सत्यः समात्मा संमितः समः।

अमोघः पुण्डरीकाक्षो वृषकर्मा वृषाकृतिः।।12।।

रुद्रो बहु-शिरा बभ्रु: विश्वयोनिः शुचि-श्रवाः।

अमृतः शाश्वतः स्थाणु: वरारोहो महातपाः।।13।।

सर्वगः सर्वविद्-भानु: विष्वक-सेनो जनार्दनः।

वेदो वेदविद-अव्यंगो वेदांगो वेदवित् कविः।।14।।

लोकाध्यक्षः सुराध्यक्षो धर्माध्यक्षः कृता-कृतः।

चतुरात्मा चतुर्व्यूह:-चतुर्दंष्ट्र:-चतुर्भुजः।।15।।

भ्राजिष्णु भोजनं भोक्ता सहिष्णु: जगदादिजः।

अनघो विजयो जेता विश्वयोनिः पुनर्वसुः।।16।।

उपेंद्रो वामनः प्रांशु: अमोघः शुचि: ऊर्जितः।

अतींद्रः संग्रहः सर्गो धृतात्मा नियमो यमः।।17।।

वेद्यो वैद्यः सदायोगी वीरहा माधवो मधुः।

अति-इंद्रियो महामायो महोत्साहो महाबलः।।18।।

महाबुद्धि: महा-वीर्यो महा-शक्ति: महा-द्युतिः।

अनिर्देश्य-वपुः श्रीमान अमेयात्मा महाद्रि-धृक।।19।।

महेष्वासो महीभर्ता श्रीनिवासः सतां गतिः।

अनिरुद्धः सुरानंदो गोविंदो गोविदां-पतिः।।20।।

मरीचि: दमनो हंसः सुपर्णो भुजगोत्तमः।

हिरण्यनाभः सुतपाः पद्मनाभः प्रजापतिः।।21।।

अमृत्युः सर्व-दृक् सिंहः सन-धाता संधिमान स्थिरः।

अजो दुर्मर्षणः शास्ता विश्रुतात्मा सुरारिहा।।22।।

गुरुःगुरुतमो धामः सत्यः सत्य-पराक्रमः।

निमिषो-अ-निमिषः स्रग्वी वाचस्पति: उदार-धीः।।23।।

अग्रणी: ग्रामणीः श्रीमान न्यायो नेता समीरणः।

सहस्र-मूर्धा विश्वात्मा सहस्राक्षः सहस्रपात।।24।।

आवर्तनो निवृत्तात्मा संवृतः सं-प्रमर्दनः।

अहः संवर्तको वह्निः अनिलो धरणीधरः।।25।।

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सुप्रसादः प्रसन्नात्मा विश्वधृक्-विश्वभुक्-विभुः।

सत्कर्ता सकृतः साधु: जह्नु:-नारायणो नरः।।26।।

असंख्येयो-अप्रमेयात्मा विशिष्टः शिष्ट-कृत्-शुचिः।

सिद्धार्थः सिद्धसंकल्पः सिद्धिदः सिद्धिसाधनः।।27।।

वृषाही वृषभो विष्णु: वृषपर्वा वृषोदरः।

वर्धनो वर्धमानश्च विविक्तः श्रुति-सागरः।।28।।

सुभुजो दुर्धरो वाग्मी महेंद्रो वसुदो वसुः।

नैक-रूपो बृहद-रूपः शिपिविष्टः प्रकाशनः।।29।।

ओज: तेजो-द्युतिधरः प्रकाश-आत्मा प्रतापनः।

ऋद्धः स्पष्टाक्षरो मंत्र: चंद्रांशु: भास्कर-द्युतिः।।30।।

अमृतांशूद्भवो भानुः शशबिंदुः सुरेश्वरः।

औषधं जगतः सेतुः सत्य-धर्म-पराक्रमः।।31।।

भूत-भव्य-भवत्-नाथः पवनः पावनो-अनलः।

कामहा कामकृत-कांतः कामः कामप्रदः प्रभुः।।32।।

युगादि-कृत युगावर्तो नैकमायो महाशनः।

अदृश्यो व्यक्तरूपश्च सहस्रजित्-अनंतजित।।33।।

इष्टो विशिष्टः शिष्टेष्टः शिखंडी नहुषो वृषः।

क्रोधहा क्रोधकृत कर्ता विश्वबाहु: महीधरः।।34।।

अच्युतः प्रथितः प्राणः प्राणदो वासवानुजः।

अपाम निधिरधिष्टानम् अप्रमत्तः प्रतिष्ठितः।।35।।

स्कन्दः स्कन्द-धरो धुर्यो वरदो वायुवाहनः।

वासुदेवो बृहद भानु: आदिदेवः पुरंदरः।।36।।

अशोक: तारण: तारः शूरः शौरि: जनेश्वर:।

अनुकूलः शतावर्तः पद्मी पद्मनिभेक्षणः।।37।।

पद्मनाभो-अरविंदाक्षः पद्मगर्भः शरीरभृत।

महर्धि-ऋद्धो वृद्धात्मा महाक्षो गरुड़ध्वजः।।38।।

अतुलः शरभो भीमः समयज्ञो हविर्हरिः।

सर्वलक्षण लक्षण्यो लक्ष्मीवान समितिंजयः।।39।।

विक्षरो रोहितो मार्गो हेतु: दामोदरः सहः।

महीधरो महाभागो वेगवान-अमिताशनः।।40।।

उद्भवः क्षोभणो देवः श्रीगर्भः परमेश्वरः।

करणं कारणं कर्ता विकर्ता गहनो गुहः।।41।।

व्यवसायो व्यवस्थानः संस्थानः स्थानदो-ध्रुवः।

परर्रद्वि परमस्पष्टः तुष्टः पुष्टः शुभेक्षणः।।42।।

रामो विरामो विरजो मार्गो नेयो नयो-अनयः।

वीरः शक्तिमतां श्रेष्ठ: धर्मो धर्मविदुत्तमः।।43।।

वैकुंठः पुरुषः प्राणः प्राणदः प्रणवः पृथुः।

हिरण्यगर्भः शत्रुघ्नो व्याप्तो वायुरधोक्षजः।।44।।

ऋतुः सुदर्शनः कालः परमेष्ठी परिग्रहः।

उग्रः संवत्सरो दक्षो विश्रामो विश्व-दक्षिणः।।45।।

विस्तारः स्थावर: स्थाणुः प्रमाणं बीजमव्ययम।

अर्थो अनर्थो महाकोशो महाभोगो महाधनः।।46।।

अनिर्विण्णः स्थविष्ठो-अभूर्धर्म-यूपो महा-मखः।

नक्षत्रनेमि: नक्षत्री क्षमः क्षामः समीहनः।।47।।

यज्ञ इज्यो महेज्यश्च क्रतुः सत्रं सतां गतिः।

सर्वदर्शी विमुक्तात्मा सर्वज्ञो ज्ञानमुत्तमं।।48।।

सुव्रतः सुमुखः सूक्ष्मः सुघोषः सुखदः सुहृत।

मनोहरो जित-क्रोधो वीरबाहुर्विदारणः।।49।।

स्वापनः स्ववशो व्यापी नैकात्मा नैककर्मकृत।

वत्सरो वत्सलो वत्सी रत्नगर्भो धनेश्वरः।।50।।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

धर्मगुब धर्मकृद धर्मी सदसत्क्षरं-अक्षरं।

अविज्ञाता सहस्त्रांशु: विधाता कृतलक्षणः।।51।।

गभस्तिनेमिः सत्त्वस्थः सिंहो भूतमहेश्वरः।

आदिदेवो महादेवो देवेशो देवभृद गुरुः।।52।।

उत्तरो गोपतिर्गोप्ता ज्ञानगम्यः पुरातनः।

शरीर भूतभृद्भोक्ता कपींद्रो भूरिदक्षिणः।।53।।

सोमपो-अमृतपः सोमः पुरुजित पुरुसत्तमः।

विनयो जयः सत्यसंधो दाशार्हः सात्वतां पतिः।।54।।

जीवो विनयिता-साक्षी मुकुंदो-अमितविक्रमः।

अम्भोनिधिरनंतात्मा महोदधिशयो-अंतकः।।55।।

अजो महार्हः स्वाभाव्यो जितामित्रः प्रमोदनः।

आनंदो नंदनो नंदः सत्यधर्मा त्रिविक्रमः।।56।।

महर्षिः कपिलाचार्यः कृतज्ञो मेदिनीपतिः।

त्रिपदस्त्रिदशाध्यक्षो महाश्रृंगः कृतांतकृत।।57।।

महावराहो गोविंदः सुषेणः कनकांगदी।

गुह्यो गंभीरो गहनो गुप्तश्चक्र-गदाधरः।।58।।

वेधाः स्वांगोऽजितः कृष्णो दृढः संकर्षणो-अच्युतः।

वरूणो वारुणो वृक्षः पुष्कराक्षो महामनाः।।59।।

भगवान भगहानंदी वनमाली हलायुधः।

आदित्यो ज्योतिरादित्यः सहिष्णु:-गतिसत्तमः।।60।।

सुधन्वा खण्डपरशुर्दारुणो द्रविणप्रदः।

दिवि: स्पृक् सर्वदृक व्यासो वाचस्पति: अयोनिजः।।61।।

त्रिसामा सामगः साम निर्वाणं भेषजं भिषक।

संन्यासकृत्-छमः शांतो निष्ठा शांतिः परायणम।।62।।

शुभांगः शांतिदः स्रष्टा कुमुदः कुवलेशयः।

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गोहितो गोपतिर्गोप्ता वृषभाक्षो वृषप्रियः।।63।।

अनिवर्ती निवृत्तात्मा संक्षेप्ता क्षेमकृत्-शिवः।

श्रीवत्सवक्षाः श्रीवासः श्रीपतिः श्रीमतां वरः।।64।।

श्रीदः श्रीशः श्रीनिवासः श्रीनिधिः श्रीविभावनः।

श्रीधरः श्रीकरः श्रेयः श्रीमान्-लोकत्रयाश्रयः।।65।।

स्वक्षः स्वंगः शतानंदो नंदिर्ज्योतिर्गणेश्वर:।

विजितात्मा विधेयात्मा सत्कीर्तिश्छिन्नसंशयः।।66।।

उदीर्णः सर्वत: चक्षुरनीशः शाश्वतस्थिरः।

भूशयो भूषणो भूतिर्विशोकः शोकनाशनः।।67।।

अर्चिष्मानर्चितः कुंभो विशुद्धात्मा विशोधनः।

अनिरुद्धोऽप्रतिरथः प्रद्युम्नोऽमितविक्रमः।।68।।

कालनेमिनिहा वीरः शौरिः शूरजनेश्वरः।

त्रिलोकात्मा त्रिलोकेशः केशवः केशिहा हरिः।।69।।

कामदेवः कामपालः कामी कांतः कृतागमः।

अनिर्देश्यवपुर्विष्णु: वीरोअनंतो धनंजयः।।70।।

ब्रह्मण्यो ब्रह्मकृत् ब्रह्मा ब्रह्म ब्रह्मविवर्धनः।

ब्रह्मविद ब्राह्मणो ब्रह्मी ब्रह्मज्ञो ब्राह्मणप्रियः।।71।।

महाक्रमो महाकर्मा महातेजा महोरगः।

महाक्रतुर्महायज्वा महायज्ञो महाहविः।।72।।

स्तव्यः स्तवप्रियः स्तोत्रं स्तुतिः स्तोता रणप्रियः।

पूर्णः पूरयिता पुण्यः पुण्यकीर्तिरनामयः।।73।।

मनोजवस्तीर्थकरो वसुरेता वसुप्रदः।

वसुप्रदो वासुदेवो वसुर्वसुमना हविः।।74।।

सद्गतिः सकृतिः सत्ता सद्भूतिः सत्परायणः।

शूरसेनो यदुश्रेष्ठः सन्निवासः सुयामुनः।।75।।

भूतावासो वासुदेवः सर्वासुनिलयो-अनलः।

दर्पहा दर्पदो दृप्तो दुर्धरो-अथापराजितः।।76।।

विश्वमूर्तिमहार्मूर्ति: दीप्तमूर्ति: अमूर्तिमान।

अनेकमूर्तिरव्यक्तः शतमूर्तिः शताननः।।77।।

एको नैकः सवः कः किं यत-तत-पद्मनुत्तमम।

लोकबंधु: लोकनाथो माधवो भक्तवत्सलः।।78।।

सुवर्णोवर्णो हेमांगो वरांग: चंदनांगदी।

वीरहा विषमः शून्यो घृताशीरऽचलश्चलः।।79।।

अमानी मानदो मान्यो लोकस्वामी त्रिलोकधृक।

सुमेधा मेधजो धन्यः सत्यमेधा धराधरः।।80।।

तेजोवृषो द्युतिधरः सर्वशस्त्रभृतां वरः।

प्रग्रहो निग्रहो व्यग्रो नैकश्रृंगो गदाग्रजः।।81।।

चतुर्मूर्ति: चतुर्बाहु: श्चतुर्व्यूह: चतुर्गतिः।

चतुरात्मा चतुर्भाव: चतुर्वेदविदेकपात।।82।।

समावर्तो-अनिवृत्तात्मा दुर्जयो दुरतिक्रमः।

दुर्लभो दुर्गमो दुर्गो दुरावासो दुरारिहा।।83।।

शुभांगो लोकसारंगः सुतंतुस्तंतुवर्धनः।

इंद्रकर्मा महाकर्मा कृतकर्मा कृतागमः।।84।।

उद्भवः सुंदरः सुंदो रत्ननाभः सुलोचनः।

अर्को वाजसनः श्रृंगी जयंतः सर्वविज-जयी।।85।।

सुवर्णबिंदुरक्षोभ्यः सर्ववागीश्वरेश्वरः।

महाह्रदो महागर्तो महाभूतो महानिधः।।86।।

कुमुदः कुंदरः कुंदः पर्जन्यः पावनो-अनिलः।

अमृतांशो-अमृतवपुः सर्वज्ञः सर्वतोमुखः।।87।।

सुलभः सुव्रतः सिद्धः शत्रुजिच्छत्रुतापनः।

न्यग्रोधो औदुंबरो-अश्वत्थ: चाणूरांध्रनिषूदनः।।88।।

सहस्रार्चिः सप्तजिव्हः सप्तैधाः सप्तवाहनः।

अमूर्तिरनघो-अचिंत्यो भयकृत्-भयनाशनः।।89।।

अणु: बृहत कृशः स्थूलो गुणभृन्निर्गुणो महान्।

अधृतः स्वधृतः स्वास्यः प्राग्वंशो वंशवर्धनः।।90।।

भारभृत्-कथितो योगी योगीशः सर्वकामदः।

आश्रमः श्रमणः क्षामः सुपर्णो वायुवाहनः।।91।।

धनुर्धरो धनुर्वेदो दंडो दमयिता दमः।

अपराजितः सर्वसहो नियंता नियमो यमः।।92।।

सत्त्ववान सात्त्विकः सत्यः सत्यधर्मपरायणः।

अभिप्रायः प्रियार्हो-अर्हः प्रियकृत-प्रीतिवर्धनः।।93।।

विहायसगतिर्ज्योतिः सुरुचिर्हुतभुग विभुः।

रविर्विरोचनः सूर्यः सविता रविलोचनः।।94।।

अनंतो हुतभुग्भोक्ता सुखदो नैकजोऽग्रजः।

अनिर्विण्णः सदामर्षी लोकधिष्ठानमद्भुतः।।95।।

सनात्-सनातनतमः कपिलः कपिरव्ययः।

स्वस्तिदः स्वस्तिकृत स्वस्ति स्वस्तिभुक स्वस्तिदक्षिणः।।96।।

अरौद्रः कुंडली चक्री विक्रम्यूर्जितशासनः।

शब्दातिगः शब्दसहः शिशिरः शर्वरीकरः।।97।।

अक्रूरः पेशलो दक्षो दक्षिणः क्षमिणां वरः।

विद्वत्तमो वीतभयः पुण्यश्रवणकीर्तनः।।98।।

उत्तारणो दुष्कृतिहा पुण्यो दुःस्वप्ननाशनः।

वीरहा रक्षणः संतो जीवनः पर्यवस्थितः।।99।।

अनंतरूपो-अनंतश्री: जितमन्यु: भयापहः।

चतुरश्रो गंभीरात्मा विदिशो व्यादिशो दिशः।।100।।

अनादिर्भूर्भुवो लक्ष्मी: सुवीरो रुचिरांगदः।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

जननो जनजन्मादि: भीमो भीमपराक्रमः।।101।।

आधारनिलयो-धाता पुष्पहासः प्रजागरः।

ऊर्ध्वगः सत्पथाचारः प्राणदः प्रणवः पणः।।102।।

प्रमाणं प्राणनिलयः प्राणभृत प्राणजीवनः।

तत्त्वं तत्त्वविदेकात्मा जन्ममृत्यु जरातिगः।।103।।

भूर्भवः स्वस्तरुस्तारः सविता प्रपितामहः।

यज्ञो यज्ञपतिर्यज्वा यज्ञांगो यज्ञवाहनः।।104।।

यज्ञभृत्-यज्ञकृत्-यज्ञी यज्ञभुक्-यज्ञसाधनः।

यज्ञान्तकृत-यज्ञगुह्यमन्नमन्नाद एव च।।105।।

आत्मयोनिः स्वयंजातो वैखानः सामगायनः।

देवकीनंदनः स्रष्टा क्षितीशः पापनाशनः।।106।।

शंखभृन्नंदकी चक्री शार्ङ्गधन्वा गदाधरः।

रथांगपाणिरक्षोभ्यः सर्वप्रहरणायुधः।।107।।

सर्वप्रहरणायुध ॐ नमः इति।

वनमालि गदी शार्ङ्गी शंखी चक्री च नंदकी।

श्रीमान् नारायणो विष्णु: वासुदेवोअभिरक्षतु।

 

 

 

 

 

 

 

 

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Nick Jonas का जीवन परिचय in Hindi

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निक जोनास का जीवन परिचय ( Nick Jonas Age,Height,Weight,Net Worth,Priyanka Chopra, Biography in Hindi )  निक जोनास एक अमेरिकन सिंगर है , जोनास ब्रदर नाम का इनका एक बेंड है , जिसमे केविन और जो (Joy) शामिल है और यह जोनास ब्रदर बेंड (Jonas Brother Band) नाम से फेमस है . इन्होने कई फिल्मों और सीरियल में भी काम किया है और कई एलबम और सॉंग (song) भी रिलीज किए है. इन्होने एक डिज़्नी चैनल(Disney Channel) की श्रंखला की भी शुरुआत की,  जिसमे ये कई शो कर चुके है .

Nick Jonas Biography in Hindi | निक जोनास जीवन परिचय , आयु, प्रेमिका,  परिवार, जीवनी, पेशे और अधिक - Status | Quotes | Shayari | Wishes in hindi  for Whatsapp, Fb

 

 

 

 

निक जोनास के बारे मे संक्षिप्त जानकारी              

नाम (Name) निकोलस जेरी जोनास
निक नाम (Nick Name) निक जे , निक , मिस्टर प्रेसिडेंट
कार्य (Profession)   गायक, गीत लेखक, अभिनेता, रिकॉर्ड प्रोडूसर
जन्म तारीख (DOB) 16 सितम्बर 1992
आयु (Age ( 2018 ) 25 वर्ष
जन्म स्थान (Birth Place) डलास , टेक्सास , यू एस ए
राशी (Zodiac Sign) वृश्चिक
नागरिक्ता (Nationality) अमेरिकन
होमटाउन (Home Town) वीकऑफ़ , न्यू जर्सी यू एस 
इंस्टाग्राम  (Instagram Id) @nickjonas 

धर्म (Religion) क्रिश्चन
हॉबी (Hobbies) बेस बॉल कार्ड एकत्रित करना , संगीत सुनना
ट्विटर (Twitter) @nickjonas
मेरीटियल स्टेटस (Marital status) अविवाहिक

 शिक्षा , जन्म स्थान एवं पारिवारिक जानकारी ( Education , Early Life , Birth and Family):

निक के पिताजी का नाम पाल केविन जोनास है जो कि एक सिंगर रह चुके है और अपने बेटे के करियर को मैनेज करने का काम करते है और उनका मार्गदर्शन करते है . इनकी माँ डेनिस मिलर जोनास है और ये पोस्टल सर्विस का कार्य करती है. निक के माता पिता , पाल और डेनिस की शादी 1985 में हुई थी .

निक के तीन भाई है जो, फ्रंकिए और केविन . जो और केविन दोनों निक के साथ जोनास ब्रदर्स के सदस्य है. जो और केविन निक से बड़े भाई है और इनके सबसे छोटे भाई का नाम फ्रंकिए है जिसे ये मजाक में बोनस जोनास भी बुलाते है .

निक की आरंभिक शिक्षा स्कूल से हुईं, लेकिन इन्होने 5 साल की उम्र से ही गाना शुरू कर दिया था , इसलिए इनकी पढाई इनके माता पिता द्वारा घर से ही पूर्ण करवाई गई .

 

 

 

 

 

 

 

 

 

पारिवारिक जानकारी संक्षिप्त में :

माता (Mother)    डेनिस मिलर जोनास
पिता (Father) पॉल केविन जोनास
भाई (Brother) जो जोनास 

केविन जोनास

फ्रंकी जोनास

स्कुल (School) होम स्कूल
शिक्षा (Education Qualification) हाई स्कूल

लुक्स टेबल ( Looks Table ):

लंबाई (Height) सेंटीमीटर में – 170 cm 

मीटर में – 1.7 m

फीट में – 5’ 7’’

वजन  (Weight) किलोग्राम में – 70 के जी 

पौंड में – 154 आई बी एस

शारीरिक बनावट  (Figure) 40 – 32 – 14
आखों का रंग (Eye  color) डार्क ब्राउन
बालो का रंग (Hair Color) डार्क ब्राउन

करियर ( Career ):

निक जोनास का पहला अलबम 2005 में आया पर इसे कोई खास सफलता नही मिली . इसके बाद इन्होने इनके भाई के साथ मिलकर एक बेंड बनाया जो काफी सफल भी हुआ. इनके द्वारा इस बैंड को जोनास ब्रदर्स नाम दिया गया. इनके बेंड का डेब्यू टाइटल बेहद सफल हुआ और इसके दुसरे सॉंग से ये बेहद प्रसिद्ध हुए . इसके बाद इन्होने डिज्नी के साथ कांट्रैक्ट साइन किया और और इनके शो और मूवी करना शुरू किया . इसके अलावा इन्होने और भी कई एलबम रिलीज किए . आज निक के कई सॉंग आ चुके है और इनके कई फेन फॉलोइंग है . इनके चाहने वाले इनके हर गाने के दिवाने होते है .

निक जोनास के अफेयर ( Affair Nick Jonas ):

निक जोनास का पहला अफेयर डिज्नी की एक यंग सेलेब्रिटी माईली सायरस के साथ रहा , इन्होने कभी इस बात का खुलासा नही किया. माईली की बुक में इस बात के जिक्र से यह बात सामने आई .  माईली के बाद सेलेना गोमेज़ , रीता ओरा , अलिविया कल्पो के साथ इनके कई अफेयर रहे .

निक और प्रियंका चोपड़ा का अफेयर :

इन दोनों सेलेब्रिटी के अफेयर के चर्चे जोरों पर है, बी टाउन में ऐसी खबरे है कि ये दोनों जल्द ही सगाई करने वाले है .  इस जोड़े के बिच उम्र में फासले को लेकर बहुत सी सुर्खिया बनाई गई है . प्रियंका की उम्र 36 साल है और वही इनके ये बॉयफ्रेंड अगस्त में 26 साल के होने वाले है. इस प्रकार इस जोड़ी में पूरे 10 वर्ष का अंतर है जो चर्चा का विषय है. इस उम्र के फासले को लेकर हर किसी के मन में एक अजीब सी कशमकश चल रही है .

नेट वर्थ और अन्य जानकारी  ( Net Worth and other details):

आय (Salery)  $6 मिलियन (40 करोड़)
कुल संपत्ति (Net Worth)  $18 मिलियन (120 करोड़)

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 निक जोनास के बारे में कुछ रोचक बातें (Interesting & lesser known Facts) :

  • 6 साल की उम्र में एक बार जब निक एक सलून में गए , तब इनकी माँ हेअरकट (Haircut) ले रही थी , और निक गाना गुनगुना रहे थे , तब एक व्यक्ति इनके गाने को सुन बेहद प्रभावित हुआ , तब मेनेजर से बात कर के निक की माँ का नम्बर लिया और उनसे मिलने आने के लिए कहा .
  • 7 साल की उम्र से इन्होने गाना शुरू किया . ये केवल 5 साल की उम्र तक ही स्कूल गए उसके बाद इनकी पढाई घर पर ही करवाई गई .
  • 2002 में इनका पहला डेब्यू हुआ जब इनकी उम्र केवल 10 साल की थी . ये जब 13 साल की उम्र के थे तब इन्हें शुगर की ग्रेड 1 की बीमारी का पता चला .
  • इन्होने मिस यू एस ए कॉम्पिटीशन में होस्ट की भूमिका भी निभाई है , इसके अलावा इन्होने कई और भी बड़े स्टेज शो में अपनी प्रतिभा बिखेरी है .

निक जोनास की पसंद(Nick Jonas like and dislike)

खाना (Food) इटालियन
बॉय बेंड (Boy Band ) द कोम्मोड़ोरेस
कैंडी (Candy)   

सौर गुम्मी वर्म्स

स्मेल (Smell) नाग चंपा इसेन्स
गाना (Song ) आर केली का “आई बिलीव आई कैन फ्लाई”
स्नैक (Snack) पॉपकॉर्न

 निक जोनास के फेमस सॉंग (Nick Jonas famous songs) :

क्रमांक (Number) सॉंगस  (Songs) सन (Year )
1 एनी वेअर 2018
2 लेवल 2014
3 चेन्स 2014
4 फाइंड यू 2010
5 से आल यू वांट फॉर क्रिसमस 2017

निक जोनास  से जुड़े कुछ विवाद ( Controversy ) :

निक जोनास का आज तक कई सेलिब्रिटी के साथ अफेयर रह चूका है , Nick Jonas in hindi लेकिन प्रियंका चोपड़ा के साथ इनके अफेयर और शादी की खबरों के लिए कई लोगों ने इस बात का विरोध किया और अटकले लगाई और आज ये बी टाउन का सबसे हॉट टॉपिक बना हुआ है . Nick Jonas in hindi अपनी उम्र से 10 साल बड़ी लड़की से शादी करना सुनने में ही कुछ अटपटा सा महसूस होता है . 

निक एक बेहद सफल सिंगर है Nick Jonas in hindi इन्होने बहुत कम उम्र में बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल की है . Nick Jonas in hindi हम इन्हे इनके निकट भविष्य के लिए बेस्ट विशेस देते है.

Dalai Lama का जीवन परिचय in Hindi

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दलाई लामा का जीवन परिचय (Dalai Lama Biography in Hindi) तिब्बत और भारत के नाम के साथ जो एक महत्वपूर्ण नाम ध्यान में आता हैं वो नाम दलाई लामा हैं. दलाई लामा को तिब्बत में बौद्धिसत्व का संत माना जाता हैं, बौधिसत्वा का आभास उन्हें होता हैं, जिसे दुनिया में मानवता की रक्षा के लिए भेजा गया हो.  तेनजिन ग्यास्तो (Tenzin Gyatso) बौद्ध धर्म में 14वे दलाई लामा हैं जो कि वर्तमान में तिब्बत में आध्यात्म गुरु हैं. “दलाई” एक मंगोलियन शब्द हैं जिसका मतलब “सागर” होता हैं जबकि “लामा” एक संस्कृत शब्द हैं जिसका अर्थ “गुरु” होता हैं, इस तरह दलाई लामा का अर्थ “गुरु सागर” हुआ, मतलब जिसके पास सागर के जितना गहरा ज्ञान हो.

The Dalai Lama and Tibet - Free Tibet

 

 

 

 

 

क्र. म. 

(s.No.)

परिचय बिंदु (Introduction Points) परिचय (Introduction)
1.    पूरा नाम ((Full Name) जम्फेल नगवांग लोब्सेंग येशे तेनजिन ग्यास्तो
2.    जन्म दिन(Birth Date) 6 जुलाई 1935 

 

3.    जन्म स्थान (Birth Place) उत्तर पूर्व तिब्बत में स्थित आमदो, ताक्त्सेर
4.    पेशा (Profession) बौद्ध संत, आध्यात्मिक गुरु
5.    राजनीतिक पार्टी (Political Party) निष्कासित तिब्बतीयों की रिपब्लिकन पार्टी
6.    अन्य राजनीतिक पार्टी से संबंध (Other Political Affiliations)
7.    राष्ट्रीयता (Nationality)
8.    उम्र (Age) 84 वर्ष
9.    गृहनगर (Hometown) तिब्बत
10.           धर्म (Religion) बौद्ध
11.           जाति (Caste)
12.           वैवाहिक स्थिति (Marital Status) अविवाहित
13.           राशि (Zodiac Sign) कैंसर

 दलाई लामा का प्रारंभिक जीवन (Dalai Lama’s Early Life)

दलाई लामा के जन्म के समय उनके गाँव ताक्त्सेर (Taktser) में केवल 20 परिवार रहते थे. दलाई लामा के अभिभावक किसान थे और भेड़-बकरियां चराकर अपना गुजारा करते थे, वो बाजरा, आलू और अनाज की खेती करते थे. ल्हामो के अतिरिक्त उनके परिवार में 6 अन्य बच्चे भी थे जिनमें 4 लड़के और 2 लड़कियां शामिल थी.

दलाई लामा का इतिहास (The Dalai Lama’s History)

  • दलाई लामा को 14 वी शताब्दी से गेलुग्पा बुद्धिज्म का मुखिया मानते हैं, जिसका मतलब पीली हेट होता हैं. 17वीं शताब्दी से दलाई लामा पर राजनैतिक जिम्मेदारियां भी आ गयी, उस समय से लामा दोहरी जिम्मेदारी निभा रहे हैं. तात्कालीन दलाई लामा 14 वे दलाई लामा हैं. दलाई लामा के नियुक्ति की प्रक्रिया में अब तक किसी तरह की रुकावट नहीं आई हैं. तिब्बत के लोग विश्वास करते हैं कि जब भी किसी दलाई लामा की मृत्यु होती हैं तो तुरंत ही तिब्बत में कही और दलाई लामा का जन्म हो जाता हैं, मतलब दलाई लामा की आत्मा वो ही होती हैं जो पहले लामा की रही हैं, आत्मा नष्ट नहीं होती, ये अमर हैं और शरीर बदलती रहती हैं.
  • उन्हें कैसे खोजा गया (How he was discovered) : वर्तमान दलाई लामा से पहले वाले दलाई लामा यानि कि 13वें दलाई लामा ने सन 1933 को स्वर्ग में वास किया था. उनके देहांत के समय बौद्धों ने अगले दलाई लामा को खोजने के लिए प्रार्थना की और उन्होंने अपनी प्रार्थनाओं और शक्तियों से नए दलाई लामा के चिन्ह खोजने शुरू किये जो उन्हें नये दलाई लामा तक ले जा सकते थे, अंतत: उन्हें नये दलाई लामा के तिब्बत के उत्तरी पूर्वी भाग में होने का आभास हुआ, और ये प्रतीत हुआ कि दलाई लामा मठ के पास किसी अजीब सी जगह पर रह रहे हैं. बहुत सारे बौद्ध यात्रा पर निकल गए और काफी खोजने के बाद उन्हें ल्हामो धोंडअप (Lhamo Dhondup) का घर मिला था, वहां उन्होंने ल्हामो से और उसके अभिभावकों से बात की और ल्हामो की परीक्षा ली, बौद्ध अपने साथ मठ से बहुत तरह की वस्तुएं लाये थे जिनमें कुछ तो 13 वे दलाई लामा की वस्तुएं थी. मात्र 2 वर्षीय ल्हामो ने 13 वे दलाई लामा की वस्तुओं को पहचान लिया और बौद्ध संतों को समझ आ गया कि उन्हें उनका अगला दलाई लामा मिल गया हैं, इस तरह 13 वे दलाई लामा थुबटेन ग्यास्तो के बाद अगले दलाई लामा की खोजने की प्रक्रिया समाप्त हुयी.

दलाई लामा की शिक्षा (Dalai Lama’s Education)

  • बौद्ध ल्हामो को तिब्बत के कुम्बुम के मठ में लेकर गए, जहां अगले 2 वर्ष तक उसे देश के लिए आवश्यक आध्यात्मिक और राजनैतिक शिक्षा दी गयी. इसके बाद उन्हें ल्हासा राजधानी के पोटाला पैलेस लाया गया, पोटाला पैलेस पहाड़ों में स्थित एक हजार से ज्यादा कमरों का बना महल है. यहाँ उन्हें सिंह आसन दिया गया, जो कि बहुत से गहनों से सजा लकड़ी का आसन था.
  • 22 फरवरी 1940 को जब वो केवल 4 वर्ष के थे तब संतों ने उन्हें नया दलाई लामा घोषित कर दिया और उनका नया नाम जम्फेल नगवांग लोब्सेंग येशे तेनजिन ग्यास्तो (Jamphel Ngawang Lobsang Yeshe Tenzin Gyatso) रखा गया. हालांकि उनका छोटा नाम “तेनजिन ग्यास्तो” ही ज्यादा प्रचलित हुआ,
  • पोटाला पैलेस में संतों ने लामा को निजी दिशा-निर्देश दिए, कि उनके साथ उनका सहपाठी केवल उनका भाई हो सकता था. परम्परा के अनुसार जब युवा दलाई लामा कोई गलती करते तो उनके भाई को सजा दी जाती. समय के साथ लामा ने लेखन, इतिहास, धर्म, दर्शन-शास्त्र, तिब्बती दवाइयां, आर्ट, संगीत, साहित्य और बहुत से सब्जेक्ट्स का अध्ययन किया.
  • दलाई लामा की 6 वर्ष की उम्र में अध्ययन की औपचारिक शिक्षा शुरू हुयी थी. उनकी शिक्षा में नालंदा परम्परा के अनुसार 6 मेजर और 6 माइनर विषय थे. मेजर सब्जेक्ट में लॉजिक, फिने आर्ट्स, संस्कृत व्याकरण और मेडिसिन शामिल थे, लेकिन सबसे ज्यादा ध्यान बुद्धिस्ट दर्शनशास्त्र पर दिया जाता था और इसे 5 केटेगरी में बांटा गया था प्रजानापरामिता (Prajnaparamita) – परफेक्शन ऑफ़ विजडम, मध्यमिका- मध्य के मार्ग की फिलोसोफी (philosophy of the middle Way), विनय-मत के अनुशासन (the canon of monastic discipline), अबिधर्म (Abidharma) – मेटाफिजिक्स और प्रमाण- तर्क और महामारी विज्ञान (logic and epistemology). इसके अलावा माइनर विषयों में कविता, ड्रामा, ज्योतिष विज्ञान, रचना और पर्यायवाची शामिल किये गये थे.
  • दलाई लामा को यांत्रिकी वस्तुएं काफी पसंद थी, उन्होंने टेलिस्कोप के साथ बहुत सा समय बिताया था. उन्हें घड़ियां और अन्य मशीनी उपकरण खोलकर फिर से सही करना अच्छा लगता था. उस समय पूरे तिब्बत मे केवल चार कार थी जिनमे से 3 कार 13वें दलाई लामा की थी, तेनजिन ग्यास्तो को इंजन के साथ काम करना और कार चलाना बेहद पसंद था.
  • 23 की उम्र में उन्होंने ल्हासा के जोखन मंदिर में वार्षिक महान प्रार्थना के उत्सव में फाइनल एग्जाम दिया था, जिसमें वो ऑनर्स के साथ पास हुए और उन्हें गेशे ल्हारम्पा डिग्री से नवाजा गया जो कि बुद्धिस्ट समुदाय में सबसे ऊंची और डोक्टोरेट के समान होती हैं.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

दलाई लामा और तिब्बत की राजनीति (Dalai Lama and Tibbetan’s Politics)

नवम्बर 1950 में दलाई लामा को तिब्बत में राजनैतिक अधिकार मिले, उस समय चायनीज कम्युनिस्ट आर्मी ने देश में घुसपैठ की हुई थी. कम्युनिस्टों के अनुसार सम्पति किसी एक व्यक्ति की नहीं होनी चाहिए, बल्कि ये सबके लिए उपलब्ध होनी चाहिए, कम्युनिस्टों का ये भी कहना था कि सब कुछ सरकार के अधीन होना चाहिए. उस समय दलाई लामा मात्र 15 वर्ष के थे और देश पर आई इस विपदा को वे बखूबी संभालने की कोशिश कर रहे थे.

दलाई लामा का नेतृत्व और जिम्मेदारियां (Leadership Responsibilitiesof Dalai Lama)

  • 1950 में तिब्बत में चायना की घुसपैठ के बाद उन्हें न चाहते हुए भी राजनीति में आना पड़ा, लेकिन इससे पहले 1949 में द्वितीय विश्व युद्ध की हार के बाद से चायना एक कम्युनिस्ट देश बन गया था और 1950 के प्रारंभ में लगभग 80 हजार चायनीज सैनिक तिब्बत में प्रवेश कर गए और चायना ने तिब्बत पर अपने अधिकार का दावा भी किया.
  • दलाई लामा ने चायना का दौरा किया और वहां के प्रशासन से तिब्बत छोड़ने का कहा, लेकिन वो नहीं माने इसके अलावा लामा ने कुछ पडोसी देशों से भी घुसपैठ को हटाने में मदद करने की मांग की, अन्य देश चायना से डर गए और वे लामा की ज्यादा मदद नहीं कर सके.
  • 1954 में वो बीजिंग गये और वहां उन्होंने माओ ज़ेडोंग और देंग जिओपिंग (Deng Xiaoping) और चौ एनलाई (Chou Enlai) जैसे अन्य चायनीज नेताओं से बात की.
  • इसके बाद बहुत वर्षों तक चायना द्वारा अपने लोगों को प्रताड़ित होते देखने और ल्हासा में चायनीज फ़ौज द्वारा तिब्बतियों के राष्ट्रीय विरोध को दबाने के बाद अप्रैल 1959 में लामा भारत के लिए रवाना हो गए, तब से वो भारत के धर्मशाला में रह रहे हैं.
  • उनके निर्वासन के दौरान तिब्बत के लिए परम-पूज्य दलाई लामा ने यूनाइटेड नेशन में आवाज़ उठायी. जनरल असेम्बली ने तिब्बत में 1959, 1961 और 1965 में तीन प्रस्ताव दिए.
  • 1963 में परम पूज्य ने तिब्बत के लिए डेमोक्रटिक संविधान दिया, जिसके कारण तिब्बत में प्रशासन के साथ ही बड़ा जनतांत्रिक सुधार हुआ, इस नए लोकतान्त्रिक संविधान को निष्कासन के दौरान तिब्बतियों का घोषणा पत्र कहा गया. इस घोषणापत्र में अभिव्यक्ति, विश्वास और असेम्बली की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करता हैं. यह तिब्बत से निर्वासित लोगों के लिए गाइडलाइन भी हैं.
  • 21 सितम्बर 1987 को यूनाइटेड स्टेट्स कांग्रेस में अपने भाषण के दौरान दलाई लामा ने तिब्बत के लिए 5 सूत्रीय शांति प्रस्ताव रखा और तिब्बत की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए पहला कदम बढाया था. ये 5 सूत्रीय प्रस्ताव निम्न था.
  1. सम्पूर्ण तिब्बत को शान्त-क्षेत्र में परिवर्तित किया जाए.
  2. चायना की जनसंख्या को ट्रांसफर की नीति को समाप्त किया जाये जिसके कारण तिब्बत की जनसंख्या पर गलत प्रभाव पड रहा हैं.
  3. तिब्बत के लोगों और उनके मौलिक एवं लोकतांत्रिक अधिकारों का सम्मान किया जाए.
  4. तिब्बत के प्राकृतिक वातावरण को संरक्षित किया जाए और चायना द्वारा तिब्बत में परमाणु हथियारों के प्रयोग और इसके कचरे को फैकने से रोका जाए.
  5. तिब्बत के भविष्य को देखते हुए तिब्बत और चायना के लोगों के मध्य में शान्ति एवं संवाद स्थापित करने की कोशिश की जाए.
  • 15 जून 1988 को स्ट्रासबर्ग में यूरोपियन पार्लियामेंट के सदस्यों को संबोधित करते हुए उन्होंने अपने पांच सूत्रिय शान्ति प्रस्ताव को फिर से समझाया था. उन्होंने चायनीज और तिब्बत के मध्य वार्ता का प्रस्ताव रखा था जिससे तिब्बत के तीनों प्रोविंसेज में डेमोक्रेटिक पोलिटिकल पार्टी का शासन हो सके. यह रिपब्लिक ऑफ़ चायना के लोगों की सहायता से सम्भव हैं और यहाँ पर चायना की सरकार विदेश नीति और रक्षा के लिए जिम्मेदार होगी.
  • मई 1990 में दलाई लामा के सुधार कार्यों के लिए तिब्बत का निष्कासन पूरी तरह से लोकतान्त्रिक हो गया, तिब्बत का मंत्रिमंडल (कशाग) जो कि तब तक दलाई लामा द्वारा नियुक्त था, उन्हें भी तिब्बत से निष्कासन में पार्लियामेंट में शामिल कर लिया गया. उसी वर्ष भारत और 33 से अधिक देशों में रह रहे निष्कासित तिब्बतियों ने ग्यारहवीं तिब्बत असेम्बली के लिए एक व्यक्ति-एक वोट के आधार पर चुना, और इस असेम्बली ने नए कैबिनेट के लिए सदस्य चुने.
  • 1992 में सेंट्रल तिब्बत एडमिनीस्ट्रेशन ने भविष्य के स्वतंत्र तिब्बत के लिए गाइडलाइन पब्लिश की हैं, जिसमें साफ़ कहा गया हैं कि तिब्बत के स्वतंत्र होते ही पहला टास्क अंतरिम सरकार बनाना होगा जिसकी जिम्मेदारी होगी कि वो संविधान सभा बनाये और देश में लोकतंत्र एवं संविधान बनाये, दलाई लामा ने ये आशा जताई हैं कि भविष्य के तिब्बत में तीन पारम्परिक प्रोविंस होंगे यु-संग (U-Tsang,), आमदो (Amdo) और खाम (Kham,) जिनमे संघीय और लोकतांत्रिक प्रशासनिक व्यवस्था होगी.
  • सितम्बर 2001 में जनतंत्रात्मक तिब्बत इलेक्टोरेट की तरफ कदम बढाते हुए सीधे मंत्रिमंडल के अध्यक्ष कालोन त्रिपा (Kalon Tripa ) को चुन लिया. कालोन ने अपना मंत्रिमंडल खुद चुना जिसे तिब्बतन असेम्बली को एप्रूव करना पड़ा. तिब्बत के इतिहास में ये पहली बार था जब लोगों ने अपने राजनेता को खुद को चुना था. कालोन ट्रिपा के चुनाव के बाद दलाई लामा द्वारा तिब्बत में चलायी जाने वाली आध्यात्मिक और अस्थायी शक्ति समाप्त हो गयी.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

दलाई लामा की राजनैतिक सेवानिवृति (Dalai Lama Political Retirement)

  • 1969 में दलाई लामा ने ये स्पष्ट किया था कि दलाई लामा की पहचान और इनके पुनर्जन्म को मान्यता देनी चाहिए या नहीं, ये पूरी तरह से तिब्बती, मंगोलियन और हिमालयी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का निर्णय होना चाहिए.
  • 14 मार्च 2011 को दलाई लामा को निष्कासित तिब्बत पार्लियामेंट की जिम्मेदारी से मुक्त करने का आग्रह किया, क्योंकि निष्कासित तिब्बती घोषणा-पत्र के अनुसार वो तब भी राज्य के मुखिया थे. उन्होंने घोषणा की कि वो दलाई लामा के पास रहने वाली आध्यात्मिक और राजनैतिक शक्तियों की परम्परा को समाप्त कर देंगे, हालांकि उस समय किसी भी तरह के स्पष्ट दिशा-निर्देश ना होने के कारण ये रिस्की था कि भविष्य के दलाई लामा के पहचान में राजनैतिक हित भी छूपे हो सकते हैं.
  • 29 मई 2011 को दलाई लामा ने लोकतान्त्रिक रूप से चुने गए नेता को अस्थायी नियुक्ति दे दी. और इस तरह उन्होंने औपचारिक तौर पर 368 वर्षों से तिब्बत में आध्यात्मिक और राजनैतिक मुखिया के तौर पर दलाई लामा के काम करने की परम्परा को पूर्ण विराम दिया.  
  • 24 सितम्बर 2011 को अगले दलाई लामा की पहचान सम्बंधित स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किये गये जिससे भविष्य में किसी भी तरह के धोखे और संशय की संभावना ना रहे. उन्होंने स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा कि पहले चार दलाई लामा केवल आध्यात्मिक मामलों में ही नियुक्त रहेंगे. उन्होंने ये भी सुनिश्चित किया कि लोकतांत्रिक रूप से चुने हुए नेता को ही तिब्बत की राजनैतिक जिमेदारियां सौंपी जायेगी. दलाई लामा का घर गादेन फोड़रेंग (Gaden Phodrang) केवल इस कार्य को पूरा करेगा.
  • दलाई लामा ने ये घोषणा की कि जब वो 90 वर्ष के होंगे तब वो तिब्बत के बुद्धिस्ट परम्पराओं वाले मठों के प्रमुख लामाओं से, तिब्बत की जनता से और बुद्धत्व में रूचि रखने वाले तिब्बत के अन्य प्रबुद्ध जनों से बात करके ये निर्णय करेंगे कि दलाई लामा के बाद भी संस्था को रखना चाहिए या नहीं, उनके इस वक्तव्य से बहुत से अर्थ निकाले गये, यदि 15 वां दलाई लामा पहचाना जाता हैं तो उसकी प्राथमिक जिम्मेदारी दलाई लामा के गाडेन फोद्रेंग ट्रस्ट (Gaden Phodrang Trust) को सम्भालने की होगी. उन्हें तिब्ब्ती बौद्ध परम्पराओं के विभिन्न मुखियाओं, दलाई लामा की वंश-परम्परा से जुड़े और धर्म का संरक्षण करने वाले सभी व्यक्तियों से सलाह-मशवरा करना होगा. वो इन सबसे किसी भी मामले में सलाह ले सकते हैं, लामा ने ये भी कहा कि वो इस सन्दर्भ में लिखित नियम बनाकर रखेंगे. उन्होंने ये भी कहा कि पारम्परीक तरीकों से चुनाव की प्रकिया के अतिरिक्त कोई भी प्रक्रिया मान्य नहीं होगी क्योंकि पीपल्स रिपब्लिक चायना के एजेंट भी अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए दलाई लामा चुन सकते हैं.
  • जब से परम पूज्य ने अपनी राजनातिक शक्तियाँ चुने हुए प्रतिनिधयों को सौंपी हैं तब से वो खुदको सेवानिवृत मानते हैं.

दलाई लामा से जुड़े अन्य रोचक तथ्य (Other Interesting Facts About Dalai Lama)

  • दलाई लामा शान्ति के प्रचार-प्रसार के लिए पहचाने जाने वाले व्यक्ति हैं. उन्होंने सन 1989 में नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया था, जोकि उन्हें तिब्बत की स्वतंत्रता के लिए किए गये अहिंसात्मक संघर्ष एवं पर्यावर्णीय कार्यों के लिए दिया गया था.
  • दलाई लामा ने अब तक 6 महाद्वीपों में 47 देशों की यात्रा की हैं और उन्होंने 150 अवार्ड्स, सम्मानीय डोक्टोरेट, पुरुस्कार इत्यादि जीते हैं, ये सब उन्हें शान्ति, अहिंसा, सर्व धर्म समभाव, जीव दया जैसे विषयों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार-प्रसार के कारण मिला हैं. उन्होंने 110 से भी ज्यादा पुस्तकों में को-ऑथर के तौर पर काम किया हैं.
  • दलाई लामा विभिन्न धर्मों के मुखियाओं से मिलकर सर्व-धर्म समभाव की दिशा में काम करते रहते हैं. 1980 के मध्य में दलाई लामा ने आधुनिक वैज्ञानिकों के साथ भी संवाद किया था जिनमें साइकोलोजी, न्यूरोबायोलोजी, क्वांटम फिजिक्स और कोस्मोलोजी जैसे क्षेत्र के वैज्ञानिक भी शामिल थे, जिससे बुद्धिस्ट साधुओं और विश्व के वैज्ञानिकों के मध्य सामंजस्य स्थापित हुआ. इससे मानसिक शान्ति के लिए नए अवसरों की राह खुली, और इसके बाद ही निष्कासित तिब्बतियों के पुनर्निवासन वाले मठों के पारम्परिक पाठ्यक्रम में भी आधुनिक विज्ञान को शामिल किया गया.

इस तरह दलाई लामा वास्तव में कोई नाम नहीं हैं, ये बौद्ध धर्म में साधूओं में सर्वोच्च पद है, जिनका वर्षों से उदेश्य सिर्फ शांति का प्रचार करना ही रहा हैं, जबकि चीन द्वारा तिब्बत को हडपने के बाद उनकी स्थिति उस हद तक अच्छी नहीं थी कि वो अपने मन में प्रेम, करुणा को बनाये रख सके. लेकिन भारत में शरणार्थी के तौर पर रहते हुए दलाई लामा ने शान्ति, प्रेम, करुणा, सद्भाव का जो प्रचार किया हैं उसे पूरी दुनिया ने सराहा हैं.

Partition of Bengal का इतिहास in Hindi

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Partition of Bengal in Hindi, 19वी शताब्दी के प्रारंभ में अंग्रेजों के द्वारा किये गये कुछ परिवर्तन या कुछ फैसले ऐसे थे जिन्होंने भारत की स्वतन्त्रता में अभूतपूर्व योगदान दिया था. ऐसा ही एक फैसला था “बंगाल के विभाजन का फैसला,जिसे बंग-भंग के नाम से भी जाना जाता हैं. अंग्रेजों के बंगाल को तोड़ने के निर्णय के साथ ही देश में एक नई क्रान्ति की लहर दौड़ पड़ी थी, और स्वतन्त्रता के लिए प्रयासरत क्रांतिकारियों को एक नई दिशा भी मिल गयी थी. इससे अब तक अंग्रेजों का छूपा उद्देश्य और राज करने का तरीका भी खुलकर आम-जन के सामने आ गया था. इसलिए भले देश को इसके बाद भी 40-42 वर्ष तक स्वतंत्रता नहीं मिली हो लेकिन ये कहा जा सकता हैं कि इस निर्णय ने देश की स्वतंत्रता और विभाजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. 1857  की क्रांति के बारे में जानने के लिए यहाँ पढ़े।  

 

 

 

This Day in History: On 16th October 1905, the Partition of Bengal took  place after orders by erstwhile Viceroy of India, Lord Curzon

 

 

 

 

बंगाल का विभाजन किसने किया (Who was responsible for the Partition of Bengal)

बंगाल विभाजन का फैसला ब्रिटिश वायसराय लार्ड कर्जन के द्वारा लिया गया था. हालांकि उस समय के राष्ट्रवादी नेताओं ने इस निर्णय और कर्जन का भारी विरोध किया था,जिससे इंडियन नेशनल कांग्रेस को आम-जन का भारी समर्थन मिलने लगा था.

भारत के सभी गवर्नर जनरल और वाइसराय के बारे में जानने के लिए यहाँ पढ़े।

बंगाल विभाजन कब हुआ (Year of Partition of Bengal)

16 अक्टूबर 1905 को हुए बंग-भंग से देश को बहुत बड़े परिवर्तन का सामना करना पड़ा था. हालाँकि इससे अंग्रेज सरकार के कुछ ऐसे उद्देश्य पूरे हुए जिससे अंतत: भारतीयों की बहुत हानि हुई.  इससे पहले बंगाली हिन्दुओं की गवर्नेंस में काफी धाक थी जो कि इस विभाजन के बाद कम हो गयी. हिन्दुओं ने  इस विभाजन का विरोध किया था. विभाजन से राष्ट्रीय स्तर पर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ रोष फ़ैल गया था,जिसमें हिंसक और अहिंसक आंदोलन शामिल थे. यहाँ तक कि वेस्ट बंगाल के नए बने प्रोविनेंस के गवर्नर की हत्या तक की भी प्लानिंग की थी.

बंगाल विभाजन क्यों किया (Reason of Partition of Bengal)

  • बंगाल विभाजन का मुद्दा पहली बार 1903 में उठा था. इसके लिए कुछ अतिरिक्त प्रस्ताव भी आये थे,जिसमें चित्तागोंग (Chittagong) को अलग करना और ढाका और म्य्मेंसिंह (Mymensingh) को जिला बनाकर उन्हें आसाम में शामिल करना था. परंतु इस जानकारी की आधिकारिक घोषणा 1904 में की गई थी. इस विभाजन के लिए ब्रिटिश वायसराय ने बंगाल के पूर्वी जिलों का आधिकारिक दौरा किया,जिससे विभाजन पर आम जनों का मत भी जान सके. इस दौरान उसने बंगाल के कुछ  महत्वपूर्ण व्यक्तियों से इस मुद्दे पर बात की,और  ढाका,चित्तान्गोंग और म्य्मेंसिंह में  में एक भाषण दिया जिसमे विभाजन पर सरकार का पक्ष समझाया. कर्जन ने इसके कारण भी समझाये कि “ब्रिटिश राज के अंतर्गत बंगाल, फ्रांस जितना बड़ा हैं,इसकी जनसंख्या ग्रेट ब्रिटेन और फ्रांस को मिलाकर जितनी हैं,इस कारण इसे तोड़ने से प्राशासनिक प्रगति होगी ”  लार्ड कैनिंग के बारे मे जानने के लिए यहाँ पढ़े 
  • बिहार और उड़ीसा और पूर्वी क्षेत्र विशेष रूप से अंडर-गवर्नड थे. कहा जाता हैं कि कर्जन,  हिन्दुओ का विभाजन नहीं चाहते थे,जो कि उस समय पश्चिम में मेजोरिटी में थे जबकि पूर्व में मुस्लिम थे. उनका प्लान आसाम (जो कि 1874 तक बंगाल का हिस्सा था)के पूर्वी भाग को वापिस जोड़ना था,और 31 लाख जनसंख्या वाले क्षेत्र का न्यू प्रोविंस बनाना था जिसमे 59% मुस्लिम थे.
  • इस प्लान में ये भी शामिल था कि बंगाल में शामिल 5 हिंदी भाषी राज्यों को मिलाकर एक केंद्र में सेन्ट्रल प्रोविंस बनाया जाए. इसके बदले में  पश्चिमी क्षेत्र में सम्बलपुर और 5 छोटे उड़िया भाषी  राज्य सेन्ट्रल प्रोविंस से मिलने वाले थे. इससे बंगाल 141,580 स्क्वेयर मील के एरिया का बन जाता  और इसकी जनसंख्या 54 मिलियन हो जाती जिसमें 42 मिलियन हिन्दू जबकि मुस्लिम 9 मिलियन होते. हालांकि पश्चिम में बंगाली बोलने वालो की संख्या बिहारी और उड़िया बोलने वालो की अपेक्षा काफी कम थी, नए प्रांत के प्रशासन में एक विधान परिषद, दो सदस्यों के राजस्व बोर्ड, और कलकत्ता उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को निर्विवाद छोड़ देना का सोचा गया था.
  • सरकार ने ये भी कहा कि कि पूर्वी बंगाल और असम में स्पष्ट रूप से पश्चिमी सीमा और  भौगोलिक, जातीय, भाषाई और सामाजिक विशेषताओं की सीमा तय की जाएगी.  सरकार ने 19 जुलाई, 1905 के एक प्रस्ताव में अपना अंतिम निर्णय जारी किया, और इस तरह  उसी वर्ष 16 अक्टूबर को भारत के इस महत्वपूर्ण हिस्से का विभाजन शुरू हुआ 
  • अंग्रेजों की इस सन्दर्भ में एक ही  नीति थी  “फूट डालो और राज करो”. लार्ड कर्ज़न ने कहा “बंगाल एक शक्तिशाली राज्य हैं,इसके विभाजन से बंगालियों में काफी तरीके से विभाजन हो जाएगा. वास्तव में बंगाली समुदाय ही पहला वर्ग था जिसने अंग्रेजी शिक्षा का लाभ उठाया था, समस्त बुद्दिजीवी और सिविल सर्विसेस में जाने वाले लोग में भी बंगाली समुदाय की प्रधानता थी.इसी तरह सरकारी महकमे में भी बंगालियों की प्रधानता थी, इस तरह बंगाल के विभाजन से उनका प्रभाव कम होना स्वाभाविक था. इससे राष्ट्रीय स्तर पर चल रहें संघर्ष में भी विभाजन हो गया था. बंगाली जो खुदको एक राष्ट्र मानते थे, वो अपने ही प्रोविंस  में भाषा संबंधित अल्प-समुदाय में शामिल नही होना चाहते थे.  हिन्दू जो कि अल्प-संख्या में होकर भी प्रभावशाली थे और मुस्लिम बहूल होने पर भी उनकी प्रभाविता नहीं थी इसलिए अंग्रेजों ने हिन्दू-मुस्लिम को एक दुसरे के सामने करने की सोची. यूनाइटेड प्रोविंस की राजधानी कलकत्ता अब भी ब्रिटिश इंडिया की राजधानी थी,जिसका मतलब था बंगाली ही ब्रिटिश शक्ति का केंद्र थे, इसके अलावा बंगाली मुसलमानों को अंग्रेजों का वफादार माना जाता था,क्योंकि उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ 1857 की क्रान्ति में भाग नहीं लिया था.  

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

बंगाल विभाजन का महत्व (Importance of Partition of Bengal)

बंगाल विभाजन को भारत के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता हैं,इसका कारण हैं कि ये किसी राज्य का सामान्य विभाजन नही था बल्कि अंग्रेजों द्वारा देश के बंटवारे के लिए रखी गयी नीव थी. जिसका तत्कालीन परिप्रेक्ष्य में भले धर्म और भाषा का आधार रहा हो लेकिन अंग्रेज इसे तब भी समझ सकते थे कि ये निर्णय दीर्घकाल में देश के साथ धर्म के आधार पर भी भारतीयों को बाँट सकता हैं,जो कि दुर्भाग्यवश सच सिद्ध हुआ.

बंगाल विभाजन आंदोलन (Revolution for Partition of Bengal))

  • जैसे ही बंग-भंग समन्धित योजना की घोषणा हुयी,बंगाली समुदाय ने अंग्रेजों के खिलाफ अपना रोष व्यक्त करना शुरू कर दिया, इसके लिए सबसे पहले उन्होंने ब्रिटिश सामानों का बहिष्कार किया. ये विरोध मुख्तया हिन्दू समुदाय का था इनके साथ ढाका के नवाब ने भी पहले इसका विरोध किया,जबकि ढाका तो नए प्रोविंस की राजधानी के रूप में प्रस्तावित थी.
  • बंगाल के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर सर एंड्रयू फ्रेंसर  पर बंगाल विभाजन का विरोध करने वाले क्रांतिकारियों ने हमला किया. वैसे बंग-भंग के विरोध में पूरे भारत से आवाजें उठ रही थी.क्योंकि ये बात हर कोई समझ रहा था कि अंग्रेज अब  देश तोड़ने की तरफ अग्रसर हैं.  कलकता में बहुत सी रैलियां,निकाली जा रही थी,विदेशी वस्तुओं की होली जलाई जा रही थी.वास्तव में स्वदेशी आन्दोलन की शुरुआत भी यही से हुई थी.
  • रबिन्द्रनाथ टैगोर ने अमार शोनार बांग्ला भी बंग-भंग के विरोध में लिखा था,जो कि कालान्तर में 1972 में बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान बना. 1905 में टैगोर का लिखा “वन्दे मातरम” भी क्रांतिकारियों के लिए राष्ट्र गान बन गया था. क्रांतिकारियों के लिए बंगाल पवित्र भूमि बन गयी थी क्योंकि वहाँ माँ काली की पूजा होती थी जो कि विनाश की देवी  मानी जाती थी,इसलिए क्रांतिकारियों ने अपने हथियार उन्हें समर्पित कर दिए.

बंगाल विभाजन के परिणाम और प्रभाव (Impact and Result of Partition of Bengal) 

  •  बंगाल विभाजन से देश में राजनीतिक परिवर्तन हुए. पूर्वी बंगाल में शुरूआती विरोध के बाद  मुस्लिम ने इस व्यवस्था को अपना लिया था और ये मानने लगे थे कि अलग से बना राज्य उन्हें शिक्षा,रोजगार में आगे बढ़ने का मौका देगा. हालांकि ये विभाजन पश्चिम बंगाल के समुदाय को पसंद नहीं आया था,जहां पर राष्ट्रवाद के लिए कई शक्शियत तैयार हो रही थी. इंडियन नेशनल कांग्रेस के तरफ से सर हेनरी कॉटन ने इसका विरोध किया जो कि आसाम के चीफ कमिश्नर थे,लेकिन कर्ज़न अपने फैसले से नहीं हिले. उनके अनुयायी लार्ड मिन्टो ने भी बंगाल का विभाजन करना मुश्किल निर्णय माना और कहा इससे बंगाली राजनैतिक आन्दोलन को दबाने में सहायता मिलेगी. क्योंकि बढती हुयी बुद्धिजीवियों की संख्या अंग्रेज सरकार के लिए कही से भी हितकर नहीं हैं.
  • बंगाल विभाजन के बाद चले स्वदेशी आन्दोलन से कई शैक्षिक परिवर्तन भी हुए जिनमे बंगाल नेशनल कॉलेज की स्थापना हुयी. वास्तव में इससे पहले बंगाल फ्रांस जितना बड़ा राज्य था, इसके पूर्वी क्षेत्र को पहले उपेक्षित और अव्यवस्थित माना जाता था लेकिन विभाजन के बाद यहाँ एडमिनिस्ट्रेशन में सुधार हुआ. और यहाँ के आम-जन को भी नयी स्कूल खुलने से और रोजगार के अवसर मिलने से फायदा हुआ

स्वराज्य की मांग(Swaraj Ki Maang after Partition of Bengal)       

बंगाल विभाजन से कई क्रांतिकारीयों को सही दिशा मिल गयी थी, इन क्रांतिकारीयों के नामों में 3 नाम  लाला लाजपत राय,बाल गंगाधर तिलक,बिपिनचंद्र पाल के भी शामिल थे. इन्हें लाल-बाल-पाल के नाम से भी जाना जाता हैं. इन लोगों ने सबसे पहले स्वराज की मांग की थी. बाल गंगाधर तिलक ने तो ये नारा भी दिया था “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार हैं,मैं इसे लेकर ही रहूँगा”. बंगाल विभाजन के आस- पास ही  देश में दो दल गरम दल और नरमदल बन गये थे, जिनमे से गरम दल का प्रतिनिधित्व ये तीनों नेता ही कर रहे थे. जो हर हाल में अंग्रेजों को देश से बाहर करना चाहते थे,इसी कारण  गरम दल के नेता नरमदल के नेता से ज्यादा लोकप्रिय भी थे. 1906 में कलकत्ता में दादा भाई नौरोजी के नेतृत्व में इंडियन नेशनल कांग्रेस के सेशन का आयोजन हुआ था,जिनका सम्मान गरम और नरमदल के नेता समान रूप से करते थे. लेकिन इस सेशन में गरम दल प्रभावी रहा और उन्होंने ये प्रण करवाए जिनमें निम्न प्रमुख हैं-

  1. बंगला विभाजन के विरुद्ध संकल्प
  2. स्वराज्य की मांग
  3. स्वदेशी अपनाने का संकल्प
  4. बहिष्कार का संकल्प

इस तरह दादाभाई नौरोजी के नेतृत्व में स्वराज की मांग को प्रमुखता से कांग्रेस ने अपनाया और माना कि भारतीयों की मुख्य मांग स्वराज्य ही हैं,लेकिन नरम दल के नेताओं ने कुछ राजनीति की. वो खुद को कट्टर साबित नहीं करना चाहते थे.इसलिए उन्होंने एक अन्य रास्ता निकाला और कहा कि स्वराज्य का मतलब हैं आत्मनिर्भर ब्रिटिश उपनिवेश” इस तरह उन्होंने स्वराज्य की परिभाषा ही बदलकर रख दी,जिससे बंगाल विभाजन के साथ ही कांग्रेस के विभाजन की भी दिशा बन गयी.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

बंगाल विभाजन कब रद्द हुआ (When did Partition of Bengal Diluted)

 इस तरह लगातार विरोध के कारण ही 1911 में बंगाल का पुन: एकीकरण हुआ.एक नया विभाजन हुआ जिसमे  प्रोविंस को भाषा के आधार पर विभाजित किया गया ना कि धर्म के आधार पर . जिसमें हिंदी,उड़िया और आसामी बोलने वाले क्षेत्र एक अलग एडमिनिस्ट्रेटिव यूनिट में शामिल हुए जबकि ब्रिटिश इंडिया की एडमिनिस्ट्रेटिव राजधानी कलकत्ता से उठकर दिल्ली शिफ्ट हो गयी.

ढाका अब राजधानी नही थी, इसलिए उसे इसके स्थान पर भरपाई में 1922 में एक यूनिवर्सिटी दी गई,कर्ज़न हॉल भी नयी फाउंडेशन को पहली बिल्डिंग के तौर पर दिया गया (1904 मेंविभाजन के लिए कर्ज़न हॉल बना था).  

राष्ट्रीय शोक दिवस (Rastriya Shok Diwas)

बंगाल विभाजन  से भारतीय इस हद तक आहत हुए थे कि 16 अक्टूबर 1905 को राष्ट्रीय शोक दिवस तक मनाया गया. रबीन्द्र्नाथ का लिखा “आमार सोना बँगला” गीत गाते हुए कई लोग सडकों पर उतर आये थे. बहुत से लोग तो नंगे पैर वन्दे मातरम् गाते हुए गंगा घाट तक गए थे. हिन्दू और मुस्लिम ने एक दुसरे को राखी बाँधी,जिससे की ये जाहिर हो सके कि उनमे एकता हैं.वास्तव में ये विभाजन भले 6 वर्ष तक  ही रहा हो लेकिन इससे भारतीय जनमानस में बहुत से परिवर्तन हो गये थे. अंग्रेजों के बहिष्कार में सबसे पहले स्वदेशी अभियान चलाया गया. लेकिन लोगों ने महसूस किया कि स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग और अंग्रेज सरकार का बंग-भंग विरोधी अभियान में महत्वपूर्ण योगदान हैं.

बंगाल विभाजन और स्वदेशी आन्दोलन

  • बंगाल विभाजन के साथ ही जो आन्दोलन सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुआ वो स्वदेशी आन्दोलन था, जिसका प्रभाव बंगाल में ही नहीं बंगाल के बाहर भी रहा था. इसके मुख्य सूत्रधार अरबिन्दो घोष, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक,बिपिन चन्द्र पाल और लाला लाजपत राय,वीओ चिदंबरम पिल्लई थे . वैसे भी बंगाल विभाजन का प्रस्ताव आम-जन के बीच में 1903 में ही आ चूका था इसलिए इसकी भूमिका भी तब ही बननी शुरू हो गयी थी.
  • बंगालियों ने बहिष्कार अभियान 1903 से 1905 के बीच में चलाया था जिसमें उन्होंने मौखिक विरोध,अपील, बहुत सी याचिकाएं और कांफ्रेस आयोजित करके अंग्रेज सरकार को हिलाने का कम किया. वास्तव में ये बहिष्कार ही स्वदेश अभियान था.
  • इस अभीयान की सफलता के लिए अश्विनी कुमार दत्त ने स्वदेश बंधाब (Bandhab) समिति बनाई, जिसकी 159 शाखाएं जिले के सुदूर गाँवों तक पहुच गई और वहाँ पर स्वदेशी के संदेश को पहुचाती थी.
  • स्वदेशी आन्दोलन से देश में भारतीय सामग्री की मांग बढ़ गयी इसलिए नई इंडस्ट्री स्थापित करने की जरूरत महसूस हुयी. जेएन टाटा (J N Tata) ने आयरन और स्टील की फैक्ट्री स्थापित की, प्रफुल चन्द्र राय ने बंगाल केमिकल फैक्ट्री लगाई, इस आन्दोलन के दौरान ही मेनचेस्टर क्लॉथ को निशाना बनाया गया
  • स्वदेशी आन्दोलन को घर-घर तक पहुंचाने  के लिए अखबार,गानों,और विदेशी कपड़ों,शक्कर और नमक की होली जलाने से जैसे कई कार्य किये गए,  ब्राह्मणो ने ऐसे किसी भी घर में शुभ कार्य करने से मना कर दिया जहाँ पर यूरोपियन नमक या शक्कर का उपयोग होता हो.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

बंगाल विभाजन पर टिप्पणी(Team View On Partition of Bengal)

बर्मा स्वतंत्रता से 10 वर्ष पूर्व ही भारत से अलग हुआ था. जबकि पाकिस्तान विभाजन के समय और बांग्लादेश 1972 में पाकिस्तान से अलग हुआ था. इस तरह ये कहा जा सकता हैं कि आज के समय में भारत की अपने पडोसी देशों से जुडी सभी समस्याओं की नीव वास्तव में बंग-भंग के दौरान ही रखी गयी थी. अंग्रेजों का मुस्लिम बहुल इलाके को अलग राज्य बनाने के फैसले ने  एक नहीं, 2 नहीं पूरे 3 अलग देश बना दिए,पता ही नहीं चला. इससे ना केवल  भूमि का बंटवारा हुआ, आम-जन के मध्य का सौहार्द भी कम होता चला गया.

अंग्रेजों की हिन्दू-मुस्लिम के मध्य फूट डालो राज करो की नीति ने देश को आज एक बहुत बड़ी समस्या के सामने लाकर खड़ा कर दिया. और पश्चिमी  बंगाल तो आज तक इस समस्या से ऊपर नहीं आ सका है. वर्तमान परिस्थियों का विश्लेषण करे तो म्यांमार  में अल्पसंख्यक सुमदाय मुस्लिम जनसंख्या (रोहिंग्या) आज भारत में शरण लेना चाहती है,जिससे ना केवल बंगाल में राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल मची हैं,बल्कि ये एक राष्ट्रीय मुद्दा बना चूका हैं. वहीं बांग्लादेश से प्रति वर्ष लाखों की संख्या मे मुस्लिम शरणार्थी आज भी भारत में अवैध घुसपैठ कर रहे हैं, इससे ना केवल बंगाल बल्कि आसाम और पूर्वी सीमावर्ती राज्य भी कई वर्षो से प्रभावित हैं. इसके अलावा भारत की पाकिस्तान से जुडी समस्याएं तो जग-जाहिर हैं.  

Raja jaichand का इतिहास in Hindi

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राजा जयचंद का इतिहास (Raja jaichand history) यह था की इन्हें आज भी गद्दार कहा जाता हैं। भारत में धोखेबाज, देशद्रोही या फिर गद्दारी करने वाले व्यक्ति को जयचन्द कहकर पुकारा जाता हैं। किसी भी राजा के लिए इससे बड़ा कलंक क्या हो सकता हैं। भारतीय इतिहास बहुत ही रोचक और रहस्यमयी रहा है जिसमें राजा जयचंद का इतिहास भी शामिल हैं। भारत के इतिहास (Raja jaichand history) के पन्नों में ऐसे कई नाम दबे पड़े हैं जिनके कुछ काले कारनामों के कारण कलंकित हैं।राजा जयचंद ऐसे ही नामों में से एक था। भारतीय इतिहास में इन्हें गद्दार तक कहा जाता हैं। इसकी वजह आपको इस आर्टिकल के माध्यम से मिल जाएगी।

राजा जयचंद का इतिहास और कहानी ( Raja jaichand history ) –

  • पूरा नाम Full Name of raja jaichand – राजा जयचंद्र राठौड़ (गहड़वाल वंश).
  • जन्म स्थान birth palace- कन्नौज.
  • घर – गढ़वाल।
  • पिता का नाम Father’s Name– विजयचंद्र।
  • दादा जी का नाम Grandfather’s Name– गोविंदचंद्र।
  • वंश – गहडवाल वंश।
  • पुत्र-पुत्री raja jaichand sons name – हरिश्चन्द्र और संयोगिता।
  • राजा कब बने – 21 जून 1170 ईस्वी।
  • शासनकाल– 1170 ईस्वी से 1194 ईस्वी तक।
  • उत्तराधिकारी– हरिश्चंद्र।

जयचंद्र के पिता विजयचंद्र ने अपने जीवित रहते ही उनके पुत्र को कन्नौज का राज-काज सौंप दिया। यह साल 1170 की बात है,जब विजयचंद्र की मृत्यु हो गई और जयचंद्र/जयचंद ( Raja jaichand ) को विधिवत् रूप से राजा घोषित किया गया और यही से शुरू हुआ राजा जयचंद का इतिहास (Raja jaichand history)।

राजा जयचंद विद्वानों का बहुत सम्मान और सत्कार करने वाले थे। इतना ही नहीं वीरता के साथ साथ ये बहुत प्रतापी राजा थे। वीरता, साहस, कुशल नेतृत्व और दूरदर्शिता जैसे गुणों के चलते राजा जयचंद ने कन्नौज राज्य का काफी विस्तार किया। “पृथ्वीराज रासो” का अध्यन करने से पता चलता है कि दिल्ली के राजा अनंगपाल की पुत्री ने राजा जयचंद को जन्म दिया था।

कई लोग यह जानने की कोशिस करते हैं कि राजा जयचन्द के कितने पुत्र थे तो बता दें कि राजा जयचंद के एक मात्र पुत्र था जिसका नाम हरिश्चंद्र था। एक पुत्र के अलावा राजा जयचंद के एकलौती पुत्री भी थी जिसका नाम संयोगिता था। संयोगिता की वजह से ही पृथ्वीराज चौहान और राजा जयचंद का युद्ध हुआ था। पृथ्वीराज चौहान ने राजा जयचंद की मर्जी के खिलाफ जाकर संयोगिता से प्रेम विवाह किया था।

राजा जयचंद का इतिहास (Raja jaichand history) देखा जाए तो वह एक उम्दा लेखक भी थे उन्होंने “रंभामंजरी नाटिका” नामक लेख लिखा था। इसके अनुसार राजा जयचंद ने चंदेल राजा मदनवर्मदेव को हराया था।

इतना ही नहीं इस नाटिका अथवा रासो से यह भी ज्ञात होता है कि विदेशी मुस्लिम आक्रांता शहाबुद्दीन गोरी को राजा जयचंद ने कई बार युद्ध में हराया और भारत छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया।
कई इतिहासकारों का मानना है कि राजा जयचंद के समय में गहडवाल साम्राज्य बहुत अधिक फैल गया था। इतिहासकार “ईब्र असीर” राजा जयचंद के साम्राज्य का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि उनका साम्राज्य मालवा से लेकर चीन तक फैला हुआ था इस वजह से भी राजा जयचंद का इतिहास (Raja jaichand history) में नाम हैं।

बंगाल के सेन राजाओं में लक्ष्मण सेन ने युद्ध में राजा जयचंद को पराजित किया था इसके अलावा दिल्ली पर अधिकार करने को लेकर हुए युद्ध में चौहान वंश के शासकों ने भी राजा जयचंद को पराजित किया था।

भारतीय इतिहास के सबसे प्राचीन स्थानों में से एक पुष्कर तीर्थ में (जो कि अजमेर में स्थित है) राजा जयचंद ने वाराह मंदिर का निर्माण करवाया था जो राजा जयचंद का इतिहास (Raja jaichand history) में नाम दर्ज करवाता हैं।

राजा जयचंद द्वारा साम्राज्य विस्तार-

राजा जयचंद का इतिहास (Raja jaichand history) उठाकर देखा जाए तो वीर, शक्तिशाली और दूरदर्शी कन्नौज के अंतिम और महान शासक राजा जयचंद्र अथवा राजा जयचंद के शासनकाल में कन्नौज साम्राज्य उन्नत स्थिति में था तथा साम्राज्य विस्तार भी बहुत तेजी के साथ हुआ। कन्नौज के साथ-साथ बनारस का नाम भी इसमें शामिल है।

कन्नौज बनारस और असनी नामक स्थानों पर राजा जयचंद के द्वारा किलो का निर्माण किया गया था। राजा जयचंद ने अपनी सेना की संख्या भी बढ़ा दी थी।

अपने दादा गोविंदचंद्र की तरह राजा जयचंद भी विद्वानों का स्थान अपने महल में रखता था।

भारतीय इतिहास (Raja jaichand history) का विश्व प्रसिद्ध महाकाव्य ” नैषधमहाकाव्य” की रचना करने वाले लेखक श्रीहर्ष राजा जयचंद की राज्यसभा में निवास करते थे।

राजा जयचंद की मृत्यु कैसे हुई –

राजा जयचंद की मृत्यु कैसे हुई जानने से पहले यह जानना होगा कि राजा जयचंद जब मोहम्मद गोरी से जाकर मिल गया और षडयंत्रपूर्वक पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ खड़ा हो गया (राजा जयचंद का इतिहास (Raja jaichand history) यहीं पर कलंकित हुआ था ) और युद्ध लड़ा, ऐसी स्थिति में पृथ्वीराज चौहान पराजित हो गए। मोहम्मद गौरी की हार के साथ ही मुस्लिम शासक पंजाब से दिल्ली तक बढ़ गए।

साम्राज्य बढ़ जाने की वजह से मोहम्मद गोरी ने कुतुबुद्दीन ऐबक को सेनानायक बनाया और एक भूभाग पर शासन करने का मौका दिया।

इस समय कन्नौज का राजा जयचंद बहुत ही शक्तिशाली था, लेकिन बंगाल के सेन राजाओं से निरंतर युद्ध करने की वजह से वह कमजोर पड़ गया था और इसी का फायदा मुस्लिम शासक मोहम्मद गोरी ने उठाया और इस युद्ध में राजा जयचंद की हार हुई और ईसी युद्ध में राजा जयचंद की मृत्यु हुई थी।

राजा जयचंद बहुत ही वीरता के साथ मोहम्मद गौरी की सेना के साथ युद्ध कर रहे थे इसी युद्ध का वर्णन करते हुए इतिहासकार डॉ. आशीर्वादी लाल लिखते हैं कि राजा जयचंद की सेना कॉल बंद कर मोहम्मद गौरी की सेना पर टूट पड़ी।

ऐसा लग रहा था कि यह सेना मोहम्मद गोरी का सर्वनाश कर के ही छोड़ेगी लेकिन समय बलवान होता है, किसी सैनिक के बाण से निकला एक तीर राजा जयचंद की आंख में जा लगा और उनकी मृत्यु हो गई। राजा जयचंद की मृत्यु हो जाने के पश्चात राजा जयचंद की सेना घबरा गई और हार मान ली। राजा जयचंद की मृत्यु से मुस्लिम हावी हुए।

इतिहासकारों का मानना है कि भाग्यवश यह युद्ध मोहम्मद गोरी जीत गया (राजा जयचंद की मृत्यु के पश्चात् ) और यही युद्ध मुसलमानों के लिए ऐतिहासिक साबित हुआ, इसी युद्ध के बाद मुसलमानों ने मुस्लिम साम्राज्य विस्तार की भारत में नींव रखी।

राजा जयचंद को गद्दार क्यों कहा जाता है? (Raja jaichand history)

राजा जयचंद को गद्दार क्यों कहा जाता हैं (Raja jaichand history ) यह प्रश्न लोगों के दिमाग में आ जाता हैं जब भी उनका नाम लिया जाता हैं ? जैसा की आप जानते हैं की राजा जयचंद कन्नौज के राजा थे।

भारतीय इतिहास के मुख्य गद्दारों की जब भी बात होती है तब राजा जयचंद का नाम सबकी जबान पर आता है। या कोई व्यक्ति किसी भी तरह का धोखा करता है, कपट करता है या फिर देशद्रोही होता है उसे जयचंद कहकर पुकारा जाता है।

पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी भारतीय इतिहास में बहुत प्रसिद्ध (Raja jaichand history) है। संयोगिता कन्नौज के राजा जयचंद की पुत्री थी।

इस समय पृथ्वी राज चौहान के सबसे बड़े दुश्मन थे मोहम्मद गौरी। मोहम्मद गोरी को सन 1191 में तराइन के प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज चौहान ने हराया था। मोहम्मद गोरी को पृथ्वीराज चौहान ने 13 बार लगातार हराया था और हर बार माफ कर दिया।

दूसरी तरफ राजा जयचंद की पृथ्वीराज चौहान से नफरत करते थे क्योंकि उन्हें पृथ्वीराज चौहान और उनकी पुत्री संयोगिता का रिश्ता पसंद नहीं था। इस प्रेम कहानी के वह खिलाफ थे।
पृथ्वीराज चौहान ने संयोगिता के साथ शादी कर ली और उन्हें अपने साथ ले आए। इस बात से राजा जयचंद बहुत अधिक क्रोधित हुए और पृथ्वीराज चौहान से बदला लेने के लिए मोहम्मद गोरी से जाकर मिल गए।

कहते हैं कि दुश्मन के दुश्मन आपस में दोस्त होते हैं ऐसा ही यहां पर भी हुआ कन्नौज के राजा जयचंद और मोहम्मद गौरी एक हो गई और दोनों का एक ही मकसद था किसी भी तरह पृथ्वीराज चौहान को पराजित करना।

इसमें मोहम्मद गोरी का भी फायदा था, वह अपनी हार का बदला लेना चाहता था जबकि दूसरी तरफ बदले की आग में जल रहे राजा जयचंद किसी भी तरह पृथ्वीराज चौहान को नीचा दिखाना चाहते थे।

इस तरह संयोगिता के साथ शादी कर लेने से कई बड़े-बड़े राजपूत राजा भी पृथ्वीराज चौहान से नाराज हो गए और अपने आपको उनसे अलग कर लिया।

अपमान का बदला लेने के लिए जयचंद ने मोहम्मद गौरी को पृथ्वीराज चौहान पर हमला करने के लिए बुलाया और साथ ही वादा किया कि युद्ध के दौरान राजा जयचंद की पूरी सेना मोहम्मद गौरी का साथ देगी। राजा जयचंद की बात मानकर मोहम्मद गोरी ने एक बार फिर पृथ्वीराज चौहान पर हमला कर दिया।

पृथ्वीराज चौहान ने पड़ोसी और राजपूत राजाओं से मदद की गुहार लगाई लेकिन कोई भी राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान के मदद करने के लिए आगे नहीं आए।

सन 1112 9 ईसवी में तराइन का दूसरा युद्ध मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच हुआ इतिहासकारों का मानना है कि इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान के पास तीन लाख से अधिक सैनिकों की सेना थी जबकि पृथ्वीराज चौहान के मुकाबले में मोहम्मद गोरी के पास मात्र 1लाख 20 हज़र सैनिक थे।

लेकिन युद्ध में मोहम्मद गौरी की सेना ने पूर्व नियोजित प्लान के तहत पृथ्वीराज चौहान की सेना में शामिल हाथियों पर तीरों से हमला करना शुरू कर दिया। जिससे हाथी घायल होकर गिर गए और युद्ध मैदान में इधर-उधर दौड़ने लगे। जिससे वहां पर भगदड़ मच गई और परिणाम स्वरूप पृथ्वीराज चौहान की सेना के ही कई सैनिक मारे गए।

इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हार हुई और उन्हें बंदी बना लिया गया।

पृथ्वीराज चौहान की हार मुसलमानों के लिए एक बहुत बड़ी जीत की मोहम्मद गोरी ने “कुतुबुद्दीन ऐबक” को भारत का शासन देखने के लिए नियुक्त किया।

जैसे-जैसे समय बीतता गया मोहम्मद गौरी की आकांक्षा बढ़ती गई। मोहम्मद गोरी ने कन्नौज पर आक्रमण कर दिया, जिसमें मोहम्मद गौरी की सेना का सामना जयचंद की सेना के साथ हुआ। तीर लगने की वजह से राजा जयचंद की मौत हो गई और इस तरह कन्नौज का राज्य भी मोहम्मद गोरी के हाथों में आ गया। यही मुख्य वजह रही की राजा जयचंद को गद्दार कहा (Raja jaichand history) जाता हैं।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

क्या राजा जयचंद गद्दार नहीं थे? ( Raja jaichand history)-

इस तरह इस आर्टिकल को पढ़ने पर यही साबित होता है कि राजा जयचंद गद्दार (Raja jaichand history) थे। लेकिन कई इतिहासकारों ने गहन शोध किया जोकि बिल्कुल विपरीत रहा और यह साबित करता है कि राजा जयचंद गद्दार नहीं थे।

ऐसे ही एक इतिहासकार डॉ. आनंद शर्मा ने राजा जयचंद के जीवन पर शोध किया (Raja jaichand history) और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि संयोगिता नामक उनकी कोई पुत्री नहीं थी।

 इतिहास का डॉक्टर आनंद शर्मा के शोध पर विचार किया जाए जिनके अनुसार राजा जयचंद की संयोगिता नाम की कोई बेटी नहीं थी, अगर इसे सही मान लिया जाए तो पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की शादी की बात एकदम गलत साबित हो जाती है।

जब यह बात गलत साबित हो जाती है तो राजा जयचंद और पृथ्वीराज चौहान के बीच में जो मतभेद थे और जिस वजह से राजा जयचंद अपमान का बदला लेना चाहते थे, यह बात बिल्कुल निरर्थक हो जाती है।

इतना ही नहीं इतिहासकार डॉ आनंद शर्मा का मानना है कि उन्हें कोई भी ऐसा साक्ष्य नहीं मिला जिसके बलबूते यह कहा जा सके कि पृथ्वीराज चौहान और राजा जयचंद के बीच मतभेद थे।
राजा जयचंद के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने मोहम्मद गौरी को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया था, लेकिन इस बात का कोई प्रमाण मौजूद नहीं है।

साथ ही तराइन के प्रथम युद्ध में राजा जयचंद और पृथ्वीराज चौहान दोनों एक साथ मोहम्मद गोरी के खिलाफ लड़े थे, इस चीज का भी कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है।

मोहम्मद गोरी ने अपना साथ देने वाला राजा जयचंद को भारत का गवर्नर भी घोषित किया था। तो ऐसी क्या वजह हो सकती है कि मोहम्मद गोरी ने राजा जयचंद को मौत के घाट उतार दिया हो।

भारत वर्ष के इतिहास (Raja jaichand history) के बाद की जाए तो प्रारंभ से ही यह बात की जाती रही है कि भारतीय इतिहास के वह पन्ने फाड़ दिए गए या उन्हें दबा दिया गया जो भारतीय इतिहास की साफ तस्वीर का उल्लेख करते थे।

ऐसा भी ऐसा भी माना जाता है कि जो लोग कथाएं हैं और प्राचीन कहानियां चली आ रही है उनके आधार पर भारतीय इतिहास था। जबकि आधुनिक इतिहासकारों ने इन चीजों को झुठला दिया है जो कि उचित नहीं है।

यह पढ़कर कहा जा सकता हैं कि राजा जयचंद गद्दार (Raja jaichand history) नहीं थे। Raja jaichand history बहुत रोचक और असामंजस्यपूर्ण हैं।

Maharana Kshetra Singh का इतिहास

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राणा क्षेत्र सिंह (rana kshetra singh) जिन्हें राणा खेता के नाम से भी जाना जाता हैं।Maharana Kshetra Singh  राणा क्षेत्र सिंह या राणा खेता मेवाड़ साम्राज्य के शासक थे। क्षेत्र सिंह के पिता का नाम राणा हम्मीर सिंह था। इनका कार्यकाल 1364 से 1382 ईस्वी तक रहा। 1382 ईस्वी में राणा क्षेत्र सिंह की मृत्यु हो गई। राणा क्षेत्र सिंह (rana kshetra singh) ने 18 वर्षों तक शासन किया था। इनसे पहले इनके पिता राणा हमीर सिंह मेवाड़ पर राज्य करते थे और इनके पश्चात राणा लाखा मेवाड़ क्षेत्र के राजा बने।

Biopraphy of Maharana Kshetra Singh - YouTube

राणा क्षेत्र सिंह का इतिहास और जीवन परिचय  (rana kshetra singh History In Hindi)

  • पुरा नाम Full name- राणा क्षेत्र सिंह।
  • अन्य नाम other name of rana kshetra singh– राणा खेता सिंह।
  • पिता का नाम Rana kshetra Singh Father’s name- राणा हम्मीर सिंह।
  • माता का नाम Rana kshetra Singh mother’s name- सोंगरी देवी।
  • पुत्र और पुत्री- राणा लाखा सिंह
  • दासी- खातिन।
  • दासी पुत्र- चाचा और मेरा।
  • राजा कब बनें- 1364 ईस्वी में।
  • मृत्यु वर्ष- 1382 ईस्वी।
  • शासन अवधि-18 वर्ष।
  • इनसे पहले राजा- राणा हम्मीर सिंह।
  • इनके बाद राजा- राणा लाखा सिंह।

राणा क्षेत्र सिंह (Rana kshetra Singh) ने राजा बनते ही अजमेर पर आक्रमण कर दिया और उसे जीत लिया, अब अजयमेरु रियासत मेवाड़ का हिस्सा बन गई। यह राणा क्षेत्र सिंह की पहली उपलब्धि मानी जाती है।

इतना ही नहीं इन्होंने बिजोलिया और भीलवाड़ा को भी जीत लिया जिसमें । जब अजमेर, मेवाड़ राज्य का हिस्सा बन गया। तब मेवाड़ का एक युवराज पृथ्वीराज सिंह सिसोदिया अजमेर गए और अजयमेरु दुर्ग के चारों तरफ एक परकोटा बनाया और इस दुर्ग का नाम तारागढ़ रख दिया।

हाड़ा राजवंश के राजा को पराजित करने वाले राणा क्षेत्र सिंह (Rana kshetra Singh) मेवाड़ के प्रथम शासक थे, इसका प्रमाण हमें एकलिंगनाथ प्रशस्ति में मिलता हैं। धीरे-धीरे पूरा हाड़ौती क्षेत्र राणा क्षेत्र सिंह के अधिकार में आ गया।

इतना ही नहीं छप्पन का क्षेत्र नामक स्थान भी इन्होंने अपने कब्जे में ले लिया। राणा क्षेत्र सिंह अपने राज्य विस्तार के अगले पड़ाव में मालवा पर आक्रमण कर दिया। इस समय मालवा पर दिलावर खान का शासन था।

दिलावर खान राणा क्षेत्र सिंह (Rana kshetra Singh) के सामने नहीं टिक पाए और मौत के घाट उतार दिए गए। यहीं से मेवाड़ मालवा संघर्ष का प्रारंभ हुआ।

दासी पुत्र चाचा और मेरा और क्षेत्र सिंह के वंशज

राणा क्षेत्र सिंह की एक दासी थी जिसका नाम खातीन था। Maharana Kshetra Singh खातीन से दो पुत्र हुए जिनका नाम चाचा और मेरा था। इन दोनों ने आगे चलकर राणा क्षेत्र सिंह के पोते महाराणा मोकल की हत्या कर दी। इस समय महाराणा मोकल गुजरात में राज्य विस्तार हेतु जा रहे थे।

इन दोनों के अलावा मेवाड़ की रानी और राणा क्षेत्र सिंह के एक पुत्र हुआ, Maharana Kshetra Singh जिसका नाम राणा लाखा था जो आगे चलकर मेवाड़ के शासक बने।

राणा क्षेत्र सिंह हैं कि मृत्यु कैसे हुई? How Rana kshetra Singh Died.

सन 1382 की बात है, हाड़ौती में हाड़ा ( चौहान) शासकों को पराजित करने के पश्चात बूंदी के शासक लाल सिंह के साथ एक भयंकर युद्ध हुआ। किसी ने नहीं सोचा था कि यह युद्ध मेवाड़ के शासक राणा क्षेत्र सिंह और बूंदी के शासक लाल सिंह दोनों की एक साथ जान ले लेगा।

युद्ध मैदान में ही राणा क्षेत्र सिंह ने दम तोड़ दिया। इस तरह मेवाड़ के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले साथ ही मेवाड़ को अजमेर तक विस्तारित करने वाले महान शासक राणा क्षेत्र सिंह की मृत्यु हो गई। राणा क्षेत्र सिंह ने मेवाड़ पर लगभग 18 वर्षों तक शासन किया था।
राणा क्षेत्र सिंह की मृत्यु के पश्चात इनका पुत्र राणा लाखा (लक्ष्य सिंह) मेवाड़ के शासक बने।

इस लेख के माध्यम से आप जान पाए हैं की राणा क्षेत्र सिंह कौन थे और राणा क्षेत्र सिंह का इतिहास क्या रहा।

Rana Hammir Singh History & Biography in Hindi

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14वीं शताब्दी में Rana Hammir Singh History & Biography in Hindi मेवाड़ (राजस्थान) के शासक थे। 13वीं शताब्दी की बात है, दिल्ली सल्तनत ने गुहीलों की सिसोदिया राजवंश की शाखा को मेवाड़ से सत्तारूढ़ कर दिया। सिसोदिया राजवंश से पहले मेवाड़ पर गुहिल वंश के ही रावल परिवार का शासन था, जिसके मुखिया थे बप्पा रावल या भोजराज। राणा हम्मीर सिंह (Rana Hammir Singh) के ही वंशज महाराणा कुंभा ने कीर्ति स्तंभ प्रशस्ति में राणा हमीर के लिए “विषम घाटी पंचानन” शब्द का प्रयोग किया। इसका अर्थ होता है, संकटकाल में सिंह के समान। राणा हमीर सिंह (Rana Hammir Singh) को सिसोदिया वंश के प्रथम शासक के रूप में जाना जाता है, साथ ही इन्हें मेवाड़ का उद्धारक भी कहा जाता है।

राणा हमीर सिंह का इतिहास या राजा हमीर की कथा (Rana Hammir Singh History In Hindi).

  • अन्य नाम – हम्मीरा और विषम घाटी पंचानन।
  • जन्म वर्ष – 1314 ईस्वी।
  • मृत्यु वर्ष – 1364.
  • मृत्यु के समय आयु –50 वर्ष
  • पिता का नाम – अरी सिंह।
  • माता का नाम – ऊर्मिला।
  • दादा का नाम – लक्ष्मण सिंह।
  • पत्नि का नाम – सोंगरी देवी।
  • पुत्र का नाम – राणा क्षेत्र सिंह
  • शासन अवधि – 1326 से 1364 ईस्वी तक।
  • राज्य – मेवाड़ (राजस्थान).
  • राजवंश – सिसोदिया।
  • इनके पश्चात् मेवाड़ का राजा- राणा क्षेत्र सिंह।
  • विशेषता- मेवाड़ के प्रथम राणा।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

राणा हम्मीर सिंह सिसोदिया (Rana Hammir Singh) का जन्म सिसोद नामक गांव में हुआ था। राणा हम्मीर सिंह ने बचपन में ही वह करिश्मा कर दिया जिसको देखकर मेवाड़ की जनता समझ गई कि यही मेवाड़ का भावी सरदार है। बप्पा रावल के वंशज राणा हम्मीर सिंह ने मात्र 2 वर्ष की आयु में अपने माता और पिता दोनों को खो दिया।

Rana Hammir Singh की माता उर्मिला देवी ने रानी पद्मावती के साथ जोहर कर लिया। मेवाड़ बहुत बड़े संकट से जूझ रहा था। यह उस समय की बात हैं जब मुंजा बलेचा नामक एक डाकु का आतंक मेवाड़ और चित्तौड़गढ़ के आस पास फैल रहा हैं। यह एक बहुत बड़ा लुटेरा था जिसके सर पर अलाउद्दीन खिलजी का हाथ था। एक बार की बात है, रात्रि के समय लूटपाट करने के बाद मुंजा बलेचा उसके कैंप में जा रहा था।

तभी वहां पर एक नन्हे बालक ने उन्हें युद्ध के लिए ललकारा। पहले तो मुंजा बलेचा को यकीन नहीं हुआ लेकिन वह घोड़े से उतरा और छोटे बच्चे को मारने के लिए दौड़ा, तभी उस छोटे बच्चे ने मुंजा बलेचा की गर्दन धड़ से अलग कर दी। यही बालक बड़ा होकर राणा हम्मीर सिंह सिसोदिया (Rana Hammir Singh) के नाम से जाने जाना लगा। इन्हें युद्ध प्रणालियों की शिक्षा इनके चाचा अजय सिंह द्वारा दी गई थी, जिनमें गोरिल्ला युद्ध प्रणाली सबसे मुख्य थी।

राणा हम्मीर सिंह (Rana Hammir Singh) धीरे-धीरे बड़े हो रहे थे। इस समय मेवाड़ पर अलाउद्दीन खिलजी के पुत्र खिज्र खां शासन कर रहे थे लेकिन  इनका कोई प्रतिद्वंदी नहीं था। मेवाड़ पूरा खाली खाली लग रहा था इसलिए खिज्र खां मेवाड़ छोड़कर दिल्ली चले गए।

अब भी चित्तौड़गढ़ किला और मेवाड़ अलाउद्दीन खिलजी के अधीन ही था। चला गया क्योंकि शासन करे तो करे किस पर मेवाड़ में तो जनता ही नहीं थी अलाउद्दीन ने तुरंत मेवाड़ की सत्ता अपने एक सेवक मालदेव सोनगरा को दे दी।

राणा हम्मीर सिंह बनें मेवाड़ के राजा और किला जीता

राणा हम्मीर सिंह के चाचा अजय सिंह ने राणा हम्मीर सिंह को तिलक लगाकर मेवाड़ का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। संपूर्ण मेवाड़ में यह खबर फैल गई कि बप्पा रावल के असली वंशज अभी जिंदा है।

1326 में राणा हम्मीर सिंह (Rana Hammir Singh) ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर आक्रमण कर इसे जीत लिया। मालदेव सोनगरा बचकर दिल्ली भाग निकले लेकिन उनका पुत्र जय सिंह हम राणा हमीर (Rana Hammir Singh) की कैद में आ गया।यहीं से राणा हम्मीर सिंह का विजय अभियान शुरू हुआ। धीरे-धीरे मेवाड़ के 80 बड़े ठिकाने जहां पर मुस्लिम शासन था उन्हें राणा हम्मीर सिंह ने जीत लिया।

विषम परिस्थितियों मैं राणा हमीर सिंह (Rana Hammir Singh) ने चित्तौड़ पर विजय प्राप्त की इसीलिए इन्हें “विषम घाटी पंचानन” के नाम से जाना जाता है।

राणा हम्मीर सिंह बनाम मोहम्मद बिन तुगलक में सिंगोली का युद्ध (1336)

अलाउद्दीन खिलजी के पश्चात मोहम्मद बिन तुगलक दिल्ली का नया शासक बना। मोहम्मद बिन तुगलक राणा हम्मीर सिंह की बढ़ती लोकप्रियता और प्रभुत्व से परेशान हो गया।

साल 1336 में तुगलक सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक अपनी विशाल सेना के साथ दिल्ली से रवाना हुआ। 3 महीने के लंबे सफर के बाद तुगलक सिंगोली नामक एक गांव में पहुंचा। भयंकर बारिश और घोर रात्रि के कारण तुगलक ने इसी गांव में अपनी सेना का डेरा जमा दिया।
इधर राणा हम्मीर सिंह सिसोदिया को भली प्रकार से पता था कि दिल्ली का सुल्तान मेवाड़ पर चढ़ाई जरूर करेगा।

राणा हम्मीर सिंह सिसोदिया (Rana Hammir Singh) ने गोरिल्ला युद्ध प्रणाली का प्रयोग करते हुए तुगलक पर हमला कर दिया और उसे चारों खाने चित कर दिया। राणा हम्मीर सिंह सिसोदिया और मोहम्मद बिन तुगलक के बीच लड़ा गया सिंगोली का यह युद्ध इतिहास में हमेशा के लिए अमर हो गया।

मोहम्मद बिन तुगलक को राणा हम्मीर सिंह ने लगभग 6 महीने कैद कर रखा। राणा हम्मीर सिंह सिसोदिया (Rana Hammir Singh) का इतना खौफ था कि इनके जीते जी किसी ने मेवाड़ की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखा।

अन्नपूर्णा माता के मंदिर का निर्माण

राणा हम्मीर सिंह सिसोदिया (Rana Hammir Singh) धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे, साथ ही सनातन संस्कृति के मानने वाले थे। उन्होंने ना सिर्फ मेवाड़ में केसरिया ध्वज फहराया बल्कि कई मंदिरों का निर्माण भी करवाया, जिसमें चित्तौड़गढ़ किले के ऊपर स्थित अन्नपूर्णा माता का मंदिर सबसे मुख्य है।

क्या आप जानते हैं राणा हम्मीर सिंह सिसोदिया ने विधवा पुनर्विवाह प्रथा को पुनः प्रारंभ किया? ज्यादातर लोगों को इस बारे में यह जानकारी है कि ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने विधवा पुनर्विवाह प्रथा को पुनः शुरू किया था। लेकिन अगर सबसे पहले इसकी शुरुआत किसी ने की थी तो वह थे, मेवाड़ के शासक राणा हम्मीर सिंह सिसोदिया।

युद्ध में पराजित होने के बाद मालदेव, राणा हम्मीर सिंह सिसोदिया को नीचा दिखाने के लिए एक विधवा राजकुमारी सोंगरी देवी का विवाह उनसे करवाना चाहता था, हालांकि उस समय यह प्रथा प्रचलन में नहीं थी फिर भी राणा हम्मीर सिंह ने उसे पत्नी के रूप में स्वीकार कर इस प्रथा पुनः स्थापित किया।

राणा हम्मीर सिंह सिसोदिया की मृत्यु कैसे हुई? how Rana Hammir Singh died.

राणा हम्मीर सिंह सिसोदिया की मृत्यु सामान्य रूप से अर्थात सामान्य परिस्थितियों में 1364 ईस्वी में हुई थी। इन्हें मेवाड़ का उद्धारक माना जाता है। इतिहास के पन्नों में भले ही राणा हम्मीर सिंह सिसोदिया का नाम ज्यादा नहीं हो लेकिन वास्तविक रूप में यह एक ऐसे योद्धा थे जिन्होंने मेवाड़ को मुस्लिमों से मुक्त करवाया था। इनके जीते जी कोई भी मुस्लिम शासक आंख उठाकर भी मेवाड़ की तरफ नहीं देख सका।

तो दोस्तों राणा हम्मीर सिंह सिसोदिया (Rana Hammir Singh History ) का स्वर्णिम इतिहास आपको कैसा लगा, कमेंट करके आपकी राय दें साथ ही अपने दोस्तों के साथ शेयर करें, धन्यवाद।

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