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Watermelon Benefit Effects and Side Effects (Tarbuj Ke Fayde)

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Watermelon Benefit Effects and Side Effects, गर्मियों के सीजन में तरबूज (watermelon) का सेवन अमृत के समान माना जाता है। क्योंकि गर्मियों में डीहाईड्रेशन और सेहत संबंधी परेशानियां सबसे अधिक होती है। इसलिए गर्मियों में पानी के अधिक सेवन की सलाह दी जाती है।तरबूज में पानी की मात्रा 90 से 97 प्रतिशत के करीब होती है। इसकी तासीर भी ठंडी होती है। साथ ही इसमें कैलोरी की मात्रा भी बहुत कम होती है। तरबूज के 100 ग्रा. के हिस्से में तकरीबन 7.55 ग्रा. कार्बोहाईड्रेट पाया जाता है।तरबूज में लाईकोपीन नाम का तत्व भी अधिक होता है जो सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों से हमारी रक्षा करता है।आज के इस लेख में हम आपको बताएंगे कि तरबूज खाने के फायदे (Benefits of Watermelon in Hindi), प्रयोग विधि (how to eat watermelon), किस्में और संभव नुक्सान (watermelon side effects) –

 

 

 

 

The Health Benefits of Watermelon

 

 

 

 

 

मुख्य बिंदु

  • तरबूज खाने के फायदे
  • तरबूज खाने का सही समय
  • तरबूज को कैसे खाना चाहिए
  • तरबूज की विभिन्न किस्में बताएं
  • तरबूज के बीजों के लाभ
  • तरबूज खाने के कुछ संभव नुक्सान

 

तरबूज खाने के फायदे (Tarbuj Khane Ke Fayde)

  1. तरबूज में पोटाशियम, मैग्निशीयम और अमीनो-एसिड होता है जो त्वचा को मुलायम बनाता है साथ खून के प्रवाह को भी बेहतर करता है।
  2. तरबूज को रात के समय यदि न खाया जाए तो यह आपके वजन को कम करने में भी काफी कारगार साबित होता है, साथ ही आपके कोलेस्ट्रोल को भी नहीं बढ़ने देता।
  3. तरबूज बीटाकैरोटीन का अच्छा स्त्रोत होने की वजह से यह आंखों की समस्याओं को भी दूर करता है।
  4. तरबूज में पानी की अधिक मात्रा होने के कारण यह हमारे शरीर से हानिकारक टॉक्सिनस को निकालकर बाहर कर देता है जिससे किडनी संबंधी रोगो को दूर करने में मदद मिलती है साथ ही लीवर भी स्वस्थ रहता है।
  5. शरीर में यूरिक एसिड की समस्या बढ़ने पर भी तरबूज का सेवन फायदेमंद साबित हो सकता है।
  6. तरबूज डिप्रेशन की समस्या को भी कम करता है और शरीर के साथ दिमाग को भी शांत करता है।
  7. तरबूज एंटी-आक्सीडेंट का भी भंडार माना जाता है जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।

 

तरबूज खाने का सही समय

तरबूज का सेवन खाली पेट नहीं करना चाहिए। इसका सेवन दोपहर के खाने के एक घंटा बाद करने से यह ज्यादा फायदेमंद साबित होता है। Watermelon Benefit Effects and Side Effects

 

तरबूज को कैसे खाना चाहिए

तरबूज का स्लाद बनाकर खाया जा सकता है। साथ ही काला नमक या सेंधा नमक के साथ खाया जाता सकता है। तरबूज का जूस बनाकर भी पिया जा सकता है।

लेकिन यदि डॉक्टरों की सलाह मानें तो तरबूज का जूस बनाकर पीने की बजाए इसे ऐसे ही खाना ज्यादा फायदेमंद साबित होता है।

 

तरबूज की विभिन्न किस्में

आशायी यामातो, शुगर बेबी, न्यू हेम्पशायर मिडगट, पूसा बेदाना, दुर्गापुर केसर, अर्का ज्योति, अर्का मानिक के अलावा तरबूज की कुछ संकर किस्में हैं जिन्हें मधु, मिलन और मोहिनी के नाम से भी जाना जाता है।

 

तरबूज के बीजों के लाभ

तरबूज के बीजों को छील कर अंदर की गिरी निकालकर खाने से दिमाग की कमजोर नसों को ताकत मिलती है साथ ही सूजन भी कम होती है।

जिन लोगों को भूलने की समस्या है उन्हें तरबूज के बीजों की गिरी की ठंडाई बनाकर पीनी चाहिए इससे उनकी स्मरण शक्ति बढ़ती है।

तरबूज के बीजों की गिरी को मिश्री, सौंफ के साथ पीसकर खाने से गर्भ में पल रहे बच्चे का विकास भी सही से होता है।

बीजों को चबाकर खाने से दांतो की पायरिया की समस्या से छुटकारा मिलता है।

पुरानी या लगातार चली आ रही सर दर्द की समस्या से यदि छुटाकारा चाहते हैं तो तरबूज के बीजों की गिरी को पीसकर बने चूर्ण का पानी के साथ नियमित सेवन करने से भी इस समस्या से राहत मिलती है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

तरबूज खाने के कुछ संभव नुक्सान

तरबूज को खाली पेट नहीं खाना चाहिए।

धूप में गर्म हुआ तरबूज खाने से आपके सर में दर्द हो सकता है। इसे पानी में डालकर ठंडा करके ही खाएं।

तरबूज के साथ या इसको खाने के बाद जूस, पानी या कोई भी तरल पदार्थ पीने से पेट में इन्फेशन होने का खतरा पैदा हो जाता है।

तरबूज के साथ या बाद में खट्टी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए इससे पेट में दर्द और आंतों में मरोड़ की समस्या हो सकती है।

तरबूज और चावल का साथ में सेवन भी काफी हानिकारक साबित हो सकता है।

गर्भावस्था के दौरान तरबूज का अधिक सेवन गर्भवति महिलाओं के खून में शर्करा स्तर बढ़ा देता है जिससे गर्भवती महिलाओं को डायबिटीज होने की संभावना हो सकती है।

 

 

 

 

 

 

हमें उम्मीद है की आपको हमारा यह लेख काफी पसंद आया होगा और आपको आपके प्रश्न तरबूज खाने के फायदे (Benefits of Watermelon in Hindi), प्रयोग विधि (how to eat watermelon), किस्में और संभव नुक्सान (watermelon side effects) का उत्तर मिल गया होगा और उसके साथ ही अन्य रोचक जानकारियां भी पसंद आयी होंगी अगर आप इस सम्बन्ध में कोई और जानकारी चाहते हैं तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में अपना कमेंट लिख के सब्मिट करें और हम जल्द ही आपके सवाल का जवाब देंगे और अगर आपको हमारा ये लेख पसंद आया तो लाईक करें और शेयर करें।

Ridge Gourd Benefit Effects and Side Effects (Turai ke Fayde)

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Ridge Gourd Benefit Effects and Side Effects, को वर्षा ऋतु में उगने वाली औषधीय सब्जी का दर्जा प्राप्त है। गर्मियों में भी इसका सेवन शरीर और दिमाग को ठंडक प्रदान करता है।कुछ लोगों को खास कर यदि बच्चों की बात की जाए तो उऩ्हें तुरई की सब्जी खाना खासा पसंद नहीं होता। लेकिन आज के इस लेख में हम आपको तुरई के ऐसे फायदे और इसको खाने के तरीकों पर चर्चा करेंगे कि आप भी खुद को तुरई खाने से नहीं रोक पाएंगे।

 

 

 

 

Benefits of Ridge Gourd You Must know - Helthy Leaf

 

 

 

 

 

मुख्य बातें

  • तुरई के फायदे (Benefits of Ridge Gourd)
  • तुरई को कैसे खाया जाता है (How to eat Ridge Gourd)
  • तुरई की विभिन्न किस्में (Different types of Ridge Gourd)
  • तुरई खाने से क्या नुक्सान हो सकते हैं (Side effects of Ridge Gourd)

 

तुरई के फायदे बताएं(Benefits of Ridge Gourd)?

  1. त्वचा से संबंधित रोग जैसे खुजली, जलन होने की स्थिति में तुरई पञ्चाड्ग को पीसकर लेप बनाकर लगाने से राहत मिलती है।
  2. व्यस्कों को पीलीया रोग होने पर तुरई के फल का चूर्ण बनाकर नाक में डालने से लाभ मिलता है।
  3. तुरई का रस मोतियाबिंद को भी ठीक करता है। इसके लिए आपको तुरई को पत्तों को पीसकर इनका रस निकालना है जिसकी रोजाना 1 से 2 बूंद आंखों में डालनी है इसके अलावा तुरई के बीजों को मीठे तेल में घिसकर काजल की तरह लगाने से आंखों के कई रोग बहुत जल्द खत्म होते हैं।
  4. कच्ची तुरई को पीसकर इसका लेप बनाकर इसे कानों के पीछे लगाने से सर-दर्द में भी राहत मिलती है।
  5. तुरई जल्दी पचने वाली सब्जी होती है। Ridge Gourd Benefit Effects and Side Effects  आर्युवेद के अनुसार तुरई कफ और पित को शांत करती है।
  6. तुरई दमा, सूखी खांसी और बुखार को भी ठीक करती है।

 

तुरई को कैसे खाया जाता है (How to eat Ridge Gourd)?

भारत में तुरई को ज्यदातर सब्जी बनाकर ही खाया जाता है। लेकिन यदि इसका जूस बनाकर पिया जाए तो वह भी कई रोगों के ईलाज में लाभदायक साबित होता है। साथ ही तुरई के बीजों के भी अनगिनत फायदे होते हैं।

  1. चूहे के काटने पर तुरई का काढ़ा बनाकर उसमें 2 ग्रा. देवदाली फल का चूर्ण और दही को मिलाकर पीना चाहिए। इस मिश्रण को पीने से शरीर में फैल रहा जहर उल्टी आने के साथ बाहर निकल जाता है।
  2. भूलने की समस्या से परेशान हैं तो तुरई को आंवला और वच चूर्ण के साथ बराबर मात्रा में मिलाकर घी या शहद के साथ खाने से स्मरण शक्ति में वृद्घि होती है।
  3. तुरई कुष्ठ रोग के इलाज में भी कारगर होती है इसके लिए आपको तुरई के बीज और इसका गूदा निकालकर इसमें रातभर के लिए पानी भरकर रखना है। सुबह होते ही इस पानी की 10 से 15 मि.ली. की मात्रा का सेवन करने से बहुत जल्द फायदा मिलेगा।
  4. यदि लड़कियों और महिलाओं को मासिक धर्म समय पर नहीं आता है तो तुरई के पत्तो का काढ़ा बनाकर पीने से मासिक धर्म भी समय पर आने लगेगा।
  5. शुगर को नियंत्रित रखने के लिए तुरई के 10 से 15 मि.ली. जूस का रोजाना सेवन करें। साथ ही इसकी सब्जी बनाकर खाना भी फायदेमंद होता है।
  6. तुरई के क्षारीय जल में बैंगन को पकाकर बाद में घी में भूनकर खाने से पुरानी बवासीर के रोग से फायदा मिलता है।
  7. तुरई की सब्जी बनाकर खाने से भूख में भी वृद्धि होती है साथ ही पथरी भी ठीक होती है।
  8. तुरई के बीजों को पीसकर उऩका चूर्ण बनाकर रख लें यदि आपको कब्ज की समस्या रहती है तो चूर्ण की 1 से 2 ग्रा. की मात्रा का सेवन करें फायदा मिलेगा।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

तुरई की विभिन्न किस्में (Different types of Ridge Gourd)

तुरई की मुख्यतः तीन प्रजातियों की खेती की जाती है। तुरई की बीजाई सब्जी के लिए तो की जाती है। साथ ही इसका प्रयोग कई आयुर्वेदिक औषधियां बनाने के लिए भी किया जाता है। इसका फल,बीज और तेल सभी औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं।

घिया तुरई- यह तुरई की सबसे प्रचलित किस्म है। जिसे पूरे भारत में उगाया जाता है। इसके अलावा सिक्किम, तमिलनाडू, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और आसाम आदि में इसे उगाया जाता है।

नेनुआ- इसकी खेती बिहार में सबसे अधिक होती है। बिहार में नेनुआ प्रजाति की तुरई की सब्जी सबसे ज्यादा खाई जाती है।

झींगा- तुरई की इस प्रजाति को हिंदी में झींगा तथा इंग्लिश में रिज-गार्ड (Ridge Gourd) कहा जाता है।

 

तुरई खाने से क्या नुक्सान हो सकते हैं (Side effects of Ridge Gourd) ?

तुरई को वैसे तो गुणों का खजाना समझा जाता है और इसके नुक्सन भी कम ही हैं। जैसे-

गर्भावस्था में तुरई की चाय का सेवन नहीं करना चाहिए इससे गर्भपात होने का खतरा पैदा हो जाता है।

तुरई के जूस का 10 से 15 मि.ग्रा. से अधिक सेवन नहीं करना चाहिए।

तुरई के अधिक सेवन से कई बार लोगों को एलर्जी होने का खतरा भी हो सकता है।

 

 

 

 

 

 

 

 

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Sage Leaves Benefit Effects and Side Effects

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Sage Leaves Benefit Effects and Side Effects, सेज को सुंगधित और हर्बल गुणों वाला औषधीय पौधा कहा जाता है। भारत के अलावा कई अन्य देशों में सेज के पत्तों को मसाले के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है। इसका ज्यादातर प्रयोग आयुर्वेदिक औषधियां बनाने में किया जाता है। सेज के पत्ते माइग्रेन, डिप्रेशन और अल्जाइमर जैसी गंभीर बीमारियों के इलाज में काफी कारगार समझे जाते हैं। सेज के पौधे को बड़ी आसानी से गमलों में भी उगाया जा सकता है। आज के इस लेख में हम आपको सेज के पत्तों के कुछ औषधीय फायदे (benefits of sage leaves) और इनकी प्रयोग विधी से अवगत कराएंगे साथ ही सेज के पत्तों के कुछ नुक्सान (sage leaves side effects) भी बताएंगे ।

 

 

 

Sage: Health Benefits, Side Effects, and Interactions

 

 

 

 

 

मुख्य बिंदु

  • सेज के पत्तों के फायदे
  • सेज के पत्तों की प्रयोग विधि
  • सेज के कुछ प्रकार
  • सेज के पत्तों के कुछ नुक्सान

 

 सेज के पत्तों के फायदे (Benefits of Sage Leaves in Hindi)

  1. सेज की पत्तियों के हर रोज सेवन से सर्दी-जुकाम की समस्या से राहत मिलती है।
  2. सेज के पत्ते अस्थमा जैसी बीमारी से ग्रसित लोगों को भी काफी फायदा पहुंचाते हैं।
  3. आयुर्वेदिक औषधी के रूप में सेज के पत्तों का प्रयोग दिमागी बीमारियों को ठीक करने में किया जाता है।
  4. जोड़ों के दर्द से राहत पाने के लिए सेज के तेल से मालिश की जाती है। एसा करने से जोड़ों के दर्द में काफी राहत मिलती है।
  5. सेज के पत्तों से बनी चाय या काढ़ा महिलाओं में मीनोपॉज के दौरान होने वाली परेशानी तथा दर्द को कम करने में भी सहायक होता है।
  6. सेज के पत्तों को सुखा कर बने तेल का प्रयोग कई दवाईयों को बनाने में भी इस्तेमाल किया जाता है।
  7. सेज के पत्तों में पाए जामे वाले एंटिबैक्टीरियल गुणों के कारण इसे खाने के बाद माउथ फ्रेशनर की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है। यह मुंह के बैक्टीरिया का खात्मा करके मुंह से आने वाली दुर्गंघ की समस्या से छुटकारा दिलाता है।
  8. वजन कम करने के लिए भी सेज के पत्तों का इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि इनमें फाइबर प्रचूर मात्रा में होता है। इसलिए पेट को भरा रखने के लिए सेज के पत्तों का काढ़ा बनाकर सेवन किया जाता है ताकि भूख कम लगे।
  9. सेज के पत्तो में एंटीबायोटिक गुण भी भरपूर मात्रा में होते है। सर्दी-खांसी या गले में खरास की समस्या होने पर सेज बहुत लाभदायक साबित होती है।
  10. सेज के पत्तों में एंटीऑक्सीडेंट, एंटी इंफ्लेमेटरी, और एंटी बायोटिक गुण पाए जाते हैं जिससे त्वचा को सुंदर और स्वस्थ बनाने में प्रयोग किया जा सकता है।

 

 

 

 

 

 

 

सेज के पत्तों की प्रयोग विधि (How to Use Sage Leaves in Hindi)

त्वचा को जवां और सुंदर, मुलायम बनाए रखने के लिए सेज के पत्तों को अच्छे से पीसकर इसका एक पेस्ट तैयार कर लें फिर इसके पेस्ट में थोड़ा सा शहद मिलाकर इस पेस्ट को तकरीबन 15 मिनट तक चेहरे पर लगाएं। सूखने पर पानी से धो लें। इस पेस्ट का प्रयोग हफ्ते में एक बार करने से त्वचा में फर्क देखने को मिलेगा और त्वचा भी सुंदर और मुलायम नजर आएगी।

सेज के पत्तो को उबालकर, उस पानी से कुल्ला करें। इससे मुंह के हार्मफुल बैक्टीरिया का खात्मा होने के साथ मुंह भी साफ होगा।

सेज के पत्तों की कोमल कलियों को तोड़ कर खाने से, मौसमी इंफेक्शन से भी बचा जा सकता है। क्योंकि सेज के पत्तों में एंटीबायोटिक गुण पाए जाते हैं।

यदि दांत में दर्द की समस्या है तो सेज के पत्तों को लौंग के साथ पानी में उबाल लें। इस पानी से कुल्ला करने पर दांत दर्द से भी राहत मिलती है।

महिलाओं में मीनोपॉज के दौरान कमजोरी और जोड़ों में दर्द आदि की परेशानी से छुटकारा पाने के लिए सेज के पत्तों का सीरप बनाकर या उन्हें पीस कर खाने से काफी आराम मिलता है।

जोड़ों के दर्द से राहत पाने के लिए या किसी पुराने दर्द से छुटकारा पाने के लिए सेज का तेल को गर्म करके लगाने से दर्द से आराम मिलता है।

 

सेज के कुछ प्रकार

सेज के कई प्रजातियां पाई जाती हैं जिनकी खेती भारत के अलावा पूरे विश्व में की जाती है। जैसे क्लीवलैंड सेज जिसे कैलिफोर्निया में उगाया जाता है, इसके अलावा हाइब्रिड सेज, यूरोप में उगाई जाने वाली गार्डन सेज, कैनरी आइलैंड सेज, मैक्सिकन बुश सेज, ऑटम सेज इसकी कुछ प्रजातियां है।

 

सेज के पत्तों के नुक्सान (Side Effects of Sage Leaves in Hindi)

सेज पत्तों की तासीर गर्म होती है इसलिए इनका ज्यादा सेवन करने से सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है।

कुछ लोग वजन जल्दी घटाने के चक्कर में सेज के पत्तों का अधिक मात्रा में सेवन करने लग जाते हैं जो सही नहीं है क्योंकि इनके अधिक सेवन से चक्कर आना, दिल की धड़कनों का बढ़ना  जैसी समस्या हो सकती है।

सेज के पत्तों के अधिक सेवन से गुर्दों को भी नुक्सान पहुंच सकता है।

सेज के पत्तों की बनी चाय को सुबह पिया जा सकता है लेकिन दिन में एक कप से ज्यादा का सेवन घातक साबित हो सकता है।

 

 

 

 

 

 

 

हमें उम्मीद है की आपको हमारा यह लेख काफी पसंद आया होगा और आपको आपके प्रश्न सेज के पत्तों के फायदे (Sage ke patto ke fayde), प्रयोग विधि (Uses), किस्में (Different types) और संभव नुक्सान(Side Sage Leaves Benefit Effects and Side Effects) का उत्तर मिल गया होगा और उसके साथ ही अन्य रोचक जानकारियां भी पसंद आयी होंगी अगर आप इस सम्बन्ध में कोई और जानकारी चाहते हैं तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में अपना कमेंट लिख के सब्मिट करें और हम जल्द ही आपके सवाल का जवाब देंगे और अगर आपको हमारा ये लेख पसंद आया तो लाईक करें और शेयर करें।

Gout Symptoms and Treatment

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Gout Symptoms and Treatment,  एक ऐसा रोग है जो यूरिक एसिड (Uric Acid) के स्तर के बढ़ने के कारण जोड़ों पर अटैक करता है। यदि आपको कोई मेटापॉलिक डिस्ऑर्डर है जैसे- डायबीटिज, मोटापा, ब्लड प्रैशर, किडनी संबंधी बिमारीयां होने पर गाउट होने का खतरा काफी बढ़ जाता है। गठिया का एक जटिल रूप गाउट (Gout) कहलाता है जो किसी को हो सकता है। यदि आपके शरीर में पानी की कमि हो गई है या किसी प्रकार की सर्जरी हुई है, रोड एक्सीडेंट हुआ है या शरीर में लीपिडस का स्तर ज्यादा बढ़ गया है तब भी गाउट का एक्यूट अटैक आ सकता है। गाउट पैर के अंगूठे को सबसे पहले प्रभावित करता है। साथ ही शरीर में हड्डियों के जोड़ों में काफी दर्द पैदा करता है। गाउट के सेवियर अटैक पर शरीर में दर्द 8 से 10 दिनों तक रहता है। आज के इस लेख में हम गाउट के कारणों, इसके कारण, लक्षण और इसके बचाव के तरीकों के बारे में भी आपको जानकारी देंगे।

 

 

 

 

Gout Flares: How to Treat Them (and Prevent Them in the Future)

 

 

 

 

मुख्य बिंदु

  • होने के क्या कारण हैं ?
  • गाउट के मुख्य लक्षण क्या हैं ?
  • क्या किडनी के रोग भी गाउट का खतरा बढ़ाते हैं?
  • गाउट के विभिन्न प्रकार क्या हैं ?
  • गाउट से बचाव के तरीके बताएं ?
  • गाउट की समस्या होने पर क्या खाया जा सकता है ?

 

गाउट होने के क्या कारण हैं ? (What is reason for Gout problem in hindi)

  1. जब खून में यूरिक एसिड का स्तर बढ़ने लगता है तब जोडों में यूरिक एसिड के क्रिस्टल बनने लगते हैं और हड्डियों के जोड़ों में जमा हो जाते हैं। जिसके कारण जोड़ों में काफी सूजन आ जाती है और मरीज को काफी दर्द तथा तकलीफ महसूस होती है।
  2. वजन बढ़ने से भी यूरिक एसिड में बढ़ोत्तरी होती है।
  3. ऐसे खाद्य पदार्थो का सेवन अधिक करना जिनमें प्यूरीन की मात्रा अधिक हो जैसे कोल्ड ड्रिंक आदि।
  4. खून का कैंसर।
  5. यदि किडनी की कार्य करने की क्षमता कम हो गई है या किडनी से संबंधित अन्य रोगों से ग्रसित हों।
  6. शराब या अन्य मादक पदार्थों जैसे बीयर आदि का अधिक सेवन करना।
  7. वंशागत (inherited tendencies)
  8. यदि आपकी कीमोथैरिपी चल रही है तब भी शरीर में मृत कोशिकाओं का विकास  होता है।
  9. गाउट हाइपोथायरायडिज्म Hypothyroidism (underactive thyroid) से भी होता है।
  10. अधिक वसायुक्त पदार्थो का सेवन

 

गाउट के मुख्य लक्षण क्या हैं ?(What is the main Symptom of Gout in hindi)

गाउट अक्सर सबसे पहले मरीज के पैर के अंगूठे के जोड़ को प्रभावित करता है। इसके अलावा यह शरीर के अन्य जोड़ों जैसे- टखने, घुटने, कोहनी, कलाई और उंगलियों को भी नुक्सान पहुंचाता है। मरीज को शुरू के 4 से 12 घंटों के लिए गंभीर दर्द होता है।

गाउट का अटैक आने पर घंटों के असहनीय दर्द के बाद कुछ दिनों के लिए मरीज को बेचैनी रहती है। साथ ही गाउट से जोड़ों के बहुत प्रभावित होने की आशंका भी रहती है।

गाउट के अटैक से प्रभावित जोड़ों में सूजन के अलावा नाजुक, और लाल हो जाते हैं साथ ही उनमें जलन भी महसूस होती है।

मरीज में यदि गाउट का प्रभाव बढ़ रहा है तो पहले की तरह चलने और जोडों को हिलाने में परेशानी होती है।

 

क्या किडनी के रोग भी गाउट का खतरा बढ़ाते हैं ?(Does Kidney disease also increase the risk of Gout)

यह पूरी तरह सही है कि किडनी संबंधी रोग गाउट का खतरा बढ़ाते हैं।

किडनी ही शरीर से यूरिक एसिड को बाहर निकालती है। इसके लिए किडनी का पूरी तरह से स्वस्थ होना सबसे जरूरी होता है।

यूरिक एसिड शरीर के व्यर्थ पदार्थ को कहा जाता है जिसे किडनी शरीर से बाहर निकालती है। लेकिन यदि आपकी किडनी सही से काम नहीं कर रही या आपको किडनी से संबंधित कोई रोग है तब किडनी यूरिक एसिड को पूरी तरह से शरीर से बाहर नहीं निकाल पाती।

इसके अलावा यदि आपके शरीर में यूरिक एसिड भी बहुत ज्यादा बन रहा है तब भी किडनी इसे बाहर नहीं निकाल पाती है। जिससे शरीर में यूरिक एसिड काफी ज्यादा जमा हो जाता है। तब शरीर पर गाउट का खतरनाक और बहुत तीक्षण अटैक होता है।

 

गाउट के विभिन्न प्रकार क्या हैं ? (What is the different type of Gout)

  • अल्पकालीन गाउट (Acute Gout) – अल्पकालीन गाउट, गाउट का एक तीव्र रूप होता है जिससे शरीर के केवल 1 या 2 जोड़ ही अधिक प्रभावित होते हैं। मरीज इन लक्षणों को तभी महसूस कर सकता है जब गाउट अटैक होता है, एक्यूट गाउट जोड़ों को कुछ दिन या एक से दो सप्ताह तक अधिक प्रभावित करता है। इस अवधी के बाद मरीज को थोड़ा सामान्य महसूस होने लगता है।
  • दीर्घकालीन गाउट (Chronic Gout) – दीर्घकालीन गाउट की स्थित में गाउट अटैक बार-बार शरीर को प्रभावित करते हैं, इसमें शरीर के कई जोड़ों पर इसका असर देखने को मिलता है। क्रौनिक गाउटी की स्थित में शरीर को कुछ देर के लिए ही दर्द से राहत मिलती है। दीर्घकालीन गाउट से जोड़ों की स्थायी क्षति तक हो जाती है। साथ ही जोड़ों के विकृत होने का खतरा भी काफी बढ़ जाता है।
  • अग्रवर्ती गाउट – गाउट का समय पर इलाज नहीं हो पाने की स्थिति में यह काफी बढ़ जाता है और यूरिक क्रिस्टल अधिक मात्रा में शरीर के जोड़ों – हाथ की उंगलियों, पैर की अंगूठों के जोडों में जमा हो जाता है। क्रिस्टल की इस जमी हुई संरचना को टोफी(tophi) कहा जाता है। इस प्रकार का गाउट ज्यादा दर्दनाक नहीं होता है लेकिन जब गाउट का अचानक अटैक होता है तो दर्द काफी असहनीय लगने लगता है।
  • कुछ लोगों में गाउट के लक्षण या तो कम दिखाई देते हैं या साल में कुछ ही बार इसके लक्षण शरीर को प्रभावित करते हैं। एसी स्थिति में गाउट को दवाओं से ठीक किया जा सकता है। लेकिन समय पर इलाज कराना बहुत जरूरी होता है क्योंकि इसकी अधिक अनदेखी के कारण इसके गंभीर परिणाम भी देखने को मिलते हैं।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

गाउट से बचाव के तरीके बताएं ?(How can we save ourselves from Gout in hindi)

गाउट के इलाज के लिए मुख्यतः डॉक्टर के परामर्श अनुसार ही दवाओं का प्रयोग करना चाहिए। डॉक्टर मरीज की बीमारी की गंभीरता, बीमारी के चरण और स्थति को देखते हुए ही दवाएं देते है।

गाउट अटैक के लक्षण हर मरीज में काफी हद तक समान हो सकते हैं, लेकिन किस मरीज की बीमारी कितनी गंभीर है और कौन से चरण पर है यह विषेशज्ञ ही बता सकते हैं। किसी भी मरीज को कभी भी किसी दूसरे मरीज के इलाज के अनुसार स्वयं से दवाएं नहीं लेनी चाहिए नहीं तो परिणाम गंभीर हो सकते हैं।

गाउट के इलाज के लिए जोडों के दर्द मे राहत के लिए मुख्यतः दर्द निवारक दवाएं जैसे (NSAIDs) और कोल्चिसिन का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा गाउट के अटैक को रोकने के लिए एलोप्यूरिनोल (ज़ायलोरिक), फेबक्सोस्टैट जैसी दवाओं का भी इस्तेमाल किया जाता है।

मरीज को दवाओं के इलाज के अलावा डॉक्टर द्वारा बताए निर्देशों के अनुसार जीवनशैली में भी अवश्य बदलाव करने चाहिये। जैसे- मोटोपा कम करना, धूम्रपान न करना, मादक पादर्थों का सेवन न करना आदि।

गाउट के अटैक से जोड़ों में यदि तेज दर्द हो रहा तो या जलन हो रही है तो ठंडे पैक की सिकाई की जा सकती है।

 

गाउट की समस्या होने पर क्या खाया जा सकता है ?

  • पानी का अधिक सेवन करें।
  • कम वसा युक्त डेयरी उत्पादों जैसे- दूध, दही और पनीर का सेवन करें।
  • अनाज और (स्टार्च) का अधिक उपभोग करें।
  • फलों का सेवन करें।
  • विटामिन-सी का भरपूरता वाली चीजों जैसे- संतरा, अनानास, स्ट्रॉबेरी, बेल मिर्च, टमाटर और एवोकाडो का सेवन करें।
  • डॉक्टर के परामर्श पर कॉफी, चाय या हल्के प्रोटीन वाली चीजों का काफी कम मात्रा में सेवन किया जा सकता है।

 

 

 

 

 

 

 

हमें उम्मीद है की आपको हमारा यह लेख काफी पसंद आया होगा और आपको आपके प्रश्न Gout Symptoms and Treatment Gout Symptoms and Treatment (Gout Symptoms and Treatment), इसके कारण, लक्षण और बचाव के तरीकों का उत्तर मिल गया होगा और उसके साथ ही अन्य रोचक जानकारियां भी पसंद आयी होंगी अगर आप इस सम्बन्ध में कोई और जानकारी चाहते हैं तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में अपना कमेंट लिख के सब्मिट करें और हम जल्द ही आपके सवाल का जवाब देंगे और अगर आपको हमारा ये लेख पसंद आया तो लाईक करें और शेयर करें।

Castor Oil Benefit Effects and Side Effects

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Castor Oil Benefit Effects and Side Effects,  एरंड नाम के पौधे के फलों से निकाले गए बीजों से बनाया जाने वाला औषधीय तेल है। अरंडी का तेल शरीर के बाहरी रोगों के साथ शरीर के आंतरिक रोगो से भी राहत दिलाता है। आयुर्वेदिक औषधीय प्रणाली के तौर पर अरंडी के तेल का प्रयोग सदियों से किया जा रहा है। इसके अलावा अरंडी के तेल का प्रयोग साबुन, हाइड्रोलिक और ब्रेक तरल पदार्थ, पेंट, रंजक, कोटिंग्स, स्याही, ठंड प्रतिरोधी प्लास्टिक, मोम और पॉलिश, नायलॉन, फार्मास्यूटिकल्स और इत्र बनाने में किया जाता है। आज के इस लेख में हम आपको अरंडी के तेल (castor oil) के फायदे (benefits of castor oil), प्रयोग  विधि (How to use castor oil), किस्में(Different types of castor oil) और संभव नुक्सान (Side effects of castor oil) से अवगत कराएंगे।

 

 

 

 

Side-effects of Castor Oil - अरंडी का तेल के नुकसान - Stop Using Castor Oil  Now ! - YouTube

 

 

 

 

मुख्य बिंदु

  • अरंडी के तेल के फायदें
  • अरंडी के तेल का प्रयोग कैसे किया जाना चाहिए ?
  • अरंडी के तेल के विभिन्न प्रकार
  • अरंडी के तेल से होने वाले कुछ नुक्सान

 

अरंडी के तेल के फायदें (Benefits of Castor Oil in Hindi)

  1. अरंडी के तेल में एंटीइंफ्लेमेट्री, एंटीऑक्सीडेंट, एंटीबैक्टीरियल और एंटीफंगल तत्त्व पाए जाते हैं।
  2. अरंडी का तेल कई प्राकृतिक औषधीय गुणों का खजाना होता है जिस कारण यह बालों के झड़ने की समस्या को भी खत्म करता है।
  3. अरंडी के तेल का प्रयोग छोटे बच्चों की मालिश करने के लिए प्रयोग करने से उनकी हड्डियां मजबूज होती हैं।
  4. यदि आंखों में कीड़ा चला गया है तो इसकी दो बूंद आंखों में डालने पर आंखों से पानी आना शुरू हो जाएगा जिससे आंखें पूरी तरह से साफ हो जाएंगी।
  5. मांसपेशियों और जोड़ों में होने वाली सूजन और दर्द की समस्या से राहत पाने के लिए अरंडी के तेल की मालिश करनी चाहिए।
  6. अरंडी का तेल हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। जिससे किसी भी तरह के संक्रमण को जल्दी ठीक किया जा सकता है।
  7. अरंडी के तेल (Castor Oil) में एंट-एजिंग, एंटी-इंफ्लेमेटरी, व एंटी-बैक्टीरियल गुणों की भरमार होती है। जिससे हमारी त्वचा मुलायम भी बनती है साथ ही उसमें निखार भी आता है।
  8. अरंडी के तेल से मसाज करने पर शरीर का रक्त प्रवाह भी सही होता है।

 

अरंडी के तेल का प्रयोग कैसे किया जाना चाहिए ? (How To Use Castor Oil in Hindi)

अरंडी के तेल का प्रयोग दूसरी औषधियों को मिलाकर या फिर अकेले किया जाता है। इसको कैसे प्रयोग किया जाना चाहिए हम निम्म तरीकों से आपको जानकारी देंगे।

बालों को मुलायम और लंबा बनाने के लिए नारियल तेल, जैतून के तेल और आर्गन ऑयल में अरंडी के तेल की कुछ बूंदें मिलाकर सर की मसाज करने से फायदा मिलता है।

अरंडी के तेल से 5 से 10 मिनट तक मालिश करने से तनाव से भी छुटकारा पाया जा सकता है। साथ ही दिमाग की नसों में रक्त का संचार सही से होने लगता है।

नारंगी के जूस में अरंडी के तेल का कुछ हिस्सा मिलाकर इसके मिश्रण का उसी वक्त सेवन करें। तेल को पूरी तरह घुलने न दें। इससे कब्ज की समस्या से राहत मिलती है। क्योंकि इसमें मौजूद फाइबर कब्ज की समस्या से राहत दिलाता है। नारंगी के जूस की जगह दूध का सेवन भी किया जा सकता है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

अरंडी के तेल के विभिन्न प्रकार

हाइड्रोजनेटेड कैस्टर ऑयल – हाइड्रोजनेटेड कैस्टर ऑयल में निकेल (Nickel) नाम का रासायनिक तत्व मिलाया जाता है। जिसका दूसरा नाम कैस्टर वैक्स भी है। अरंडी के तेल के अन्य प्रकारों की तुलना में यह गंधहीन होता है साथ ही पानी में भी नहीं घुलता है। हाइड्रोजनेटेड कैस्टर ऑयल का इस्तेमाल कॉस्मेटिकस में किया जाता है।

ऑर्गेनिक कोल्ड-प्रेस्ड कैस्टर ऑयल –  इसे सीधा अरंडी के बीजों से निकाला जाता है और इसे बनाने के लिए किसी भी तरीके से हीट का प्रयोग करना वर्जित होता है। क्योंकि तेल निकालने के दौरान यदि हीट दी जाए तो बीज में मौजूदा सभी जरूरी तत्व समाप्त हो जाते हैं। इसके अलावा जब भी आप इसे खरीदने जाएं तो खरीदते समय ध्यान रखें कि इस ऑलय का रंग पीला होना चाहिए।

जमैकन ब्लैक कैस्टर ऑयल – जमैकन ब्लैक कैस्टर ऑयल को तैयार करने के लिए अरंडी के बीजों को पहले भून लिया जाता है फिर इन्हें दबाकर तेल निकाला जाता है। बीजों को भूनने से निकली राख को भी तेल में मिला दिया जाता है, इस प्रक्रिया के कारण यह तेल काले रंग का नजर आता है। इसमें भी कोल्ड-प्रेस्ड कैस्टर ऑयल की तरह सभी पौष्टिक गुण मौजूद होते हैं, लेकिन खारापन काफी होता है।

 

अरंडी के तेल से होने वाले कुछ नुक्सान

अरंडी के तेल का अधिक मात्रा में इस्तेमाल करने से पेट की मसल्स के कमजोर होने का खतरा रहता है।

कुछ लोगों को अरंडी के तेल से एलर्जी भी हो सकती है, इसलिए यदि आपको किसी तरह की एलर्जी की समस्या है तो इसके इस्तेमाल से  पहले  डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।

अरंडी के तेल का अधिक मात्रा में सेवन करने से दस्त या डायरिया होने की संभावना रहती है।

 

 

 

 

 

 

 

हमें उम्मीद है की आपको हमारा यह लेख काफी पसंद आया होगा और आपको आपके प्रश्न अरंडी के तेल के फायदे बताएं (benefits of castor oil), प्रयोग  विधि (How to use castor oil), किस्में(Different types of Castor Oil Benefit Effects and Side Effects oil) और संभव नुक्सान (Side effects of castor oil) का उत्तर मिल गया होगा और उसके साथ ही अन्य रोचक जानकारियां भी पसंद आयी होंगी अगर आप इस सम्बन्ध में कोई और जानकारी चाहते हैं तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में अपना कमेंट लिख के सब्मिट करें और हम जल्द ही आपके सवाल का जवाब देंगे और अगर आपको हमारा ये लेख पसंद आया तो लाईक करें और शेयर करें।

Corn Flour Benefit Effects and Side Effects

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Corn Flour Benefit Effects and Side Effects, मक्के के आटे (Maize Flour) और कॉर्न फ्लोर (Corn Flour) को अमूमन एक ही समझा जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह मक्की का आटा और कॉर्न फ्लोर या स्टार्च, मक्की के दानों के ही दो अलग-अलग रूप हैं। आज के इस लेख में हम इन्ही बातों पर चर्चा करेंगे कि मक्की के आटे और कार्न फ्लोर में क्या अंतर होता है और साथ ही हम कॉर्नफ्लोर (cornflour) के फायदे (benefits of cornflour), प्रयोग  विधि (How to use cornflour), किस्में(Different types of cornflour) और संभव नुक्सान (Side effects of cornflour) के बारे में चर्चा करेंगे।

 

 

 

Is corn flour good for the human body? | The Times of India

 

 

 

 

मुख्य बिंदु

  • मक्की के आटे और कॉर्न फ्लोर में क्या अंतर है ?
  • कॉर्न फ्लोर के फायदे बताएं ?
  • कॉर्न फ्लोर से क्या-क्या बनाया जा सकता है ?
  • मक्की के आटे के फायदे बताएं ?
  • मक्की के आटे से क्या-क्या बनाया जा सकता है ?
  • कॉर्न फ्लोर और मक्की के आटे के नुक्सान बताएं ?

 

मक्की के आटे और कॉर्न फ्लोर में क्या अंतर है ?

मक्की के दानों(Corn Seed) से ही मक्की का आटा (Makki ka aata) और कॉर्न स्टार्च (corn starch) या जिसे कॉर्न फ्लोर (Corn Flour) कहा जाता है, बनाया जाता है।

मक्के को इंग्लिश में मेज़ (Maze) और इसके दानों को कॉर्न सीड कहा जाता है। एक मक्के के दाने के तीन भाग होते हैं। और इसके इन्हीं तीन हिस्सों से मक्की का आटा और कॉर्नफ्लोर या कॉर्नस्टार्च बनाया जाता है।

मक्की के दाने के सबसे ऊपरी हिस्से को सीड कवर कहते हैं। यह सीड कवर पीले रंग का होता है। जब मक्की के दानों को निकालकर इन्हें सुखाकर पीस लिया जाता है तब मक्की का आटा यानि मेज फ्लोर (Maze Flour) बनता है।

इसके दूसरे हिस्से को इंडोस्पर्म कहते हैं

कॉर्न सीड के तीसरे हिस्से को एमब्रीओ कहा जाता है। यह सफेद रंग का होता है।

कॉर्न स्टार्च या कॉर्नफलोर (what is corn flour in hindi) को मक्की के दाने के तीसरे हिस्से यानि एमब्रीओ को सुखाकर और पीसकर बनाया जाता है। यह सफेद रंग का होता है जो आटे का ही एक रूप माना जा सकता है।

 

कॉर्न फ्लोर के फायदे (Benefits of Cornflour in Hindi)

  1. जिन लोगों को ग्लूटन से एलर्जी होती है वे लोग खाने में कॉर्न स्टार्च का इस्तेमाल कर सकते हैं।
  2. कॉर्न स्टार्च स्वादरहित होता है। इसलिए किसी भी खाने की वस्तु को बनाने में जब इसका इस्तेमाल किया जाए तो इसका टेस्ट नहीं आता है।
  3. कॉर्नफ्लोर में पाए जाने वाले पॉलीफेनोल्स एंटीओक्सिडेंट शरीर में आई सूजन को कम करके स्वास्थ्य सुधारने में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
  4. कार्न स्टार्च में फाइबर भी अच्छी मात्रा में पाया जाता है। 100 ग्राम के हिस्से में तकरीबन 2 से 3 ग्राम फाइबर पाया जाता है। इसमें प्रोटीन भी अधिक मात्रा में पाया जाता है।
  5. कॉर्नस्टार्च में अघुलनशील फाइबर जैसे ऐमिलोस, सेल्यूलोस और लिग्निन पाए जाते हैं। फाइबल में मौजूद यह तत्व पाचन प्रक्रिया को आसान कर देते हैं जिससे आँतों को फायदा होता है।
  6. जिन मरीजों को ग्लाइकोजन स्टोरेज नामक रोग होता है उनमें ब्लड शुगर के लेवल को बनाये रखने के लिए कॉर्नफ्लोर को खाने में प्रयोग करने की सलाह दी जाती है।

 

 

 

 

 

 

 

कॉर्न फ्लोर से क्या-क्या बनाया जा सकता है ?

  1. कॉर्न फ्लोर का प्रयोग फालूद सेब बनाने में किया जाता है।
  2. आईसक्रीम और कुल्फी को ज्यादा स्मूद और क्रीमी बनाने के लिए कॉर्न फ्लोर का प्रयोग किया जाता है।
  3. खाने की ग्रेवी को गाढ़ा करने के लिए कॉर्न फ्लोर का इस्तेमाल किया जा सकता है।
  4. छेना की मिठाईयों जैसे रस मलाई, रसगुल्ला आदि में बाईडिंग के लिए कार्न फ्लोर का प्रयोग किया जाता है। इससे छेना चाश्नी में नहीं घुलता।
  5. टमाटर सॉस, कस्टर्ड पाउडर के लिए अलावा कराची हलवा बनाने में कॉर्न फ्लोर का इस्तेमाल किया जाता है।
  6. टिक्की या कटलेट की कोटिंग करने के लिए कॉर्न स्टार्च का प्रयोग किया जाता है।
  7. पकौड़े, फ्रेंच फ्राईज आदि को अधिक क्रिस्पी बनाने लिए भी कॉर्न फ्लोर का इस्तेमाल किया जाता है।

 

मक्की के आटे के फायदे

  1. ऑर्गेनिक तौर पर उगाया गया मक्का जिसके दानों का प्रयोग आटा बनाने के लिए किया जाता है, उसमें काफी मात्रा में फाइबर, एंटीऑक्सीडेंट और रेसिस्टेंट स्टार्च पाया जाता है, जिससे शरीर के विभिन्न हिस्सों के सुचारू तौर पर संचालन में मदद मिलती है।
  2. मक्की के आटे में यदि ज्वार और बाजरा मिलाकर इसकी रोटी बनाए जाए तो काफी फायदेमंद साबित होता है।
  3. कैंसर जैसे खतरनाक रोगों से बचाने में मदद करता है।
  4. मक्की के आटे में विटामिन-सी बायो-फ्लोराईड, कैरोटिनॉयड्स जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं।
  5. इसमें कार्बोहाईड्रेटस भी भरपूर मात्रा में पाया जाता है जिससे शरीर पूरा दिन एनर्जेटिक रहता है।
  6. मक्की के आटे में पाए जाने वाले फाइबर की वजह से कब्ज की समस्या से भी राहत मिलती है।
  7. मक्की के आटे में पाए जाने वाले विटामिन-बी से हाईपरटेंशन की समस्या भी दूर होती है।

 

मक्की के आटे से क्या-क्या बनाया जा सकता है ?

  1. मक्की के आटे का प्रयोग रोटी बनाने के लिए किया जाता है।
  2. मक्की के आटे का हलवा भी लोग बड़े चाव से बनाकर खाते हैं।
  3. मक्की के आटे को क्रिस्पी पकौड़े बनाने में इस्तेमाल किया जाता है।
  4. मक्की के आटे का प्रयोग भजिया बनाने में भी किया जाता है।
  5. मक्की के आटे में मेथी, अजवायन आदि मिलाकर हेल्दी रोटी बनाई जा सकती है।
  6. मक्की के आटे का प्रयोग ढोकला बनाने में भी किया जाता है।
  7. मक्की के आटे से स्टफ्ड परांठे भी बनाए जाते हैं।

 

 

 

 

 

 

 

कॉर्न फ्लोर और मक्की के आटे के नुक्सान (Side Effects f Cornflour in Hindi)

  1. बाजार में मिलने वाले कॉर्न जेनेटिकली संशोधित किये जाते हैं इसके अलावा इन पर हानिकारक कीटनाशकों को भी छिड़का जाता है। कीटनाशक हमारी सेहत के लिए हार्मफुल होते है।
  2. कॉर्न स्टार्च से बने फ्रक्टोस कॉर्न सिरप से कैंसर, फैटी लीवर, Corn Flour Benefit Effects and Side Effects हाई कोलेस्ट्रॉल और डायबिटीज जैसी खतरनाक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
  3. मक्की के आटे में कैलोरी बहुत अधिक होती है इसके 100 ग्राम के हिस्से में 342 कैलोरी होती है।इसके अलावा इसमें कार्बोहाइड्रेट भी बहुत अधिक होता है, जिससे वजन बढ़ता है।
  4. मक्की के आटे में कार्बोहाइड्रेट अधिक होने के कारण इससे डायबिटीज के मरीजों में ब्लड ग्लूकोस का लेवल एकदम बढ़ जाता है
  5. कॉर्नफ्लोर का खाने में ज्यादा प्रयोग करने से शरीर में खराब कोलेस्ट्रॉल डीएल बढ़ सकता है।
  6. यदि कार्न फ्लोर शरीर में ऑक्सीडाइज्ड हो जाए तो एथेरोस्क्लेरोसिस का कारण बन सकता है।
  7. मक्की के आटे के अधिक प्रयोग से हार्ट संबंधी बीमारियां होने का खतरा भी बढ़ जाता है।

 

 

 

 

 

 

 

 

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Spinach Benefit Effects and Side Effects (Palak ke Fayde)

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Spinach Effects and Side Effects (Palak ke Fayde), पालक को पौष्टिक गुणों का भंडार माना जाता है। पालक को न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में खाया जाता है। पालक में पाए जाने वाले औषधीय गुणों के कारण लोग इसको भाजी बनाकर, सूप बनाकर (palak soup), जूस बनाकर(palak ka juice)  इसका उपभोग करते हैं। आज हम आपको इस लेख में बताएँगे कि पालक क्या होता है (what is spinach in Hindi), पालक के फायदे (benefits of spinach), प्रयोग  विधि (How to use spinach) और संभव नुक्सान (Side effects of spinach in hindi) से अवगत कराएंगे।

 

 

 

Spinach: Nutrition, health benefits, and diet

 

 

 

 

मुख्य बिंदु

  • पालक क्या होता है ?
  • पालक के फायदे बताएं ?
  • पालक के जूस के फायदे बताएं ?
  • पालक में कौन-कौन से पोषक तत्व पाए जाते हैं ?
  • पालक को कैसे खाया जा सकता है ?
  • पालक के सूप के फायदे बताएं ?
  • पालक के नुक्सान बताएं ?

 

पालक क्या होता है ? (What is Spinach in Hindi)

पालक(Palak) को इग्लिश में (spinach) स्पीनेच कहा जाता है।(what is spinach) पालक एक शाकीय पौधा होता है जिसके पत्तों का उपभोग किया जाता है।

पालक में खनिज-लवण और विटामिन प्रचूर मात्रा में पाए जाते हैं। लेकिन इसमें ऑक्ज़ैलिक नामक अम्ल के नहीं होने कारण कैल्शियम उपलब्ध नहीं होता।

इसकी खेती सबसे पहले ईरान तथा उसके आस पास के क्षेत्रों में की गई थी। 12वीं शताब्दी में यह अफ्रीका से होता हुआ यूरोप पहुँचा था।

पालक की फसल पाले को सहन करके भी नहीं मरती लेकिन पालक की फसल अधिक गर्मी नहीं सह सकती। पालक के बीज को वर्षा के बाद नंवबर तक किया जाता है। लेकिन यदि इसकी बुआई अधिक घनी की जाए तो पत्तियों में बीमारी लगने का खतरा रहता है।

पालक के 10 फायदे (Benefits of Spinach in Hindi)

  1. अनीमिया की समस्या होने पर पालक का सेवन फायदेमंद साबित होता है। पालक शरीर में रक्त की मात्रा को बहुत जल्दी बढ़ाता है।
  2. यदि आप वजन कम कर रहे हैं या जिम जाते हैं ऐसे में आपको प्रोटीन का सेवन करने की सलाह दी जाती है लेकिन यदि आद मांस आदि का सेवन नहीं करते तो पालक आपके लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है क्योंकि पालक में मीट की तुलना में कहीं अधिक प्रोटीन पाया जाता है।
  3. पालक में गाजर और पत्तागोभी के मुकाबले आयरन दोगुनी मात्रा में पाया जाता है।
  4. पालक को पकाकर खाने से इसके कई पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं इसलिए इसको स्लाद, जूस, या इसके पत्तों को कच्चा चबाकर खाना ज्यादा फायदेमंद होता है।
  5. पालक में पाए जाने वाले मैग्निशीयम, विटामिन व रेशा जैसे तत्वों के कारण कैंसर जैसी भयानक बीमारी तक से बचा जा सकता है।
  6. दिल से जुड़ी बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए पालक का सेवन फायदेमंद साबित होता है।
  7. पालक हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
  8. पालक खाने से आंखो की रोशनी बढ़ती है।
  9. पालक से हाई-ब्लड प्रैशर की समस्या दूर होती है।
  10. पालक को स्लाद के तौर पर सेवन करने से पाचन तंत्र मजबूत होता है। साथ ही पालक भूख को भी बढ़ाता है।

 

पालक के जूस के 7 फायदे (Benefits of Spinach Juice)

  1. यदि स्त्रियों को मासिक धर्म के दौरान बहुत ज्यादा रक्त-स्त्राव होता है तो पालक के 20 से 25 मि.ग्रा. जूस में 1 सेब के रस का जूस मिलाकर पीने से खून की कमि नहीं होती।
  2. गुर्दे की पथरी को साबुत एक बारी में बिना सर्जरी के गुर्दे से बाहर नहीं निकाला जा सकता। ऐसे में पालक को जड़ सहित निकालकर उसका जूस बनाकर पीने से गुर्दे की पथरी छोटे-छोटे कणों में टूट जाती है और धीरे-धीरे शरीर से निकल जाती है।
  3. पालक का जूस(palak ka juice) त्वचा को स्वस्थ, ग्लोईंग और जवां बनाता है।
  4. पालक का जूस याद्दाश्त बढ़ाने में मदद करता है।
  5. पालक के जूस से कब्ज की समस्या ठीक होती है।
  6. पालक का जूस शरीर को डीटॉक्स करने में मदद करता है।
  7. बच्चे के जन्म के बाद माताएं यदि पालक के सूप का सेवन करें तो उनमें ब्रेस्टफीड की बढ़ौतरी होती है।

 

 पालक में कौन-कौन से पोषक तत्व पाए जाते हैं ?

पालक आयरन का सबसे अच्छा स्रोत होता है। पालक फाईबर, मिनरल, प्रोटीन, लौह, वसा, रेसा, सोडियम, पानी, कार्बोहाईड्रेटस, विटामिन-सी, विटामिन-ई,विटामिन-बी, बी-कॉम्पलेक्स, पोटाशियम, फॉस्फोरस, अमीनो एसिड, मैग्नीसियम, जैसे पोषक तत्वों का बेहतर स्रोत है।

 

 पालक को कैसे खाया जा सकता है ?

  • पालक का जूस बनाकर पिया जा सकता है।
  • पालक का स्लाद बनाकर
  • पालक की सब्जी बनाकर
  • दाल के साथ पकाकर
  • परांठे बनाए जा सकते हैं।
  • पालक के पकौड़े काफी क्रिस्पी और स्वादिष्ट होते हैं।
  • पनीर की सब्जी में पालक प्रयोग किया जा सकता है।

 

पालक के सूप के फायदे (Spinach Benefit Effects and Side Effects)

धातु रोग, प्रदर और प्रमेह की समस्या होने पर पालक के सूप का कुछ दिन लगातार सेवन करने से इन रोगों से प्रतिरक्षा मिलती है।

पालक का सूप(palak soup) रोजाना पीने से बालों के झड़ने की समस्या से छुटकारा मिलता है।

 

पालक के 8 नुक्सान (Spinach Benefit Effects and Side Effects)

  1. आर्युवेद के अनुसार पत्तेदार सब्जियों का बहुत ज्यादा मात्रा में सेवन नहीं करना चाहिए। इनका रोजाना सेवन भी डॉक्टर के परामर्श अनुसार ही करना चाहिए। इसके कुछ नुक्सान निम्न हैं-
  2. पालक के जूस का सेवन दस्त के दौरान करने से यह समस्या और तीक्षण हो सकती है।
  3. अल्सर के रोगियों को पालक का सेवन नहीं करना चाहिए।
  4. जिन लोगों को आंतो में इंफेक्शन है या सूजन हो उन्हें भी पालक सेवन करने से बचना चाहिए।
  5. बरसात में मिलने वाले पालक में मिट्टी और कीटाड़ू अधिक होते हैं इसलिए बरसात में इसका सेवन करने से बचना चाहिए।
  6. पालक का अधिकता में सेवन करने से पेट की परेशानियां हो सकती हैं।
  7. पालक पचने में समय लेता है।
  8. गर्भवती महिलाओं को डॉक्टर के परामर्श अनुसार ही Spinach Benefit Effects and Side Effects पालक का सेवन करना चाहिए।

 

 

 

 

 

 

 

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Cremaffin Syrup Benefit Effects and Side Effects

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Cremaffin Syrup Benefit Effects and Side Effects, आजकल की भागती दौड़ती ज़िदगी में लोगों को पेट संबंधित समस्याएं होनी आम बात हो गई है। अपच, कब्ज़, पेट दर्द अब हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन गए हैं तेज रफ्तार ज़िंदगी समय-असमय भोजन करने की वजह से और हमारी बदलती खान-पान की आदतों ने इन बीमारियों को बढ़ाने का काम किया है। खासतौर पर फास्टफूड की वजह से अक्सर लोग पेट से जुड़ी समस्याओं से जूझते दिखाई देते हैं। अब बीमारी है तो आधुनिक चिकित्सा पद्धति के पास उसका इलाज भी है। लिहाज़ा पेट से जुड़ी इन समस्याओं को दूर करने के लिए क्रेमाफीन सिरप (Cremaffin Syrup) एक अच्छी दवा मानी जाती है। इस लेख में आप इसी दवा के बारे में जानेंगे। क्रेमाफीन सिरप क्या होता है? इसका इस्तेमाल कब और कैसे किया जाता है? इसे इस्तेमाल करने के फ़ायदे और नुकसान क्या हैं? इन सभी सवालों के जवाब हम आपको देने की कोशिश करेंगे।

 

 

 

 

WHY IS CREMAFFIN SYRUP RECOMMENDED BY DOCTORS SO MUCH?

 

 

 

कैसे बनती है क्रेमाफीन सिरप (Cremaffin Syrup)

क्रेमाफीन दो तरीके से इस्तेमाल की जाती है। एक सिरप की तरह और दूसरा गोली की तरह।

यह दो अलग-अलग दवाओं से मिलकर बनी होती है।

जिसमें एक होती है तरल पैराफिन( Liquid Paraffin) जो मल में पानी व वसा की मात्रा को बनाए रखती है।

दूसरी होती है मैग्निशियम हाईड्रोक्साइड (Magnesium hydroxide) जो आंतो में पानी बनाए रखती है और कठोर मल को नरम करती है जिससे कब्ज़ दूर होता है।

 

किन बीमारियों में होता है क्रेमाफीन सिरप का इस्तेमाल (Cremaffin Syrup Uses in Hindi)

क्रेमाफीन (Cremaffinपेट से जुड़ी बीमारियों को दूर करने के लिए दी जाती है।

अगर रोगी को कब्ज़, हार्निया, अपच व सीने में जलन जैसी समस्याएं हैं तो डॉक्टर की सलाह के मुताबिक क्रेमाफीन का प्रयोग किया जाता है।

इसके अलावा कोलोनोस्कोपी से पहले आंत को खाली करने के लिए भी क्रेमाफीन का इस्तेमाल होता है।

 

कैसे करें क्रेमाफीन सिरप का इस्तेमाल

क्रेमाफीन (Cremaffin) का इस्तेमाल डॉक्टर के निर्देशानुसार किया जाना चाहिए। दवा की मात्रा रोगी उम्र, बीमारी व वजन को देखकर तय की जाती है। आमतौर पर क्रेमाफीन( Cremaffin) का इस्तेमाल सोने से पहले किया जाता है। मगर रोगी की हालत के मुताबिक कभी-कभी सुबह भी खुराक दी जाती है। 6 माह से छोटे बच्चे को इसकी खुराक नहीं दी जाती। स्तनपान कराने वाली महिलाओं को भी क्रेमाफीन नहीं दी जाती। इसके अलावा सलाह दी जाती है कि खुराक लेने के बाद वाहन ना चलाएं।

 

क्रेमाफीन सिरप को कहां स्टोर करें

क्रेमाफीन (Cremaffin) को कमरे के तापमान में रखें। सीधे धूप या ठंडी जगह पर दवाई को ना रखें । बच्चों व जानवरों की पहुंच से दूर रखें।

 

क्रेमाफीन (Cremaffin Syrupके दुष्प्रभाव

क्रेमाफीन( Cremaffin) इस्तेमाल करने के कुछ साइड इफेक्ट्स भी हो सकते हैं।

जिसमें पेट दर्द, चक्कर, उल्टी, दस्त ,खुजली, सूजन, मासपेशियों में दर्द, भूख में कमी जैसे तमाम लक्षण शामिल हैं।

दवा के सेवन के बाद अगर ऐसा कोई भी लक्षण महसूस हो तो तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।

 

 

 

 

 

 

तो यह थी क्रेमाफीन( Cremaffin Syrup Benefit Effects and Side Effectsकी कहानी। जो आपको पेट से जुड़ी समस्याओं को दूर करने में सहायक होती है। हमें उम्मीद है की आपको हमारा यह लेख पसंद आया होगा और आपको क्रेमाफीन (Cremaffin syrup Uses in Hindi) से जुडे हर प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा और उसके साथ ही अन्य रोचक जानकारियां भी पसंद आई होंगी। अगर आप इस सम्बन्ध में कोई और जानकारी चाहते हैं तो सब्मिट करें, हम जल्द ही आपके सवाल का जवाब देंगे और अगर आपको हमारा ये लेख पसंद आया है तो लाइक करें और शेयर करें।

Chia Seeds, Benefit, Effects and Side Effects

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Chia Seeds, Benefit, Effects and Side Effects , शरीर में पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए कई प्रकार के फल, सब्ज़ी व औषधियों का इस्तेमाल हम करते हैं। विटामिन-सी के लिए खट्टे फलों के प्रयोग की सलाह दी जाती है तो केले को कैल्शियम, पौटेशियम का अच्छा स्त्रोत माना जाता है। पालक समेत हरी-सब्ज़ियों के नियमित सेवन की सलाह भी हमें अक्सर दी जाती है। फल-सब्ज़ियों से अलग एक बीज भी ऐसा होता है जिसमें भर-भर के पोषक तत्व होते हैं। इस बीज का नाम है… चिया। चिया बीज (Chia Seedsका नियमित इस्तेमाल हमारे लिए बेहद लाभदायक है। इसके इस्तेमाल से हम कई गंभीर बीमारियों से भी दो-दो हाथ कर सकते हैं। इस लेख में आप इसी चिया बीज(Chia Seedsके बारे में जानेंगे। चिया बीच (Chia Seedsक्या होता है? इसके फ़ायदे क्या-क्या हैं? इस बीज में क्या-क्या पोषक तत्व होते हैं ? यह कहां पाया जाता है ? कैसे इसका इस्तेमाल किया जाता है ? सभी सवालों के जवाब आपको इस लेख में मिलेंगे-

 

Does Eating Too Many Chia Seeds Cause Side Effects?

क्या होता है चिया बीज(Chia Seeds 

दूसरे खाद्य बीजों की तरह ही चिया बीज (Chia Seedsभी होता है। मगर इसके गुणकारी स्वभाव की वजह से इसका इस्तेमाल खाने के लिए होता है।

मिंट प्रजाति का यह स्वादहीन बीज आकार में बेहद छोटा और सफेद, भूरे व काले रंग का होता है। इसकी खासियत होती है कि स्वादहीन होने की वजह से इसमें कीड़े नहीं लगते।

इसका वैज्ञानिक नाम साल्विया हिस्पानिका (Salvia Hispanica) होता है। जिस पेड़ से चिया बीज (Chia Seedsमिलता है, उसे भी साल्विया हिस्पानिका ही कहते हैं।

 

विलायती है चिया बीज (Chia Seeds)

इसकी इतनी सारी खासियतें जानने के बाद आप सोच रहे होंगे कि चिया बीज(Chia Seedsभारत में कहां मिलता है।

तो हम आपको बता दें कि चिया बीज(Chia Seedsएक विलायती उत्पाद है, जिसे आयात किया जाता है।

इसका सबसे ज्यादा उत्पादन अमेरिका में होता है। इसकी उत्पत्ति मैक्सिको व ग्वाटेमाला की मानी जाती है।

अमेरिका के अलावा मेक्सिको व आस्ट्रेलिया में भी चिया बीज(Chia Seedsउगाया जाता है।

भारत में मेक्सिको से इसे आयात किया जाता है।

भारत के कई इलाकों में सब्ज़ा, तुकमलंगा व तकमरिया को भी चिया बीज (Chia Seedsजैसा ही माना जाता है। लेकिन यह गलत है क्योंकि ये तीनों बीज तुलसी के बीज हैं।

 

पोषक तत्वों की खदान है चिया बीज(Chia Seeds)

छोटे से चिया बीज(Chia Seedsमें पोषक तत्वों की पूरी फेहरिस्त है।

इसमें सबसे ज्यादा औमेगा 3 फैटी एसिड पाया जाता है।

इसके अलावा पौटेशियम, फाइबर, कार्बोहायड्रेट, प्रोटीन, जिंक, कॉपर, ओमेगा 6, वसा, सोडियम, तांबा, कैल्शियम, जस्ता, मैंगनीज व फास्फोरस ही नहीं इसमें एंटीसेप्टिक, एंटीफंगल व एंटी-ऑक्सीडेंट जैसे गुण भी चिया बीज (Chia Seedsमें होते हैं।

 

चिया बीज(Chia Seedsके फ़ायदे

  • चिया बीज (Chia Seedsके पोषक तत्वों की लिस्ट आपको ज्यादा लग रही हो तो आपको बता दें कि इसके इस्तेमाल के फ़ायदों की फेहरिस्त इससे भी लंबी है।
  • चिया बीज(Chia Seedsके सेवन से आपका पाचन तंत्र मज़बूत होता है। सूजन की समस्या ने निपटने के लिए इसका प्रयोग होता है।
  • चिया बीज (Chia Seeds) हड्डियों व दातों को मज़बूत बनाता है।
  • इसके अलावा कब्ज़, डायबिटीज़, हाई ब्लड प्रेशर, स्तन कैंसर व हृदय रोग जैसी बीमारियों की रोकथाम में चिया बीज(Chia Seedsसहायक होता है।
  • इसके अलावा चिया बीज(Chia Seedsके सेवन से आपको अच्छी नींद आती है, शरीर में उर्जा बनी रहती है, कोलेस्ट्राल कम रहता है, आपकी इम्यूनिटी मज़बूत होती है और सबसे ज्यादा अच्छी बात वजन कम करने में भी यह सहायक होता है।
  • गर्भावस्था में भी चिया बीज(Chia Seedsके सेवन की सलाह दी जाती है।

 

चिया बीज(Chia Seedsका इस्तेमाल कैसे करें

चिया बीज (Chia Seedsका सेवन नाश्ते में करने की सलाह दी जाती है। इसे दो तरीके से लिया जा सकता है।

पहला है कि आप इसका पाउडर बना लें। उसके बाद इसे गुनगुने दूध या पानी के साथ लें। दही या सूप में मिलाकर इसे खाने के साथ भी खा सकते हैं। उपमा, इडली व पोहे में मिलाकर भी इन्हें लिया जा सकता है।

एक दूसरे तरीके से भी चिया बीज (Chia Seedsको ले सकते हैं। उसके लिए इसे खाने से पहले तीन या चार घंटे पहले इसे पानी में भिगो लें। भीगने के बाद ये जैल जैसे हो जाते हैं जिसे शेक, दूध या जूस में मिलाकर लिया जाता है।

 

 

 

 

 

 

 

 

चिया बीज(Chia Seeds) के नुकसान

इतने सारे गुणों वाले चिया बीज (Chia Seeds) के कुछ नुकसान भी हैं जिन्हें नज़रअंदाज़ नहीं किया सकता है।

इसलिए यदि आप चिया बीज(Chia Seeds) का इस्तेमाल करने की सोच रहे हैं तो पहले इसके नुकसान के बारे में भी जान लें।

  • प्रोस्टेट कैंसर के रोगियों को इनके इस्तेमाल की मनाही है।
  • अगर खून ज्यादा बह रहा हो या आप कोई सर्जरी कराने जा रहे हैं तो चिया बीज(Chia Seedsना लें।
  • खून को पतला करने की दवाइयों के साथ इनका सेवन नहीं किया जाना चाहिए।
  • इनके अत्यधिक इस्तेमाल से आपको खुजली, दस्त व उल्टी जैसे रोग भी हो सकते हैं।

इसलिए सोच समझकर ही चिया बीज(Chia Seedsका इस्तेमाल करें।

 

 

 

 

 

 

 

तो देखा आपने चिया बीज(Chia Seedsहै ना छोटा पैकेट बड़ा धमाका जिसके सेवन से आप अच्छी सेहतमंद ज़िंदगी पा सकते हैं। कुछ सावधानियों को ध्यान में रखते हुए।

हमें उम्मीद है की आपको हमारा यह लेख काफी पसंद आया होगा और आपको चिया बीज(Chia Chia Seeds Benefit Effects and Side Effects ) से जुडे हर प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा और उसके साथ ही अन्य रोचक जानकारियां भी पसंद आई होंगी।

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Ultracet Tablet Effects and Side Effects

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Ultracet Tablet Effects and Side Effects, दर्द निवारक के तौर पर बाज़ार में कई दवाइयां मौजूद हैं। डॉक्टर मरीज की आयु, लिंग व सेहत के मुताबिक उसे दवाई देते हैं। ऐसी ही एक दवा है… एल्ट्रासेट (Ultracet) जो अच्छी दर्द निवारक मानी जाती है। यह कोई एक दवा नहीं है, बल्कि दो दवाओं का मिश्रण है। इस लेख में हम इसी दवा के बारे में बात करेंगे। एल्ट्रासेट (Ultracet) क्या होती है? इसका इस्तेमाल कब और कैसे किया जाता है? इसे इस्तेमाल करने के फायदे और नुकसान क्या हैं? इन सभी सवालों के जवाब हम आपको देने की कोशिश करेंगे।

 

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एल्ट्रासेट (Ultracet) का फ़ॉर्मूला

एल्ट्रासेट (Ultracet) दो दवाओं का मिश्रण है। जिसमें पैरासिटामोल या एसिटामिनोफेन व ट्रामाडोल शामिल हैं।

 

किन बीमारियों में होता है एल्ट्रासेट (Ultracet) का इस्तेमाल 

एल्ट्रासेट (Ultracet) का इस्तेमाल दर्द, पीठ व जोड़ों में दर्द, मासिक धर्म में ऐंठन व दांत दर्द के लिए होता है।

 

कैसे करें एल्ट्रासेट (Ultracet) का उपयोग व सावधानियां

एल्ट्रासेट (Ultracet) को रोज़ाना एक निश्चित समय पर लिया जाता है।

इसे खाने से पहले या बाद में लिया जा सकता है। इसकी खुराक व उपयोग की सही विधि के बारे में चिकित्सक परामर्श आवश्यक है।

अन्य दवाइयों की तरह एल्ट्रासेट (Ultracet) की टेबलैट के निगलने को कहा जाता है।

इसके अलावा इसे पीसकर या कूटकर नहीं लिया जाता। शराब के साथ भी इसके सेवन की मनाही है।

 

कैसे काम करती है एल्ट्रासेट (Ultracet)

जैसा कि हमने आपको बताया कि एल्ट्रासेट (Ultracet) दो दवाओं पैरासिटामोल व ट्रामाडोल का मिश्रण है।

यह दोनों दवाएं दर्द से उत्पन्न होने वाले रसायनों को मस्तिष्क तक पहुंचने से रोकती हैं।

 

एल्ट्रासेट (Ultracet) को कहां स्टोर करें

एल्ट्रासेट (Ultracet) को कमरे के सामान्य तापमान 10 से 30 डिग्री के बीच में रखना चाहिए।

 

 

 

 

 

 

 

 

एल्ट्रासेट (Ultracet) के दुष्प्रभाव (Side-Effects)

एल्ट्रासेट (Ultracet) के सेवन से होने वाले दुष्प्रभाव समय के साथ खुद ही गायब हो जाते हैं। मगर लंबे समय तक दुष्प्रभाव बने रहें या इनका असर ज्यादा हो तो डॉक्टर की सलाह लें। एल्ट्रासेट (Ultracet) के सेवन से होने वाले साइड इफैक्ट्स कुछ इस प्रकार हैं-

  1. मितली व चक्कर आना
  2. कमज़ोरी
  3. नींद आना
  4. मुंह में सूखापन
  5. कब्ज़ व उल्टी

 

किन मरीजों के लिए नहीं है एल्ट्रासेट (Ultracet)

कुछ रोगियों को एल्ट्रासेट (Ultracet) के इस्तेमाल से पहले सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है, जिनपर इस दवाई के दुष्परिणाम देखने को मिल सकते हैं। जिन मरीजों को एल्ट्रासेट (Ultracet) का सेवन नहीं करना चाहिए, वह इस प्रकार हैं –

  1. गर्भवती महिलाएं
  2. स्तनपान करवाने वाली महिलाएं
  3. किडनी की समस्या से पीड़ित मरीज़
  4. लिवर की समस्या वाले मरीज़

 

एल्ट्रासेट (Ultracet) के विकल्प

एल्ट्रासेट (Ultracet Tablet Effects and Side Effects) के कई विकल्प भी बाज़ार में मौजूद हैं।

यह दवाएं आप डॉक्टर की सलाह पर एल्ट्रासेट (Ultracet) के स्थान पर ले सकते हैं।

सबसे अच्छी बात है कि एल्ट्रासेट (Ultracet) से यह दवाएं सस्ती भी हैं। जहां एल्ट्रासेट (Ultracet) की एक टैबलेट की कीमत साढ़े 14 रुपए से भी ज्यादा है। वहीं विकल्प के तौर पर मौजूद दवाएं 5 रुपए से 7 रुपए प्रति टेबलैट की दर से उपलब्ध हैं।

एल्ट्रासेट (Ultracet) के विकल्प के तौर पर आप जिन दवाओं को ले सकते हैं, वो इस प्रकार है-

  1. टोलीडोल
  2. पीटी 325
  3. कलपोल
  4. रैम्सैट टैबलेट
  5. डोलोनैट

 

 

 

 

 

 

 

अंतिम शब्द

दर्द निवारक दवा के तौर पर एल्ट्रासेट (Ultracet) एक अच्छा विकल्प है।

इसमें दो दर्द निवारक दवाओं के मिश्रण हैं। जिसकी वजह से थोड़ी मंहगी होने के बाद भी इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि यह ज्यादा असरदार भी होगी।

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