चौधरी चरण सिंह भारत के सातवें प्रधानमन्त्री थे। उन्होंने यह पद २८ जुलाई १९७९ से १४ जनवरी १९८० तक सम्भाला। चौधरी चरण सिंह ने अपना सम्पूर्ण जीवन भारतीयता और ग्रामीण परिवेश की मर्यादा में जिया। चरण सिंह किसानों की आवाज़ बुलन्द करने वाले प्रखर नेता माने जाते थे। चौधरी चरण सिंह का प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल 28 जुलाई, 1979 से 14 जनवरी, 1980 तक रहा। यह समाजवादी पार्टी तथा कांग्रेस (ओ) के सहयोग से देश के प्रधानमंत्री बने। इन्हें ‘काँग्रेस इं’ और सी. पी. आई. ने बाहर से समर्थन दिया, लेकिन वे इनकी सरकार में सम्मिलित नहीं हुए। इसके अतिरिक्त चौधरी चरण सिंह भारत के गृहमंत्री (कार्यकाल- 24 मार्च 1977 – 1 जुलाई 1978), उपप्रधानमंत्री (कार्यकाल- 24 मार्च 1977 – 28 जुलाई 1979) (Charan Singh Biography in Hindi) और दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे। चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसम्बर, 1902 को उत्तर प्रदेश के मेरठ ज़िले के नूरपुर ग्राम में एक मध्यम वर्गीय कृषक परिवार में हुआ था। इनका परिवार जाट पृष्ठभूमि वाला था। इनके पुरखे महाराजा नाहर सिंह ने 1887 की प्रथम क्रान्ति में विशेष योगदान दिया था। महाराजा नाहर सिंह वल्लभगढ़ के निवासी थे, जो कि वर्तमान में हरियाणा में आता है। महाराजा नाहर सिंह को दिल्ली के चाँदनी चौक में ब्रिटिश हुकूमत ने फ़ाँसी पर चढ़ा दिया था।
तब अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ क्रान्ति की ज्वाला को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए महाराजा नाहर सिंह के समर्थक और चौधरी चरण सिंह के दादा जी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर ज़िले के पूर्ववर्ती क्षेत्र में निष्क्रमण कर गए। चौधरी चरण सिंह को परिवार में शैक्षणिक वातावरण प्राप्त हुआ था। स्वयं इनका भी शिक्षा के प्रति अतिरिक्त रुझान रहा। चौधरी चरण सिंह के पिता चौधरी मीर सिंह चाहते थे कि उनका पुत्र शिक्षित होकर देश सेवा का कार्य करे।
उनकी प्राथमिक शिक्षा नूरपुर में ही हुई और उसके बाद मैट्रिकुलेशन के लिए उनका दाखिला मेरठ के सरकारी हाई स्कूल में करा दिया गया। सन 1923 में में चरण सिंह ने विज्ञान विषय में स्नातक किया और दो वर्ष बाद सन 1925 में उन्होंने ने कला वर्ग में स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके पश्चात उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से क़ानून की पढ़ाई की और फिर विधि की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद सन 1928 में गाज़ियाबाद में वक़ालत आरम्भ कर दिया। वकालत के दौरान वे अपनी ईमानदारी, साफगोई और कर्तव्यनिष्ठा के लिए जाने जाते थे। चौधरी चरण सिंह उन्हीं मुकदमों को स्वीकार करते थे जिनमें मुवक्किल का पक्ष उन्हें न्यायपूर्ण प्रतीत होता था।
कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन (1929) के बाद उन्होंने गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी का गठन किया और सन 1930 में सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान ‘नमक कानून’ तोड़ने चरण सिंह को 6 महीने की सजा सुनाई गई। जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने स्वयं को देश के स्वतन्त्रता संग्राम में पूर्ण रूप से समर्पित कर दिया। सन 1937 में मात्र 34 साल की उम्र में वे छपरौली (बागपत) से विधान सभा के लिए चुने गए और कृषकों के अधिकार की रक्षा के लिए विधानसभा में एक बिल पेश किया। यह बिल किसानों द्वारा पैदा की गयी फसलों के विपड़न से सम्बंधित था। इसके बाद इस बिल को भारत के तमाम राज्यों ने अपनाया।
चरण सिंह का जन्म एक जाट परिवार मे हुआ था। स्वाधीनता के समय उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। स्वतन्त्रता के पश्चात् वह राम मनोहर लोहिया के ग्रामीण सुधार आन्दोलन में लग गए। बाबूगढ़ छावनी के निकट नूरपुर गांव, तहसील हापुड़, जनपद गाजियाबाद, कमिश्नरी मेरठ में काली मिट्टी के अनगढ़ और फूस के छप्पर वाली मढ़ैया में 23 दिसम्बर,1902 को आपका जन्म हुआ। चौधरी चरण सिंह के पिता चौधरी मीर सिंह ने अपने नैतिक मूल्यों को विरासत में चरण सिंह को सौंपा था। चरण सिंह के जन्म के 6 वर्ष बाद चौधरी मीर सिंह सपरिवार नूरपुर से जानी खुर्द गांव आकर बस गये थे।
यहीं के परिवेश में चौधरी चरण सिंह के नन्हें ह्दय में गांव-गरीब-किसान के शोषण के खिलाफ संघर्ष का बीजारोपण हुआ। आगरा विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा लेकर 1928 में चौधरी चरण सिंह ने ईमानदारी, साफगोई और कर्तव्यनिष्ठा पूर्वक गाजियाबाद में वकालत प्रारम्भ की। वकालत जैसे व्यावसायिक पेशे में भी चौधरी चरण सिंह उन्हीं मुकद्मों को स्वीकार करते थे जिनमें मुवक्किल का पक्ष न्यायपूर्ण होता था। कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन 1929 में पूर्ण स्वराज्य उद्घोष से प्रभावित होकर युवा चरण सिंह ने गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी का गठन किया।
1930 में गांधीजी द्वारा चलाये गये “सविनय अवज्ञा आन्दोलन” में नमक कानून तोड़ने का आव्हान किया, चरण सिंह ने गाजियाबाद की सीमा पर बहने वाली हिंडन नदी पर नमक बनाया था एवम “डांडी मार्च” में भी भाग लिया. इस दौरान इन्हें 6 माह के लिए जैल भी जाना पड़ा. इसके बाद इन्होने महात्मा गाँधी जी की छाया में खुद को स्वतन्त्रता की आँधी का हिस्सा बनाया . 1940 के सत्याग्रह आन्दोलन में भी यह जेल गए उसके बाद 1941 में बाहर आये. फरवरी 1937 में इन्हें विधानसभा के लिए चुना गया .
31 मार्च 1938 में इन्होने “कृषि उत्पाद बाजार विधेयक” पेश किया यह विधेयक किसानों के हित में था, यह विधेयक सर्वप्रथम 1940 में पंजाब द्वारा अपनाया गया. आजादी के बाद, चरण सिंह 1952 में, उत्तरप्रदेश के राजस्व मंत्री बने एवम किसानों के हित में कार्य करते रहे, इन्होने 1952 में “जमींदारी उन्मूलन विधेयक ” पारित किया. इस विधेयक के कारण 27000 पटवारियों ने त्याग पत्र दे दिया . जिसे इन्होने निडरता के साथ स्वीकार किया एवम किसानों को पटवारी के आतंकी वातावरण से आजाद किया और स्वम् ने ‘लेखपाल ’ पद का भर सम्भाला और नए पटवारी नियुक्त किये जिसमे 18% हरिजनों के लिए आरक्षित किया गया.
1940 के सत्याग्रह आन्दोलन में भी यह जेल गए उसके बाद 1941 में बाहर आये . फरवरी 1937 में इन्हें विधानसभा के लिए चुना गया . 31 मार्च 1938 में इन्होने “कृषि उत्पाद बाजार विधेयक” पेश किया यह विधेयक किसानों के हित में था, यह विधेयक सर्वप्रथम 1940 में पंजाब द्वारा अपनाया गया. सन् १९३९ में ऋण विमोचक विधेयक पास करवाकर किसानों के खेतों की निलामी बचवायी और सरकारी ऋणों से मुक्ति दिलायी। हम आज आरक्षण प्राप्ति पर खुशियां मना रहे। आपने १९३९ में ही किसान सन्तान केा सरकारी नौकरियों में ५० फिसदी आरक्षण दिलाने का लेख लिखा था परन्तु तथाकथित राष्ट्रवादी कांग्रेसियों के विरोध के कारण इसमें सफलता नहीं मिल पाई।
इससे स्पष्ट हो जाता है कि वह किसानों के सच्चे हितैषी थे।सन् १९३९ में अपाने किसानों को इजाफा-लगान व बेदखली के अभिशाप से मुक्ति दिलाने हेतु ‘‘भूमि उपयोग बिल‘‘ का मसौदा तैयार करवाया और १९५२ में जमींदारी उन्मूलन अधिनियम पास करवाकर एक प्रशंसनीय कार्य किया।आपने किसानों की प्रगति हेतु जो कार्य किए हैं वे एक अनूठी मिशाल है जो आज तक कोई किसान नेता नहीं कर पाया है और भविष्य में ऐसे हितैषी की उम्मीद नहीं के बराबर है।आपने किसानों के साथ-साथ छात्र समाज में अनुशासनहीनता को बिना लाठी गोली के मिटाया सरकारी अधिकारियों से रिश्वतखोरी मिटाने, प्रशासन में कमखर्ची व कुशलता लाने और देश की गरीबी व बेकारी हटाने के लिए अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया था।
सन् १९६९ में उत्तर प्रदेश में विधानसभा के मध्यावधि चुनावों में ९८ सीटों पर विजय प्राप्त करके १९७० में पुनः उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और १९७४ में २९ अगस्त को लोकदल का गठन किया। १९७५ में इमरजेंसी के दौरान आपको गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया। १९७७ में जनतापार्टी के गठन में मुख्य भूमिका निभाकर लोकसभा के लिए प्रथम बार निर्वाचित हुए और जनता पार्टी सरकार में आप गृहमंत्री बने। ३० जून १९७८ केा प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के साथ मतभेद होने के कारण मंत्री मण्डल से त्याग पत्र दे दिया। जब वह देहरादून में चुनावी सभा को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने आम जनता से कहा था कि हमारी पार्टी ने सभी उम्मीदवारों को देख परखकर चुना है। अगर आप जनता में से किसी को ऐसा लगता है कि उनका कोई उम्मीदवार हाथ और लंगोट का कच्चा है तो उसे कभी वोट नहीं करना। ऐसा कभी किसी प्रधानमंत्री ने अपने उम्मीदवारों के लिए के लिए आज तक नहीं कहा। बड़ौत में सभा को संबोधित करने के बाद उनके पास शिक्षकों का एक दल पहुंचा। उन्होंने अपने-अपने ग्रेड के हिसाब से सैलरी बढ़ाने की बात कही। तब चौधरी जी ने पूछा कि आप कितने घंटे स्कूल में पढ़ाते हैं।
शिक्षकों का जवाब था कि 6 घंटे। तब उन्होंने शिक्षकों से कहा था देश का जवान आपसे कम सैलरी पर 24 घंटे ड्यूटी करता है। इसलिए 24 घंटे के हिसाब से आपकी सैलरी में कटौती कर देता हूं। उसके बाद सभी शिक्षक माफी मांगते हुए वहां से लौट आए थे। भारत में, चौधरी चरण सिंह का जन्मदिन ‘राष्ट्रीय किसान दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष 23 दिसम्बर को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और किसान नेता चौधरी चरण सिंह के जन्मदिन के अवसर पर राष्ट्रीय किसान दिवस मनाया जाता है।
• असली भारत गांवों में रहता है.
• अगर देश को उठाना है तो पुरुषार्थ करना होगा … हम सब को पुरुषार्थ करना होगा मैं भी अपने आपको उसमें शामिल करता हूँ … मेरे सहयोगी मिनिस्टरों को, सबको शामिल करता हूँ … हमको अनवरत् परिश्रम करना पड़ेगा … तब जाके देश की तरक्की होगी.
• राष्ट्र तभी संपन्न हो सकता है जब उसके ग्रामीण क्षेत्र का उन्नयन किया गया हो तथा ग्रामीण क्षेत्र की क्रय शक्ति अधिक हो.
• किसानों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होगी तब तक देश की प्रगति संभव नहीं है.
• किसानों की दशा सुधरेगी तो देश सुधरेगा.
• किसानों की क्रय शक्ति नहीं बढ़ती तब तक औधोगिक उत्पादों की खपत भी संभव नहीं है.
• भ्रष्टाचार की कोई सीमा नहीं है जिस देश के लोग भ्रष्ट होंगे वो देश कभी, चाहे कोई भी लीडर आ जाये, चाहे कितना ही अच्छा प्रोग्राम चलाओ … वो देश तरक्की नहीं कर सकता.
• हरिजन लोग, आदिवासी लोग, भूमिहीन लोग, बेरोजगार लोग या जिनके पास कम रोजगार है और अपने देश के 50% फीसदी किसान जिनके पास केवल 1 हैक्टेयर से कम जमीन है … इन सबकी तरफ सरकार विशेष ध्यान होगा.
• सभी पिछड़ी जातियों, अनुसूचित जातियों, कमजोर वर्गों, अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जनजातियों को अपने अधिकतम विकास के लिये पूरी सुरक्षा एवं सहायता सुनिश्चित की जाएगी.
• किसान इस देश का मालिक है, परन्तु वह अपनी ताकत को भूल बैठा है.
• देश की समृद्धि का रास्ता गांवों के खेतों एवं खलिहानों से होकर गुजरता है.
चौधरी चरण सिंह का निधन 1987 में हुआ. दिल्ली में यमुना के किनारे उनकी समाधि है जिसे किसान घाट के तौर पर जाना जाता है. उनके निधन के बाद लोक दल का नया अध्यक्ष उनके बेटे अजित सिंह को बनाया गया. इसी लोक दल के सहारे उनके बेटे आज राजनीति के मैदान में हैं. देश में अनेक सरकार संस्थान चौधरी चरण सिंह के नाम से हैं. लखनऊ का अमौसी एयरपोर्ट को भी चौधरी चरण सिंह अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट कहा जाता है. मेरठ में भी उनके नाम से चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय है. श्री चौधरी चरण सिंह ने अत्यंत साधारण जीवन व्यतीत किया और अपने खाली समय में वे पढ़ने और लिखने का काम करते थे। उन्होंने कई किताबें एवं रूचार-पुस्तिकाएं लिखी जिसमें ‘ज़मींदारी उन्मूलन’, ‘भारत की गरीबी और उसका समाधान’, ‘किसानों की भूसंपत्ति या किसानों के लिए भूमि, ‘प्रिवेंशन ऑफ़ डिवीज़न ऑफ़ होल्डिंग्स बिलो ए सर्टेन मिनिमम’, ‘को-ऑपरेटिव फार्मिंग एक्स-रयेद्’ आदि प्रमुख हैं।
Charan Singh Biography in Hindi Charan Singh Biography in Hindi Charan Singh Biography in Hindi Charan Singh Biography in Hindi Charan Singh in Hindi Charan Singh story in Hindi Charan Singh essay in Hindi Charan Singh history in Hindi Charan Singh story in Hindi Charan Singh essay in Hindi Charan Singh history in Hindi Charan Singh story in Hindi Charan Singh essay in Hindi Charan Singh history in Hindi Charan Singh story in Hindi Charan Singh essay in Hindi Charan Singh history in Hindi Charan Singh story in Hindi Charan Singh essay in Hindi Charan Singh history in Hindi