जगन्नाथ मंदिर, पुरी का इतिहास, जुडी कहानी और रोचक जानकारियां | Jagannath Temple (Mandir) Puri History, Story and Interesting Facts In Hindi हिन्दू धार्मिक मान्यताओं में आपको चार धामों की यात्रा शब्द कही बार सुनने में आया होगा. आज हम हिन्दू धर्मं के वर्णित चार धामों में से एक जगन्नाथ पुरी के बारे में आपको विस्तार से बताएँगे. जगन्नाथ मंदिर उड़ीसा (Odisa) राज्य के एक स्थान पुरी में स्थित हैं. यह धाम भगवान जगन्नाथ (Bhagwan Jagannath) यानि भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित हैं. पुरी स्थान पर होने के कारण पूरे क्षेत्र को जगन्नाथ पुरी कहा जाता हैं. जगन्नाथ भगवान कृष्ण का ही एक नाम हैं जो कि दो शब्द जगन और नाथ से मिलकर बना हैं जिसका अर्थ होता हैं जग का स्वामी. जगन्नाथ उड़ीसा राज्य के समुद्री तट के नजदीक बसा हुआ हैं. इससे भुवनेश्वर कुछ ही दूरी पर हैं. इस मंदिर से, हर वर्ष मंदिर के मुख्य देवता भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भ्राता बलभद्र और भगिनी सुभद्रा के विशाल रथों की शोभा यात्रा निकाली जाती हैं. इस दिन भगवान मंदिर से निकलकर नगर का भ्रमण करते हैं. पुराणों में इसे धरती का वैकुंठ कहा गया है. यह भगवान विष्णु के चार धामों में से एक है. इसे श्रीक्षेत्र, श्रीपुरुषोत्तम क्षेत्र, शाक क्षेत्र, नीलांचल, नीलगिरि और श्री जगन्नाथ पुरी भी कहते हैं.
मंदिर स्थापना से जुडी कहानी (Jagannath Temple Story)
इस मंदिर का पहला प्रमाण सबसे पहले महाभारत के वनपर्व में मिलता हैं. जिसके अनुसार एक दिन मालवा के तेजस्वी राजा इंद्रदयुम्न के सपने में भगवान जगन्नाथ आये. सपने में भगवान जगन्नाथ इंद्रदयुम्न से कहते हैं कि “नीलांचल पर्वत की एक गुफा में मेरी एक मूर्ति है उसे नीलमाधव कहते हैं. तुम एक मंदिर बनवाकर उसमें मेरी यह मूर्ति स्थापित कर दो”. अगले ही दिन राजा ने अपने करीबी ब्राह्मण विद्यापति को सैनिकों के साथ नीलांचल पर्वत भेज दिया.
विद्यापति ने सुन रखा था कि सबर कबीले के लोग नीलमाधव की पूजा करते हैं और उन्होंने अपने देवता की इस मूर्ति को नीलांचल पर्वत की गुफा में छुपा रखा है. वह यह भी जानता था कि सबर कबीले का मुखिया विश्ववसु नीलमाधव का उपासक है उसी ने मूर्ति को गुफा में छुपा रखा है और वह आसानी से मूर्ति राजा को नहीं सौपेगा.
चतुर विद्यापति मुखिया की बेटी से विवाह कर लेते हैं. और अंतत वह अपनी पत्नी की सहायता से गुफा तक पहुँच जाते हैं और मूर्ति चुराकर राजा इंद्रदयुम्न को सौप देते हैं. जब विश्ववसु का यह पता चलता हैं कि उसके आराध्य देव की मूर्ति चोरी हो चुकी हैं तो वह बहुत दु:खी होता हैं. अपने परमभक्त को दुखी देख भगवान भी दुखी हो गए और मूर्ति के रूप में वापस गुफा में लौट आये लेकिन साथ ही राज इंद्रदयुम्न से वादा किया कि वो एक दिन उनके पास जरूर लौटेंगे बशर्ते कि वो एक दिन उनके लिए विशाल मंदिर बनवा दे.
कुछ वर्षो बाद राजा ने भगवान जगन्नाथ का विशाल मंदिर बनवा दिया और भगवान से मंदिर में विराजमान होने के लिए कहा. भगवान ने कहा कि तुम मेरी मूर्ति बनाने के लिए समुद्र में तैर रहा पेड़ का बड़ा टुकड़ा उठाकर लाओ, जो कि द्वारिका से समुद्र में तैरकर पुरी आ रहा है. राजा के सेवकों ने भी उस पेड़ के टुकड़े को तो ढूंढ लिया लेकिन सब लोग मिलकर भी उस पेड़ को नहीं उठा पाए. तब राजा को समझ आ गया कि इस समस्या में नीलमाधव के अनन्य भक्त सबर कबीले के मुखिया विश्ववसु की सहायता लेना पड़ेगी. सब उस वक्त हैरान रह गए, जब विश्ववसु अकेले भारी-भरकम लकड़ी को उठाकर मंदिर तक ले आए.
इसके बाद बारी आई लकड़ी से भगवान की मूर्ति गढ़ने की. लेकिन नगर के सभी कारीगरों की लाख कोशिशों के बाद भी लड़की को कोई तराश नहीं पाया. इसके बाद एक बूढ़े कारीगर के वेश में भगवान विश्वकर्मा प्रकट हुए और राजा के समक्ष आकर कहा वह मूर्ति बना तो सकते हैं लेकिन उनकी एक शर्त हैं उन्होंने अपनी शर्त रखी की 21 दिवस तक वह मूर्ति बनाने का कार्य करेंगे. मूर्ति बनाने के दौरान उनके समीप कोई भी नहीं होना चाहिए. राजा ने भी यह शर्त मान ली. इसके बाद बंद कमरे से लोगों को आरी, छैनी, हथौड़ी की आवाजें आती रहीं. इसी बीच राजा की पत्नी गुंडिचा भी बंद कमरे के निकट पहुँची लेकिन गुंडिचा को कोई भी आवाज नहीं सुनाई दी. गुंडिचा का यह आशंका हुई कि क्या कारीगर मर तो नहीं गया. रानी ने यह वृतांत राजा को सुनाया. अंदर से कोई आवाज सुनाई नहीं दे रही थी तो राजा को भी ऐसा ही लगा. सभी शर्तों और चेतावनियों को दरकिनार करते हुए राजा ने कमरे का दरवाजा खोलने का आदेश दिया.
जैसे ही कमरे का द्वार खोला गया वहाँ कोई मौजूद नहीं था. वहीँ से 3 अधूरी मूर्तियां मिली पड़ी मिलीं भगवान नीलमाधव और उनके भाई के छोटे-छोटे हाथ बने थे, लेकिन उनकी टांगें नहीं, जबकि सुभद्रा के हाथ-पांव बनाए ही नहीं गए थे. राजा समझ गए वह बुढा आदमी अब कभी नहीं आएगा. राजा ने भगवान की इच्छा मानकर इन्हीं अधूरी मूर्तियों को स्थापित कर दिया. तब से लेकर आज तक तीनों भाई-बहन इसी रूप में जगन्नाथ मंदिर में विराजमान हैं.
मंदिर का पुरात्विक इतिहास (Jagannath Temple History)
इस मंदिर का प्रथम बार जीर्णोद्धार 10 सदी में कलिंग के गंग साम्राज्य के राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव ने करवाया था. अन्वेषित ताम्र पत्रों से ज्ञात हुआ कि मंदिर के जगमोहन और विमान भाग का निर्माण राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव के शासनकाल के दौरान ही हुआ. उनके बाद अनंग भीम देव ने इस मंदिर को वह स्वरुप दिया जो कि आज हैं.
मंदिर में 400 सालों लग नियंतर पूजा चलती रही लेकिन साल 1558 में अफगान जनरल काला पहाड़ ने उड़ीसा पर हमला कर उस पर कब्ज़ा कर लिया. इस दौरान मंदिर को नुकसान भी पहुचाया गया और पूजा भी बंद करवा दी गयी. इस दौरान मूर्तियों को आक्रमणकारियों से बचाने के लिए इसे चिलिका झील मे स्थित एक द्वीप मे रखा गया. रामचंद्र देब द्वारा राज्य आजाद कराये जाने के बाद मंदिर में पुनः मूर्तियों की स्थापना की गयी.
जगन्नाथ पुरी का यह मंदिर 3 बार टूट चूका हैं और तीनों बार इसका जीर्णोद्धार करके मूर्तियों की पुनः स्थापना करायी गयी. इस मंदिर के आसपास कुल 30 छोटे-मोटे मंदिर स्थापित हैं.
मंदिर से जुडी धार्मिक कहानियां (Lord Jagannath Story)
जगन्नाथपुरी से बहुत सी कहानियां प्रचलित हैं. लेकिन सबसे ज्यादा प्रचलित कहानी यह हैं कि एक बार माता यशोदा, देवकी, सुभद्रा और सभी रानियाँ द्वारिका से वृन्दावन आई. द्वारिका आने के पश्चात सभी रानियाँ और सुभद्रा भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं को सुनाने का आग्रह करने लगी. माता यशोदा ने सुभद्रा को यह आदेश दिया कि जब तक वह कृष्ण की बाल लीलाओं को सुनाती रहेगी तब तक तुम द्वार का पहरा दोगी ताकि कृष्ण और बलराम भीतर न आ सके. माता यशोदा ने कृष्ण की लीलाओं की गाथा आरंभ की और जैसे-जैसे वो बोलती चली गईं सब उनकी बातों में मग्न होते गए. सुभद्रा भी द्वार का पहरा भूलकर कहानियां सुनने लग गई.
तभी अचानक कक्ष में कृष्ण और बलराम आ गए. मन्त्रमुग्ध सुभद्रा का ध्यान दोनों भाइयों पर नहीं गया. कृष्ण और बलराम भी कथाये सुनने लग गए. जैसे जैसे वह कहानी सुनते गए उनकी आँखें आश्चर्य के कारण और बड़ी होती चली गयी. तभी नाटकीय ढंग से नारदजी आ गए. नारद जी सबके हाव-भाव देखने लगे ही थे कि सबको अहसास हुआ कि कोई आ गया है. इस वजह से कृष्ण लीला का पाठ यहीं रुक गया. नारद जी ने कृष्ण जी के उस मन को मोह लेने वाले अवतार को देखकर कहा कि “वाह प्रभु, आप कितने सुन्दर लग रहे हैं. आप इस रूप में अवतार कब लेंगे?” उस वक्त कृष्ण जी ने कहा कि वह कलियुग में ऐसा अवतार लेगें.
कृष्ण द्वारा किये गए वादे के अनुसार भगवान राजा इंद्रदयुम्न के सपने में आये और मंदिर बनाने का आदेश दिया. उन्होंने राजा से कहा कि जिस प्रकार भगवान ने सपने में आकर इस विग्रह को बनाने की बात कही ठीक उसी प्रकार इसे अधूरा रखने के लिए भी द्वार खुलवा लिया. राजा ने उन अधूरी मूर्तियों को ही मंदिर में स्थापित करवा दिया. यही कारण है कि जगन्नाथ पुरी के मंदिर में कोई पत्थर या फिर अन्य धातु की मूर्ति नहीं बल्कि पेड़ के तने को इस्तेमाल करके बनाई गई मूर्ति की पूजा की जाती है.
जगन्नाथ मंदिर से जुडी रोचक बाते (Interesting Facts About Jagannath Temple)
- जगन्नाथ पुरी का यह मंदिर अपने कमाल के स्थापत्यकला के कारण दुनियाभर में मशहूर हैं. इस मंदिर से जुडी कई विचित्र बाते हैं जो अन्य किसी भी मंदिरों में नही देखने को मिलेगी. इस भव्य मंदिर को देखने के लिए लोग दूर दूर से यहाँ दर्शन करने के लिए आते हैं.
- मंदिर के ऊपर बंधी पताकाएं हमेशा विपरीत दिशा में ही लहराती हैं.
- पुरी में किसी भी स्थान पर खड़े होकर आप मंदिर के ऊपर लगे सुदर्शन चक्र को देख सकते हो. इसके अलावा इस चक्र की यह खासियत हैं किसी भी दिशा से देखने पर यह सदैव सीधा ही दिखाई देता हैं.
- मंदिर के ऊपर किसी भी पक्षी और जहाज को उडाता नहीं देखा सकता है.
- गुबंद इस प्रकार बनाया गया हैं कि दिन होने के बावजूद इसकी छाया दिखाई नहीं देती.
- सामान्य दिनों के समय हवा समुद्र से जमीन की तरफ आती है और शाम के दौरान इसके विपरीत, लेकिन पुरी में इसका उल्टा होता है.
- इस मंदिर में दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर हैं (puri jagannath temple kitchen) जिसका उपयोग प्रसाद बनाने के लिए किया जाता हैं. प्रसाद एक साथ 7 बड़े मिटटी के बर्तनों एक के ऊपर एक रखकर बनाया जाता हैं. ईंधन के रूप में यहाँ लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता हैं. इस प्रक्रिया में शीर्ष बर्तन में सामग्री पहले पकती है फिर क्रमश: नीचे की तरफ एक के बाद एक पकती जाती है.
- मंदिर में सिंहद्वार से प्रवेश करते ही सागर द्वारा निर्मित किसी भी ध्वनि को नहीं सुन सकते. इसे शाम के समय और साफ़ तरीकें से सुना जा सकता हैं.
- मंदिर परिसर में प्रसाद बनाने के लिए कुल 500 रसोइए एवं उनके 300 सहायक-सहयोगी एकसाथ काम करते हैं.
जगन्नाथ पुरी की समस्या (Jagannath Puri Problems)
- जगन्नाथ पुरी में भी किसी हिन्दू मंदिर की तरह पंडों का वर्चस्व हैं. लेकिन जगन्नाथपुरी में तो यह कई गुना ज्यादा हैं. मंदिर परिसर में जाने से पूर्व ही पंडे सैलानियों और भक्तों को घेर कर खड़े हो जाते हैं. पंडे किसी भी भक्त को धनपशु की तरह समझ रहे हैं. कदम कदम पर पंडे किसी न किसी पूजा के पैसे लेते रहते हैं. पुरी में मुख्य मंदिर के अलावा 30 अतिरिक्त छोटे मंदिर हैं जहाँ पर प्रसाद के अलावा जबरदस्ती पैसा चडाने की मांग करते हैं. इस मंदिर परिसर में तुलसी के पत्ते से लेकर चरणामृत के लिए दर्शनाथियों से पैसा वसूला जाता हैं. अन्य मंदिरों की तरह इस मंदिर में प्रसाद मिलता नहीं बल्कि पैसे देकर खरीदना पड़ता हैं. इसके अलावा हर प्रसाद के अलग अलग भाव चुकाने पड़ते हैं. जिस दिन मंदिर में छप्पन भोग का प्रसाद चढ़ाया उस दिन आपको तो किसी आम इंसान को प्रसाद मिल जाये यह तो संभव ही नहीं हैं. प्रसाद चढाते से दुकानों में बिक्री के लिए भेज दिया जाता हैं. इस बात से आप समझ सकते हैं कि मंदिर परिसर में आपको क्या दृश देखने को मिलेगा.
- इस मंदिर में ध्वज लगाने और उतरने का एकाधिकार एक ही परिवार के पास हैं उनके ही परिवार के लोग मंदिर की प्राचीर पर चढ़ते हैं और ध्वज लगाने और उतारने का काम करते हैं. जैसे ही शाम को मंदिर का ध्वज बदला जाता हैं बाजारों में उतारे गए ध्वजों की बिक्री शुरू हो जाती हैं. ऐसा आपने देश के अन्य किसी हिन्दू मंदिर में होते नहीं देखा होगा.
- किसी भी धार्मिक स्थल की तरह इस क्षेत्र में भी गन्दगी का साम्राज्य हैं. चार प्रमुख धामों में से एक यह स्थल सबसे ज्यादा दूषित हैं. इस गन्दगी का सबसे बड़ा कारण मंदिर के पंडे ही हैं जो कि धार्मिक आस्था के नाम पर दर्शनाथियों से तरह तरह की वस्तुएं रखीद्वाते हैं और फिर पूजा स्थल पर ही छोड़ जाते हैं. इसके अलावा मंदिर में हर जगह पंडों द्वारा थूकी गई पिक के निशान देखने को मिल जाते हैं. निगम द्वारा सफाई के तौर पर चुना लेप दिया जाता हैं लेकिन उस पर भी पंडों की कृपा हो जाती हैं.
- इस धार्मिक स्थल पर हिन्दुओं के अलावा किसी भी धर्म के व्यक्ति का जाना मना हैं. ऐसा रिवाज किसने और क्यों बनाया हैं इसके बारे में भी किसी को जानकारी नहीं हैं.
परिवहन (Puri Transport)
हवाईमार्ग
पुरी में हवाईअड्डा नहीं हैं इसके सबसे निकट भुवनेश्वर एअरपोर्ट हैं. जिससे इसकी दूरी लगभग 53 किलोमीटर हैं. एक अन्य हवाईअड्डा विशाखापत्तनम में हैं जिससे इसकी दूरी लगभग 372 किलोमीटर हैं.
ट्रेनमार्ग
ट्रेन द्वारा पुरी तक आसानी से पहुँचा जा सकता हैं मंदिर की रेलवे स्टेशन की दूरी 6 किलोमीटर हैं.
सड़क मार्ग
पुरी से हर बड़ा शहर सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ हैं. यहाँ पर 24 घंटे बस सुविधा उपलब्ध हैं.