Partition of Bengal in Hindi, 19वी शताब्दी के प्रारंभ में अंग्रेजों के द्वारा किये गये कुछ परिवर्तन या कुछ फैसले ऐसे थे जिन्होंने भारत की स्वतन्त्रता में अभूतपूर्व योगदान दिया था. ऐसा ही एक फैसला था “बंगाल के विभाजन का फैसला,जिसे बंग-भंग के नाम से भी जाना जाता हैं. अंग्रेजों के बंगाल को तोड़ने के निर्णय के साथ ही देश में एक नई क्रान्ति की लहर दौड़ पड़ी थी, और स्वतन्त्रता के लिए प्रयासरत क्रांतिकारियों को एक नई दिशा भी मिल गयी थी. इससे अब तक अंग्रेजों का छूपा उद्देश्य और राज करने का तरीका भी खुलकर आम-जन के सामने आ गया था. इसलिए भले देश को इसके बाद भी 40-42 वर्ष तक स्वतंत्रता नहीं मिली हो लेकिन ये कहा जा सकता हैं कि इस निर्णय ने देश की स्वतंत्रता और विभाजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. 1857 की क्रांति के बारे में जानने के लिए यहाँ पढ़े।
बंगाल का विभाजन किसने किया (Who was responsible for the Partition of Bengal)
बंगाल विभाजन का फैसला ब्रिटिश वायसराय लार्ड कर्जन के द्वारा लिया गया था. हालांकि उस समय के राष्ट्रवादी नेताओं ने इस निर्णय और कर्जन का भारी विरोध किया था,जिससे इंडियन नेशनल कांग्रेस को आम-जन का भारी समर्थन मिलने लगा था.
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बंगाल विभाजन कब हुआ (Year of Partition of Bengal)
16 अक्टूबर 1905 को हुए बंग-भंग से देश को बहुत बड़े परिवर्तन का सामना करना पड़ा था. हालाँकि इससे अंग्रेज सरकार के कुछ ऐसे उद्देश्य पूरे हुए जिससे अंतत: भारतीयों की बहुत हानि हुई. इससे पहले बंगाली हिन्दुओं की गवर्नेंस में काफी धाक थी जो कि इस विभाजन के बाद कम हो गयी. हिन्दुओं ने इस विभाजन का विरोध किया था. विभाजन से राष्ट्रीय स्तर पर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ रोष फ़ैल गया था,जिसमें हिंसक और अहिंसक आंदोलन शामिल थे. यहाँ तक कि वेस्ट बंगाल के नए बने प्रोविनेंस के गवर्नर की हत्या तक की भी प्लानिंग की थी.
बंगाल विभाजन क्यों किया (Reason of Partition of Bengal)
- बंगाल विभाजन का मुद्दा पहली बार 1903 में उठा था. इसके लिए कुछ अतिरिक्त प्रस्ताव भी आये थे,जिसमें चित्तागोंग (Chittagong) को अलग करना और ढाका और म्य्मेंसिंह (Mymensingh) को जिला बनाकर उन्हें आसाम में शामिल करना था. परंतु इस जानकारी की आधिकारिक घोषणा 1904 में की गई थी. इस विभाजन के लिए ब्रिटिश वायसराय ने बंगाल के पूर्वी जिलों का आधिकारिक दौरा किया,जिससे विभाजन पर आम जनों का मत भी जान सके. इस दौरान उसने बंगाल के कुछ महत्वपूर्ण व्यक्तियों से इस मुद्दे पर बात की,और ढाका,चित्तान्गोंग और म्य्मेंसिंह में में एक भाषण दिया जिसमे विभाजन पर सरकार का पक्ष समझाया. कर्जन ने इसके कारण भी समझाये कि “ब्रिटिश राज के अंतर्गत बंगाल, फ्रांस जितना बड़ा हैं,इसकी जनसंख्या ग्रेट ब्रिटेन और फ्रांस को मिलाकर जितनी हैं,इस कारण इसे तोड़ने से प्राशासनिक प्रगति होगी ” लार्ड कैनिंग के बारे मे जानने के लिए यहाँ पढ़े
- बिहार और उड़ीसा और पूर्वी क्षेत्र विशेष रूप से अंडर-गवर्नड थे. कहा जाता हैं कि कर्जन, हिन्दुओ का विभाजन नहीं चाहते थे,जो कि उस समय पश्चिम में मेजोरिटी में थे जबकि पूर्व में मुस्लिम थे. उनका प्लान आसाम (जो कि 1874 तक बंगाल का हिस्सा था)के पूर्वी भाग को वापिस जोड़ना था,और 31 लाख जनसंख्या वाले क्षेत्र का न्यू प्रोविंस बनाना था जिसमे 59% मुस्लिम थे.
- इस प्लान में ये भी शामिल था कि बंगाल में शामिल 5 हिंदी भाषी राज्यों को मिलाकर एक केंद्र में सेन्ट्रल प्रोविंस बनाया जाए. इसके बदले में पश्चिमी क्षेत्र में सम्बलपुर और 5 छोटे उड़िया भाषी राज्य सेन्ट्रल प्रोविंस से मिलने वाले थे. इससे बंगाल 141,580 स्क्वेयर मील के एरिया का बन जाता और इसकी जनसंख्या 54 मिलियन हो जाती जिसमें 42 मिलियन हिन्दू जबकि मुस्लिम 9 मिलियन होते. हालांकि पश्चिम में बंगाली बोलने वालो की संख्या बिहारी और उड़िया बोलने वालो की अपेक्षा काफी कम थी, नए प्रांत के प्रशासन में एक विधान परिषद, दो सदस्यों के राजस्व बोर्ड, और कलकत्ता उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को निर्विवाद छोड़ देना का सोचा गया था.
- सरकार ने ये भी कहा कि कि पूर्वी बंगाल और असम में स्पष्ट रूप से पश्चिमी सीमा और भौगोलिक, जातीय, भाषाई और सामाजिक विशेषताओं की सीमा तय की जाएगी. सरकार ने 19 जुलाई, 1905 के एक प्रस्ताव में अपना अंतिम निर्णय जारी किया, और इस तरह उसी वर्ष 16 अक्टूबर को भारत के इस महत्वपूर्ण हिस्से का विभाजन शुरू हुआ
- अंग्रेजों की इस सन्दर्भ में एक ही नीति थी “फूट डालो और राज करो”. लार्ड कर्ज़न ने कहा “बंगाल एक शक्तिशाली राज्य हैं,इसके विभाजन से बंगालियों में काफी तरीके से विभाजन हो जाएगा. वास्तव में बंगाली समुदाय ही पहला वर्ग था जिसने अंग्रेजी शिक्षा का लाभ उठाया था, समस्त बुद्दिजीवी और सिविल सर्विसेस में जाने वाले लोग में भी बंगाली समुदाय की प्रधानता थी.इसी तरह सरकारी महकमे में भी बंगालियों की प्रधानता थी, इस तरह बंगाल के विभाजन से उनका प्रभाव कम होना स्वाभाविक था. इससे राष्ट्रीय स्तर पर चल रहें संघर्ष में भी विभाजन हो गया था. बंगाली जो खुदको एक राष्ट्र मानते थे, वो अपने ही प्रोविंस में भाषा संबंधित अल्प-समुदाय में शामिल नही होना चाहते थे. हिन्दू जो कि अल्प-संख्या में होकर भी प्रभावशाली थे और मुस्लिम बहूल होने पर भी उनकी प्रभाविता नहीं थी इसलिए अंग्रेजों ने हिन्दू-मुस्लिम को एक दुसरे के सामने करने की सोची. यूनाइटेड प्रोविंस की राजधानी कलकत्ता अब भी ब्रिटिश इंडिया की राजधानी थी,जिसका मतलब था बंगाली ही ब्रिटिश शक्ति का केंद्र थे, इसके अलावा बंगाली मुसलमानों को अंग्रेजों का वफादार माना जाता था,क्योंकि उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ 1857 की क्रान्ति में भाग नहीं लिया था.
बंगाल विभाजन का महत्व (Importance of Partition of Bengal)
बंगाल विभाजन को भारत के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता हैं,इसका कारण हैं कि ये किसी राज्य का सामान्य विभाजन नही था बल्कि अंग्रेजों द्वारा देश के बंटवारे के लिए रखी गयी नीव थी. जिसका तत्कालीन परिप्रेक्ष्य में भले धर्म और भाषा का आधार रहा हो लेकिन अंग्रेज इसे तब भी समझ सकते थे कि ये निर्णय दीर्घकाल में देश के साथ धर्म के आधार पर भी भारतीयों को बाँट सकता हैं,जो कि दुर्भाग्यवश सच सिद्ध हुआ.
बंगाल विभाजन आंदोलन (Revolution for Partition of Bengal))
- जैसे ही बंग-भंग समन्धित योजना की घोषणा हुयी,बंगाली समुदाय ने अंग्रेजों के खिलाफ अपना रोष व्यक्त करना शुरू कर दिया, इसके लिए सबसे पहले उन्होंने ब्रिटिश सामानों का बहिष्कार किया. ये विरोध मुख्तया हिन्दू समुदाय का था इनके साथ ढाका के नवाब ने भी पहले इसका विरोध किया,जबकि ढाका तो नए प्रोविंस की राजधानी के रूप में प्रस्तावित थी.
- बंगाल के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर सर एंड्रयू फ्रेंसर पर बंगाल विभाजन का विरोध करने वाले क्रांतिकारियों ने हमला किया. वैसे बंग-भंग के विरोध में पूरे भारत से आवाजें उठ रही थी.क्योंकि ये बात हर कोई समझ रहा था कि अंग्रेज अब देश तोड़ने की तरफ अग्रसर हैं. कलकता में बहुत सी रैलियां,निकाली जा रही थी,विदेशी वस्तुओं की होली जलाई जा रही थी.वास्तव में स्वदेशी आन्दोलन की शुरुआत भी यही से हुई थी.
- रबिन्द्रनाथ टैगोर ने अमार शोनार बांग्ला भी बंग-भंग के विरोध में लिखा था,जो कि कालान्तर में 1972 में बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान बना. 1905 में टैगोर का लिखा “वन्दे मातरम” भी क्रांतिकारियों के लिए राष्ट्र गान बन गया था. क्रांतिकारियों के लिए बंगाल पवित्र भूमि बन गयी थी क्योंकि वहाँ माँ काली की पूजा होती थी जो कि विनाश की देवी मानी जाती थी,इसलिए क्रांतिकारियों ने अपने हथियार उन्हें समर्पित कर दिए.
बंगाल विभाजन के परिणाम और प्रभाव (Impact and Result of Partition of Bengal)
- बंगाल विभाजन से देश में राजनीतिक परिवर्तन हुए. पूर्वी बंगाल में शुरूआती विरोध के बाद मुस्लिम ने इस व्यवस्था को अपना लिया था और ये मानने लगे थे कि अलग से बना राज्य उन्हें शिक्षा,रोजगार में आगे बढ़ने का मौका देगा. हालांकि ये विभाजन पश्चिम बंगाल के समुदाय को पसंद नहीं आया था,जहां पर राष्ट्रवाद के लिए कई शक्शियत तैयार हो रही थी. इंडियन नेशनल कांग्रेस के तरफ से सर हेनरी कॉटन ने इसका विरोध किया जो कि आसाम के चीफ कमिश्नर थे,लेकिन कर्ज़न अपने फैसले से नहीं हिले. उनके अनुयायी लार्ड मिन्टो ने भी बंगाल का विभाजन करना मुश्किल निर्णय माना और कहा इससे बंगाली राजनैतिक आन्दोलन को दबाने में सहायता मिलेगी. क्योंकि बढती हुयी बुद्धिजीवियों की संख्या अंग्रेज सरकार के लिए कही से भी हितकर नहीं हैं.
- बंगाल विभाजन के बाद चले स्वदेशी आन्दोलन से कई शैक्षिक परिवर्तन भी हुए जिनमे बंगाल नेशनल कॉलेज की स्थापना हुयी. वास्तव में इससे पहले बंगाल फ्रांस जितना बड़ा राज्य था, इसके पूर्वी क्षेत्र को पहले उपेक्षित और अव्यवस्थित माना जाता था लेकिन विभाजन के बाद यहाँ एडमिनिस्ट्रेशन में सुधार हुआ. और यहाँ के आम-जन को भी नयी स्कूल खुलने से और रोजगार के अवसर मिलने से फायदा हुआ
स्वराज्य की मांग(Swaraj Ki Maang after Partition of Bengal)
बंगाल विभाजन से कई क्रांतिकारीयों को सही दिशा मिल गयी थी, इन क्रांतिकारीयों के नामों में 3 नाम लाला लाजपत राय,बाल गंगाधर तिलक,बिपिनचंद्र पाल के भी शामिल थे. इन्हें लाल-बाल-पाल के नाम से भी जाना जाता हैं. इन लोगों ने सबसे पहले स्वराज की मांग की थी. बाल गंगाधर तिलक ने तो ये नारा भी दिया था “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार हैं,मैं इसे लेकर ही रहूँगा”. बंगाल विभाजन के आस- पास ही देश में दो दल गरम दल और नरमदल बन गये थे, जिनमे से गरम दल का प्रतिनिधित्व ये तीनों नेता ही कर रहे थे. जो हर हाल में अंग्रेजों को देश से बाहर करना चाहते थे,इसी कारण गरम दल के नेता नरमदल के नेता से ज्यादा लोकप्रिय भी थे. 1906 में कलकत्ता में दादा भाई नौरोजी के नेतृत्व में इंडियन नेशनल कांग्रेस के सेशन का आयोजन हुआ था,जिनका सम्मान गरम और नरमदल के नेता समान रूप से करते थे. लेकिन इस सेशन में गरम दल प्रभावी रहा और उन्होंने ये प्रण करवाए जिनमें निम्न प्रमुख हैं-
- बंगला विभाजन के विरुद्ध संकल्प
- स्वराज्य की मांग
- स्वदेशी अपनाने का संकल्प
- बहिष्कार का संकल्प
इस तरह दादाभाई नौरोजी के नेतृत्व में स्वराज की मांग को प्रमुखता से कांग्रेस ने अपनाया और माना कि भारतीयों की मुख्य मांग स्वराज्य ही हैं,लेकिन नरम दल के नेताओं ने कुछ राजनीति की. वो खुद को कट्टर साबित नहीं करना चाहते थे.इसलिए उन्होंने एक अन्य रास्ता निकाला और कहा कि स्वराज्य का मतलब हैं आत्मनिर्भर ब्रिटिश उपनिवेश” इस तरह उन्होंने स्वराज्य की परिभाषा ही बदलकर रख दी,जिससे बंगाल विभाजन के साथ ही कांग्रेस के विभाजन की भी दिशा बन गयी.
बंगाल विभाजन कब रद्द हुआ (When did Partition of Bengal Diluted)
इस तरह लगातार विरोध के कारण ही 1911 में बंगाल का पुन: एकीकरण हुआ.एक नया विभाजन हुआ जिसमे प्रोविंस को भाषा के आधार पर विभाजित किया गया ना कि धर्म के आधार पर . जिसमें हिंदी,उड़िया और आसामी बोलने वाले क्षेत्र एक अलग एडमिनिस्ट्रेटिव यूनिट में शामिल हुए जबकि ब्रिटिश इंडिया की एडमिनिस्ट्रेटिव राजधानी कलकत्ता से उठकर दिल्ली शिफ्ट हो गयी.
ढाका अब राजधानी नही थी, इसलिए उसे इसके स्थान पर भरपाई में 1922 में एक यूनिवर्सिटी दी गई,कर्ज़न हॉल भी नयी फाउंडेशन को पहली बिल्डिंग के तौर पर दिया गया (1904 मेंविभाजन के लिए कर्ज़न हॉल बना था).
राष्ट्रीय शोक दिवस (Rastriya Shok Diwas)
बंगाल विभाजन से भारतीय इस हद तक आहत हुए थे कि 16 अक्टूबर 1905 को राष्ट्रीय शोक दिवस तक मनाया गया. रबीन्द्र्नाथ का लिखा “आमार सोना बँगला” गीत गाते हुए कई लोग सडकों पर उतर आये थे. बहुत से लोग तो नंगे पैर वन्दे मातरम् गाते हुए गंगा घाट तक गए थे. हिन्दू और मुस्लिम ने एक दुसरे को राखी बाँधी,जिससे की ये जाहिर हो सके कि उनमे एकता हैं.वास्तव में ये विभाजन भले 6 वर्ष तक ही रहा हो लेकिन इससे भारतीय जनमानस में बहुत से परिवर्तन हो गये थे. अंग्रेजों के बहिष्कार में सबसे पहले स्वदेशी अभियान चलाया गया. लेकिन लोगों ने महसूस किया कि स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग और अंग्रेज सरकार का बंग-भंग विरोधी अभियान में महत्वपूर्ण योगदान हैं.
बंगाल विभाजन और स्वदेशी आन्दोलन
- बंगाल विभाजन के साथ ही जो आन्दोलन सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुआ वो स्वदेशी आन्दोलन था, जिसका प्रभाव बंगाल में ही नहीं बंगाल के बाहर भी रहा था. इसके मुख्य सूत्रधार अरबिन्दो घोष, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक,बिपिन चन्द्र पाल और लाला लाजपत राय,वीओ चिदंबरम पिल्लई थे . वैसे भी बंगाल विभाजन का प्रस्ताव आम-जन के बीच में 1903 में ही आ चूका था इसलिए इसकी भूमिका भी तब ही बननी शुरू हो गयी थी.
- बंगालियों ने बहिष्कार अभियान 1903 से 1905 के बीच में चलाया था जिसमें उन्होंने मौखिक विरोध,अपील, बहुत सी याचिकाएं और कांफ्रेस आयोजित करके अंग्रेज सरकार को हिलाने का कम किया. वास्तव में ये बहिष्कार ही स्वदेश अभियान था.
- इस अभीयान की सफलता के लिए अश्विनी कुमार दत्त ने स्वदेश बंधाब (Bandhab) समिति बनाई, जिसकी 159 शाखाएं जिले के सुदूर गाँवों तक पहुच गई और वहाँ पर स्वदेशी के संदेश को पहुचाती थी.
- स्वदेशी आन्दोलन से देश में भारतीय सामग्री की मांग बढ़ गयी इसलिए नई इंडस्ट्री स्थापित करने की जरूरत महसूस हुयी. जेएन टाटा (J N Tata) ने आयरन और स्टील की फैक्ट्री स्थापित की, प्रफुल चन्द्र राय ने बंगाल केमिकल फैक्ट्री लगाई, इस आन्दोलन के दौरान ही मेनचेस्टर क्लॉथ को निशाना बनाया गया
- स्वदेशी आन्दोलन को घर-घर तक पहुंचाने के लिए अखबार,गानों,और विदेशी कपड़ों,शक्कर और नमक की होली जलाने से जैसे कई कार्य किये गए, ब्राह्मणो ने ऐसे किसी भी घर में शुभ कार्य करने से मना कर दिया जहाँ पर यूरोपियन नमक या शक्कर का उपयोग होता हो.
बंगाल विभाजन पर टिप्पणी(Team View On Partition of Bengal)
बर्मा स्वतंत्रता से 10 वर्ष पूर्व ही भारत से अलग हुआ था. जबकि पाकिस्तान विभाजन के समय और बांग्लादेश 1972 में पाकिस्तान से अलग हुआ था. इस तरह ये कहा जा सकता हैं कि आज के समय में भारत की अपने पडोसी देशों से जुडी सभी समस्याओं की नीव वास्तव में बंग-भंग के दौरान ही रखी गयी थी. अंग्रेजों का मुस्लिम बहुल इलाके को अलग राज्य बनाने के फैसले ने एक नहीं, 2 नहीं पूरे 3 अलग देश बना दिए,पता ही नहीं चला. इससे ना केवल भूमि का बंटवारा हुआ, आम-जन के मध्य का सौहार्द भी कम होता चला गया.
अंग्रेजों की हिन्दू-मुस्लिम के मध्य फूट डालो राज करो की नीति ने देश को आज एक बहुत बड़ी समस्या के सामने लाकर खड़ा कर दिया. और पश्चिमी बंगाल तो आज तक इस समस्या से ऊपर नहीं आ सका है. वर्तमान परिस्थियों का विश्लेषण करे तो म्यांमार में अल्पसंख्यक सुमदाय मुस्लिम जनसंख्या (रोहिंग्या) आज भारत में शरण लेना चाहती है,जिससे ना केवल बंगाल में राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल मची हैं,बल्कि ये एक राष्ट्रीय मुद्दा बना चूका हैं. वहीं बांग्लादेश से प्रति वर्ष लाखों की संख्या मे मुस्लिम शरणार्थी आज भी भारत में अवैध घुसपैठ कर रहे हैं, इससे ना केवल बंगाल बल्कि आसाम और पूर्वी सीमावर्ती राज्य भी कई वर्षो से प्रभावित हैं. इसके अलावा भारत की पाकिस्तान से जुडी समस्याएं तो जग-जाहिर हैं.