अमरसिंह प्रथम (1597-1620 ई.)
मेवाड़ के महाराणा अमर सिंह प्रथम, मेवाड़ के महाराणा प्रताप के सबसे बड़े पुत्र और उत्तराधिकारी थे। वे सिसोदिया राजपूतों के मेवाड़ राजवंश के राणा थे और 19 जनवरी 1597 से 26 जनवरी 1620 तक अपनी मृत्यु तक मेवाड़ के शासक रहे। उनकी राजधानी उदयपुर थी
जन्म: 16 मार्च 1559, चित्तौड़गढ़
निधन: 26 जनवरी 1620, उदयपुर
माता-पिता: महाराणा प्रताप, महारानी अजबदे पुनवार
बच्चे: करण सिंह II, सूरजमल
दादा-दादी: उदय सिंह द्वितीय, महारानी जयवंता बाई, राव ममराख पंवार, हंसा बाई
पोते: जगत सिंह I
Maharana Amar Singh History in Hindi
महाराणा अमरसिंह का जन्म 16 मार्च, 1559 को महाराणा प्रताप की पत्नी अजबदे पंवार की कोख से हुआ महाराणा प्रताप की एक अन्य रानी छीहरबाई थी ।
महाराणा प्रताप के देहात के बाद 19 जनवरी, 1597 ई. को चावण्ड में अमरसिंह का राजतिलक किया गया ।
जहाँगीर ने मेवाड़ पर आक्रमण के लिए महावत खाँ, अब्दुल्ला खाँ व अपने पुत्र शाहजहाँ के नेतृत्व में प्रमुख सैन्य दल महाराणा अमरसिंह के विरुद्ध भेजे थे ।
मेवाड-मुंगल संधि मे हरिदास झाला व शुभकर्ण ( महाराणा की ओर से ) तथा मुल्ला शकुल्लाह शीराजी और सुदंरदास ( शाहजहाँ की और से ) जहाँगीर के पास गये थे । संधि के बाद जहांगीर ने कुँवर कर्णसिंह को रतलाम, फुलिया, बांसवाडा, नीमच, अरनोद आदि परगने जागीर में दिये थे ।
5 फरवरी, 1615 ई. में मेवाड़ के अमरसिंह प्रथम व मुगल शासक जहाँगीर के बीच मुगल मेवाड संधि हुई ।
इस संधि पर मुगलों की तरफ से खुर्रम व मेवाड़ की ओर से अमरसिंह प्रथम ने हस्ताक्षर किए ।
1615 ई में मेवाड के अमरसिंह प्रथम व मुगल शासक जहाँगीर के बीच मुगल मेवाड संधि हुई ।
मुगल मेवाड संधि के बाद 1050 वर्ष बाद मेवाड स्वतंत्रता का अंत हुआ ।
मुगल मेवाड संधि की शर्ते निम्न थी
- मेवाड का राजा कभी मुगल दरबार में उपस्थित नहीं होगा व शाही सेना में महाराणा एक हजार सवार रखेगा ।
- मेवाड के राजा का पुत्र मुगल दरबार में उपस्थित होगा ।
- चितौडगढ दुर्ग की किलेबन्दी और निर्माण नहीं करवाया जाएगा ।
- मेवाड मुगलों से कोई वैवाहिक संबंध स्थापित नहीं करेगा ।
मुगलों की अधीनता स्वीकार करने वाला मेवाड़ का प्रथम महाराणा अमरसिंह था ।
मुगल मेवाड संधि के दुख़ से अमर सिंह प्रथम ने राजपाट त्याग कर वैरागी जीवन बिताया और राजसमंद झील के किनारे 26 जून, 1620 ई. को अंतिम सांस ली तथा आहड़ (उदयपुर) में इनका अंतिम संस्कार किया गया ।
आहड़( उदयपुर ) की महासत्तियों में सबसे पहली छतरी महाराणा अमरसिंह प्रथम की छतरी है
आहड़ को मेवाड़ के महाराणाओं का शमशान भी कहते है ।
1605 ई. में मेवाड स्कूल की चावण्ड चित्रकला शैली का स्वर्णकाल अमरसिंह प्रथम का काल था इसके समय चित्रकार नासिरूद्दीन ने रागमाला पर चित्र बनाया ।
कर्णसिंह (1620-1628 ई.)
महाराणा अमरसिंह की मृत्यु के बाद मेवाड का महाराणा कर्णसिह का राज्यभिषेक 26 जून, 1620 ई. को किया गया
कर्णसिंह ने पिछोला झील (उदयपुर) में जग मन्दिरों का निर्माण शुरू करवाया । लेकिन पूर्ण इसके पुत्र जगतसिंह प्रथम ने करवाया ।
1622 ई. में शाहजहाँ ( खुर्रम ) को जग मन्दिर में शरण दी ।
शाहजहां ने इन्ही जगमन्दिरों को देखकर ताजमहल बनवाने का विचार किया ।
खुर्रम ( शाहजहाँ ) ने अपने मेवाड प्रवासकाल के दौरान गफुर बाबा की मज्जार बनवाई ।
मुगल दरबार में उपस्थित होने वाला पहला राजकुमार कर्णसिंह सिंह था
महाराणा कर्ण सिंह मेवाड का प्रथम राजा था, जो मुगल दरबार में ‘एक हजार मनसब ‘ के साथ उपस्थित हुआ ।
कर्णसिंह ने उदयपुर को अपनी राजधानी बनाया जो कि स्वतंत्रता तक मेवाड की राजधानी रही ।
महाराणा कर्ण सिंह ने उदयपुर में दिलखुश महल व कर्ण विलास का निर्माण करवाया ।
उदयपुर का जगमंदिर तीन राजाओं ( महाराणा कर्णसिंह, महाराजा जगतसिंह प्रथम, जगतसिंह द्वितीय ) द्वारा निर्मित करवाया गया
जगनसिंह प्रथम (1628–1652 ई. )
महाराणा जगतसिंह प्रथम का राज्यभिषेक 28 अप्रेल, 1628 ई में हुआ । जगतसिंह प्रथम ने पिछोला झील में बने जगमन्दिरों का निर्माण पूर्ण करवाया इसी के नाम पर इन मंदिरों का नाम जगमन्दिर पड़ा ।
महाराणा जगतसिंह प्रथम की धाय माँ नौजूबाई ने उदयपुर में ‘ धाय मंदिर ‘ का निर्माण करवाया था तथा जगतसिंह प्रथम ने पंचायतन शेली (नागर शैली) के विष्णु मंदिर का निर्माण भी करवाया ।
मेवाड़ चित्रकला शैली का स्वर्णकाल जगतसिंह प्रथम का काल था । जगतसिंह प्रथम ने अपने दरबार में चित्रकारों को विकसित करने के लिए चितरों री ओवरी ( तस्वीरां रो कारखानों ) नामक संस्था बनायी ।
जगतसिंह प्रथम की मृत्यु 1652 ई में हुई ।