दलाई लामा का जीवन परिचय (Dalai Lama Biography in Hindi) तिब्बत और भारत के नाम के साथ जो एक महत्वपूर्ण नाम ध्यान में आता हैं वो नाम दलाई लामा हैं. दलाई लामा को तिब्बत में बौद्धिसत्व का संत माना जाता हैं, बौधिसत्वा का आभास उन्हें होता हैं, जिसे दुनिया में मानवता की रक्षा के लिए भेजा गया हो. तेनजिन ग्यास्तो (Tenzin Gyatso) बौद्ध धर्म में 14वे दलाई लामा हैं जो कि वर्तमान में तिब्बत में आध्यात्म गुरु हैं. “दलाई” एक मंगोलियन शब्द हैं जिसका मतलब “सागर” होता हैं जबकि “लामा” एक संस्कृत शब्द हैं जिसका अर्थ “गुरु” होता हैं, इस तरह दलाई लामा का अर्थ “गुरु सागर” हुआ, मतलब जिसके पास सागर के जितना गहरा ज्ञान हो.
क्र. म.
(s.No.) |
परिचय बिंदु (Introduction Points) | परिचय (Introduction) |
1. | पूरा नाम ((Full Name) | जम्फेल नगवांग लोब्सेंग येशे तेनजिन ग्यास्तो |
2. | जन्म दिन(Birth Date) | 6 जुलाई 1935
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3. | जन्म स्थान (Birth Place) | उत्तर पूर्व तिब्बत में स्थित आमदो, ताक्त्सेर |
4. | पेशा (Profession) | बौद्ध संत, आध्यात्मिक गुरु |
5. | राजनीतिक पार्टी (Political Party) | निष्कासित तिब्बतीयों की रिपब्लिकन पार्टी |
6. | अन्य राजनीतिक पार्टी से संबंध (Other Political Affiliations) | – |
7. | राष्ट्रीयता (Nationality) | – |
8. | उम्र (Age) | 84 वर्ष |
9. | गृहनगर (Hometown) | तिब्बत |
10. | धर्म (Religion) | बौद्ध |
11. | जाति (Caste) | – |
12. | वैवाहिक स्थिति (Marital Status) | अविवाहित |
13. | राशि (Zodiac Sign) | कैंसर |
दलाई लामा का प्रारंभिक जीवन (Dalai Lama’s Early Life)
दलाई लामा के जन्म के समय उनके गाँव ताक्त्सेर (Taktser) में केवल 20 परिवार रहते थे. दलाई लामा के अभिभावक किसान थे और भेड़-बकरियां चराकर अपना गुजारा करते थे, वो बाजरा, आलू और अनाज की खेती करते थे. ल्हामो के अतिरिक्त उनके परिवार में 6 अन्य बच्चे भी थे जिनमें 4 लड़के और 2 लड़कियां शामिल थी.
दलाई लामा का इतिहास (The Dalai Lama’s History)
- दलाई लामा को 14 वी शताब्दी से गेलुग्पा बुद्धिज्म का मुखिया मानते हैं, जिसका मतलब पीली हेट होता हैं. 17वीं शताब्दी से दलाई लामा पर राजनैतिक जिम्मेदारियां भी आ गयी, उस समय से लामा दोहरी जिम्मेदारी निभा रहे हैं. तात्कालीन दलाई लामा 14 वे दलाई लामा हैं. दलाई लामा के नियुक्ति की प्रक्रिया में अब तक किसी तरह की रुकावट नहीं आई हैं. तिब्बत के लोग विश्वास करते हैं कि जब भी किसी दलाई लामा की मृत्यु होती हैं तो तुरंत ही तिब्बत में कही और दलाई लामा का जन्म हो जाता हैं, मतलब दलाई लामा की आत्मा वो ही होती हैं जो पहले लामा की रही हैं, आत्मा नष्ट नहीं होती, ये अमर हैं और शरीर बदलती रहती हैं.
- उन्हें कैसे खोजा गया (How he was discovered) : वर्तमान दलाई लामा से पहले वाले दलाई लामा यानि कि 13वें दलाई लामा ने सन 1933 को स्वर्ग में वास किया था. उनके देहांत के समय बौद्धों ने अगले दलाई लामा को खोजने के लिए प्रार्थना की और उन्होंने अपनी प्रार्थनाओं और शक्तियों से नए दलाई लामा के चिन्ह खोजने शुरू किये जो उन्हें नये दलाई लामा तक ले जा सकते थे, अंतत: उन्हें नये दलाई लामा के तिब्बत के उत्तरी पूर्वी भाग में होने का आभास हुआ, और ये प्रतीत हुआ कि दलाई लामा मठ के पास किसी अजीब सी जगह पर रह रहे हैं. बहुत सारे बौद्ध यात्रा पर निकल गए और काफी खोजने के बाद उन्हें ल्हामो धोंडअप (Lhamo Dhondup) का घर मिला था, वहां उन्होंने ल्हामो से और उसके अभिभावकों से बात की और ल्हामो की परीक्षा ली, बौद्ध अपने साथ मठ से बहुत तरह की वस्तुएं लाये थे जिनमें कुछ तो 13 वे दलाई लामा की वस्तुएं थी. मात्र 2 वर्षीय ल्हामो ने 13 वे दलाई लामा की वस्तुओं को पहचान लिया और बौद्ध संतों को समझ आ गया कि उन्हें उनका अगला दलाई लामा मिल गया हैं, इस तरह 13 वे दलाई लामा थुबटेन ग्यास्तो के बाद अगले दलाई लामा की खोजने की प्रक्रिया समाप्त हुयी.
दलाई लामा की शिक्षा (Dalai Lama’s Education)
- बौद्ध ल्हामो को तिब्बत के कुम्बुम के मठ में लेकर गए, जहां अगले 2 वर्ष तक उसे देश के लिए आवश्यक आध्यात्मिक और राजनैतिक शिक्षा दी गयी. इसके बाद उन्हें ल्हासा राजधानी के पोटाला पैलेस लाया गया, पोटाला पैलेस पहाड़ों में स्थित एक हजार से ज्यादा कमरों का बना महल है. यहाँ उन्हें सिंह आसन दिया गया, जो कि बहुत से गहनों से सजा लकड़ी का आसन था.
- 22 फरवरी 1940 को जब वो केवल 4 वर्ष के थे तब संतों ने उन्हें नया दलाई लामा घोषित कर दिया और उनका नया नाम जम्फेल नगवांग लोब्सेंग येशे तेनजिन ग्यास्तो (Jamphel Ngawang Lobsang Yeshe Tenzin Gyatso) रखा गया. हालांकि उनका छोटा नाम “तेनजिन ग्यास्तो” ही ज्यादा प्रचलित हुआ,
- पोटाला पैलेस में संतों ने लामा को निजी दिशा-निर्देश दिए, कि उनके साथ उनका सहपाठी केवल उनका भाई हो सकता था. परम्परा के अनुसार जब युवा दलाई लामा कोई गलती करते तो उनके भाई को सजा दी जाती. समय के साथ लामा ने लेखन, इतिहास, धर्म, दर्शन-शास्त्र, तिब्बती दवाइयां, आर्ट, संगीत, साहित्य और बहुत से सब्जेक्ट्स का अध्ययन किया.
- दलाई लामा की 6 वर्ष की उम्र में अध्ययन की औपचारिक शिक्षा शुरू हुयी थी. उनकी शिक्षा में नालंदा परम्परा के अनुसार 6 मेजर और 6 माइनर विषय थे. मेजर सब्जेक्ट में लॉजिक, फिने आर्ट्स, संस्कृत व्याकरण और मेडिसिन शामिल थे, लेकिन सबसे ज्यादा ध्यान बुद्धिस्ट दर्शनशास्त्र पर दिया जाता था और इसे 5 केटेगरी में बांटा गया था प्रजानापरामिता (Prajnaparamita) – परफेक्शन ऑफ़ विजडम, मध्यमिका- मध्य के मार्ग की फिलोसोफी (philosophy of the middle Way), विनय-मत के अनुशासन (the canon of monastic discipline), अबिधर्म (Abidharma) – मेटाफिजिक्स और प्रमाण- तर्क और महामारी विज्ञान (logic and epistemology). इसके अलावा माइनर विषयों में कविता, ड्रामा, ज्योतिष विज्ञान, रचना और पर्यायवाची शामिल किये गये थे.
- दलाई लामा को यांत्रिकी वस्तुएं काफी पसंद थी, उन्होंने टेलिस्कोप के साथ बहुत सा समय बिताया था. उन्हें घड़ियां और अन्य मशीनी उपकरण खोलकर फिर से सही करना अच्छा लगता था. उस समय पूरे तिब्बत मे केवल चार कार थी जिनमे से 3 कार 13वें दलाई लामा की थी, तेनजिन ग्यास्तो को इंजन के साथ काम करना और कार चलाना बेहद पसंद था.
- 23 की उम्र में उन्होंने ल्हासा के जोखन मंदिर में वार्षिक महान प्रार्थना के उत्सव में फाइनल एग्जाम दिया था, जिसमें वो ऑनर्स के साथ पास हुए और उन्हें गेशे ल्हारम्पा डिग्री से नवाजा गया जो कि बुद्धिस्ट समुदाय में सबसे ऊंची और डोक्टोरेट के समान होती हैं.
दलाई लामा और तिब्बत की राजनीति (Dalai Lama and Tibbetan’s Politics)
नवम्बर 1950 में दलाई लामा को तिब्बत में राजनैतिक अधिकार मिले, उस समय चायनीज कम्युनिस्ट आर्मी ने देश में घुसपैठ की हुई थी. कम्युनिस्टों के अनुसार सम्पति किसी एक व्यक्ति की नहीं होनी चाहिए, बल्कि ये सबके लिए उपलब्ध होनी चाहिए, कम्युनिस्टों का ये भी कहना था कि सब कुछ सरकार के अधीन होना चाहिए. उस समय दलाई लामा मात्र 15 वर्ष के थे और देश पर आई इस विपदा को वे बखूबी संभालने की कोशिश कर रहे थे.
दलाई लामा का नेतृत्व और जिम्मेदारियां (Leadership Responsibilitiesof Dalai Lama)
- 1950 में तिब्बत में चायना की घुसपैठ के बाद उन्हें न चाहते हुए भी राजनीति में आना पड़ा, लेकिन इससे पहले 1949 में द्वितीय विश्व युद्ध की हार के बाद से चायना एक कम्युनिस्ट देश बन गया था और 1950 के प्रारंभ में लगभग 80 हजार चायनीज सैनिक तिब्बत में प्रवेश कर गए और चायना ने तिब्बत पर अपने अधिकार का दावा भी किया.
- दलाई लामा ने चायना का दौरा किया और वहां के प्रशासन से तिब्बत छोड़ने का कहा, लेकिन वो नहीं माने इसके अलावा लामा ने कुछ पडोसी देशों से भी घुसपैठ को हटाने में मदद करने की मांग की, अन्य देश चायना से डर गए और वे लामा की ज्यादा मदद नहीं कर सके.
- 1954 में वो बीजिंग गये और वहां उन्होंने माओ ज़ेडोंग और देंग जिओपिंग (Deng Xiaoping) और चौ एनलाई (Chou Enlai) जैसे अन्य चायनीज नेताओं से बात की.
- इसके बाद बहुत वर्षों तक चायना द्वारा अपने लोगों को प्रताड़ित होते देखने और ल्हासा में चायनीज फ़ौज द्वारा तिब्बतियों के राष्ट्रीय विरोध को दबाने के बाद अप्रैल 1959 में लामा भारत के लिए रवाना हो गए, तब से वो भारत के धर्मशाला में रह रहे हैं.
- उनके निर्वासन के दौरान तिब्बत के लिए परम-पूज्य दलाई लामा ने यूनाइटेड नेशन में आवाज़ उठायी. जनरल असेम्बली ने तिब्बत में 1959, 1961 और 1965 में तीन प्रस्ताव दिए.
- 1963 में परम पूज्य ने तिब्बत के लिए डेमोक्रटिक संविधान दिया, जिसके कारण तिब्बत में प्रशासन के साथ ही बड़ा जनतांत्रिक सुधार हुआ, इस नए लोकतान्त्रिक संविधान को निष्कासन के दौरान तिब्बतियों का घोषणा पत्र कहा गया. इस घोषणापत्र में अभिव्यक्ति, विश्वास और असेम्बली की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करता हैं. यह तिब्बत से निर्वासित लोगों के लिए गाइडलाइन भी हैं.
- 21 सितम्बर 1987 को यूनाइटेड स्टेट्स कांग्रेस में अपने भाषण के दौरान दलाई लामा ने तिब्बत के लिए 5 सूत्रीय शांति प्रस्ताव रखा और तिब्बत की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए पहला कदम बढाया था. ये 5 सूत्रीय प्रस्ताव निम्न था.
- सम्पूर्ण तिब्बत को शान्त-क्षेत्र में परिवर्तित किया जाए.
- चायना की जनसंख्या को ट्रांसफर की नीति को समाप्त किया जाये जिसके कारण तिब्बत की जनसंख्या पर गलत प्रभाव पड रहा हैं.
- तिब्बत के लोगों और उनके मौलिक एवं लोकतांत्रिक अधिकारों का सम्मान किया जाए.
- तिब्बत के प्राकृतिक वातावरण को संरक्षित किया जाए और चायना द्वारा तिब्बत में परमाणु हथियारों के प्रयोग और इसके कचरे को फैकने से रोका जाए.
- तिब्बत के भविष्य को देखते हुए तिब्बत और चायना के लोगों के मध्य में शान्ति एवं संवाद स्थापित करने की कोशिश की जाए.
- 15 जून 1988 को स्ट्रासबर्ग में यूरोपियन पार्लियामेंट के सदस्यों को संबोधित करते हुए उन्होंने अपने पांच सूत्रिय शान्ति प्रस्ताव को फिर से समझाया था. उन्होंने चायनीज और तिब्बत के मध्य वार्ता का प्रस्ताव रखा था जिससे तिब्बत के तीनों प्रोविंसेज में डेमोक्रेटिक पोलिटिकल पार्टी का शासन हो सके. यह रिपब्लिक ऑफ़ चायना के लोगों की सहायता से सम्भव हैं और यहाँ पर चायना की सरकार विदेश नीति और रक्षा के लिए जिम्मेदार होगी.
- मई 1990 में दलाई लामा के सुधार कार्यों के लिए तिब्बत का निष्कासन पूरी तरह से लोकतान्त्रिक हो गया, तिब्बत का मंत्रिमंडल (कशाग) जो कि तब तक दलाई लामा द्वारा नियुक्त था, उन्हें भी तिब्बत से निष्कासन में पार्लियामेंट में शामिल कर लिया गया. उसी वर्ष भारत और 33 से अधिक देशों में रह रहे निष्कासित तिब्बतियों ने ग्यारहवीं तिब्बत असेम्बली के लिए एक व्यक्ति-एक वोट के आधार पर चुना, और इस असेम्बली ने नए कैबिनेट के लिए सदस्य चुने.
- 1992 में सेंट्रल तिब्बत एडमिनीस्ट्रेशन ने भविष्य के स्वतंत्र तिब्बत के लिए गाइडलाइन पब्लिश की हैं, जिसमें साफ़ कहा गया हैं कि तिब्बत के स्वतंत्र होते ही पहला टास्क अंतरिम सरकार बनाना होगा जिसकी जिम्मेदारी होगी कि वो संविधान सभा बनाये और देश में लोकतंत्र एवं संविधान बनाये, दलाई लामा ने ये आशा जताई हैं कि भविष्य के तिब्बत में तीन पारम्परिक प्रोविंस होंगे यु-संग (U-Tsang,), आमदो (Amdo) और खाम (Kham,) जिनमे संघीय और लोकतांत्रिक प्रशासनिक व्यवस्था होगी.
- सितम्बर 2001 में जनतंत्रात्मक तिब्बत इलेक्टोरेट की तरफ कदम बढाते हुए सीधे मंत्रिमंडल के अध्यक्ष कालोन त्रिपा (Kalon Tripa ) को चुन लिया. कालोन ने अपना मंत्रिमंडल खुद चुना जिसे तिब्बतन असेम्बली को एप्रूव करना पड़ा. तिब्बत के इतिहास में ये पहली बार था जब लोगों ने अपने राजनेता को खुद को चुना था. कालोन ट्रिपा के चुनाव के बाद दलाई लामा द्वारा तिब्बत में चलायी जाने वाली आध्यात्मिक और अस्थायी शक्ति समाप्त हो गयी.
दलाई लामा की राजनैतिक सेवानिवृति (Dalai Lama Political Retirement)
- 1969 में दलाई लामा ने ये स्पष्ट किया था कि दलाई लामा की पहचान और इनके पुनर्जन्म को मान्यता देनी चाहिए या नहीं, ये पूरी तरह से तिब्बती, मंगोलियन और हिमालयी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का निर्णय होना चाहिए.
- 14 मार्च 2011 को दलाई लामा को निष्कासित तिब्बत पार्लियामेंट की जिम्मेदारी से मुक्त करने का आग्रह किया, क्योंकि निष्कासित तिब्बती घोषणा-पत्र के अनुसार वो तब भी राज्य के मुखिया थे. उन्होंने घोषणा की कि वो दलाई लामा के पास रहने वाली आध्यात्मिक और राजनैतिक शक्तियों की परम्परा को समाप्त कर देंगे, हालांकि उस समय किसी भी तरह के स्पष्ट दिशा-निर्देश ना होने के कारण ये रिस्की था कि भविष्य के दलाई लामा के पहचान में राजनैतिक हित भी छूपे हो सकते हैं.
- 29 मई 2011 को दलाई लामा ने लोकतान्त्रिक रूप से चुने गए नेता को अस्थायी नियुक्ति दे दी. और इस तरह उन्होंने औपचारिक तौर पर 368 वर्षों से तिब्बत में आध्यात्मिक और राजनैतिक मुखिया के तौर पर दलाई लामा के काम करने की परम्परा को पूर्ण विराम दिया.
- 24 सितम्बर 2011 को अगले दलाई लामा की पहचान सम्बंधित स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किये गये जिससे भविष्य में किसी भी तरह के धोखे और संशय की संभावना ना रहे. उन्होंने स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा कि पहले चार दलाई लामा केवल आध्यात्मिक मामलों में ही नियुक्त रहेंगे. उन्होंने ये भी सुनिश्चित किया कि लोकतांत्रिक रूप से चुने हुए नेता को ही तिब्बत की राजनैतिक जिमेदारियां सौंपी जायेगी. दलाई लामा का घर गादेन फोड़रेंग (Gaden Phodrang) केवल इस कार्य को पूरा करेगा.
- दलाई लामा ने ये घोषणा की कि जब वो 90 वर्ष के होंगे तब वो तिब्बत के बुद्धिस्ट परम्पराओं वाले मठों के प्रमुख लामाओं से, तिब्बत की जनता से और बुद्धत्व में रूचि रखने वाले तिब्बत के अन्य प्रबुद्ध जनों से बात करके ये निर्णय करेंगे कि दलाई लामा के बाद भी संस्था को रखना चाहिए या नहीं, उनके इस वक्तव्य से बहुत से अर्थ निकाले गये, यदि 15 वां दलाई लामा पहचाना जाता हैं तो उसकी प्राथमिक जिम्मेदारी दलाई लामा के गाडेन फोद्रेंग ट्रस्ट (Gaden Phodrang Trust) को सम्भालने की होगी. उन्हें तिब्ब्ती बौद्ध परम्पराओं के विभिन्न मुखियाओं, दलाई लामा की वंश-परम्परा से जुड़े और धर्म का संरक्षण करने वाले सभी व्यक्तियों से सलाह-मशवरा करना होगा. वो इन सबसे किसी भी मामले में सलाह ले सकते हैं, लामा ने ये भी कहा कि वो इस सन्दर्भ में लिखित नियम बनाकर रखेंगे. उन्होंने ये भी कहा कि पारम्परीक तरीकों से चुनाव की प्रकिया के अतिरिक्त कोई भी प्रक्रिया मान्य नहीं होगी क्योंकि पीपल्स रिपब्लिक चायना के एजेंट भी अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए दलाई लामा चुन सकते हैं.
- जब से परम पूज्य ने अपनी राजनातिक शक्तियाँ चुने हुए प्रतिनिधयों को सौंपी हैं तब से वो खुदको सेवानिवृत मानते हैं.
दलाई लामा से जुड़े अन्य रोचक तथ्य (Other Interesting Facts About Dalai Lama)
- दलाई लामा शान्ति के प्रचार-प्रसार के लिए पहचाने जाने वाले व्यक्ति हैं. उन्होंने सन 1989 में नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया था, जोकि उन्हें तिब्बत की स्वतंत्रता के लिए किए गये अहिंसात्मक संघर्ष एवं पर्यावर्णीय कार्यों के लिए दिया गया था.
- दलाई लामा ने अब तक 6 महाद्वीपों में 47 देशों की यात्रा की हैं और उन्होंने 150 अवार्ड्स, सम्मानीय डोक्टोरेट, पुरुस्कार इत्यादि जीते हैं, ये सब उन्हें शान्ति, अहिंसा, सर्व धर्म समभाव, जीव दया जैसे विषयों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार-प्रसार के कारण मिला हैं. उन्होंने 110 से भी ज्यादा पुस्तकों में को-ऑथर के तौर पर काम किया हैं.
- दलाई लामा विभिन्न धर्मों के मुखियाओं से मिलकर सर्व-धर्म समभाव की दिशा में काम करते रहते हैं. 1980 के मध्य में दलाई लामा ने आधुनिक वैज्ञानिकों के साथ भी संवाद किया था जिनमें साइकोलोजी, न्यूरोबायोलोजी, क्वांटम फिजिक्स और कोस्मोलोजी जैसे क्षेत्र के वैज्ञानिक भी शामिल थे, जिससे बुद्धिस्ट साधुओं और विश्व के वैज्ञानिकों के मध्य सामंजस्य स्थापित हुआ. इससे मानसिक शान्ति के लिए नए अवसरों की राह खुली, और इसके बाद ही निष्कासित तिब्बतियों के पुनर्निवासन वाले मठों के पारम्परिक पाठ्यक्रम में भी आधुनिक विज्ञान को शामिल किया गया.
इस तरह दलाई लामा वास्तव में कोई नाम नहीं हैं, ये बौद्ध धर्म में साधूओं में सर्वोच्च पद है, जिनका वर्षों से उदेश्य सिर्फ शांति का प्रचार करना ही रहा हैं, जबकि चीन द्वारा तिब्बत को हडपने के बाद उनकी स्थिति उस हद तक अच्छी नहीं थी कि वो अपने मन में प्रेम, करुणा को बनाये रख सके. लेकिन भारत में शरणार्थी के तौर पर रहते हुए दलाई लामा ने शान्ति, प्रेम, करुणा, सद्भाव का जो प्रचार किया हैं उसे पूरी दुनिया ने सराहा हैं.